
डॉ. महेश परिमल
मिलावट अब हमारे देश की राष्ट्रीय समस्या नहीं, बल्कि देश की पहचान बनने लगा है। हर जगह, हर चीज पर मिलावट आज आम बात हो गई है। जिस चीज में कभी मिलावट की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी, वही चीज आज मिलावटी मिल रही है। दाल, चावल से लेकर मसाले तक और दूध -दही से लेकर मावे तक में मिलावट जारी है। इसे रोकने की दिशा में सरकारी प्रसास भ्रमित करनेे वाले हैं। भारतीय आपराधिक दंड संहिता की धारा 272 और 273 के तहत खाने में मिलावट करने को अपराध माना गया है। आज तक मिलावट को संगीन अपराध नहीं माना गया है। भारतीय कानून के अनुसार मिलावट की चीज को न तो रखा जा सकता है और न ही मिलावटखोर को गिरफ्तार किया जा सकता है। ऐसे में कौन कानून से डरेगा?
अगर आपसे यह कहा जाए कि आप रोज जो दूध ग्रहण कर रहे हैं, वह नकली है, तो शायद विश्वास न हो। पर यह सच है कि आज शहरों में बिकने वाला 90 प्रतिशत दूध नकली है। यह भी भला कोई बात हुई कि केबल का हर महीने 300 रुपए देने में हम संकोच नहीं करते, मोबाइल का बिल 500 रुपए हो जाए, तो हमें परेशानी नहीं होती, पर दूध का दाम बढ़ जाए, तो हमें तकलीफ होने लगती है। हम बाजार से 12-16 रुपए लीटर वाला सस्ता दूध खरीदते हैं और बीमार पड़ते हैं। डॉक्टरों और दवाओं पर धन खर्च कर देंगे, पर यह देखने की कोशिश नहीं करेंगे कि जो दूध हमें ग्रहण कर रहे हैं, वह नकली तो नहीं! वास्तव में आज बाजारों में मिलने वाला 90 प्रतिशत दूध नकली है।
सचमुच आज का जीवन बहुत ही विषम हो गया है। क्या आप विश्वास करेंगे, उस स्थान की, जहाँ एक भी गाय, भैंस नहीं है, फिर भी वहाँ रोज हजारों लीटर दूध निकलता है। गुजरात के मेहसाणा में एक ऐसी ही फैक्टरी है, जहाँ हजारों लीटर दूध रोज बनता है और महानगरों में पहुँचता है। इस फैक्टरी में यूरिया, खाने का सोडा, बटर आइल और विदेशी दूध पावडर को मिलाकर दूध तैयार किया जाता है। इन लोगों ने मेहसाणा को इसलिए चुना कि यहाँ दूध की कई डेयरियाँ हैं। दूध के नाम पर यह शहर मक्का है। यह सोचने वाली बात है कि यह दूध किस तरह से स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है? हाल ही में मुम्बई में नकली दूध के तीस टैंकर पकड़े गए। इस दूध को गटर में बहा दिया गया। आखिर किसकी शह पर लोगों के स्वास्थ्य के साथ कौन खिलवाड़ कर रहा है, यह एक शोध का विषय है। दूसरी ओर सच बात यह है कि हमारे देश में आर्थिक घपले करने वालों, रिश्वतखोरों, मिलावटखोरों, जमाखोरों पर किसी तरह के कड़े कानून की व्यवस्था नहीं है, इसलिए इन पर कोई कार्रवाई नहीं हो पाती। आज तक उपरोक्त अपराध में किसी एक को भी कड़ी सजा हुई हो, ऐसा सुनने में नहीं आया। हर स्थिति में आम आदमी मारा जाता है। इन लोगों की काली करतूतों से सबसे अधिक प्रभावित होने वाला आम आदमी ही है। तमाम सरकारें आम आदमी की हिफाजत की बातें करतीं हैं, पर ऐसा कुछ भी नहीं हो पाता। यह आम आदमी हर जगह असुरक्षित है।
