शनिवार, 1 मार्च 2008
भारतीय गाल पर जर्मन का तमाचा
डॉ. महेश परिमल
शीर्षक आपको अवश्य चौंका सकता है, पर यह बिलकुल सच है कि एक जर्मन व्यक्ति ने भारत सरकार के गाल पर जिस तरह से तमाचा मारा है, उससे हम सबका सर शर्म से झुक जाना चाहिए।पर हम सब इतने बेशर्म हैं कि हमें कोई फर्क नहीं पड़ता।फर्क पड़ भी नहीं सकता, क्योंकि ऐसे कई मामले हो चुके हैं, जिसमें हमें बार-बार शर्मिंदा होना पड़ता है। शर्मिंदा होने का यह सिलसिला लगातार जारी है।हम केवल घोशणाएँ ही करते रहते हैं, या फिर बातों की जुगाली। जिन्हें करना होता है, वे बिना किसी प्रचार के अपना काम कर जाते हैं और किसी को कानों-कान खबर भी नहीं होती।कोई हमारी ही धरती पर हमें ही शर्मिंदा करके चला जाए, यह हमें मंजूर है, पर उसने ऐसा क्यों किया, यह जानने की जहमत हम नहीं उठाना चाहते।
हुआ यूँ कि एक जर्मन व्यक्ति अभी पिछले सप्ताह ही भारत का स्वर्ग देखने आए।कश्मीर की वादियों में विचरते हुए वे भारतीयों की किस्मत पर रश्क करने लगे, इतनी अच्छी जगह में भारतीयों को रहने का अवसर मिला है।घूमते-घूमते वे श्रीनगर की सुप्रसिध्द डल झील देखने गए, वहाँ का जो हाल उन्होंने देखा, तो दंग ही रह गए।एक खूबसूरत झील किस तरह से बरबाद हो रही है। पूरी झील पॉलीथीन से अटी पड़ी थी।कोई देखने वाला नहीं था, सभी डल झील के सौंदर्य को देख रहे थे, पर उस बदसूरती की तरफ देखने वाला कोई नहीं था।तब उस सज्जन व्यक्ति ने एक फेसला किया।उन्होंने अपने खर्च पर डल झील की सफाई का बीड़ा उठाया और उसे पॉलीथीन से मुक्त कराया।यह काम उन्होंने बड़ी ही ईमानदारी से किया।जिसकी कई लोगों ने प्रशंसा की।लेकिन वहाँ के जिला प्रशासन ने इसे सरकार के मुँह पर तमाचा निरूपित किया।इस तरह से कोई अपना काम ईमानदारीपूर्वक करते हुए अनजाने में ही पूरे जिला प्रशासन ही नहीं, बल्कि सरकार पर हावी हो सकता है भला?
आज पॉलीथीन का राक्षस पूरे देश में आतंक फैला रहा है, इसके आतंक से इंसान ही नहीं, बल्कि जानवर और पशु-पक्षी भी आक्रांत हैं।समुद्र ही नहीं, नदी, नाले, पोखर तक इसके चँगुल में फँस चुके हैं।अक्सर पढ़ने को मिल जाता है कि किसी जानवर की मौत केवल इसलिए हो गई कि उसने बहुत सारी पॉलीथीन खा ली थी।कई बार तो दुधारू गाय भी केवल इसलिए मर जाती है कि उका पेट पॉलीथीन से भरा हुआ था।सोच लो उस गाय का दूध कितना विशैला होगा, उस दूध को न जाने कितने मासूमों ने पिया होगा और न जाने कितने मासूम काल-कवलित हुए होंगे? इस दिशा में सरकार की तमाम घोशणाएँ फाइलों में ही अटक गई हैं।इससे तो अच्छा वह छोटा सा बंगला देश है, जहाँ एक बार पॉलीथीन पर प्रतिबंध लगाया, तो उसे पूरी सख्ती के साथ अमल में लाया।भारत सरकार को इस दिशा में कुछ सोचना होगा।
इन दिनों बारिश का जोर है, एक बारिश से शहरों की हालत खराब हो जाती है।गङ्ढे उफनते लगते हैं, नालियाँ चोक होने लगती है। इसका कारण जानना चाहें, तो स्पश्ट होगा कि इसकी मुख्य वजह पॉलीथीन की थैलियाँ थीं, जो कहीं जाकर अटक गई थी, जिससे पानी रूक गया।बारिश के ठीक पहले हमेशा ही सरकारी घोशणाएँ होती हैं, इन घोशणाओं को खूब प्रचार भी मिलता है, पर बारिश होते ही इन घोशणाओं की पोल खुल जाती है।पॉलीथीन का उपयोग न करने के लिए खूब घोशणाएँ होती हैं, पर वे सभी कागजी होती हैं।अब सुप्रीम कोर्ट ने सार्वजनिक स्थानों पर धूम्रपान पर पाबंदी लगा दी है, पर आज भी उस पाबंदी की खुले आम धज्जियाँ उड़ाई जा रही है।इसी तरह हमारे पर्यावरणविदों द्वारा सरकार को कई सुझाव दिए गए हैं, पर वे सभी सुझाव फाइलों में बंद हो गए हैं।सरकार द्वारा उन सुझावों की तरफ ध्यान देने की आवश्यकता ही नहीं समझी गई।
