गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009
सजग आँखों को बंद करने की साजिश
डॉ. महेश परिमल
कुछ दिनों पहले ही छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर जाने का अवसर मिला। तेजी से आगे बढ़ती इस राजधानी में कई दृश्य चौंकाने वाले मिले। इन सबमें मुख्य था, फाफाडीह थाने से करीब 200 मीटर की दूरी पर छोटी रेल्वे लाइन के पास एक व्यक्ति पक्षियों की बिक्री कर रहा था। थाने के इतने करीबे पक्षियों की बिक्री! मुझे आश्चर्य हुआ। पक्षियों की बिक्री क्या अपराध नहीं है? लगातार तीन दिनों तक यह नजारा मैंने देखा। एक बार समीप ही थाने चला गया। सोचा पुलिस वालों को इस अपराध से अवगत करा दूँ। पुलिस थाने का नजारा तो अजीब-सा था। एक तो वहाँ सुनने वाला ही कोई नहीं था। जब मैं जाने लगा, तब वहाँ बैठे हवलदार ने कहा कि आप टीआई साहब से मिल लें। मैं टीआई साहब के पास पहुँचा। मैंने कहा कि थाने के इतने करीब पक्षियों की बिक्री खुलेआम हो रही है, आप लोग कुछ नहीं करते? तब टीआई ने कहा कि आपको तो वन विभाग में जाना चाहिए। यहाँ क्यों आए हैं? मैं चौंका, मैंने टीआई से पूछा- क्या पक्षियों की बिक्री अपराध नहीं है? तब टीआई ने जो जवाब दिया, वह तो और भी चौंकाने वाला था। उनका कहना था कि इस बारे में मुझे कानून पढऩा पड़ेगा और कानून पढऩे के लिए मेरे पास समय नहीं है।
छोटे-छोटे अपराधियों को पकड़कर उन्हें प्रताडि़त करने वाली पुलिस इन्हें पहले तो पकड़ लेती है, बाद में उन पर कानून की धारा लगाई जाती है। दूसरी ओर पक्षियों में खरीदी-बिक्री अपराध की श्रेणी में आता है या नहीं, इसके लिए एक टीआई को कानून पढऩा पड़ेगा। वाह क्या बात है? अगले दिन जब मैंने पक्षी बेचने वाले से पूछा कि भाई, थाने के इतने समीप बैठकर यह अपराध कर रहे हो, तुम्हें डर नहीं लगता? तब उसका जवाब तो और भी चौंकाने वाला था। थाने के पास बैठा यह अपराध कर रहा हूँ, तो इसके पीछे भी कुछ न कुछ होगा ही साहब, आप मेरा मुँह क्यों खुलवा रहे हैं? मुझे इनसे संरक्षण मिलता है, डर नहीं लगता।
मैं हैरान था। क्या मेनका गांधी की संस्था से जुड़ा कोई भी व्यक्ति रायपुर में नहीं है? रायपुर में पुलिस थाने के पास ही वन विभाग का एक कार्यालय है। निश्चित रूप से उस रास्ते से वन विभाग के कर्मचारी भी गुजरते होंगे। पर किसी को नहीं पड़ी है कि खामोश परिंदों को इस तरह से खुलेआम बेचने वाले के खिलाफ शिकायत की जाए। मुझे तो 24 सितम्बर 2009 को ही छत्तीसगढ़ की संस्कारधानी बिलासपुर की घटना याद आ गई। टीआई साहब अखबार पढ़ते, तो पता चलता कि बिलासपुर में एक जागरुक नागरिक अजरुन भोजवानी ने तोते बेचने वाले एक व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज की, तो वन और पुलिस विभाग ने मिलकर तोता शिकारी को पकड़कर उसके पास से 16 तोते जब्त कर वन अधिनियम की कार्रवाई कर जेल भेज दिया। इनके खिलाफ वन अधिनियम 1972 की धारा 2 अ, 39 अ, 50, 51, 1,2 के तहत कार्रवाई कर उसे न्यायालय में पेश किया गया।
