शनिवार, 31 अक्तूबर 2009
........ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
हर दिल अजीज संगीतकार सचिन देव बर्मन
कामधुर संगीत आज भी श्रोताओं को भाव विभोर करता है। उनके जाने के बाद भी संगीत प्रेमियों के दिल से एक ही आवाज निकलती है 'ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना। बालीवुड के महान संगीतकार सचिन देव बर्मन हिन्दी फिल्म संगीत के सर्वाधिक प्रयोगवादी एवं प्रतिभाशाली संगीतकारों में शुमार किए जाते है। प्यासा,गाइड,बंदिनी, टैक्सी ड्राइवर, बाजी, और आराधना जैसी फिल्मों के मधुर संगीत के जरिए एस.डी.बर्मन आज भी लोगों के दिलों-दिमाग पर छाए हुए हैं । एस.डी.बर्मन ने पाश्र्वगायक किशोर कुमार को कामयाबी की शिखर पर पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी । बर्मन दा पहले संगीतकार थे जिन्होंने किशोर कुमार की प्रतिभा को पहचाना । किशोर कुमार के साथ पहली मुलाकात का वाकया काफी दिलचस्प है ।
एक बार एस.डी.बर्मन फिल्म अभिनेता अशोक कुमार से मिलने के लिए उनके घर गए जहां उन्होंने किसी को गाते सुना। उन्होंने अशोक कुमार से पूछो कौन गा रहा है । बाद में जब उन्हें पता चला कि किशोर कुमार गा रहे है तो उन्होंने उन्हें अपने पास बुलाया और कहा आपकी आवाज अच्छी है लेकिन यह सहगल से मेल खाती है, आप सहगल की नकल न करें यह बड़े कलाकारो का काम नहीं है। आप खुद अपना अलग अंदाज बनाए। इसके बाद किशोर कुमार ने गायकी का एक नया अंदाज बनाया जो उस समय के नामचीन ायकों मोहम्मद रफी, मुकेश और सहगल से काफी अलग था । पचास के दशक में कई पाश्र्वगायक फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष कर रहे थे । इसी दौरान एस.डी.बर्मन की फिल्म 'मुनीम जी 'में किशोर कुमार को पार्श्वगायन का अवसर मिला। इस फिल्म के गीत 'जीवन के सफर में राही मिलते है बिछड़ जाने को 'से वह कुछ हद तक वह अपनी पहचान बनाने में सफल रहे।
इसके बाद एस.डी.बर्मन के ही संगीत निर्देशन में किशोर कुमार ने दुखी मन मेरे सुने मेरा कहना 'फं ूश 'माना जनाब ने पुकारा नहीं 'पेइंग गेस्ट 'और हम है राही प्यार के हमसे कुछ न बोलिए 'नौ दो ग्यारह जैसे सुपरहिट गाने गाकर फिल्म इंडस्ट्री में बतौर पाश्र्वगायक अपनी अलग पहचान बनायी । साठ के दशक के अंतिम वर्षो में किशोर कुमार का कैरियर बुरे दौर से गुजर रहा था उस समय भी उन्हें संगीतकार एस.डी.बर्मन का साथ मिला और फिल्म 'आराधना 'के लिए गीत गाने का मौका मिला । इस फिल्म की कामयाबी ने किशोर कुमार के सिने करियर को नयी दिशा दी और उन्हें अपने कैरियर में वह मुकाम हासिल हो गया जिसकी उन्हें बरसों से तलाश थी और वह शोहरत की बुलंदियो पर जा बैठे ।
सचिन देव बर्मन का जन्म १० अक्टूबर १९०६ में त्रिपुरा के शाही परिवार में हुआ। उनके पिता जाने-माने सितार वादक और ध्रुपद गायक थे । बचपन के दिनों से ही सचिन देव बर्मन का रूझान संगीत की ओर था और वह अपने पिता से शाीय संगीत की शिक्षा लिया करते थे। इसके साथ ही उन्होनें उस्ताद बादल खान और भीष्मदेव चट्टोपाध्याय से भी शास्त्रीय संगीत की तालीम ली। अपने जीवन के शुरूआती दौर में सचिन बर्मन ने रेडियो से प्रसारित पूर्वोतर लोकसंगीत के कार्यक्रमो में काम किया । वर्ष १९३० तक वह लोकगायक के रूप मे अपनी पहचान बना चुके थे । बतौर गायक उन्हें वर्ष १९३३ मे प्रदॢशत फिल्म यहूदी की लड़की में गाने का मौका मिला लेकिन बाद मे उस फिल्म से उनके गाए गीत को हटा दिया गया ।
उन्होंने १९३५ मे प्रदॢशत फिल्म 'सांझेर पिदम ' में भी अपना स्वर दिया लेकिन वह पाश्र्वगायक के रप में कुछ खास पहचान नहीं बना सके । वर्ष १९४४ मे संगीतकार बनने का सपना लिए वह मुबई आ गए
जहां सबसे पहले उन्हें १९४६ मे फिलमिस्तान फिल्म 'एट डेज ' मे बतौर संगीतकार काम करने का मौका मिला लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहींं बना पाए । इसके बाद १९४७ में उनके संगीत से सजी फिल्म 'दो भाई ' के पाश्र्वगायिका गीतादत्त के गाए गीत 'मेरा सुंदर सपना बीत गया ' की कामयाबी के बाद वह कुछ हद तक बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए ।
