मंगलवार, 23 जून 2009

शापित परी


भारती परिमल
रंगबिरंगी परियों का लोक-परीलोक। इस लोक में तरह-तरह की परियाँ रहती थीं। इन्हीं में एक परी थी, जो सबसे अलग थी। यूँ तो वह भी दूसरी परियों के समान ही सुंदर थी, लेकिन स्वभाव दूसरी परियों जैसा कोमल और दयालु न होकर कठोर था। वह थी भी बहुत तेज और गुस्सैल। बात-बात में गुस्सा हो जाती थी। तुनकमिजाज इतन की अपनी सहेलियों से भी छोटी-छोटी बातों में लड़ पड़ती थी। फिर नाराज हो कर एक कोने में बैठ जाती थी। उसमें सबसे बड़ी खराबी यह थी कि वह परीलोक के बाग में लगे उन फूलों से झगड़ा करती थी, जो उसे अच्छे नहीं लगते थे या फिर जिनके आसपास काँटे लगे हों। गुलाब के सुंदर पंखुड़ियों वाले फूल, जिनकी सारी परियाँ दीवानी थी, उसे तो वह बिल्कुल पसंद नहीं करती थी। वह उन्हें हाथों से मसलकर नष्ट कर देती थी। उसकी इस हरकत से सभी परियाँ दु:खी हो जाती थी। गुस्सैल परी को यदि इस बारे में समझाया भी जाए, तो वह तो तुरंत ही नाराज हो जाती। इसलिए उसे तो कुछ बोलना ही बेकार था। आखिरकार सभी परियाँ मिलकर पहुँची रानी परी के पास और उनसे उसकी हरकतों की श िकायत की। रानी परी ने उसे प्यार से समझाया- बेटी, तुम्हें दूसरों के साथ मिलजुलकर रहना चाहिए। सभी के साथ अच्छा व्यवहार करना चाहिए। यदि तुम सभी के साथ बुरा व्यवहार करोगी तो विवश होकर मुझे तुम्हें सज़ा देनी होगी। फिर तुम पत्थर या काँटेदार पेड़ बना दी जाओगी, इसलिए किसी से लड़ाई-झगड़ा न करो और हिलमिलकर रहो। फूलों से प्यार करो, सहेलियों से प्यार करो और हमेशा खुश रहो।
परी रानी के समझाने का उस घमंडी परी पर उल्टा ही असर हुआ। वह और गुस्सा हो गई। उसने सोचा- देखती हूँ कि मेरी शिकायत कौन करता है। मैं ऐसे फूलों को जादू से जला दूँगी। आखिर उसकी मनमानी बढ़ती गई और एक बार फिर उसकी शिकायत परी रानी के सामने आ पहुँची। अब तो परी रानी बहुत नाराज हो गई। उन्होंने घमंडी परी को बुलाया और कहा- नादान परी, मैंने तुम्हें समझाया था कि सबसे मिलजुलकर रहो, पर तुमने मेरी बात नहीं मानी। तुमने अपना नुकसान खुद किया है, अब सजा भुगतने के लिए तैयार हो जाओ। जब घमंडी परी ने देखा कि रानी परी तो बहुत गुस्से में है और उसे सजा देकर ही रहेगी, तो उसे थोड़ी अक्ल आई। वह रुऑंसी हो कर बोली- मैं पेड़ या पत्थर नहीं बनना चाहती। मैं तो परीलोक को केवल सुंदर फूलों से सजा हुआ देखना चाहती थी इसीलिए कम सुंदर और काँटेवाले फूलों को नष्ट कर देती थी। मगर रानी ने उसकी एक न सुनी और अपनी जादू की छड़ी हाथ में लेकर कहा- मैं तुम्हें पेड़ या पत्थर नहीं, उससे सुंदर चीज बनाकर धरती पर भेज रही हूँ। उसके बाद रानी परी के जादू से धमंडी परी धरती पर आ गिरी।
तुम जानना चाहोगे, वह परी किस रूप में धरती पर है? हमारे आसपास उड़ती, फूलों पर मँडराती रंग-बिरंगी तितलियाँ ही वह घमंडी परी है। वह इस धरती पर तितली के रूप में जीवन बिता रही है। उड़-उड़ कर हर टहनी के फूलों और काँटों से माफी माँगती है। उसे इनसे कितनी बार माफी माँगनी है, कोई नहीं जानता। हाँ, जब वह सभी फूलों और काँटों से माफी माँग लेगी, तो परीलोक में रानी का दिल पिघल जाएगा और वह उसे वापस परीलोक बुला लेंगी। तब यह तितलियाँ धरती को छोड़कर परीलोक चली जाएँगी। इसलिए इन मेहमान परियों को सताना मत और न ही उन्हें पकड़ना। इन्हें हमेशा प्यार करते रहना, जिससे ये जल्दी से जल्दी अपना काम पूरा कर लें और अपने लोक वापस लौट जाएँ। आखिर उन्हें भी तो अपने घर की याद आती है न!
भारती परिमल

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