देश में मिलावट को नियंत्रित करने के लिए जो कानून हैं, वे भ्रमित करने वाले हैं। इस पर अमल कैसे किया जाए, इसको लेकर संबंधित अधिकारियों में भी भ्रम की स्थिति है। मिलावट से बड़े पैमाने पर मौतें होने के बाद भी इसे संज्ञेय अपराध की श्रेणी में नहीं रखा गया है। जानकारी मिलने के बाद भी पुलिस इस मामले में सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकती। मिलावट के संबंध में कार्रवाई करने का अधिकार केवल फुड इंस्पेक्टर को ही है। मिलावटी माल का नमूना केवल वही ले सकता है। उसे जाँच के लिए भी वही भेज सकता है। मौके पर पाए जाने वाले आरोपी की गिरफ्तारी भी संभव नहीं है। इसके अलावा मिलावटी माल को जब्त भी नहीं किया जा सकता। मिलावटी भ्रष्टाचार के इस दौर में ये कानून कितने लाचार हैं, इसे सहजता से समझा जा सकता है।
हम जिसे दूध समझते हैं , वास्तव में वह फैक्टरी में विभिन्न रसायानों से बना एक सफेद रंग का पानी ही होता है, जिसे दूध के रूप में बेचा जाता है। मध्यमवर्ग को यह सस्ता दूध आसानी से 12 से 16 रुपए लीटर मिल जाता है। वे इसे सुपर दूध के नाम से जानते हैं। ये दूध हमें किस तरह से प्रभावित करता है, यह तो वे डॉक्टर ही बता पाएँगे, जिनके पास हम अक्सर जाते रहते हैं। इस दूध से शरीर में कई तरह की बीमारियाँ हो जाती हैं। वैसे देखा जाए, तो आज मिलावट हर जगह हो रही है। इसके लिए हमें ही सजग होना होगा। हमारी थोड़ी सी सतर्कता हमें ही नहीं हमारे परिवार को बचा सकती है। जहाँ चीज कुछ सस्ती मिल रही हो, तो उसका यह आशय कदापि नहीं है कि वह अच्छी ही हो। सस्ते का माल रास्ते में, इस कहावत को सच मान लें। जहाँ दूध 24 रुपए लीटर में भी अच्छा न मिल रहा हो, वहाँ यदि 16 रुपए लीटर मिले, तो आश्चर्य करना ही चाहिए। यदि सस्ता मिल रहा है, तो यह पता लगाने की कोशिश करें कि आखिर यह क्यों सस्ता बेच रहा है? हमारी विवेक ही हमें सही रास्ता दिखा देगा। सस्ते के चक्कर में पूरे परिवार को संकट में डालने की मूर्खता कदापि न करें।
बात केवल दूध की ही नहीं है। यह नियम दूसरी खाद्य वस्तुओं पर भी लागू होता है। सड़क किनारे बिकने वाले खाद्य पदार्थ एक बार अवश्य ही हमारा ध्यान आकर्षित करते ही हैं। कई बार इसी आकर्षण में हम अकेल न खाकर पूरे परिवार के लिए 'पैकÓ करवा लेते हैं। खरीदते समय आप यदि आसपास के वातावरण पर एक हल्की दृष्टि डाल लें, तो समझ में आ जाएगा कि ये खाद्य सामग्री कितनी प्रदूषित है। डॉक्टरों पर खर्च करने के बजाए यदि हमें अच्छी स्वास्थ्यवर्ध चीजें ग्रहण करें, तो ऐसा करके हम अपने परिवार के प्रति संवेदनशील ही बनेंगे।
डॉ. महेश परिमल
namste ,
जवाब देंहटाएंmilabat vee vijgavan kai camatkaro ka bhag hai,yah abhishap hai
बात तो बिलकुल सही है, और सब इससे परेशान भी हैं. लेकिन हल क्या है ?
जवाब देंहटाएंसरकार को कुछ सख्त और ठोस कदम उठाने चाहिए.