शुक्रवार, 26 जून 2009
चुनमुन का स्कूल का पहला दिन
भारती परिमल
स्कूल का पहला दिन, भला इस दिन को कौन याद रखना नहीं चाहेगा? यही दिन तो होता है, जब एक बच्चे को पहली बार घर से बाहर एक अलग ही दुनिया से वास्ता पड़ता है।यह एक ऐसी दुनिया होती है, जहाँ उसे प्यार मिले, तो वह उसे ही अपना दूसरा घर मान लेता है, पर यदि वहाँ उसे प्यार न मिले और उसका सामना किसी ऐसे षिक्षक या षिक्षिका से हो, जो गुस्सैल हों, तो फिर बच्चे का भविष्य चौपट ही समझो।यही दिन होता है, जब बच्चे के अचेतन मन में संस्कार का बीज प्रस्फुटित होता है।पहले दिन ही यदि बच्चे को मनचाहा वातावरण नहीं मिलता, तो वह काफी कुंठित हो जाता है।स्कूल आने के पहले उसे कई हिदायतें दी जाती हैं, जिन्हें वह स्कूल में आकर जानना चाहता है।यदि उन हिदायतों के एवज में स्कूल का वातावरण अनचाहा है, तो उसकी हरकतों में एक तरह का विरोध उजागर होता है।कुछ ऐसा ही हुआ उस दिन चुनमुन के साथ।
आज चुनमुन का स्कूल का पहला दिन है। पिछले एक महीने से लगातार घर के सभी लोग उसे स्कूल जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार कर रहे हैं। मम्मी उसे एक के बाद एक पोएम सिखाए जा रही है। पेंसिल पकड़ना, किताब सीधी कहाँ से है, कॉपी में किस तरफ लिखना है, उसका पूरा नाम, घर का पता, मम्मी-पापा का नाम सब कुछ रटवाया जा रहा है। कहीं घूमने जाने पर वहाँ भी लोगों के बीच इस बात की चर्चा जरूर होती है कि हमारी चुनमुन भी इस बार स्कूल जाएगी। शाम की सैर के समय दादाजी चुनमुन को स्कूल जाने संबंधी हिदायत जरूर देते हैं। रात को दादी कहानियों में भी स्कूल का ज़िक्र करती है। बड़ा भाई भोलू तो उसे स्कूल के नाम से चिढ़ाया ही करता है। कुल मिलाकर सभी उसके पीछे पड़े हैं। सभी की बस यही इच्छा है कि वह स्कूल जाए। मम्मी-पापा ने बाजार से उसके लिए बहुत सा सामान खरीदा है- स्कूल बैग, कम्पास बॉक्स, टिफिन, पानी की बॉटल और भी न जाने क्या-क्या स्कूल से जुड़ी हुई चीजें.... उसे तो सभी के नाम भी अभी नहीं मालूम। अब धीरे-धीरे इन सभी के नाम याद करने होंगे। आज वह दिन आ ही गया।
चुनमुन पूरी रात ठीक से सो नहीं पाई। उसे रात को अजीब-अजीब सपने आते रहे, कभी बहुत से लोगों के एकसाथ चिल्लाने की आवाज, तो कभी किसी के हाथों में बड़ा सा डंडा लेकर उसे फटकारने की आवाज, तो कभी वाहनों का शोर। वह एकदम से चौंक पड़ती और उसकी नींद खुल जाती।सुबह मम्मी ने उसे जल्दी जगा दिया और पूरे उत्साह के साथ उसे तैयार करने लगी। वह एक रोबोट की तरह मम्मी के इषारों पर नाचती हुई अंत में तैयार हो गई और उसे गाल पर एक प्यारी-सी पप्पी देते हुए स्कूल बस में चढ़ाकर बाय कह दिया गया।
स्कूल में आकर चुनमुन को एक नई ही दुनिया दिखाई दी।चारों ओर बच्चे ही बच्चे। दौड़ते-भागते, उछलते-कूदते मस्ती करते बच्चे। वाह! ये तो बहुत अच्छी जगह है। यहाँ तो सभी अपने मन से जहाँ चाहे वहाँ भाग सकते हैं। खेल सकते हैं। कोई रोक-टोक नहीं। घर में तो दिन भर दादी, मम्मी और बुआ की डाँट ही सुनते रहो। चुनमुन ऐसा नहीं करो, चुनमुन वैसा नहीं करो। यहाँ तो सभी बच्चे मिलकर अपनी मनमानी कर रहे हैं।मैं भी इनके साथ मिलकर अपने मन की करूँगी और खूब मस्ती करूँगी।इतने में प्रार्थना की घंटी बजी और टीचर ने सभी बच्चों को एक पंक्ति में खड़े होने का निर्देष दिया।कुछ समय के लिए शोरगुल थम गया और सारे बच्चे टीचर के कहे अनुसार करने लगे।
