गुरुवार, 20 अगस्त 2009
बादलों में आर्टिफिशियल बारिश का बिजनेस
आशीष आगाशे
इसे कहते हैं तबीयत से पत्थर उछालना और आसमान में सुराख कर देना। मानसून की बारिश कम होने की चिंताओं को अवसर में बदलते हुए कुछ लोग बादलों से कह रहे हैं, रुको, हमारी जमीन पर बारिश करो। सॉफ्टवेयर क्षेत्र से जुड़े 27 साल के कारोबारी निशांत रेड्डी बादलों से कृत्रिम तरीके से बारिश करवाने के कारोबार में लग गए हैं। बादलों से कृत्रिम तरीके से बारिश करवाने का चलन 40 देशों में है। बारिश कराने का फलता-फूलता कारोबार
अब भारत में भी इसका चलन बढ़ रहा है। इस साल महाराष्ट्र के अलावा कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के कुछ इलाकों में इस तरीके से बारिश कराई गई है।
आखिर कैसे होती है क्लाउड सीडिंग?हवा में बादलों से बारिश करवाने के इस उद्यम में एक आधुनिक विमान, जमीन पर स्थित रेडार, एक कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, कुछ मौसम वैज्ञानिकों, पायलटों और अन्य कर्मचारियों की जरूरत होती है। जमीन पर सिर्फ एक आदमी की जरूरत पड़ती है जो मौसम विभाग के आंकड़ों को भेजता रहे ताकि बादलों की स्थिति का पता लगाया जा सके। इसमें इस्तेमाल होने वाले विमान किसी और काम में नहीं लगाए जा सकते और इन्हें खासतौर से अमेरिका या इजराइल से मंगाना करना पड़ता है।
एक सीजन में तीन माह के लिए विमान मंगाने और रेडार का खर्च करीब 10 करोड़ रुपए आता है, लेकिन इस कारोबार में अच्छा मुनाफा होता है। जमीन पर सिल्वर आयोडाइड जलाकर उसके कणों को हवा में भेजा जाता है।
40% तक ज्यादा बारिश हो सकती है...
निशांत रेड्डी ने सॉफ्टवेयर क्षेत्र की अपनी नौकरी छोड़कर अपने कई दोस्तों के साथ मिलकर सिरी एविएशन शुरू किया। आर्टिफिशियल तरीके से बरसात कराने के बाजार में सिरी एविएशन के मुकाबले में सिर्फ एक दूसरी कंपनी अग्नि एविएशन है। मानसून की हालत खराब रहने की वजह से सरकार अब फसलों को बचाने के लिए बादलों से बारिश कराने की जुगत में शामिल हो सकती है।
यह मौसम में बदलाव करने का एक ऐसा तरीका है जिसके तहत वायुमंडल में विभिन्न तरह के पदार्थ प्रवाहित करके बादलों से बारिश कराने की कोशिश की जाती है। जब वायुमंडल में प्रवाहित पदार्थ बादलों के संपर्क में आते हैं तो वे बादलों के भीतर की प्रक्रिया में बदलाव ला देते हैं जिससे बारिश शुरू हो जाती है। इस तरह के प्रयोगों से देखा गया है कि बारिश में 25 से 40 फीसदी तक की बढ़ोतरी हो जाती है।
कई राज्य सरकारों ने की 'बारिश' की पहल
भारत में आर्टिफिशियल तरीके से बारिश कराने का प्रयास 2003 में शुरू हुआ, जब कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सरकारों ने कम वर्षा वाले क्षेत्रों में बादलों से बारिश करवाने का प्रयास किया। इस साल वृहन मुंबई नगर निगम ने इस तरह का प्रयास शुरू किया है। मुंबई की हालत यह है कि शहर के लोग ज्यादा बारिश से परेशान हैं, जबकि उन क्षेत्रों में बारिश नहीं हो रही है, जहां शहर को वाटर सप्लाई करने वाले जलाशय हैं। नगर निगम गंभीरता से कृत्रिम बारिश कराने की कोशिश में लगा है ताकि जरूरी जगहों पर बारिश हो सके। इसी प्रकार बिहार, उत्तर प्रदेश, दिल्ली, असम, मध्य प्रदेश और राजस्थान सरकार भी सूखे जैसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए ऐसी कंपनियों के संपर्क में हैं जो कृत्रिम बारिश करवाती हैं।
भारत में बढ़ रहा है आर्टिफिशियल बारिश की चलन
आर्टिफिशियल बारिश के नए उद्यम में करीब 45 करोड़ रुपए के निवेश की तैयारी कर रहे रेड्डी ने बताया, 'इस साल बारिश बहुत कम हुई है और अगले सालों में भी ऐसा लगता है कि ग्लोबल वार्मिंग की वजह से बारिश पर प्रभाव पड़ेगा जिससे कृत्रिम तरीके से बारिश कराने वाली कंपनियों की मांग बढ़ेगी।' अमेरिका के चार निवेशकों ने रेड्डी को शुरुआती लागत का 50 फीसदी तक देने का वादा किया है। शेष हिस्से के लिए रेड्डी कर्ज लेने की संभावना देख रहे हैं।
विशाखापट्टनम के गीतम विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर एनवायरमेंटल स्टडीज के प्रोफेसर टी शिवाजीराव ने भारत में कृत्रिम बारिश पर एक पुस्तक लिखी है और उनका कहना है कि अब हमारे नेताओं और अफसरशाहों को इस बारे में गंभीर होना चाहिए। शिवाजीराव का कहना है, 'इस साल भारत में कृत्रिम बारिश के लिए सिर्फ 30 से 35 करोड़ रुपए खर्च होने वाले हैं, जबकि चीन इससे कई गुना ज्यादा खर्च कर रहा है। हालांकि, मुझे अचरज नहीं होगा, यदि अगले साल भारत में इस पर करीब 100 करोड़ रुपए तक खर्च किए जाएं।'
बारिश कराने का फलता-फूलता कारोबार
इस बारे में भारत में सबसे पहले काम करने वाली कंपनी है, बंगलुरु की अग्नि एविएशन कंसल्टेंट्स। साल 1994 में एक फ्लाइट स्कूल खोलने के बाद कंपनी ने 2003 में पहली बार बादलों से बारिश करवाने का कारोबार शुरू किया और इसे लगातार सातवें साल आंध्र प्रदेश सरकार से इसके लिए ठेका मिला है। आंध्र प्रदेश सरकार इसके लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर तक की कंपनियों से टेंडर मांगती है।
अग्नि एविएशन के सीईओ अरविंद शर्मा ने बताया, 'मैं एविएशन संबंधी उद्योगों को पसंद करता रहा हूं और विदेशों के अपने दौरे पर जो कुछ देखता हूं उसे भारत में लागू करने के बारे में गंभीरता से सोचता रहा हूं। ऐसे ही एक दौरे में मैने बादलों से बारिश करवाने का तरीका देखा और मुझे लगा कि हमारे देश में तो यह काफी उपयोगी हो सकता है। '
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प्रकृति
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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