डा. महेश परिमल
अतीत का मोह किसे नहीं होता? हर किसी को अपना अतीत प्यारा लगता है. कई लोग तो अपने अतीत में ऐसे जीते हैं कि यदि उन्हें वर्त्तमान बताया जाए, तो वे उसे सहन नहीं कर सकते. अतएव कई लोगोें के लिए अतीत में जीना जरूरी है. अतीत सुखद हो, तो भी अच्छा लगता है, पर अतीत जब दु:खद होता है, तब वह हमारी स्मृतियों में बसा रहता है. कई लोगो में अतीत इतना जीवंत होता है कि जब भी समय मिला, पंख फैलाया और चले गए उन्मुक्त आकाश में, जहाँ ढेर सारी सुखद स्मृतियाँ हमारी प्रतीक्षा में होती हैं.
घर की पुरानी चीजों को निकालने का काम जारी था. बेटे को सभी चींजें बेकार लग रहीं थीं. कबाड़ी भी खुश था उसे कई कीमती चींजें मुफ्त के भाव मिल रहीं हैं. घर के स्टोर के बाद बारी आई छत पर रखे सामान की. वहाँ बहुत-सी चीजों के साथ एक पुरानी साइकिल भी रखी हुई थी. जब बेटे ने कबाड़ी से साइकिल उठाने को कहा तब इतने समय से खामोश होकर मूक दर्शक बनी माँ से नहीं रहा गया. वह बोल उठी- बेटा, इस साइकिल को मत बेचो. ये तुम्हारी स्वर्गीय पिता की अंतिम निशानी है. अमीर बेटे को एक कबाड़ी के सामने अपनी बेइाती महसूस हुई. वह झेंप गया और माँ को एक अलग कमरे में ले गया और उसे भला-बुरा कहने लगा. वह अपनी अमीरी की दुहाई दे रहा था और माँ अपने अतीत का मोह नहीं छोड़ पा रही थी.
बेटा जब अपनी भड़ास निकाल चुका, तब माँ ने धीरे से कहा- बेटा! तुम्हें याद है, कॉलेज से निकलने के बाद नौकरी ढूँढ़ते हुए एक बार तुम्हारी मोटर साइकिल चोरी चली गई थी. तुम कितने मायूस हो गए थे? तुम बार-बार मेरी गोद में अपना सर रखकर उन सभी क्षणों को याद करते, जो तुम्हारी उस मोटर साइकिल के साथ जुड़ी थी. न जाने कितनी बार तुम्हें वही मोटर साइकिल कितने फायदेमंद साबित हुई थी. इन सबसे बड़ी बात यह थी कि तुम्हारे जन्म दिन पर तुम्हारे पिता ने अपने प्रोविडेंट फंड से रुपए निकालकर तुम्हें नई मोटर साइकिल खरीदकर दी थी. तब तुम्हें कितना गर्व हुआ था. तुमने वादा किया था कि नौकरी लगने के बाद पापा मैं आपको इसी तरह नई कार दूँगा. आज वे कार लेने के लिए हमारे बीच नहीं हैं बेटा, पर तुम सच बताना, क्या तुम्हें उस मोटर साइकिल की ंजरा भी याद नहीं, याद है, तभी तो आज भी तुम उस मोटर साइकिल पर रोज एक बार हाथ तो फेर ही लेते हो. फिर यह तो साइकिल है, जिससे मेरी यादें जुड़ीं हैं. मैं भला उसे अपने से दूर कैसे कर सकती हूँ?
