गुरुवार, 24 जनवरी 2008

क्या भारत एक गरीब देश है?



; डॉ. महेश परिमल
एक समय वह था, जब भारत सोने की चिड़िया कहलाता था। फिर एक समय ऐसा आया जब भारत एक गरीब देश के रूप में जाना जाने लगा और अब आज एक बार फिर समय का पहिया घूमा है। स्थिति यह है कि यहाँ के लगभग सभी छोटे-बड़े घरों में, झोंपड़ियों में टी.वी. है...फ्रिज है...सब्जीवाला, कबाड़ीवाला, पेपरवाला, बढ़ई, मिस्त्री सभी मोबाइल रखते हैं। लाखों की संख्या में कार और बाइक का उत्पादन और विक्रय हो रहा है। करोड़-दो करोड़ के फ्लेट और बंगलों का विक्रय हो रहा है। लाखों में मकान मिलना तो बहुत सहज और सामान्य बात हो गई है। रुपया तो मानों फिसला जा रहा है। वह कहीं भी थमने का नाम ही नहीं ले रहा है। महँगाई की बातें तो खूब होती हैं, पर हाउसफुल सिनेमाघर, रेस्तराँ को देखकर नहीं लगता कि हम एक गरीब देश के नागरिक हैं।
ये है भारत का बदलता हुआ स्वरूप। आज यहाँ गरीबी पूरी तरह से नष्ट भले ही नहीं हुई है, पर इसमें कमी जरूर आई है। इसका कारण पंचवर्शीय योजना और वैश्वीकरण है। इसके विपरीत सरकारी तंत्र की कितनी ही भ्रष्टाचारी नीतियों के कारण महँगाई में भी बढ़ोतरी हुई है, परंतु ये महँगाई इतनी अधिक नहीं है, जो पहले की तरह मुँह से चीख निकालने को विवश कर दे। आज खरीददारी के लिए भीड़, धक्का-मुक्की, रेलमपेल बहुत अधिक बढ़ गई है। हर कहीं खरीददारों का हुजूम दिखाई देता है।
आज से 40-50 वर्ष पहले जहाँ 200-500 या अधिक से अधिक 1000 रुपए का वेतन ही आश्चर्य में डालता था, वहीं अब 1 लाख तो क्या 10 लाख रुपए. का वेतन भी आश्चर्य में नहीं डालता। इसी प्रकार 40-50 वर्ष पहले जहाँ 20-25 हजार रुपए में मकान खरीदा जा सकता था, वहीं अब इसी भाव में एक रूम या झोंपड़ी मिलना भी मुश्किल है। उस समय 10-15 लाख रुपए. का मकान बनाने वाले भी कम ही थे और आज जब लोग 1 करोड़ से 5 करोड़ का बंगला भी बना लेते है, तो लोगों को कोई आश्चर्य नहीं होता और सबसे अधिक हैरानी की बात तो ये है कि ये ही बंगले दोगुनी कीमत पर आसानी से बिक भी जाते हैं। 40 वर्ष पहले जहाँ सीमेन्ट की एक बोरी की कींमत 9-9 रुपए की थी, वही बोरी आज 119 रुपए की हो गई है, उसके बाद भी पहले की तुलना में आज इसके खरीददार बढ़ गए हैं।
के.एस.ए. टेक्नोपेक नामक कंपनी की एक उप कंपनी द नॉलेज कंपनी के द्वारा किए गए एक सर्वे के अनुसार भारत में वार्षिक आय 45 लाख रुपए हों, ऐसे 10,60,000 घर हैं और नेशनल काउन्सील ऑफ एप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च के सर्वे के अनुसार 1 करोड़ रुपए की वार्षिक आय वाले घर 6 वर्ष पूर्व 20,000 ही थे, जो 2005 में 53,000 हो गए हैं। ओ एन्ड एम नामक एक विज्ञापन कंपनी के अनुसार ये ऑंकड़े 61,000 से अधिक हैं और मेरिल लीच कंपनी 83,000 का ऑंकड़ा प्रस्तुत करती है। संक्शिप्त में यही कहा जा सकता है कि भारत में गरीबी घटी है।
भारत की इस स्थिति के कारण और भारत सरकार के द्वारा विदेशी उत्पादक कंपनियों को दी गई छूट के कारण ही आज कई विदेशी कंपनियाँ भारत के बाजार में अपना अधिकार करने के लिए प्रतिस्पर्धात्मक रूप से आगे आ रही हैं। कितनी कंपनियाँ तो भारत की इस बदलती हुई स्थिति से हतप्रभ हैं, उन्हें यह बात स्वीकार ही नहीं है। अमेरिकन एक्सप्रेस ने भारत की बदलती हुई लाइफस्टाइल के बारे में एक श्वेतपत्र प्रकाशित किया है, जिसमें बताया है कि भारत में अभी 'बेस्ट' पसंद करने के लिए बहुत अधिक विकल्प हैं। दुनियाभर की सभी बेस्ट ब्रान्ड कंपनियाँ अपनी श्रेष्ठता सिध्द करने के लिए भारत के ग्राहकों को ललचा रही हैं।
