बुधवार, 28 अक्तूबर 2009
हिंदी फिल्मों के राजकुमार : प्रदीप कुमार
हिन्दी सिनेमा में प्रदीप कुमार को ऐसे अभिनेता के तौर पर याद किया जाता है. जिन्होंने 50 और साठ के दशक में अपने ऐतिहासिक किरदारों के जरिये दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया । पचास और साठ के दशक में फिल्मकारों को अपनी फिल्मों के लिए जब भी किसी राजा- महाराजा . या फिर राजकुमार अथवा नवाब की भूमिका की जररत होती थी वह प्रदीप कुमार को याद किया जाता था ।उनके उत्कृष्ट अभिनय से सजी अनारकली . ताजमहल. बहू बेगम और चित्रलेखा जैसी फिल्मों को दर्शक आज भी नहीं भूले हैं । पश्चिम बंगाल में चार जनवरी 1925 को ब्राह्मण परिवार में जन्में शीतल बटावली उर्फ प्रदीप कुमार बचपन से ही फिल्मों में बतौर अभिनेता काम करने का सपना देखा करते थे । अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए वह अपने जीवन के शुरआती दौर में रंगमंच से जुडे । हालांकि इस बात के लिए उनके पिताजी राजी नहीं थे । वर्ष 1944 में उनकी मुलाकात निर्देशक देवकी बोस से हुई. जो एक नाटक में प्रदीप कुमार के अभिनय को देखकर काफी प्रभावित हुए।
उन्हें प्रदीप कुमार से एक उभरता हुआ सितारा दिखाई दिया और उन्होंने अपनी बंगला फिल्म अलखनंदा में उन्हें काम करने का मौका दिया ।
इस फिल्म से प्रदीप कुमार नायक के रप में अपनी पहचान बनाने में भले ही सफल नहीं हुए लेकिन एक अभिनेता के रप में उन्होंने सिने कैरियर के सफर की शुरआत कर दी । इस बीच प्रदीप कुमार ने एक और बंगला फिल्म भूली नाय में अभिनव किया । इस फिल्म ने बॉक्स ऑफिस पर सिल्वर जुबली मनायी । इसके बाद उन्होंने हिंदी सिनेमा की ओर भी अपना रख कर लिया । वर्ष 1949 में प्रदीप कुमार अपने सपने को साकार करने के लिए मुंबई आ गये और कैमरामैन धीरेन डे के सहायक के तौर पर काम करने लगे । वर्ष 1949 से 1952 तक वह फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनाने के लिए संघर्ष करते रहे । प्रदीप कुमार को फिल्मों में नायक बनने का नशा कुछ इस कदर छाया हुआ था कि उन्होंने हिंदी और उर्दू भाषा की तालीम हासिल करनी शुर कर दी । फिल्म अलखनंदा'के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली. वह उसे स्वीकार करते चले गये । इस बीच उन्होंने ृष्णलीला. स्वामी. विष्णुप्रिया और संध्या बेलार रपकथा जैसी कई फिल्मों में अभिनव किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई ।
वर्ष 1952 में प्रदशत फिल्म ' आनंद मठ' में प्रदीप कुमार पहली बार मुख्य अभिनेता की भूमिका में दिखाई दिये । हालांकि इस फिल्म में पृथ्वीराज कपूर जैसे महान अभिनेता भी थे. फिर भी वह दर्शकों के बीच अपने अभिनव की छाप छोडने में कामयाब रहे ।इस फिल्म की सफलता के बाद प्रदीप कुमार बतौर अभिनेता फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये । वर्ष 1953 में फिल्म अनारकली में प्रदीप कुमार ने शाहजादा सलीम की भूमिका निभायी. जो दर्शकों को काफी पसंद आयी । इसके साथ ही वह ऐतिहासिक फिल्मों के लिये निर्माता. निर्देशक की पहली पसंद बन गये । वर्ष 1954 में प्रदशत फिल्म.नागिन' की सफलता के बाद प्रदीप कुमार दर्शकों के चहेते कलाकार बन गये । इस फिल्म ने बाक्स पर सफलता के नये कीतमान स्थापित किये और इसमें गीत 'मन डोले मेरा तन डोले' मेरा दिल ये पुकारे आजा' गीत श्ररोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुए । नागिन और अनारकली जैसी फिल्मों से मिली कामयाबी से प्रदीप कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुये ऐसी स्थिति में पहुंच गये जहां वह फिल्म मे अपनी भूमिकाएं स्वयं चुन सकते थे। इस दौरान उन्हें महान निर्माता निर्देशक व्ही शांता राम की फिल्म 'सुबह का तारा ' और राजकपूर की 'जागते रहो ' में भी काम करने का मौका मिला। वर्ष 1956 प्रदीप कुमार के सिने कैरियर का सबसे अहम वर्ष साबित हुआ। इस वर्ष उनकी 10 फिल्में प्रदशत हुयी जिनमें श्री फरहाद, जागते रहो, दुर्गेश नंदिनी, बंधन, राजनाथ और हीर जैसी फिल्में शमिल हैं। इसके बाद प्रदीप कुमार ने एक झलक, 1957, अदालत,1958, आरती, 1962, चित्रल। खा, 1964, भींगी रात, 1965, रात और दिन, बहू बेगम, 1967 जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाकर दर्शको का भरपूर मनोरजंन किया। प्रदीप कुमार के सिने कैरियर पर नजर डालने पर पता लगता है कि पचास के दशक में उन पर फिल्माये गीत दर्शकों के बीच काफी
