बुधवार, 19 मार्च 2008
गिरते पत्तॊं का संदेश
भारती परिमल
दीपू एक नटखट बालक था। स्कूल में उसकी शरारतों से जहाँ श िक्षक परेशान रहते थे, तो घर में उसके आलसीपन और लापरवाही से मम्मी-पापा को भी परेशानियों का सामना करना पड़ता था। उसे सबसे ज्यादा मजा आता था, फूल-पक्तों को तोड़ने में और पौधों को उखाड़ फेंकने में। स्कूल में जब किसी दिन बच्चों को मैदान की या बगीचे की सफाई का काम सौंपा जाता, तो उस दिन तो दीपू के मजे हो जाते। वह पक्तों के साथ फूलोको भी तोड़ देता और कई छोटे-छोटे पौधों को तो जड़ सहित उखाड़ कर फिर से गमले में लगा देता। उसे फूलों की पंखुड़ियों को मसलना, पेड़ की शाखाओं को तोड़ना, चिड़िया के घोंसले को नष्ट करना ये सभी काम करने बहुत अच्छे लगते। उसके दोस्त भी उसकी शरारतों में उसके साथ शामिल होते। वे सभी मिल कर कोई न कोई ऐसी शरारत करते कि जिससे बेचारे मूक पेड़-पौधे और पक्षियों को परेशानी होती।
दिसम्बर की छुट्टियों में जब उन्हें स्कूल की तरफ से पिकनिक ले जाया गया, तो वहाँ दीपू और उसके सभी दोस्तों ने मिलकर बगीचे के बहुत सारे फूल तोड़ लिए और उन्हें बिखेर दिया। इतने से ही उन्हें संतोष न हुआ तो पेड़. पर चढ़कर चिड़िया का घोंसला भी नीचे गिरा दिया। बेचारी चिड़िया के चार अंडे फूट गए और वह चीं-ची करती चिल्लाती ही रह गई। शीना, मीना और उसकी सहेलियों ने उनकी शिकायत गेम्स टीचर से कर दी, फिर क्या था गेम्स टीचर ने उन्हें ऐसा डाँटा कि उनका पिकनिक का मजा ही जाता रहा।
एक दिन पापा ने उसे गमलों में पानी डालने के लिए कहा। उसे तो यह काम भाता ही नहीं था, सो उसने हाँ कह कर आदेश टाल दिया। बाद में जब पिता ने देखा कि सारे गमले सूखे ही सूखे हैं, तो उन्होंने दीपू से उसका कारण पूछा। दीपू ने फिर बहाना बनाया और कहने लगा कि मैं भूल गया था। ऐसा कहकर वह दूसरे काम में लग गया। उस दिन तो गमलों में पापा ने पानी डाल दिया। कुछ दिन बाद पापा ने सख्ती के साथ दीपू से कहा कि आज तुम्हें गमलों में पानी डालना ही है। ऐसा कह कर वे किसी काम से बाहर चले गए।
दीपू गमलों में पानी डालने लगा। पानी डालते हुए अचानक उसे शरारत सूझी- कुछ गमलों को तो उसने पानी से लबालब भर दिया और कुछ छोटे-छोटे पौधों को उखाड़ दिया। ऐसा करते हुए उसे बहुत अच्छा लगा। अपनी शरारत पर वह बहुत खुश था। फिर पापा की डाँट के डर से उसने उखाड़े हुए पौधों को फिर से गमले में ऐसे ही रख दिया। शाम को पापा ने पौधों की जो हालत देखी तो उन्हें दीपू की कारस्तानी का पता चला। उन्हें गुस्सा तो बहुत आया पर उन्होंने धैर्य से काम लिया। वे दीपू का स्वभाव जानते थे कि ये शरारती है, किंतु पेड़-पौधो के प्रति उसके मन में जरा भी दया भाव नहीं है, यह बात उन्हें दु:खी कर गई। उन्होंने दीपू के मन में पेड़-पौधों के प्रति प्यार जगाने का संकल्प लिया।
दूसरे दिन रविवार था। वे बाजार गए और एक सुंदर सा गुलाब का पौधा ले आए। इसे दीपू के हाथों में सौंपते हुए बोले- ये तुम्हारे लिए है। इसकी सारी जवाबदारी तुम्हारी है। इसे आज ही गमले में लगा दो और रोज सुबह-शाम इसमें पानी डालो। एक महीने बाद मैं तुमसे इस पोधे की प्रगति के बारे में पूछूँगा। मुझे वि6वास है, तुम इसकी अच्छी तरह देखभाल करोगे। ऐसा कहते हुए पापा ने दीपू के सर पर प्यार से हाथ फेरा। दीपू इस जवाबदारी से घबरा गया, पर पापा के प्यार और वि6वास के सामने कुछ कह न पाया। उसने इच्छा न होते हुए भी पौधे को गमले में लगा दिया।