उदाहरण के लिए लुईस वीईटोन और ह्यूगो बॉस नामक कंपनी ने तीन वर्ष पहले भारत में प्रवेश किया। उसके बाद तो चेनल, डीपोर, जेगरली कोलट्री, फेरागेमो, फेरी एन्ड एइजनेर जैसी अनेक कंपनियों ने अपनी वैभवशाली वस्तुओं के स्टोर महानगरों में खोले हैं। अब वेर सासी, गुसी, फेन्डी, वेलेन्टीनो, जीमी चू, आर्मनी जैसी कंपनियाँ भारत में आ रही है। महँगी से महँगी कार बनानेवाली कंपनियों की कारें तो कब से भारत की सड़कों पर दौड़ने लगी हैं। मर्सीडीस क्रूजर, बी.एम.डब्ल्यू, ओडी, पोरशी, रोल्स राइस इत्यादि 'स्टेटस सिम्बॉल' गिनी जाती हैं। ये सभी कारेें तो पिछले दस वर्षों से भारत में बड़ी संख्या में दौड़ने लगी हैं। पिछले वर्ष मर्सीडीस कार 2019 बिकी है और अभी हाल ही में लक्जरी मॉडल क्यू 7 एसयूवी बाजार में लाने वाली ओडी भी इस वर्ष अधिक बिकने की पूरी संभावना है।
एक तरफ ऐश्वर्यशाली जीवन तो दूसरी तरफ हमारे देश में बेकारी भी कम नहीं है। विकास की इस अंधी दौड़ में हर कंपनी भागी जा रही है। लोगों के पास काम करने के लिए समय ही नहीं है। हमारे देश में बढ़ रही झोपड़पट्टियों से यह कतई न समझ लिया जाए कि गरीब बढ़ रहे हैं। एक बार किसी झोपड़ी में ही झाँककर देखा जाए, तो उनका भी ऐश्वर्यशाली जीवन की झलक हमें दीख जाएगी। आप किसी राजगीर या प्लम्बर से बात करके तो देखें, पहले तो उसके पास आपसे बात करने का समय ही नहीं होगा, दूसरा यदि उसने बात कर भी ली, तो उसका यही कहना होगा कि आप मेरा मोबाइल नम्बर ले लीजिए, उसी से रात में बात कर लें। यह नम्बर भी वही आपको नहीं देगा, नम्बर देने का काम तो उसका सहायक करेगा। लोगों के पास महीनों-महीनों समय नहीं है। जब समय नहीं है, तो तय है कि उनकी आवक बहुत है। जब आवक है, तो जीवन ऐश्वर्यशाली होगा ही। आजकल लोगों की बातें ही एक बार सुन ली जाए, तो आश्चर्य होगा। हर कोई लाखों से कम में बात ही नहीं करता। इसी से स्पष्ट हो जाता है कि हमारा देश अब अमीरों की श्रेणी में आ गया है। हमारे देश का डंका अब विदेशों में भी बजने लगा है। बात चाहे मित्तल समूह की हो या फिर टाटा की। हर जगह भारतीयों की पहचान अलग से कायम हो रही है। इसी के साथ हम सबने महसूस किया है कि अब गरीबी वाली वह बात अपने देश में नहीं रही। कई बार उड़ीसा के कालाहांडी जिले से भूख से मौत की खबर निश्चित रूप से दहला देती है, पर वह खबर एक दिन की सुर्खी बनकर रह जाती है।
आज हम श्रेष्ठ से सर्वश्रेष्ठ बन रहे हैं, यह अच्छी बात है, भला किसे खुशी नहीं होगी इस खबर से कि हमारे देश का डंका अब विश्व परिदृश्य में शान से बज रहा है। अब जो अपनी गरीबी पर रो रहा है, वह या तो परिश्रमी नहीं है या फिर भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाला है, यही कहा जा सकता है। आज परिश्रम का पूरा फल लोगों को मिल रहा है। यह एक शुभ संकेत है, इस पर हमें गर्व करना ही होगा।
? डॉ. महेश परिमल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

Post Labels