गुरुवार, 22 अक्तूबर 2009

पर्यावरणीय संकट है अम्लीय वर्षा


स्वाति शर्मा
संपूर्ण विश्व अभी ओजोन क्षरण और ग्रीन हाउस प्रभाव के दुष्परिणाम से उबर भी नहीं पाया है, कि अम्लीय वर्षा ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है। यह समस्या अभी विकसित देशों में तबाही मचा रही है, लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब यह समस्या विकासशील देशों के आगे खड़ी हो जाएगी। अम्लीय वर्षा पर्यावरण के सभी घटकों (भौतिक एवं जैविक) को खतरे में डाल देती है। जब मानव जनित dोतों से उत्सर्जित सल्फर डाई ऑक्साइड (एस ओ 2) एवं नाइट्रोजन ऑक्साइड (एन ओ 2) गैस वायुमंडल की जल वाष्प के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक एसिड व नाइट्रिक एसिड का निर्माण करती हैं तथा यह अम्लश जल के साथ पृथ्वी के धरातल पर पहुंचता है, तो इस प्रकार की वर्षा को अम्लीय वर्षा कहते हैं। प्राकृतिक पर्यावरण को नष्ट करने में अम्लीय वर्षा की प्रमुख भूमिका होती है। यह वर्षा मुख्यतया कनाडा, स्वीडन, नार्वे, फिनलैंड, इंग्लैंड, नीदरलैण्ड, जर्मनी, इटली, फ्रांस, तथा यूनान जैसे विकसित देशों में विगत चार-पांच दशक से एक गंभीर पर्यावरणीय समस्या बनी हुई है। इसने धारातल पर मौजूद संपूर्ण भौतिक एवं जैविक जगत को खतरे में डाल दिया है। अम्लीय वर्षा का दुष्प्रभाव एक स्थान विशेष तक ही सीमित नहीं रहता और न ही यह सल्फर डाइ ऑक्साइड तथा नाइट्रस ऑक्साइड उगलने वाले औद्योगिक एवं परिवहन dोतों के क्षेत्रों तक ही सीमित रहता है। यह dोतों से दूर अत्यधिक विस्तृत क्षेत्रों को भी प्रभावित करती है, क्योंकि अम्लीय वर्षा के उत्तरदायी कारक गैसीय रूप में होते हैं, जिन्हें हवा तथा बादल दूर तक फैला देते हैं। जिससे ब्रिटेन एवं जर्मनी में स्थित कारखानों से निकली सल्फर डाइ ऑक्साइड एवं नाइट्रस ऑक्साइड के कारण नार्वे, स्वीडन तथा फिनलैण्ड में विस्तृत अम्लीय वर्षा होती है, जिसके फल स्वरूप इन देशों की अधिकांश झीलों के जैवीय समुदाय समाप्त हो चुके है, इसीलिए ऐसी झीलों को अब जैविकीय दृष्टि से मृत झील कहते हैं। अम्लीय वर्षा नामक यह पर्यावरणीय आपदा भारतवासियों को भी झेलनी पड़ सकती है। नई दिल्ली स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए वैज्ञानिक अधययनों के अनुसार भारत के कुछ हिस्सों में वर्षा जल की रासायनिक प्रकृति धीरे-धीरे अम्लीयता की ओर बढ़ रही है। रिपोर्ट के अनुसार राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र मध्य प्रदेश, तमिलनाडु एवं अंडमान द्वीपों में वर्षा जल की अम्लीयता लगातार बढ़ती जा रही है। भारत के प्रमुख औद्योगिक शहरों मुंबई, कोलकाता, कानपुर, नई दिल्ली, आगरा, नागपुर, अहमदाबाद, हैदराबाद, जयपुर, चेन्नई एवं जमशेदपुर आदि नगरों के वायुमंडल में अम्लीय वर्षा उत्पन्न करने वाली विषाक्त सल्फरडाइ ऑक्साइड गैसों की सांद्रता काफी बढ़ गई है। एक अनुमान के अनुसार सन् 1990 में हमारा देश 4400 किलो टन सल्फर हवा में छोड़ता था, जबकि आज इसकी मात्रा बढ़ कर 7500 किलो टन के आसपास है जो सन् 2015 एवं 2020 में बढ़ कर क्रमश: 10900 किलो टन एवं 18500 किलो टन हो जाएगी। भाभा एटामिक रिसर्च सेंटर व वर्ल्ड मीट्रोलॉजिकल ऑरगनाइजेशन द्वारा किए गए अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि अधिकांश भारतीय नगरों में वर्षा जल में अम्लता का स्तर सुरक्षा सीमा से अभी कम है, लेकिन वह दिन दूर नहीं, जब अम्लीय वर्षा विकसित देशों की तरह भारत में भी तबाही मचाना शुरू कर देगी। भारत में भी हानिकारक गैसों की सांद्रता पर रोकथाम पूरी तरह प्रभावी नहीं हो पा रही है। अम्लीय वर्षा का पारिस्थितिक तंत्र पर दुष्प्रभाव पड़ता है। इससे जल प्रदूषण बढ़ता है, जिससे इसमें रहने वाले जीव-जंतु नष्ट होने लगते हैं। कनाडा के ओन्टोरियों प्रांत में 2,50,000 झीलों में से 50,000 झीलें अम्लीय वर्षा से बुरी तरह प्रभावित हैं जिनमें से 140 झीलों को मृत घोषित कर दिया गया है। अम्लीय वर्षा का वनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, क्योंकि इससे पत्तियों की सतह पर मोम जैसी परत नष्ट हो जाती है, साथ ही पत्तियों के स्टोमेटा बंद हो जाते हैं। कनाड़ा, यू.एस.ए. स्वीडन, नार्वे, फिनलैण्ड, जर्मनी व मधय यूरोप के कई देशों में वन संपदा को अम्लीय वर्षा से भारी क्षति हुई है।
स्वाति शर्मा

1 टिप्पणी:

  1. आज दुनिया भर में पश्चिमी देशों की शोशेबाजी चल रही है परयावरण पर . उल्टा चोर कोतवाल को डांटे . सबसे ज्यादा प्रदूषण फैलाया पश्चिम ने और अब सीख दे रहे है पूर्व को . दो खबरें जो हाल में मैंने पढ़ी उनपर ध्यान दें, पहली अफ्रीका के रेगिस्तानी इलाकों में बढती हरियाली और हिमालय के ग्लेशियर बढ़ते हुए

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