लोकप्रिय हुआ करते थे। उनमें से कुछ गीत ऐसे है जो आज भी श्रोताओं की पहली पसंद है। इनमें जो वादा किया वो निभाना पड़ेगा, जो बात तुझमें है तेरी तस्वीर में नही, पांव छू लेने दो फूलों को इनायत होगी ताजमहल, न डोले तेरा तन डोल, मेरा दिल ये पुकारे आजा, तेरे द्वार खड़ा एक जोगी नागिन, दिल जो न कह सका, भींगी रात, हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक, बहू बेगम, रात और दिन दीया जले, रात और दिन जैसे नही भूलने जा कने वाले गीत शामिल है। प्रदीप कुमार की जोड़ी मीना कुमारी के साथ खूब जमी। उनकी जोड़ी वाली फिल्मों में अदले जहांगीर, बंधन, चित्रलेखा, बहू बेगम, भींगी रात, आरती और नूरजहां शामिल है। अभिनय मे एकरपता से बचने और स्वंय को चरित्र अभिनेता के रूप मे भी स्थापित करने के लिये प्रदीप कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं मे पेश किया। इस क्रम में वर्ष 1969 मे प्रदशत अजय विश्वास की सुपरहिट फिल्म.संबध .में उन्होंने चरित्र भूमिका निभाई और सशक्त अभिनय से दर्शको की वाहवाही लूट ली।
इसके बाद प्रदीप कुमार ने महबूब की मेहंदी 1971. समझौता 1973, दो अंजाने 1976, धरमवीर, 1977,खट्ठामीठा, 1978, क्रांति, 1981, रजिया सुल्तान,1983 दुनिया, 1984 मेरा धर्म, 1986, और वारिस, 1988जैसी कई सुपरहिट फिल्मों के जरिये दर्शको के दिल पर राज किया। हिन्दी फिल्मों के अलावा प्रदीप कुमार ने बंगला फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया। इन फिल्मों में भूलीनाई, गृहदाह दासमोहन, देवी चौधरानी, राय बहादुर, संदीपन आनंद मठ जैसी फिल्में शामिल है। इसके अलावा उन्होंने कई बंगला नाटकों मे भी अभिनय किया।लगभग चार दशक तक अपने सशक्त अभिनय से दर्शको के बीच खास पहचान बनाने वाले प्रदीप कुमार 27अक्टूबर 2001 को इस दुनिया को अलविदा कह गये।
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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Aadarniya Mahesh ji,
जवाब देंहटाएंPradeep kumar par behatareen aalekh ke liye shukriya. unke jeevan ka ek dukhad pahly yah bhi hai ki jeevan ke aakhiri deenon me ve bilkul tanha aur gumnaam jindagi jee rahe the. kolkata me pravas karne wale rajasthani mool ke film nirmata Mr Pradeep Kundalia ne Pradeep Kumar ke aakhiri varshon ka poora kharch vahan kiya. Unko rahne ke liye ek Flat, Naukar, Khane-peene ka prabandh aadi sab kiya. 27 November 2001 ko jab Pradeep kumar ka swargawas hua, kevdatalla shmashan ghat par unhe shraddhanjali dene ek darjan log bhi nahi the. Unke pariwar ne, unke bete-betiyon ne, aur kolkata ke tathakathit saanskritik jagat ke logon ne bhi unki kabhi koi khabar nahi lee. Mujhe kai baar unke darshan ka mauka mila tha. Aakhiri dinon me ve lakwagrasht the. Sagar Chowdhary naam ka shaksh unki seva ke liye tainaat tha. Saagar Chowdhary apne bal par aaj bhi har saal 27 november ko unki varshiki manata hai, par hindi ya bangla film jagat ke kisi shaksh ko bhi unse koi lena -dena nahi hai.Yahi hai jindagi....
Prakash Chandalia
Editor-Rashtriya Mahanagar
Kolkata
धन्यवाद प्रकाश भाई, आपने मुझे अपनी जानकारियों में साझा किया। मैं आपका शुक्रगुजार हूं कि आपने मेरे ब्लॉग को पढ़ा और अपनी प्रतिक्रिया दी। पुन: धन्यवाद
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