शनिवार, 5 जुलाई 2008
आज की जरूरत बनता दिखावा
डॉ. महेश परिमल
कहा जाता है कि बड़े लोगों की बड़ी बातें, पर क्या आप जानते हैं कि बड़े लोगों की छोटी-छोटी बातें भी होती हैं? बड़े लोगों की बड़ी बातों को लोग जल्द ही अपने जीवन में अमल में लाते हैं, पर उनकी छोटी बातों को नजर अंदाज किया जाता है। वास्तव में यही छोटी बातें ही होती हैं, जिसे अमल में लाया जाना चाहिए। कहा गया है कि सादा जीवन उच्च विचार को अपने जीवन में उतारोगे, तो कभी दु:खी नहीं होगे। आज यह सूत्र वाक्य जाने कहाँ चला गया है। दिखावा और बस दिखावा, यही एक ऐसा मूल मंत्र बन गया है कि लोग अपना चेहरा ही नहीं, बल्कि चरित्र और व्यक्तित्व का भी दिखावा करते हैं।
अब सुनें बड़े लोगों की छोटी बातें:- भारत के अरबपति धनाढयों में पहले दस में आने वाले और फोर्ब्स मैगजीन के धनाढयों में 60 वें नम्बर में आने वाले 12.7 बिलियन डॉलर वाले विप्रो कंपनी के मालिक अजीम प्रेमजी हमेशा टोयोटा कोरोला कार का उपयोग करते हैं और बड़े शहरों में जाते वक्त वहाँ फाइव स्टॉर होटल या किसी क्लब में ठहरने के बजाए कंपनी के गेस्ट हाउस में ही रहते हैं। उन्होंने अपने बेटे की शादी के रिसेप्शन में मेहमानों को कागज की प्लेट में भोजन दिया था, चाँदी, स्टील या मैलेमाइन की डिश में कदापि नहीं। इसे उनकी सदाशयता ही कहा जा सकता है कि असाधारण होते हुए भी वे कहीं बहुत ही साधारण हैं। दुनिया में सबसे अधिक अमीर वॉरेन बुफे 62 बिलियन डॉलर के मालिक हैं। 50 साल पहले केवल 31 हजार 500 डॉलर में जो घर खरीदा था, वे अभी भी उसी में निवास कर रहे हैं। इसी तरह 2.3 बिलियन डॉलर के मालिक जॉन कोडवेल अपने बाल स्वयं काटते हैं। उन्हें नाई के यहाँ जाना गँवारा नहीं, वे आज भी सेल से कपड़े खरीदते हैं। अमीरों की सूची में 26 वें क्रम में आने वाले वेलटेन 19.2 बिलियन डॉलर के मालिक होने के बाद भी अपनी 15 वर्ष पुरानी डोजडाकोटा कार का इस्तेमाल करते हैं। इनकी इन आदतों से हम कह सकते हैं कि ये कंजूस हैं, पर इसे इनकी मितव्ययिता माना जाए। इन्हें यह अच्छी तरह से मालूम है कि दिखावे से कुछ नहीं मिलता, बल्कि जो सुकून सादे जीवन में है, वह उच्चवर्गीय जीवन में कदापि नहीं।
पुराने जमाने में राजा लोग अपने राय की असलियत जानने के लिए आम आदमी के वेश में रात को घूमते थे। इससे उन्हें अपनी प्रजा के सुख-दु:ख की जानकारी हो जाती थी। आज भी बड़ी कंपनियों के जासूस एक आम आदमी बनकर ही कंपनी के खिलाफ चलने वाले षडयंत्रों की जानकारी प्राप्त करते हैं। लेकिन अब आम आदमी की भूमिका लगभग खत्म होती जा रही है। अब तो हर जगह धन और दिखावे का बोलबाला है। जितना अधिक दिखावा, उतना अधिक सम्मान और उतनी प्रसिद्धि। यह आज के कथित अमीर लोगों का सूत्रवाक्य बन गया है।
आज तो एक अधिकारी भी थोड़ी सी सुविधा पाकर अपने को विशिष्ट समझने लगता है। एक गरीब वर्ग की शादी में भी अधिक से अधिक शान-ए-शौकत का दिखावा होता है। कोई सामान्य बनना ही नहीं चाहता। अपने आपको विशिष्ट बताने के लिए लोग क्या-क्या नहीं करते? सादा जीवन तो आज एक सपना बनकर रह गया है। आज के साधु-संत भी ऐश्वर्यशाली जीवन जीने के आदी हो गए हैं। कभी किसी ने किसी संत की सम्पत्ति जानने की कोशिश की है। केवल आश्रम ही नहीं, बल्कि हजारों एकड़ जमीन के वे स्वामी होते हैं। कथा करने वाले संत भी अपने पूरे तामझाम के साथ चलते हैं। पूरा एक उद्योग समूह उनके साथ-साथ होता है। अपने प्रवचन में वे भले ही सादा जीवन जीने की वकालत करते हों, पर वास्तव में उनका जीवन ही सादा नहीं होता। कई लोगों का सादा जीवन भी दिखावे का होता है। एक बार नेहरु जी ने महात्मा गांधी से कहा था कि बापू हमें आपकी गरीबी को बरकरार रखने के लिए अमीर आदमी से अधिक खर्च करना पड़ता है। यह सभी जानते हैं कि बापू भले ही सादा जीवन जीते हों, पर उन्हें जनता ने ही विशिष्ट बना दिया था, इसलिए वे जहाँ भी जाते, झोपड़ी में रहते। अब हर जगह उन्हें झोपड़ी नसीब नहीं होती, इसलिए उनके लिए अलग से झोपड़ी बनाई जाती। यह एक अलग ही खर्च था। इसके अलावा उनके लिए सादे जीवन की सारी चीों वहाँ मुहैया कराई जाती। जिसका खर्च कुछ अधिक ही आता, इसीलिए नेहरूजी को बापू से ऐसा कहना पड़ा।
