शुक्रवार, 19 जून 2009

पैसों का पेड़


भारती परिमल
भोलू मौज-मस्ती में जीने वाला एक लापरवाह लड़का था। घर पर मम्मी यदि उसे कोई काम बताती तो किसी न किसी बहाने से वह उनके सामने से गायब हो जाता। बस, दिन भर मौज-मस्ती करना और मम्मी को तंग करना, यही उसका काम था। हाँ, मम्मी से जेबखर्च माँगना वह कभी नहीं भूलता था। जब तक मम्मी उसे पैसे न देती, वह उनसे नाराज रहता और कोई बात न करता। बल्कि अपने कमरे में जाकर नाराज होकर सो जाता। उसकी इन हरकतों के कारण मम्मी प्राय: उससे नाराज ही रहती।
रोज की तरह उस दिन भी भोलू ने मम्मी से पैसे माँगे। मम्मी बोली - बेटे, मैंने तुम्हें सुबह ही तो पाँच रूपए दिए थे, वह कहाँ गए? वह तो मैंने खर्च कर दिए- भोलू लापरवाही से बोला।
- तो फिर तुम्हें दूसरे पैसे नहीं मिलेंगे, लेकिन भोलू ने पैसे लेने की जिद पकड़ ली कि मुझे तो पैसे चाहिए ही। तब मम्मी ने थोड़ा डाँटते हुए और थोड़ा समझाते हुए कहा - देखो, भोलू। पैसे कोई पेड़ पर तो उगते नहीं है, कि जब चाहो तब तोड़ लो।
भोलू तो अपनी बात पर ही अड़ा रहा कि मुझे तो किसी भी हालत में पैसे चाहिए ही। मुझे और कुछ नहीं सुनना है। भोलू की जिद को देखते हुए मम्मी ने इच्छा न होते हुए भी चुपचाप उसके हाथ में पाँच रूपए का नोट रख दिया। भोलू पैसे लेकर घर से बाहर निकल गया। सामने अमरूद का पेड़ था। उसकी डालियों पर ताजे-ताजे अमरूद लटक रहे थे। भोलू सोचने लगा - काश, अमरूद की तरह यदि पैसों का पेड़ होता तो? और उसने पैसों का पेड़ उगाने का निश्चय किया, लेकिन क्या पैसों का पेड़ भी उगाया जा सकता है भला? उसने कभी पैसों के पेड़ के बारे में नहीं सुना था और न ही किसी के घर पर उसने पैसों का पेड़ ही देखा था। इसका अर्थ यह हुआ कि यह तो संभव ही नहीं है।
दूसरे ही क्षण भोलू के मन में विचार आया - क्यों संभव नहीं है? इस दुनिया में ऐसा कोई भी काम नहीं है, जो असंभव हो। हो सकता है आज तक किसी ने इस बारे में सोचा ही न हो और कोई प्रयत्न भी न किया हो। क्यों न इस अच्छे काम की शुरूआत मंै ही करू? भोलू ने एक बगीचे में जाकर वहाँ पर अच्छी गीली मिट्टी देखकर गड्ढा खोदा और उसमें एक रूपए का सिक्का गड़ा दिया। फिर गड्ढे को अच्छी तरह से पाट दिया। पास के नल से पानी लाकर उस पर डाल दिया। उसने तय कर लिया कि अब वह रोज उस पर पानी डालेगा और एक दिन पैसों का पेड़ उग जाएगा। फिर तो उस पेड़ की डालियों पर अमरूद की तरह पैसे उगेंगे। तब मैं उन्हें अपनी जरूरत के मुताबिक तोड़ लूँगा। बल्कि मम्मी को भी ले जाकर दूँगा। आज तक मम्मी ने मुझे जितने भी पैसे दिए हैं, मैं उसके दोगुने पैसे उन्हें लौटा दूँगा। इस तरह भोलू अपनी कल्पनाओं की दुनिया में खो गया।
अचानक ही दूसरे दिन भोलू को अपनी मम्मी के साथ नानी के घर जाना पड़ा। उसकी नानी पास के ही एक गाँव में रहती थी। गरमी की छुट्टियाँ थी, सो मम्मी तीन-चार दिन के लिए गई थी, लेकिन नाना-नानी और मौसी-मामा की मान-मनुहार के कारण वह ज्यादा दिनों तक वहाँ ठहर गई। पंद्रह दिनों बाद जब वे लोग वापस आए, तो भोलू को फिर से अपने पैसों का पेड़ याद आया। वह दौड़ते हुए बगीचे की तरफ गया। वहाँ उसने जिस जगह एक रूपए का सिक्का गाड़ा था, उस जगह को अंदाज से खोज निकाला। उसने देखा कि वहाँ तो एक बड़ा सा पेड़ उग गया था। पेड़ को देखकर भोलू बड़ा खुश हुआ। वह दौड़ता हुआ मम्मी के पास आया और चहकते हुए बोला- मम्मी- मम्मी, मैंने पैसों का पेड उगाया है। मम्मी ने उसकी बात की तरफ ध्यान नहीं दिया और अपने काम में लगी रही। जब उसने फिर से जोर देकर अपनी बात कही, तो मम्मी ने जवाब दिया- पैसों का भी कहीं पेड़ होता है? भोलू बोला- हाँ, होता है ना? चलो मेरे साथ। मैं आपको दिखाता हूँ। वह मम्मी का हाथ पकड़कर उन्हें खींचते हुए अपने साथ बगीचे में ले गया। वहाँ पर बड़ा सा पेड़ दिखाते हुए बोला- ये देखो मम्मी, ये रहा पैसों का पेड़। मम्मी को आश्चर्य हुआ - क्या, ये पैसों का पेड़ है? भोलू खुश होते हुए बोला- हाँ, मम्मी। यही है मेरा पैसों का पेड़। इसे मैंने ही उगाया है। मम्मी बोली- लेकिन भोलू, यह तो नीम का पेड़ है। अब चौंकने की बारी भोलू की थी- वह आश्चर्य से बोला- यदि ये नीम का पेड़ है, तो मेरा पैसों का पेड़ कहाँ है? मैं नानी के घर गया था, उसके पहले एक रूपए का सिक्का इसी जगह पर जमीन में गाड़ कर गया था। उसे मैं ने सींचा भी था। जब मैं नानी के घर से वापस आया, तो इस जगह पर यह पेड़ देखा।
मम्मी बोली- लेकिन बेटा, यह पेड़ तो कई सालों से यहीं पर है। तुमने किसी और जगह पर अपना सिक्का गाड़ दिया होगा। फिर उसे समझाते हुए बोली- बेटा, पैसों का कोई पेड़ नहीं होता। यदि ऐसा संभव होता तो किसी को कोई काम करने की जरूरत ही नहीं होती। सभी पैसों का पेड़ उगाते और उसे पानी देकर बड़ा करते। पैसे तो मेहनत के बल पर कमाए जाते हैं। तुम्हारे पापा भी इसीलिए रात-दिन मेहनत करते हैं। जिससे तुम अच्छी तरह पढ़ाई कर सको। हम तीनों सारी सुख-सुविधाओं के साथ खुशी-खुशी रह सकें।
मम्मी की बात अब भोलू की समझ में आ गई थी।
भारती परिमल

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