बस यहाँ आकर दीपू का काम पूरा हो गया। उसने गमले को एक कोने में रख दिया और फिर स्वभाव के अनुसार उसे भूल गया। कभी याद भी आ जाता तो कल पानी डाल दूँगा ऐसा सोचता हुआ काम को टाल देता। इस तरह से एक महीना गुजर गया। इस दौरान दीपू के पापा ने भी उस पौधे की दुर्दशा देखी, पर चूँकि उन्होंने एक महीने बाद उस संबंध में बात करने को कहा था, इसलिए वे चुप रहे। एक दिन उन्होंने दीपू को अपने पास बुलाया और उस पौधे के बारे में पूछा। जब दीपू उन्हें कोई जवाब न दे पाया, तो वे उसे स्वयं ही गमले के पास ले गए। दीपू ने देखा- पौधा पूरी तरह से सूख चुका है, पत्ते सारे पीले पड़ चुके हैं। उसे यकीन हो गया अब तो पापा जरूर डाँटेंगे। वह उनकी डाँट से बचने का और अपनी सफाई देने का उपाय सोचने लगा। ऐसा करते हुए उसने चारों तरफ, ऊपर-नीचे निगाह दौड़ाई और उसे उपाय सूझ गया।
पापा ने जैसे ही उसकी लापरवाही को लेकर उसे डाँटना शुरू किया कि दीपू बोल पड़ा- पापा मेरा इसमें कोई दोष नहीं। सभी पेड़-पौधो की यही हालत है। ये पौधा ही नहीं आस-पास के सभी पौधे तो मुरझा रहे हैं, पत्ते पीले पड़ रहे हैं, वो देखिए उस पेड़ के तो पत्ते भी किस तरह से झड़ कर नीचे गिरे हुए हैं, बिना पक्तों का पेड़ कितना डरावना दिख रहा है। जब पेड़-पौधों की यही हालत होनी है, तो फिर भला इनकीदेखभाल का क्या मतलब?
पापा ने प्यार से समझाया- मेरे बेटे, सभी चीजों का कुछ न कुछ मतलब होता है। ये पतझड़ का मौसम है। इस मौसम में पेड़ से पुराने .पत्ते झड़ जाते हैं। ये मौसम पेड़-पौधों के लिए वस्त्र बदलने की तरह है। जिस तरह हम पुराने वस्त्र उतारकर नए वस्त्र पहनते हैं, उसी तरह प्रेंति भी इन पेड़ों को इस मौसम में नए वस्त्र धारण करने के लिए कहती है, सो उसके लिए पुराने पक्तों का झड़ना आव6यक है। इस परिवर्तन के द्वारा पेड़-पौधोपर नई कोंपल आती है और हमें शुद्ध प्राणवायु मिलती है। ये पौधे ही हैं जो हमें जीवन देते हैं। इनके बिना मनुष्य का जीवन संभव नहीं है।
तुम पेड़ से पक्ताों का गिरना मत देखो, बल्कि इस मौसम के बाद आती हरियाली की आव6यकता को समझो। ये हरियाली हमारे लिए, संसार के सभी प्राणियों के लिए जरूरी है। पतझड़ आएगा, तभी सावन भी आएगा और सावनअपने साथ फिर हरियाली लाएगा। कल्पना करो यदि केवल पतझड़ ही रहे, तो धरती कितनी सूखी, पीली, खाली-खाली सी दिखाई देगी। ये धरती हरी-भरी रहे, इसीलिए पतझड़ आता है और पुराने पक्ताों को गिरा कर नई कोंपलेलाता है। इसलिए तुम भी केवल पतझड़ की बात न करो बल्कि उसके बाद आनेवाली हरियाली की तरफ कदम बढ़ाओ। ये पौधा जो आज सूख रहा है उसमें फिर से पानी डालो, उसकी पूरे मन से नियमित देखभाल करो, तो कुछ दिन बाद ही तुम्हें यह पौधा भी नई कोंपलो के साथ हरा-भरा मुस्काता दिखाई देगा। तुम्हारी मेहनत से इसमें नई कोंपले आएँगी और फूल खिलेंगे। तब तुम्हें अपनी मेहनत पर गर्व होगा। एक बार ऐसा करके तो देखो।
अपने भीतर के आलस और लापरवाही को पतझड़ के पुराने पों की तरह गिरा दो और फिर देखो तुम्हारी मेहनत और स्फूर्ति से जो हरियाली तुम्हारे जीवन में आएगी, वो तुम्हें एक अनोखी खुशी देगी।
आज पापा की बात दीपू की समझ में आ गई उसने उसी क्षण नई स्फूर्ति के साथ कदम बढ़ाया और सभी पौधों पर पानी डालना शुरू कर दिया। आज वह आलस से नहीं पूरे मन से पौधों को सींच रहा था और उन पौधों पर नई कोंपले आने का इंतजार कर रहा था।
भारती परिमल
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बच्चों का कोना
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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