हमारी आँखों के सामने रोज ही इतने अधिक अपराध हो रहे हैं, इसकी हमें जानकारी ही नहीं है। अपराधी भी बेखौफ हैं। उनके बेखौफ होने का कारण यही है कि जिन पर कानून को अमल में लाने की जिम्मेदारी है, वही अपराधियों का संरक्षण दे रहे हैं। कई अपराध तो ऐसे हैं, जिन पर किसी का बस नहीं है। सड़क किनारे एक पत्थर कब, कैसे एक मंदिर का रूप धारण कर लेता है, किसी को पता ही नहीं चलता। सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दे रखा है कि सड़कों के किनारे किसी भी तरह की खाद्य सामग्री न बेची जाए। यदि सड़क किनारे ठेेलों पर खाद्य सामग्री बेची जा रही हो, तो बेचने वाले के खिलाफ कार्रवाई की जाए। हम इस आदेश की सरे आम धज्जियाँ उड़ती देख रहे हैं। यही हाल पायरेटेड सीडी का भी है। लेकिन हम रोज ही सड़क किनारे पायरेटेड सीडी बिकती देख रहे हैं। इस तरह से कई ऐसे दृश्य हैं, जो अब आम हो गए हैं। कभी सड़क की सफाई होती देख हम समझ जाते हैं कि कोई वीआईपी आने वाला है। वास्तव में यदि सफाई रोज हो, तो कोई नई बात सामने नहीं आती।
कुछ होने और कुछ न होने के पीछे कई कारण हैं। अव्यवस्थाओं के बीच जीने के हम आदी हो चुके हैं। कोई भी व्यवस्थित चीज आज हमें विचलित कर देती है। सुव्यवस्था के नाम पर हम विदेशों का उदाहरण ही लेते हैं। अव्यवस्था आज हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन गई है। इसके बिना जीने की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यात्रा करते हुए यदि टीसी हमसे बिना धन लिए ही रिजर्वेशन कर देता है, तो हमें आश्चर्य होता है। निजी अस्पताल में नर्स और डॉक्टरों का व्यवहार काफी अच्छा है, तो हमें उन पर विश्वास नहीं होता। यही हाल सरकारी दफ्तरों का है, जहाँ यदि बाबू ने हमारा काम बिना धन लिए ही कर दिया, तो हम उसे मूर्ख समझते हैं। अब तो हमारी प्रवृत्ति ही हो गई है रिश्वत देना। हम तो तैयार बैठे हैं, हमने मान ही लिया है कि आज बिना धन के कोई काम हो ही नहीं सकता। यह सब उस रोग के लक्षण हैं, जो एक देश को बीमार करने वाला है। शरीर के नाखून यदि पीले होने लगे, तो समझो, हमें पीलिया हो गया है। हर रोग के लक्षण पहले शरीर में दिखाई देते हैं, ठीक उसी तरह आज हमारे देश को लगने वाले रोग के लक्षण समाज में दिखाई दे रहे हैं। चारों ओर अव्यवस्था, रिश्वतखोरी, हरामखोरी, भ्रष्टाचार आदि भयावह रोग के लक्षण के रूप में हमारे सामने हैं। हमें इन सबसे बचना होगा। शुरुआत खुद से ही करनी होगी, तभी समाज में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। क्या आप तैयार हैं इस परिवर्तन के लिए?
डॉ. महेश परिमल
लेबल:
आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
सबसे बड़ा भ्रष्टाचार तो यही है कि ऐसे कानूनों का होना जिनकी जानकारी लोगों का न हो . जैसा कि आपने लिखा है सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बारे में , मुझे नहीं लगता ऐसी कोई व्यवस्था है कि ये आदेश नीचे तक पहुँचते है . सुप्रीम कोर्ट ने रैली और बंद पर भी रोक लगायी लेकिन होता क्या है? . चुनाव आयोग ने आज तक क्या कार्यवाही की चुनाव कानूनों के उल्लंघन के खिलाफ , केवल नोटिस और चेतावनी तक सीमित . आम आदमी इस देश में एक झंझावात में जी रहा है . दुःख की बात तो यह भी है कि मीडिया जैसा शशक्त माध्यम भी दिशाहीन हो गया है विशेषकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया .
जवाब देंहटाएं