आजकल हमारे समाज में दिखावा कुछ इस कदर हावी है कि सामान्य कुछ भी नहीं है। छोटी सी पार्टी भी क्यों न हो, वहाँ भी चारों ओर दिखावे का ही प्रदर्शन होता है। कोई अपने को छोटा बताना ही नहीं चाहता। दरअसल हमारी व्यवस्था में ही दिखावा अनजाने में ही शामिल हो गया है। अब आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने वाला अचानक चुनाव जीतकर विशिष्ट हो जाता है। ढेर सारी सरकारी सुविधाएँ पाने के बाद उसे वही छोटे लोग अच्छे नहीं लगते। रक्षाबंधन के अवसर पर विशिष्ट महिलाएँ ोल जाकर कैदियों को राखी बांँधती अवश्य है, पर इसकी सूचना प ्रेस या टीवी वालों को पहले से देना कभी नहीं भूलती। इसे दिखावा न कहा जाए तो फिर क्या कहा जाए? दिखावे का स्तर यहाँ तक गिर गया है कि लोग समाज में उच्च स्थान प्राप्त करने के लिए आयकर अधिकारियों से मिन्नतें करते हैं कि हमारे यहाँ एक बार छापा मारें। ताकि समाज में उनका नाम बेशुमार अचल सम्पत्ति के मालिक के रूप में शामिल हो जाए।
कहा जाता है कि जिस पेड़ पर फल जितने अधिक होंगे, वह उतना ही झुका हुआ होगा। पर आज ऐसा नहीं है, जो जितना अधिक दिखावा करता है, समाज में उसकी इात उतनी अधिक होती है। आज के नेताओं को ही देख लो। एक मंत्री के काफिले के आगे पीछे इतनी अधिक गाड़ियों का आखिर क्या मतलब है? वही दिखावा। यदि यही लोग चुपचाप बिना तामझाम के आने-जाने लगें, तो फिर उनकी क्या इात रह जाएगी? आखिर मंत्री पद नहीं रहने पर वे बिना तामझाम का जीवन जीते हैं, तो फिर पद पाकर इतना तामझाम आखिर क्यों स्वीकार कर लेते हैं? आजकल पुलिस की गाड़ी भी निकलती है, तो साइरन बजाते हुए निकलती हैं, अनजाने में यह लोगों को चेतावनी है कि रास्ते से हट जाएँ। चोर तो खैर सचेत हो ही जाते हैं। अपने उत्पाद की सही स्थिति की जानकारी के लिए कंपनियाँ बाजार सर्वेक्षण कराती हैं। क्या इससे सही स्थिति की जानकारी सचमुच हो पाती है? बड़ी साधारण सी बात है कि अपनी कंपनी या उत्पाद के बारे में यदि सच्चाई जाननी है, तो किसी आम आदमी से पूछ लो, पता चल जाएगा। इसके लिए तामझाम की कतई जरूरत नहीं। पर ऐसा नहीं हो पाता। आज जमाना अपनी माकर्ेंटिंग का है, जो जितना अधिक अपने आपको पदर्शित करेगा, वह उतना ही अधिक सफल माना जाएगा। ऐसे में अमीरों की सूची में उच्च स्थान प्राप्त करने वाले यदि मितव्ययिता से जीयें, तो लोग उन्हें बेवकूफ ही मानेंगे। पर वे यह भूल जाते हैं कि यही है सच्चा जीवन, जो लोगों को उनसे जोड़कर रखता है। विशिष्ट वह होता है, जो लोगों से अधिक से अधिक जुड़ा होता है। सुरक्षा बलों से घिरा हुआ व्यक्ति विशिष्ट हो सकता है, पर कुछ लोगों के लिए ही, आम आदमी से उसकी पहुँच बहुत ही दूर होगी।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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महेश जी
जवाब देंहटाएंआफ एकदम सही कह रहे हैं। आज दिखावे और बनावट की संस्कृति ही पनप रही है। भारतीय मूल्य और सिद्धान्त विलुप्त हो रहे हैं। एक अच्छे विचार के लिए आभार।
dikhawa he to sab social problems ki jadd hai... apne sahi nas pakdi hai bhai sahab...
जवाब देंहटाएंडॉ. महेश परिमल जी आधे दुखो का कारण यह दिखावा ही तो हे,
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