मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

डिग्रियां रोक नहीं पाई पक्षियों के प्रति दीवानगी


पक्षियों और प्रकृति के प्रति गहरा लगाव रखने वाले जाने माने पक्षी विज्ञानी डा.सालिम अली को केवल एमएससी या पीएचडी की डिग्री के अभाव में पक्षी विज्ञानी की नौकरी से वंचित होना पड़ा था, फिर भी पक्षियों के प्रति उनकी दीवानगी कम नहीं हुई।
बर्डमैन आफ इंडिया कहलाने वाले सालिम अली उन पहले भारतीयों में थे जिन्होंने भारत में व्यवस्थित एवं चरणबद्ध तरीके से पक्षियों का सर्वेक्षण किया। टाइम पत्रिका द्वारा विश्व के 30 पर्यावरण नायकों में शामिल नासिक के मोहम्मद दिलावर ने बताया कि पक्षी मानव जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण घटक हैं और उनके नहीं रहने से पारिस्थितिकी तंत्र की एक कड़ी टूट जाएगी। उनके अनुसार डा.सालिम अली ने अपना सारा जीवन पक्षियों पर लगा दिया। यह उनका ही योगदान है कि देश में भारतीय उपमहाद्वीप के पक्षियों का एक डाटाबेस तैयार हो सका है।
दिलावर कहते हैं कि भारत में पर्यावरण संरक्षण पर जितना भी काम हो रहा है, उसमें दस फीसदी भी पक्षियों के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इससे सालिम अली का योगदान और बढ़ जाता है। दिलावर के अनुसार अली के प्राण पक्षियों में बसते थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी भी उनके कार्यो का पुरजोर समर्थन करती थीं।
अपनी आत्मकथा द फाल आफ ए स्पैरो में अली ने लिखा है कि मेरे लिए वन्य जीवन संरक्षण मूल प्रायोगिक उद्देश्यों के लिए है। इसका मतलब इसे वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, सौंदर्यात्मक, मनोरंजनात्मक और आर्थिक रूप में मान्यता दिलाने से है। हर साल राजस्थान के केवलादेव घना पक्षी विहार में सालिम अली साइबेरियाई सारसों के लिए जाते थे। सालिम अली को इन पक्षियों की एक-एक आदत के बारे में इतनी गहरी जानकारी थी कि वह पहले से ही बता देते थे, अब यह सारस ऐसा करेगा।
सालिम अली ने ही बताया था कि साइबेरियाई सारस मांसभक्षी नहीं होते। वह मछलियां नहीं खाते बल्कि काई खाते हैं। एक बार साक्षात्कार के दौरान उनसे पूछा गया कि सर्दियों में हिमालय की हजारों फुट ऊंची चोटियां पार कर पक्षी भारत आते हैं। हिमालय की ऊंचाइयों में आक्सीजन की कमी होती है और पक्षियों को उड़ान भरने में अधिक आक्सीजन की जरूरत होती है। यह कमी वह कैसे पूरी करते हैं, उन्हें दिशा ज्ञान कैसे होता है! तब सालिम अली ने जवाब दिया था कि इस सिलसिले में खोज जारी है। अभी यह विवादास्पद है।
सालिम अली कालिदास की रचना मेघदूत में कही गई इस बात पर भी विचार कर रहे थे कि हिमालय में क्रौंच जाति के पक्षी एक विशेष रास्ते से क्यों आते हैं! पक्षियों को घंटों एकटक निहारते हुए उनकी एक-एक आदत परखने-समझने के लिए सालिम अली ऐसा स्थान चुनते थे जहां से उन्हें पक्षी तो साफ नजर आए लेकिन वह पक्षी को नजर न आएं।
मुंबई के एक सुलेमानी बोहरा मुस्लिम परिवार में 12 नवंबर, 1896 को दसवीं और सबसे छोटी संतान के रूप में जन्मे सालिम मोइजुद्दीन अब्दुल अली के सिर से मात्र दस साल की उम्र में ही माता-पिता का साया उठ गया था। उनके मामा ने उनका पालन-पोषण किया। बचपन में मामा की दी हुई एअरगन से सालिम अली ने एक गौरैया का शिकार किया। उन्होंने जब मामा से गौरैया के बारे में जानकारी चाही तो मामा ने उन्हें बाम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसायटी [बीएनएचएस] जाने के लिए कहा।
बीएनएचएस के तत्कालीन सचिव डब्ल्यूएस मिलार्ड ने नन्हे सालिम को न सिर्फ गौरैया के बारे में बताया बल्कि बीएनएचएस में मसाला भर कर रखे गए मृत पक्षी भी दिखाए। नन्हे सालिम के मन में पक्षियों की रहस्यमयी दुनिया ने इतनी उत्सुकता जगाई कि उन्होंने पक्षी विज्ञान को ही अपना करिअर बना लिया। बाद में अली प्रोफेसर स्ट्रासमैन के पास पढ़ने के लिए जर्मनी गए। स्ट्रासमैन को डा.अली अपना पहला गुरु मानते हैं। देश की आजादी के बाद बीएनएचएस की कमान डा.अली के हाथ आई और उन्होंने इसका प्रबंधन किया। धन की कमी के कारण कठिन परिस्थितियों का सामना कर रहे बीएनएचएस को बचाने के लिए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से गुहार लगाई। प्रकृति के आकर्षण में बंधे सालिम अली घंटों पक्षियों को निहारते उनकी एक-एक आदत को परखते। इस पक्षी प्रेमी ने कुमाऊं तराई क्षेत्र में दुर्लभ चिडि़या की प्रजाति फिन्स बया की दोबारा खोज की थी। लेकिन पहाड़ी बटेर ओफ्राइशिया सुपरसिलिओसा की खोज के लिए उनके प्रयास नाकाम रहे।
भरतपुर पक्षी विहार और साइलेंट वैली नेशनल पार्क को बचाने में भी सालिम अली की अहम भूमिका रही है। पर्यावरण एवं वन मंत्रालय की सहायता से कोयंबतूर के अनाइकट्टी में सालिम अली सेंटर फार आर्निथोलोजी एंड नैचुरल हिस्ट्री [एसएसीओएन] की स्थापना की गई। भारत सरकार ने सालिम अली को 1958 में पद्म भूषण से और 1976 में पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 1958 में वह इंडियन नेशनल साइंस एकेडमी के फेलो चुने गए। पक्षियों पर महत्वपूर्ण किताबें लिख चुके इस प्रकृति प्रेमी को तीन बार डाक्टरेट की मानद उपाधि दी गई। 1985 में वह राज्यसभा के लिए नामांकित हुए। अनेक विदेशी पुरस्कारों से भी उन्हें सम्मानित किया गया।
प्रोस्टेट कैंसर से लंबी लड़ाई लड़ने के बाद 27 जुलाई 1987 को 91 वर्ष की उम्र में इस पक्षी विज्ञानी ने दुनिया को विदा कह दिया। सालिम अली को पर्यावरण संरक्षण में पक्षियों के महत्व को साबित करने के लिए सदा याद किया जाएगा। उन्होंने उस क्षेत्र में काम किया जो उपेक्षित माना जाता था। पक्षियों के बारे में उनका व्यवस्थित अध्ययन और उनका डाटाबेस विश्व को एक अमूल्य देन है। देश में आज इतने सारे पक्षी विहार हैं। इसमें डा.अली का बड़ा योगदान माना जाता है।

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