इसके कुछ समय बाद सचिन देव बर्मन को मायानगरी मुंबई की चकाचौंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह सब कुछ छोड़कर वापस कलकत्ता चले आए । हांलाकि उनका मन वहां भी नहीं लगा और वह अपने आप को मुबई आने से रोक नही पाए । सचिन देव बर्मन ने करीब तीन दशक के सिने करियर में लगभग नब्बे फिल्मों के लिए संगीत दिया । उनके फिल्मी सफर पर नजर डालने पर पता लगता है कि उन्होने सबसे ज्यादा फिल्में गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ ही की है। अपने जीवन के शुरुआती दौर में सचिन बर्मन ने रेडियो से प्रसारित पूर्वोतर लोकसंगीत के कार्यक्रमों में काम किया । वर्ष १९३० तक वह लोकगायक के रूप मे अपनी पहचान बना चुके थे । बतौर गायक उन्हें वर्ष १९३३ मे प्रदॢशत फिल्म यहूदी की लड़की में गाने का मौका मिला लेकिन बाद मे उस फिल्म से उनके गाए गीत को हटा दिया गया । उन्होंने १९३५ मे प्रदॢशत फिल्म 'सांझेर पिदम ' में भी अपना स्वर दिया लेकिन वह पाश्र्वगायक के रप में कुछ खास पहचान नहीं बना सके ।
वर्ष १९४४ मे संगीतकार बनने का सपना लिए वह मुबई आ गए जहां सबसे पहले उन्हें १९४६ मे फिलमिस्तान फिल्म 'एट डेज ' मे बतौर संगीतकार काम करने का मौका मिला लेकिन इस फिल्म के जरिए वह कुछ खास पहचान नहींं बना पाए । इसके बाद १९४७ में उनके संगीत से सजी फिल्म 'दो भाई ' के पाश्र्वगायिका गीतादत्त के गाए गीत 'मेरा सुंदर सपना बीत गया ' की कामयाबी के बाद वह कुछ हद तक बतौर संगीतकार अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए । इसके कुछ समय बाद सचिन देव बर्मन को मायानगरी मुंबई की चकाचौंध कुछ अजीब सी लगने लगी और वह सब कुछ छोड़कर वापस कलकत्ता चले आए ।हांलाकि उनका मन वहां भी नही लगा और वह अपने आप को मुबई आने से रोक नही पाए । सचिन देव बर्मन ने करीब तीन दशक के सिने करियर में लगभग नब्बे फिल्मों के लिए संगीत दिया । उनके फिल्मी सफर पर नजर डालने पर पता लगता है कि उन्होने सबसे ज्यादा फिल्मे गीतकार साहिर लुधियानवी के साथ ही की है। संगीत निर्देशन के अलावा बर्मन दा ने कई फिल्मों के लिए गाने भी गाए। इन फिल्मों में सुन मेरे बंधु रे सुन मेरे मितवा सुजाता, १९५९ ्मेरे साजन है उस पार बंदिनी, १९६३ और अल्लाह मेघ दे छाया दे गाइड, १९६५ जैसे गीत आज भी श्रोताओं को भाव विभोर करते है। जाने माने निर्माता 'निर्देशक देवानंद की फिल्मों के लिए एस.डी. बर्मन ने सदाबहार संगीत दिया और उनकी फिल्मो को सफल बनाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। देवानंद की ज्यादातार फिल्में अपने गीत संगीत के कारण ही आज भी याद की जाती है । इन फिल्मो में खासकर बाजी, १९५१, टैक्सी ड्राइवर, १९५४, हाउस न. ४४, १९५५, फंटूश ्१९५६, कालापानी, १९५८, काला बाजार, १९६० हमदोनो, १९६१, गाइड, १९६५् ज्वैल थीफ १९६७, और प्रेम पुजारी, १९७० जैसी कई फिल्मे शामिल है । बर्मन दा के पसंदीदा निर्माता निर्देशकों में देवानंद
के अलावा विमल राय, गुरूदत्त, ऋषिकेश मुखर्जी आदि प्रमुख रहे है। एस.डी.बर्मन को दो बार फिल्म फेयर के सर्व्श्रेष्ठ संगीतकार से नवाजा गया है। एस.डी.बर्मन को सबसे पहले १९५४ मे प्रदॢशत फिल्म टैक्सी ड्राइवर के लिए सर्वŸोष्ठ संगीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया। इसके बाद वर्ष १९७३ मे प्रदॢशत फिल्म अभिमान के लिए भी वह सर्वŸोष्ठ संगीतकार के फिल्मफेयर पुरस्कार से नवाजे गए। फिल्म मिली के संगीत 'बड़ी सूनी सूनी है 'की रिकाॄडग के दौरान एस.डी.बर्मन अचेतन अवस्था मे चले गए । हिन्दी सिने जगत को अपने बेमिसाल संगीत से सराबोर करने वाले सचिन दा ३१ अक्टूबर १९७५ को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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फिल्म संसार
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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इतने विस्तार से जानकारी पाकर मन प्रसन्न हो गया । धन्यवाद ।
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