पॉलीथीन के खिलाफ जो भी लड़ाई है, वह हमें स्वयं से ही शुरू करनी होगी।सुबह की पहली किरण के साथ यदि हमें यह संकल्प ले लें कि आज हमें किसी भी हालत में पॉलीथीन का इस्तेमाल नहीं करना है, तो यह संकल्प हमें अपने साथ एक जूट या फिर कपड़े का थैला लेकर निकलने के लिए विवश करेगा। दुकानदार यदि हमें पॉलीथीन में कुछ सामान भी दे, तो हमें विनम्रतापूर्वक मना करना होगा।हमारे यह कार्य उल्लेखनीय तो नहीं होगा, पर हमें यह तो संतोश होगा कि इस दिशा में हमने पहला कदम तो बढ़ाया। हमारे इस क्रियाकलाप का असर संभवत: हमारे कुछ मित्रों को हो, यदि हमारे इस संकल्प को हमारा एक मित्र भी अपनाता है, तो यह हमारे लिए एक उपलब्धि होगी।हमें अपने कार्यों से यही बताना होगा कि पॉलीथीन का उपयोग समाज के लिए विनाशकारी है, इस अधिक उपयोग हमारी भावी पीढ़ी का बरबाद कर देगा।
सरकार की हितकारी योजनाओं का खूब प्रचार होता है, पूरा मीडिया उसे दूर-दूर तक फैलाने में कोई कसर नहीं छोड़ता, फिर ये योजनाएँ उन तक पहुँचीं कि नहीं, यह बताने के लिए कोई सामने नहीं आता।इसका उदाहरण्ा देखना हो, तो किसी भी मंत्री के दौरे के बाद उस स्थल की ओर ध्यान दिया जाए, सारी पोल खुल जाएगी।जहाँ-जहाँ उस समय हरे-भरे पेड़ रहे होंगे, वहाँ मैदान साफ मिलेगा।इस देश में दिखावा इतना अधिक है कि केवल किसी मंत्री के इंतजार में ही कई परियोजनाओं का उद्धाटन ही नहीं हो पाता, या फिर देर से होता है।इस स्थिति में यह कैसे सोचा जा सकता है कि सरकार के अच्छे कार्यों की प्रशंसा होगी?
सरकार को इस दिशा में ईमानदारी से सचमुच ही कुछ करना है, तो उसे पॉलीथीन के उपयोग पर तुरंत ही रोक लगाना चाहिए। पॉलीथीन के सारे कारखानों को बंद करने के आदेश जारी करने चाहिए।इन दो कामों से सरकार की साख बढ़ेगी। उसके बाद एक कदम आगे बढ़ाकर सरकार यदि इसे पाठयक्रमों में भी शामिल कर दे, तो बच्चे पॉलीथीन के खतरे को समझेंगे।उनमें इसके उपयोग पर जागरूकता आएगी।देश के भावी नागरिक ही यदि वर्तमान में इसके प्रति सावधान हो गए, तो इस विनाशकारी पॉलीथीन का साम्राज्य कभी नहीं फैल पाएगा।
सरकार को सचमुच देश का विकास करना है, तो उसे पॉलीथीन पर सख्ती से प्रतिबंध लगाना होगा।यह सख्ती प्रभावशाली होनी चाहिए।नहीं तो आज भी स्कूलों के सामने गुटखों की खुले आम बिक्री जारी है, ट्रेनों में भी इस तरह के पाउच बिकते आसानी से देखे जा सकते हैं।इन वस्तुओं पर भी प्रतिबंध है, पर इस प्रतिबंध पर सख्ती नहीं हुई है, इसलिए इनकी बिक्री बेखौफ जारी है। इससे होने वाले नुकसान की सरकार को शायद फिक्र ही नहीं है।यदि ऐसा नहीं हो पाया, तो जर्मन ही नहीं, बल्कि दूसरे देश के लोग भी हमारे गाल पर तमाचा जडते हुए चले जाएँगे और हम कुछ भी नहीं कर पाएँगे।
डॉ. महेश परिमल,
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पर्यावरण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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वास्तव में पालीथीन खा कर पशु मर रहे है । या तो पालीथीन पर प्रतिबन्ध लगे या इस पर टैक्स बहुत ज्यादा कर दिया जाना चाहिये
जवाब देंहटाएंडॉ. महेश परिमल जी,वेसे लोगो को भी अकल होनी चहिये की कुडा कर्कट हर तरफ़ मत फ़ेके,बाकी जर्मन ने हमे आदमियो की तरह से रहना सीखाया हे,लेकिन हमे अक्ल नही आनी,गगां जमुना ओर बाकी सभी नदियो को हम ने गन्दे नाले बना दिया हे,
जवाब देंहटाएंआप ने तमाचे की बात की हे तो नालायक को हर कोई तमाचा ही मारेगा,ओर हम सभ्य नही हे.सिर्फ़ सभ्य बनने का नाटक करते हे
डॉ. महेश परिमल जी,वेसे लोगो को भी अकल होनी चहिये की कुडा कर्कट हर तरफ़ मत फ़ेक
जवाब देंहटाएंमैं राज भाटिया जी की इस बात से सहमत हूँ। सिर्फ़ एक पॉलीथीन को बैन करने से कुछ नहीं होने वाला, असल समस्या यही है कि लोग जहाँ मन में आया वहाँ कूड़ा फेंकते रहते हैं। संभ्रात परिवारों से दिखने वाले लोग भी ऐसा करते हैं। कभी किसी बाज़ार या शॉपिंग माल में जाता हूँ तो यह देख बहुत क्रोध आता है कि पढ़े लिखे लोग भी पास में कूड़ेदान के होने के बावजूद कूड़ा ऐसे ही फेंक देते हैं, कोई कूड़ेदान में उसको डालने की ज़हमत नहीं उठाता!!
प्लास्टिक समस्या तो है लेकिन उस प्लास्टिक को अपनी जीवनशैली बनालेनेवाले क्या हम लोग कम समस्या हैं? प्लास्टिक का पूरी तरह से बहिष्कार करना चाहिए. पूरी तरह से.
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