शनिवार, 27 जून 2009

बादल, बिजली और बारिश


भारती परिमल
शीर्षक पढ़कर आप सोच रहे होंगे कि यह किसी फिल्म की कहानी तो नहीं है ना। नहीं, न तो यह किसी फिल्म की कहानी है और न ही किसी छबिगृहों के नाम हैं। मैं तो उस बादल, बिजली और बारिश की बात कह रही हूँ, जिनका सामना हमें इन दिनों करना ही पड़ रहा है। आओ इन तीनों भाई-बहनों के बारे में कुछ जानने का प्रयास करें।
रविवार का दिन, यानि मौज-मस्ती और छुट्टी का दिन! एकाएक आकाश में बादल घिर आए। सूरज बादलों में छिप गया। चारों ओर घना अंधकार छा गया। भरी दोपहर थी, उसके बावजूद ऐसा लग रहा था, मानों शाम हो गई हो। अंशुल घर के अहाते में ही था, कि माँ ने आवाज लगाई- अंशुल, अंदर आ जाओ। अभी बारिश शुरू हो जाएगी। देखो, कैसे काले बादल घिर आए हैं।
इतने में बौछारें शुरू हो गई। छोटी-छोटी बूँदों ने बड़ी बूँदों का रूप ले लिया। थोड़ी देर में ही मूसलधार बारिश शुरू हो गई। साथ ही आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट भी होने लगी। ऐसी तेज आवाज मानों आकाश अभी फट पड़ेगा।
घड़ घड़ धड़ाम धम्म! धड़ाम धम्म!
आकाश में खुली ऑंखों से देखना मुश्किल हो गया। कुछ देर पहले जो खुला आकाश था, वही अब पानी का प्रपात बना हुआ था। बिजली का चमकना ऐसे लग रहा था मानों आकाश में हजारों वॉल्ट के अनेक बल्ब जल गए हों। साथ ही बादलों की तेज गड़गड़ाहट! मानों आकाश फट कर अभी धरती पर गिर पडेग़ा!
ये सब देखना अच्छा भी लग रहा था और भयभीत भी कर रहा था। पिताजी भी बदले मौसम का नजारा देखने के लिए खिड़की के पास आकर खड़े हो गए। खिड़की के बाहर हाथ निकालकर वे बारिश का मजा लेने लगे। उन्हें ऐसा करते देख मेरी भी हिम्मत बढ़ी, मैं भी उनके पास आकर खड़ा हो गया। बारिश की बूँदें हथेली पर सहेजने के लिए हाथ बाहर निकाला ही था कि जोर से बिजली कड़की और मैं भीतर तक काँप गया।

पिताजी ने हँसते हुए मेरे कँधे पर हाथ रखा। मैंने पापा से पूछा-पापा, आकाश में बिजली कैसे चमकती है? पिताजी बोले- अंशुल, तुम जरा अपनी दोनों हथेलियों को आपस में जोर से रगड़ो तो भला। अंशुल ने वैसा ही किया, उसकी दोनों हथेलियाँ गरम हो गई। पिताजी ने समझाया- हथेली घिसने से घर्षण हुआ और एक प्रकार की बिजली पैदा हुई। आकाश में बादल हैं, वे वैसे तो रूई की फाहे की तरह नरम हैं। ऊपर हवा भी है, ऐसे में हवा के साथ दौड़ते-भागते बादल एक-दूसरे से टकराते हैं, जिस तरह से तुम्हारी हथेली के घर्षण से गरमाहट के साथ बिजली उत्पन्न हुई, उसी तरह बादलों के टकराने से बिजली उत्पन्न होती है।
बिजली की बात होते ही घर की बिजली गुल हो गई। तब माँ ने माचिस ली और उसमें से दियासलाई निकालकर उसे माचिस से लगे फास्पोरस वाली जगह पर रगड़ा, जिससे दियासलाई जल उठी। माँ ने उससे मोमबत्ती जला ली। इस पर पिताजी ने अंशुल को बताया कि अभी तुमने देखा कि तुम्हारी माँ ने किस तरह माचिस की तीली को रगड़कर आग जलाई। ठीक इसी तरह जब बादल आपस में रगड़ खाते हैं, तब उसमें बिजली उत्पन्न होती है। तब अंशुल ने कहा- पिताजी क्या यह बिजली जमीन तक आ पाती है, क्या यह हमारे घर के भीतर भी आ सकती है? हाँ कई बार यह हमारे घर के अंदर तक आ सकती है- पिताजी ने कहा।

अब अंशुल तुम सुनो कि किस तरह से इस बिजली से बचा जाए। माँ-पिताजी ने अंशुल को मोमबत्ती की रोशनी में अपने पास बिठा लिया। पिताजी ने बताया- यह बिजली बहुत ही भयानक चीज है। यदि यह जमीन पर उतर जाए, तो वहाँ एक गहरा गङ्ढा हो जाता है। यदि यह किसी मकान या पेड़ पर गिरे, तो उसे जलाकर राख में बदल देती है। तो पिताजी इस भयानक बिजली से बचा कैसे जाए? हाँ मेरे बच्चे मैं तुम्हें यही बताने जा रहा हूँ, सुनो- यदि इस तरह का मौसम हो और हम कहीं बाहर हों, तो रास्ते से अलग हटकर पास के किसी मकान में चले जाना चाहिए। शहर के घर इसीलिए सुरक्षित हैं, क्योंकि इसमें लोहे की सामग्री इस्तेमाल में लाई जाती है। उन लोहों के माध्यम से बिजली जमीन में चली जाती है।
यदि तुम कहीं जा रहे हो और बिजली लगातार चमकने लगे, आसपास कोई घर दिखाई न दे, तो ऐसे में यदि तुम्हें कोई कार या जीप दिखाई दे जाए, तो तुम उसमें भी बैठ सकते हो। यह भी बिजली से बचाव का सुरक्षित स्थान है। यदि भारी तूफान आ रहा हो और बारिश के साथ बिजली भी चमक रही हो, तो इस स्थिति में नाव से नदी या तालाब पार नहीं करना चाहिए। यह खतरनाक हो सकता है। तैरकर नदी, नाला, या तालाब पार करना तो बहुत अधिक खतरनाक हो सकता है। किसी प्रकार की लोहे की जाली या रेलिंग के पास भी खड़े नहीं होना चाहिए, किसी पेड़ के नीचे या खेत में भी खड़े नहीं होना चाहिए।
तो, इसका मतलब यह हुआ कि जब बारिश हो रही हो, तो हमें घर पर ही रहना चाहिए, अंशुल ने कहा। हाँ बेटे, अब तो तुम इस बादल, बिजली और बारिश के बारे में बहुत-कुछ जान गए। ये सब जानकारियाँ तुम कल शाला में अपने दोस्तों को बता सकते हो।
भारती परिमल

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