शनिवार, 24 अक्तूबर 2009
सबसे जुदा हैं मन्ना डे की गायकी का अंदाज
हिन्दी सिने जगत में पार्श्वगायकों ने श्रोताओं के बीच अपनी विशिष्ट पहचान बनायी है लेकिन इनमें सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक मन्ना डे कई मायनों में सबसे अलग हैं। मन्ना डे के पाश्र्वगायन के बारे में प्रसिद्ध संगीतकार अनिल विश्वास ने एक बार कहा था कि मन्ना डे हर वह गीत गा सकते हैं, जो मोहम्मद रफी, किशोर कुमार या मुकेश ने गाये हो लेकिन इनमें कोई भी मन्ना डे के हर गीत को नही गा सकता है। इसी तरह आवाज की दुनिया के बेताज बादशाह मोहम्मद रफी ने एक बार कहा था आप लोग मेरे गीत को सुनते हैं लेकिन यदि मुझसे पूछा जाये तो कहूंगा मैं मन्ना डे के गीतों को ही सुनता हूं। प्रबोध चन्द्र डे उर्फ मन्ना डे का जन्म एक मई 1920 को कोलकाता में हुआ। मन्नाडे के पिता उन्हें वकील बनाना चाहते थे लेकिन उनका रझान संगीत की ओर था और वह इसी क्षेत्र में अपना कैरियर बनाना चाहते थे। मन्ना डे ने संगीत की प्रारंभिक शिक्षा अपने चाचा के.सी.डे से हासिल की। मन्नाडे के बचपन के दिनों का एक दिलचस्प वाक्या है। उस्ताद बादल खान और मन्नाडे के चाचा एक बार साथ-साथ रियाज कर रहे थे. तभी बादल खान ने मन्ना डे की आवाज सुनी और उनके चाचा से पूछा यह कौन गा रहा है। जब मन्ना डे को बुलाया गया, तो उन्होंने अपने उस्ताद से कहा बस. ऐसे ही गा लेता हूं लेकिन बादल खान ने मन्ना डे की छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। इसके बाद वह अपने चाचा से संगीत की शिक्षा लेने लगे। मन्नाडे ४० के दशक में अपने चाचा के साथ संगीत के क्षेत्र में अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई आ गये। वर्ष १९४३ में फिल्म तमन्ना में बतौर पाश्र्वगायक उन्हें सुरैया के साथ गाने का मौका मिला। हालांकि इससे पहले वह फिल्म रामराज्य में कोरस के रूप में गा चुके थे। दिलचस्प बात है. यही एक एकमात्र फिल्म थी. जिसे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने देखा था। मन्ना डे की प्रतिभा को पहचानने वालों में संगीतकार शंकर जयकिशन का नाम खास तौर पर उल्लेखनीय है। इस जोड़ी ने मन्ना डे से अलग-अलग शैली में गीत गवाये। उन्होंने मन्ना डे से 'आजा सनम मधुर चांदनी में हम जैसे रमानी गीत और केतकी गुलाब जूही जैसे शाीय राग पर आधारित गीत भी गवाए लेकिन दिलचस्प बात है कि शुरआत में मन्ना डे ने यह गीत गाने से मना कर दिया था। संगीतकार शंकर जयकिशन ने जब मन्ना डे को 'केतकी गुलाब जूही गीत गाने की पेशकश की तो पहले तो वह इस बात से घबरा गये कि भला वह महान शाीय संगीतकार भीमसेन जोशी के साथ कैसे गा पाएंगे। मन्ना डे ने सोचा कि कुछ दिनों के लिए मुंबई से दूर पुणे चला जाए। जब बात पुरानी हो जायेगी तो वह वापस मुंबई लौट आएंगे और उन्हें भीमसेन जोशी के साथ गीत नहीं गाना पडेगा लेकिन बाद में उन्होंने इसे चैंलेंज के रप में लिया और केतकी गुलाब जूहीको अमर बना दिया। वर्ष 1950 में संगीतकार एम. डी. बर्मन की फिल्म मशाल में मन्ना डे को ऊपर