मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009
कभी अलविदा ना कहना
आज जन्मदिवस पर विशेष
हम हैं राही प्यार के हमसे कुछ न बोलिए
जो भी प्यार से मिला हम उसी के हो लिए,
अपने गाए गीत की इन पंक्तियों को जीवन का फलसफा मानने वाले किशोर कुमार ने पाश्र्वगायिका लता मंगेशकर के साथ सैकड़ो सुपरहिट गीत गाए हैं। इसके बावजूद बहुत कम लोगों को पता है कि अपने करियर के आरंभ में ही उनकी सुर साम्राज्ञी लता मंगेशकर से अनबन हो गई थी और वो भी अनजाने में ।
लता मंगेशकर ने इस घटना का जिक्र कुछ इस प्रकार किया है , बांबे टॉकीज की फिल्म , जिद्दी , के गाने की रिर्काङ्क्षडग करने जाने के लिए जब वह एक लोकल ट्रेन से सफर कर रही थी तो उन्होंने पाया कि एक शख्स भी उसी ट्रेन में सफर कर रहा है। बाद में स्टूडियो स्टूडियों जाने के लिए जब उन्होने तांगा लिया तो देखा कि वह शख्स भी तांगा लेकर उसी ओर आ रहा है। जब वह बांबे टॉकीज पहुंची तो उन्होने देखा कि वह शख्स भी बांबे टॉकीज पहुंचा हुआ है। बाद में उन्हें पता चला कि वह शख्स किशोर कुमार हैं।, इसे महज संयोग ही कहा जाए कि बतौर पाश्र्व गायक किशोर कुमार ने इसी फिल्म से अपने कैरियर की शुरुआत की थी । दिलचस्प बात है कि इस फिल्म में उन्हें देवानंद के लिए गाने का मौका मिला और बाद में वह देवानंद की आवाज कहलाए।
हाल मे एक साक्षात्कार के दौरान कोकिल कंठी लता मंगेशकर ने किशोर कुमार की चर्चा करते हुए कहा कि , किशोर कुमार जहां भी होते थे वहां हंसने हंसाने का माहौल बना रहता था और उनकी उपस्थिति मात्र से माहौल खुशनुमा हो जाता था। अपने आखिरी जन्मदिन की पार्टी किशोर कुमार ने लंदन के एक होटल मे आयोजित की थी। इस पार्टी में लता मंगेशकर भी शरीक हुई थी। उस यादगार क्षण को याद करते हुए वह कहती हैं कि किशोर की बहुत याद आती है। उनकी बातों को याद कर स्वर साम्राज्ञी की आंखें नम हो उठीं थी। उन्होंने कहा कि , किशोर एक ऐसे संजीदा इंसान थे जिनकी उपस्थिति मात्र से माहौल खुशनुमा हो उठता था । अपने हंसते हंसाते रहने की प्रवृत्ति को उन्होने अपने अभिनय और गायकी मे भी शामिल किया। उनका यह अंदाज आज भी उनके चहेतों की यादों मे तरोताजा है। किशोर कुमार को अपने करियर में वह दौर भी देखना पडा जब उन्हें फिल्मों में काम नही मिला करता था तब वह स्टेज पर कार्यक्रम पेश करअपना जीवन यापन करने को मजबूर थे। बंबई .वर्तमान में मुंबई. मे ंआयोजित एक ऐसे ही एक स्टेज कार्यक्रम के दौरान संगीतकारओ.पी.नैय्यर , ने जब उनका गाना सुना तब वह भावविह्लल हो गए और कहा , महान प्रतिभाए तो अक्सर जन्म लेती रहती हैं लेकिन किशोर कुमार जैसा पाश्र्वगायक हजार वर्ष में केवल एक ही बार जन्म लेता है। उनके इस कथन का उनके साथ बैठी पाश्र्वगायिका आशा भोंसले ने भी इस बात का सर्मथन किया। वर्ष १९६९ मे निर्माता निर्देशक शक्ति सामंत की फिल्म आराधना के जरिए किशोर गायकी के दुनिया के बेताज बादशाह बने लेकिन दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के आरंभ के समय इसके संगीतकार
