सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

एक अनोखे गीतकार : साहिर लुधियानवी


मशहूर शायर साहिर लुधियानवी हिन्दी फिल्मों के ऐसे पहले गीतकार थे जिनका नाम रेडियो से प्रसारित फरमाइशी गानों में दिया गया। इससे पहले किसी गीतकार को रेडियो से प्रसारित फरमाइशी गानों में श्रोय नहीं दिया जाता था। साहिर ने इस बात का काफी विरोध किया जिसके बाद रेडियो पर प्रसारित गानों में गायक और संगीतकार के साथ-साथ गीतकार का नाम भी दिया जाने लगा। इसके अलावा वह पहले गीतकार हुऐ जिन्होंने गीतकारों के लिए रायल्टी की व्यवस्था कराई।
आठ मार्च 1921 को पंजाब के लुधियाना शहर में एक जमींदार परिवार में जन्मे साहिर की जिंदगी काफी संघर्षों में बीती। उनकी मां सरदार बेगम अपने पति चौधरी फजल मुहम्मद की अय्याशियों के कारण उन्हें छोड़कर चली गईं और अपने भाई के साथ रहने लगी। साहिर ने अपनी मैट्रिक तक की पढ़ाई लुधियाना के खालसा स्कूल से पूरी की। इसके बाद वह लाहौर चले गएजहां उन्होंने अपनी आगे की पढाई सरकारी कॉलेज से पूरी की। कॉलेज के कार्यक्रमों में वह अपनी गजलें और नज्में पढ़कर सुनाया करते थे जिससे उन्हें काफी शोहरत मिली। जानी मानी पंजाबी लेखिका अमृता प्रीतम कॉलेज में साहिर के साथ ही पढ़ती थी , जो उनकी गजलों और नज्मों की मुरीद हो गई और उनसे प्यार करने लगीं लेकिन कुछ समय के बाद ही साहिर कालेज से निष्कासित कर दिएगये। इसका कारण यह माना जाता है कि अमृता प्रीतम के पिता को साहिर और अमृता के रिश्ते पर एतराज था क्योंकि साहिर मुस्लिम थे और अमृता सिख थी ।इसकी एक वजह यह भी थी कि उन दिनो साहिर की माली हालत भी ठीक नहीं थी।
साहिर 1943 में कालेज से निष्कासित किए जाने के बाद लाहौर चले आए , जहां उन्होंने अपनी पहली उर्दू पत्रिका'तल्खियां, , लिखीं। लगभग दो वर्ष के अथक प्रयास के बाद आखिरकार उनकी मेहनत रंग लाई और 'तल्खियां' का प्रकाशन हुआ। इस बीच उन्होंने प्रोग्रेसिव रायटर्स एसोसियेशन से जुडकर आदाबे लतीफ, शाहकार, और सेवरा जैसी कई लोकप्रिय उर्दू पत्रिकाएं निकालीं लेकिन सवेरा में उनके क्रांतिकारी विचार को देखकर पाकिस्तान सरकार ने उनके खिलाफ गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया। इसके बाद वह 1950 में मुंबई आ गये।
साहिर ने 1950 में प्रदशत 'आजादी की राह पर 'फिल्म में अपना पहला गीत 'बदल रही है जिंदगी'लिखा लेकिन फिल्म की असफलता से वह गीतकार के रप में अपनी पहचान बनाने मे असफल रहे। वर्ष 1951 मे एस,डी,बर्मन की धुन पर फिल्म 'नौजवान 'में लिखे गीत 'ठंडी हवाएं लहरा के आए 'के बाद वह कुछ हद तक गीतकार के रप में कुछ हद तक अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। इसके बाद एस,डी, बर्मन की धुन पर 1951 में गुरुदत्त निर्देशित पहली फिल्म 'बाजी' में उनके लिखे गीत 'तदबीर से बिगड़ी हुई तकदीर बना दे ' ने साहिर की बिगड़ी हुई तकदीर बना दी और वह शोहरत की बुंलदियों पर जा पहुचें। इसके बाद साहिर और एस.डी.बर्मन की जोड़ी ने ये रात ये चांदनी फिर कहां, जाल 1952, जायें तो जायें कहां, टैक्सी ड्राइवर, 1954, तेरी दुनिया में जीने से बेहतर है कि मर जायें, हाउस नं, 44 और' जीवन के सफर में राही, मुनीम जी, 1955 जैसे गानों के जरिए श्रोताओं को भावविभोर कर दिया ।
साहिर और एस.डी.बर्मन की जोड़ी फिल्म 'प्यासा' के बाद अलग हो गई। इसकी मुख्य वजह यह थी कि एस.डी.बर्मन को ऐसा महसूस हाने लगा था कि श्रोताओं में साहिर के लिखे गीतों की ज्यादा प्रशंसा हो रही है, जबकि उनकी धुनों को कोई खास तवाोो नहीं दी जा रही है और सफलता का पूरा श्रोय साहिर को मिल रहा है। साहिर ने खय्याम के संगीत निर्देशन में भी कई सुपरहिट गीत लिखे। वर्ष 1958 में प्रदशत फिल्म 'फिर सुबह होगी 'के लिए पहले अभिनेता राजकपूर यह चाहते थे कि उनके पंसदीदा संगीतकार शंकर जयकिशन इसमें संगीत दें, जबकि साहिर इस बात से खुश नहीं थे। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि फिल्म में संगीत खय्याम का ही हो । 'वो सुबह कभी तो आयेगी 'जैसे गीतों की कामयाबी से साहिर का निर्णय सही साबित हुआ। यह गाना आज भी क्लासिक गाने के रूप में याद किया जाता है। साहिर और खय्याम की जोड़ी ने वर्ष 1976 में प्रदशत फिल्म 'कभी कभी, में भी श्रोताओं को गीत संगीत का नायाब तोहफा दिया लेकिन दिलचस्प बात यह है कि फिल्म के निर्माण के समय फिल्म के संगीतकार के रूप में लक्ष्मीकांत प्यारे लाल का चयन किया गया था । फिल्म कभी कभी में यशचोपड़ा पहले संगीतकार लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को लेना चाह रहे थे। साहिर के लिखे गीत कभी कभी मेरे दिल में ख्याल आता है 'के छंद और ताल के बारे में जब लक्ष्मीकांत 'प्यारेलाल की जोड़ी ने साहिर से पूछा तो उन्होंने अपनी तौहीन समझी और लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के साथ काम करने से इन्कार कर दिया। इसके बाद उन्होंने यश चोपड़ा को सलाह दी कि उनके गीतों के लिए संगीतकार खय्याम का चयन किया जाए। इस फिल्म और गीतों की सफलता से साहिर का निर्णय सही साबित हुआ। इसह फिल्म में उनके लिखे गीत आज भी श्रोताओं में लोकप्रिय हैं । साहिर अपनी शर्तों पर गीत लिखा करते थे। एक बार एक फिल्म निर्माता ने नौशाद के संगीत निर्देशन में उनसे से गीत लिखने की पेशकश की। साहिर को जब इस बात का पता चला कि संगीतकार नौशाद को उनसे अधिक पारिश्रमिक दिया जा रहा है, तो उन्होंने निर्माता को अनुबंध समाप्त करने को कहा। उनका कहना था कि नौशाद महान संगीतकार हैं, लेकिन धुनों को शब्द ही वजनी बनाते हैं। अत: एक रुपया ही अधिक सही गीतकार को संगीतकार से अधिक पारिश्रमिक मिलना चाहिए। गुरुदत्त की फिल्म 'प्यासा' साहिर के सिने कैरियर की अहम फिल्म साबित हुई। फिल्म के प्रदर्शन के दौरान अदभुत नजारा दिखाई दिया। मुंबई के मिनर्वा टॉकीज में जब यह फिल्म दिखाई जा रही थी, तब जैसे ही ' जिन्हें ंनाज है हिंद पर वो कहां हैं ' बजा तब सभीदर्शक अपनी सीट से उठकर खड़े हो गए और गाने की समाप्ति तक ताली बजाते रहे। बाद में दर्शकों की मांग पर इसे तीन बार और दिखाया गया। फिल्म इंडस्ट्री के इतिहास में शायद पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था।
साहिर अपने सिने कैरियर में दो बार सर्वश्रोष्ठ गीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गये। सबसे पहले उन्हें 1963 मे प्रदशत फिल्म 'ताजमहल ' के गीत जो 'वादा किया वो निभाना पड़ेगा' के लिए सर्वश्रोष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया था। इसके बाद 1976 मे प्रदशत फिल्म कभी कभी के 'कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है' गीत के लिए वे सर्वश्रोष्ठ गीतकार के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे गए। जाने माने निर्माता' निर्देशक बी.आर.चोपडा की फिल्मों को सफलता दिलाने में भी साहिर के गीतों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। बी.आर. चोपड़ा की ज्यादातर फिल्में उनके गीतों के कारण ही याद की जाती हैं। इन फिल्मों में नया दौर 1957, धूल का फूल 1959 धर्मपुत्र, 1961, वक्त, 1965, जमीर 1975, जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं। लगभग तीन दशक तक हिन्दी सिनेमा को अपने रूमानी गीतों से सराबोर करने वाले साहिर लुधियानवी 59 वर्ष की उम्र में 25 अक्टूबर 1980 को इस दुनिया-ए- फानी को अलविदा कह गए।

2 टिप्‍पणियां:

  1. sahir sahab jaise shayar phir nahin aaenge

    http://balanisuchitra.blogspot.com/2009/10/sahir-magic.html

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  2. साहिर साहब के बारे में जानकारी देता हुआ यह बहुत अच्छा आलेख हि डॉक्टर साहब । हम लोग तो साहिर को पढ़ते ही है ..यह नई पीढ़ी भी जान ले ।

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