गगन विशाल गीत गाने का मौका मिला। फिल्म और गीत की सफलता के बाद बतौर पाश्र्वगायक वह अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये। मन्ना डे को अपने कैरियर के शुरआती दौर में अधिक प्रसिद्धि नहीं मिली। इसकी मुख्य वजह यह रही कि उनकी सधी हुई आवाज किसी गायक पर फिट नहीं बैठती थी। यही कारण है कि एक जमाने में वह हास्य अभिनेता महमूद और चरित्र अभिनेता प्राण के लिए गीत गाने को मजबूर थे। प्राण के लिए उन्होंने फिल्म उपकार में कस्मे वादे प्यार वफा. और जंजीर में यारी है ईमान मेरा यार मेरी ङ्क्षजदगी जैसे गीत गाए। उसी दौर में उन्होंने फिल्म पडोसन में हास्य अभिनेता महमूद के लिए एक चतुर नार गीत गाया तो उन्हें महमूद की आवाज समझा जाने लगा। आमतौर पर पहले माना जाता था कि मन्ना डे केवल शाीय गीत ही गा सकते हैं लेकिन बाद में उन्होंने ऐ मेरे प्यारे वतन . ओ मेरी जोहरा जबीं ये रात भीगी.भीगी . ना तो कारवां की तलाश है और ए भाई जरा देख के चलो जैसे गीत गाकर अपने आलोचकों का मुंह सदा के लिए बंद कर दिया। प्रसिद्ध गीतकार प्रेम धवन ने मन्ना डे के बारे में कहा था मन्ना डे हर रेंज में गीत गाने में सक्षम है। जब वह ऊँचा सुर लगाते है तो ऐसा लगता है कि सारा आसमान उनके साथ गा रहा है जब वो नीचा सुर लगाते है तो लगता है उसमें पाताल जितनी गहराई है और यदि वह मध्यम सुर लगाते है तो लगता है उनके साथ सारी धरती झूम रही है। मन्ना डे केवल शब्दों को ही नही गाते थे.अपने गायन से वह शब्द के पीछे छिपे भाव को भी खूबसूरती से सामने लाते है। शायद यही कारण है कि प्रसिद्ध हिन्दी कवि हरिवंश राय बच्चन ने अपनी अमर कृति मधुशाला को स्वर देने के लिये मन्ना डे का चयन किया। मन्ना डे ने अपने पांच दशक के कैरियर में लगभग 3500 गीत गाये। उनके गीतों से सजी कुछ उल्लेखनीय फिल्में है आवारा १९५१ ्दो बीघा जमीन, परिणीता 1953, बूट पालिश 1954, काबुलीवाला 1961, वक्त 1965, तीसरी कसम 1966, उपकार 1967, पड़ोसन 1968, मेरा नाम जोकर, आनंद 1970, शोर 1972, जंजीर, बॉबी 1973, अमर अकबर एंथोनी 1977, कर्ज 1980, लावारिस, क्रांति, 1981 आदि १ मन्ना डे को फिल्मों में उल्लेखनीय योगदान के लिए १९७१ में पदमश्री पुरस्कार .२००५ में पदमभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसके अलावा वह 1969 में फिल्म मेरे हुजूर के लिये सर्वŸोष्ठ पाश्र्वगायक.1971 में बंगला फिल्म निशि पदमा के लिये सर्वश्रेष्ठ पार्श्वगायक और 1970 में प्रदॢशत फिल्म 'मेरा नाम जोकर के लिए फिल्म फेयर के सर्वŸोष्ठ पाश्र्वगायक पुरस्कार से सम्मानित किये गये। मन्नाडे के संगीत के सुरीले सफर में एक नया अध्याय जुड़ गया जब फिल्मों में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये उन्हें फिल्मों के सर्वोच्च सम्मान दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
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दृष्टिकोण
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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