सचिन देव वर्मन चाहते थे इसके गाने किसी एक गायक से न गवाकरदो गायकों से गवाएं जाएं। बाद मे सचिन देव वर्मन की बीमारी के कारण फिल्म आराधना में उनके पुत्र आर.डी.बर्मन ने संगीत दिया। मेरे सपनों की रानी कब आएगी तू और रूप तेरा मस्ताना गाना किशोर कुमार ने गाया. जो बेहद पसंद किया गया ।रूप तेरा मस्ताना गाने के लिए किशोर कुमार को बतौर गायक अपना पहला फिल्म फेयर पुरस्कार मिला और इसके साथ ही फिल्म आराधना के जरिए वह उन ऊंचाइयों पर पहुंच गए, जिसके लिए वह सपनों के शहर मुंबई आए थे। आराधना की सफलता के बाद किशोर कुमार आर.डी.बर्मन के चहेते पाश्र्वगायक बन गए। इसके के पश्चात किशोर कुमार और आर.डी.बर्मन की जोड़ी ने कटी पतंग, बुड्ढा मिल गया, अमर प्रेम, यादों की बारात, अनामिका, आप की कसम, महबूबा, कस्मे वादे, मेरे जीवन साथी, घर, गोलमाल, हरे रामा हरे कृष्णा, सत्ते पे सत्ता, शान, शक्ति और सागर, जैसी कई सुपरहिट फिल्मो में एक साथ काम किया।
मध्यप्रदेश के खंडवा ,शहर में ४ अगस्त १९२९ को एक मध्यवर्गीय बंगाली परिवार में अधिवक्ता कुंजी लाल गांगुली के घर जब सबसे छोटे बालक ने जन्म लिया तो कौन जानता था कि आगे चलकर यह बालक अपने देश और परिवार का नाम रौशन करेगा। भाई बहनो में सबसे छोटे नटखट आभास कुमार गांगुली उर्फ किशोर कुमार का रूझान बचपन से ही अपने पिता के पेशे वकालत की तरफ न होकर संगीत की ओर था। के.एल.सहगल के गानो से प्रभावित किशोर कुमार उनकी ही तरह गायक बनना चाहते थे। के.एल.सहगल से मिलने की चाह लिए किशोर कुमार १८ वर्ष की उम्र मे मुंबई पहुंचे लेकिन उनसे मिलने की इच्छा पूरी नहीं हो पाई। उस समय तक उनके बड़े भाई अशोक कुमार बतौर अभिनेता अपनी पहचान बना चुके थे।
अशोक कुमार चाहते थे कि किशोर नायक के रूप मे अपनी पहचान बनाए लेकिन किशोर कुमार को अदाकारी के बजाय पाश्र्व गायक बनने की चाह थी। हांलाकि उन्होंने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा कभी किसी से नही ली। अशोक कुमार की बालीवुड में पहचान के कारण उन्हें बतौर अभिनेता काम मिल रहा था। अपनी इच्छा के विपरीत किशोर कुमार ने अभिनय करना जारी रखा जिसका मुख्य कारण यह था कि जिन फिल्मो में वह बतौर कलाकार काम किया करते थे उन्हे उस फिल्म में गाने का भी मौका मिल जाया करता था। किशोर कुमार की आवाज के.एल.सहगल से काफी हद तक मेल खाती थी। बतौर गायक सबसे पहले उन्हें वर्ष १९४८ में बाम्बे टाकीज की फिल्म जिद्दी में सहगल के अंदाज मे हीं अभिनेता देवानंद के लिए, मरने की दुआएं क्यूं मांगू ,.गाने का मौका मिला। वर्ष १९५१ में बतौर मुख्य अभिनेता उन्होंने फिल्म आन्दोलन से
अपने करियर की शुरुआत की लेकिन इस फिल्म से दर्शकों के बीच वे अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष १९५३ मे प्रदॢशत फिल्म लड़की बतौर अभिनेता उनके कैरियर की पहली हिट फिल्म थी। इसके बाद बतौर अभिनेता भी किशोर कुमार ने अपनी फिल्मो के जरिए दर्शको का भरपूर मनोरंजन किया। उनकी अभिनीत कुछ फिल्मों मे नौकरी १९५४, बाप रे बाप १९५५ चलती का नाम गाड़ी, दिल्ली का ठग १९५८,् बेवकूफ १९६०, कठपुतली, ्झुमरू १९६१,बाम्बे का चोर, मनमौजी, हॉफ टिकट १९६२, बावरे नैन मिस्टर एक्स इन बाम्बे ्दूर गगन की छांव मे १९६४, प्यार किए जा १९६६् पड़ोसन, दो दूनी चार १९६८,जैसी कई सुपरहिट फिल्मे हैं जो आज भी किशोर कुमार के जीवंत अभिनय के लिए याद की जाती है।
किशोर कुमार ने १९६४ मे फिल्म ,,दूर गगन की छांव मे ,. के जरिए निर्देशन के क्षेत्र मे कदम रखने के बाद हम दो डाकू १९६७् दूर का राही ्१९७२, बढ़ती का नाम दाढ़ी, १९७४, शाबास डैडी, १९७९, दूर वादियों मे कही, १९८०, चलती का नाम ङ्क्षजदगी, १९८२, ममता की छांव मे १९८२ जैसी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया। निर्देशन के अलावा उन्होंने कई फिल्मों मे संगीत भी दिया जिनमें झुमरू १९६१, दूर गगन की छांव में, १९६४, दूर का राही, १९७१, जमीन आसमान, १९७२, ममता की छांव मे, १९८९ फिल्मे शामिल है। बतौर निर्माता किशोर कुमार ने वर्ष १९६४ में दूर गगन की छांव में १९६४, और दूर का राही, १९७१ फिल्में भी बनाई।