अब शुरू हुई चुनमुन की स्कूल की दिनचर्या। प्रार्थना के बाद क्लास में आने पर उसने अपने आसपास देखा तो सारे अपरिचित बच्चे नजर आए।इतने में मम्मी जैसी एक महिला ने क्लास में प्रवेष किया।यही उनकी क्लास टीचर थी। वह उन्हें देखकर सहम गई क्योंकि वे दिखने में बड़ी गुस्सेवाली दिखाई दे रही थी।उसने एक-एक कर सभी बच्चों से उनके नाम पूछे।एक बच्चे ने जब कोई जवाब नहीं दिया, तो उन्होंने उससे जरा ऊँची आवाज में पूछा, वह बच्चा डर गया और रोने लगा। टीचर उसे चुप कराने के बदले उसकी इस हरकत पर उसे डाँटने लगी। ये देखकर चुनमुन भी घबरा गई। जब उसकी बारी आई तो उससे भी कुछ कहते नहीं बना। वह चुपचाप उनका चेहरा ही देखने लगी।जब उन्हाेंने ऑंखे दिखाते हुए फिर से उसका नाम पूछा तो उनकी ऑंखे देखकर तो चुनमुन की रही सही हिम्मत भी जवाब दे गई। वह तो अपना स्कूल वाला नाम ही भूल गई। उसे तो चुनमुन नाम ही याद था और मम्मी ने कहा था, यह नाम स्कूल में किसी को नहीं बताना है। अब स्कूल वाला नाम याद आए तभी तो वह बोले। टीचर उसे घूर कर देखे जा रही है और उसका नाम पूछे जा रही है। यहाँ चुनमुन की हालत बड़ी खराब हो रही है। आखिर उसने हार कर जोर-जोर से रोना शुरू कर दिया। टीचर उसके पास से चली गई। चुनमुन पूरे पीरियड में रोती ही रही।टीचर ने क्या पढ़ाया, दूसरे बच्चों से किस तरह बातें की उसे कुछ नहीं मालूम।
जब घंटी बजी तो थोड़ी देर बाद दूसरी टीचर ने क्लास में प्रवेष किया।वह सबसे पहले तो सभी बच्चों की तरफ देखकर मुस्कराई और फिर सबके पास जा कर प्यार से सबके सिर पर हाथ फेरते हुए, उनके हाथ में टॉफी देते हुए उनका नाम पूछा।बच्चे टॉफी की लालच में बिना डरे टीचर को अपना नाम बताने लगे। जब टीचर चुनमुन के पास आई, तो उन्होंने उसे रोते हुए पाया। उसका ऑंसुओं से भीगा चेहरा देखकर टीचर ने उसे गोद में उठा लिया और कहा- इतनी प्यारी सी गुड़िया की ऑंखों में ऑंसू क्यों? चुनमुन को लगा- उसे किसी अपरिचित ने नहीं बल्कि मम्मी ने ही गोद में लिया है। उस टीचर की गोद में वह अपना दु:ख भूल गई, साथ ही पहली टीचर का रौबीला चेहरा भी भूल गई। इस टीचर के अपनेपन में उसे अपना स्कूल वाला नाम याद आ गया और वह मुस्कराते हुए बोल उठी- मेरा नाम मुस्कान है। टीचर को नाम बहुत पसंद आया । वे बोली- जब तुम्हारा नाम मुस्कान है, तो ऑंखों में ऑंसू क्यों? हमेषा मुस्कराती रहो। उसकी टीचर से दोस्ती हो गई। सभी बच्चों को ये टीचर बहुत अच्छी लगी और सभी ने उनके साथ बाकी का समय अच्छे से बिताया।इस तरह चुनमुन का पहला दिन स्कूल में आधा रोते हुए और आधा हँसते हुए बीता।
बच्चे स्कूल में आकर एक नए जीवन की शुरूआत करते हैं। एक नई दुनिया में प्रवेष करते हैं।उनके साथ पहले दिन ही किया गया गलत या सही व्यवहार उनके कोमल मस्तिष्क पर एक अमिट छाप छोड़ता है।बच्चों के मन से स्कूल का डर निकालने के लिए जरूरी है कि पहले दिन उनके साथ बड़ी नरमी से व्यवहार किया जाए। उनका स्कूल का पहला दिन उन्हें हर दिन स्कूल आने के लिए प्रेरित करे, ऐसा होना चाहिए। इसके लिए मुख्य भूमिका क्लासटीचर को निभानी होती है। नए शाला सत्र के साथ ही कई बच्चे स्कूल में प्रवेष लेते हैं, कई बच्चों के मन में स्कूल का, टीचर का डर समाया होता है, तो कई बच्चे इन सभी से अनजान होते हैं। यदि आप भी टीचर हैं और आपके सामने भी ऐसे बच्चों की जवाबदारी है, तो आपका पहलार् कत्तव्य यह है कि इन बच्चों के मन से स्कूल का डर निकाल कर इन्हें प्यार दें, अपनापन दें, ताकि इनका पहला दिन ही नहीं, हर दिन हँसते-मुस्कराते हुए गुजरे।बच्चे को केवल प्यार के ही भूखे होते हैं, फिर वह प्यार उन्हें जहाँ से मिले, जैसे भी मिले, वे उसे स्वीकार करने में जरा भी नहीं हिचकते।वे प्यार की भाषा समझते हैं, यही भाषा ही उन्हें अपने और परायों का फर्क समझाती है।यह क्षण होते हैं, जब उनके कोरे मस्तिष्क में शिक्षा का ककहरा लिखा जाता है, तो क्यों न इस माटी के इस अनगढ़ पिंड को सही आकार दिया जाए।
भारती परिमल
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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