इसे कहते हैं अतीत का मोह. हमारी यादों में ऐसी बहुत सी यादें होती हैं, जिसे हम चाहकर भी भुलाना नहीं चाहते. दूसरी ओर कई यादें ऐसी भी होती हैं, जिसे हम एक तरफ भुलाना नहीं चाहते, तो दूसरी तरफ उसे सबके सामने याद करना भी नहीं चाहते. कुछ यादें ऐसी होती हैं, जिसे हमने चुनौती के रूप में स्वीकार किया है, इसलिए एक पल भी भुलाना गवारा नहीें. सम्मान या फिर अपमान के एक-एक पल को ंजिंदगी भर याद रखते हुए हम उस पल की प्रतीक्षा करते हैं, जब हम उस सम्मान या अपमान के बदले मेें कुछ देने के काबिल हो जाएँ. संकल्पों की पूरी नदी पार करने के बाद वह पल भी आता है, जिस पर हमारा पूरा अधिकार होता है, हमारी सत्ता कुछ समय के लिए स्थापित हो जाती है, हम समय के स्वामी होते हैं, तब हमें लगता है कि हमने यादों को सहेजकर अच्छा किया. उन यादों को सँजोकर रखने का एक लाभ तो यह हुआ कि कल लेने वाले हाथ आज ऊपर हैं. यह उस पल के लिए भले ही गर्व की बात हो, पर इसके पीछे की सच्चाई यह है कि अपमान का कड़वा घँट पीने के बाद सम्मान के लिए हमारे भीतर छटपटाहट बढ़ती गई, सम्मान के उस पल को पाने के बाद हमारी कलुषता समाप्त हो जाती है. उस वृध्दा के साथ भी यही हुआ, वह साइकिल जब अच्छी हालत में थी, तब उसके पति उसी साइकिल में उसे बिठाकर न जाने कहाँ-कहाँ घुमाने ले गए होंगे. कभी बच्चों के साथ, कभी केवल वे दोनों. कभी उस साइकिल से गिरने की मीठी याद भी जुड़ी होगी. संभव है, कभी साइकिल ने धोखा दे दिया हो, तो एक लम्बा रास्ता उसे लेकर पैदल ही पार करना पड़ा हो. पत्नी ने रात में पति के पाँव के छालों को सहलाया होगा और साइकिल को कोसा भी होगा. उस समय की बुरी बनी साइकिल आज प्यारी बन गई, तो बुरा नहीं है. अक्सर ऐसा ही होता है, एक समय की घटना लम्बे समय बाद यादों के रूप में अच्छी लगती हैं.
मैंने एक ऐसे संस्थान में काम किया है, जिसके मालिक ने बरसों पहले अपनी छोटी सी प्रेस शुरू की थी, कालांतर में उसका काम बहुत चला, फिर तो वे अखबार के मालिक हो गए. उस अखबार के कई संस्करण निकलने लगे. कुल मिलाकर बात अब लाखों और करोड़ों में होने लगी. लेकिन उस बहुत बड़ी प्रेस का एक कोना आबाद था उस मशीन से जिससे उनके जीवन की शुरुआत हुई थी. केवल वे ही नहीं, उनके पुत्रों के लिए भी वह मशीन किसी आराध्य से कम नहीं है. ऐसा होता है अतीत का मोह. आज की पीढ़ी के लिए यह एक अजूबा होगा, पर जब वह कभी घर के बडाें को किसी सामान को न हटाने के लिए बहस करते देखते हैं, तब उन्हें अजीब लगता है, ये क्या है, जो घर के एक पुरानी चीज को लेकर झगड़ रहे हैं. इस पीढी क़ा साक्षात्कार कभी बुजुर्गों से हो जाए, तो शायद उनकी समझ में कुछ आ सकता है.
अतीत से जुड़ना बुरा नहीं है, पर उसे एक लाश के रूप में ढोए रखना बुरा है. अतीत से सबक लिया जाता है. अतीत हमें याद दिलाता है कि तब हुई एक गलती के कारण कितनी बड़ी सजा भुगतनी पड़ी थी, अब वह गलती दोबारा न हो. बस यही एक बात कहने के लिए अतीत हमारे साथ होता है. उसका स्पष्ट संकेत है कि गलतियों का दोहराव कदापि न हो बस....
डा. महेश परिमल
मंगलवार, 1 जनवरी 2008
अतीत का मोह
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ललित निबंध
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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