किशोर कुमार को उनके गाए गीतों के लिए ८ बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। सबसे पहले उन्हे वर्ष १९६९ में आराधना फिल्म के, रूप तेरा मस्ताना, गाने के लिए सर्वŸोष्ठ गायक का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद १९७५ मे फिल्म अमानुष के गाने , दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा .१९७८ मे डॉन के गाने , खइके पान बनारस वाला .१९८० में हजार राहें मुड़ के देखीं , फिल्म थोड़ी सी बेवफाई . १९८२ में फिल्म नमक हलाल के , पग घुंघरू बांध मीरा नाची थी . १९८३ मे फिल्म अगर तुम न होते के , अगर तुम न होते , १९८४ में फिल्म शराबी के , मंजिलें अपनी जगह हैं .और १९८५ में फिल्म सागर के , सागर किनारे दिल ए पुकारे , गाने के लिए भी किशोर कुमार सर्वŸोष्ठ गायक के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए । किशोर कुमार ने अपने सम्पूर्ण फिल्मी कैरियर मे ६०० से भी अधिक हिन्दी फिल्मों के लिए अपना स्वर दिया १ हिन्दी फिल्मों के अलावा उन्होंने बंगला, मराठी , असमी , गुजराती, कन्नड़, भोजपुरी औरउडिय़ा फिल्मों में भी अपनी दिलकश आवाज के जरिए श्रोताओं को भाव विभोर किया।
हर दिल अजीज कलाकार किशोर कुमार कई बार विवादों का भी शिकार हुए। आपातकाल के दौरान दिल्ली में एक सांस्कृतिक आयोजन में उन्हें गाने का न्योता मिला, जिसके लिए किशोर कुमार ने पारिश्रमिक मांगा इसके कारण उन्हे आकाशवाणी और दूरदर्शन पर गाने के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया १ आपातकाल हटने के बाद पांच जनवरी १९७७ को उनका पहला गाना बजा ,दुखी मन मेरा सुनो मेरा कहना, जहां नहीं चैना वहां नहीं रहना ,
यूं तो किशोर कुमार ने शशि कपूर, धर्मेन्द्र ्विनोद खन्ना, संजीव कुमार शत्रुघ्न सिन्हा, रणधीर कपूर, से लेकर ऋषि कपूर तक के लिए गाने गाए लेकिन देवानंद, अमिताभ बच्चन, और राजेश खन्ना पर किशोर कुमार की आवाज खूब जमती थी साथ ही ए तीनों सुपर स्टार भी अपनी फिल्मो के लिए किशोर कुमार द्वारा गाए जाने की मांग किया करते थे । देखा जाए तो किशोर कुमार ने कई अभिनेताओं को अपनी आवाज दी लेकिन कुछ मौकों पर मोहम्मद रफी ने उनके लिए गीत गाए थे इन गीतो में ,हमें कोई गम है तुम्हें कोई गम है मोहब्बत कर जरा नहीं डर,चले हो कहां कर के जी बेकरार, भागमभाग १९५६, मन बाबरा निस दिन जाए, रागिनी १९५८, है दास्तां तेरी ए ङ्क्षजदगी ्शरारत १९५९, आदत है सबको सलाम करना , प्यार दीवाना १९७२ , दिलचस्प बात है कि मोहम्मद रफी किशोर कुमार के लिए गाए गीतों के लिए महज एक रूपया पारिश्रमिक लिया करते थे ।
वर्ष १९८७ मे किशोर कुमार ने यह निर्णय लिया कि वह फिल्मों से संन्यास लेने के बाद वापस अपने गांव खंडवा लौट जाएंगे। वह अक्सर कहा करते थें कि , दूध जलेबी खाएंगे खंडवा में बस जाएंगे , लेकिन उनका यह सपना अधूरा ही रह गया। १३ अक्टूबर १९८७ को उन्हे दिल का दौरा पड़ा और वह इस दुनिया से विदा हो गए ।
प्रेम कुमार
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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