गुरुवार, 17 जनवरी 2008
खतरनाक है प्लास्टिक की पारदर्शिता
डॉ. महेश परिमल
आज क्या हम प्लास्टिक की बोतलों के बिना अपने जीवन की कल्पना कर सकते हैं। आज जहाँ जाओ, वहाँ प्लास्टिक की बोतलें आपका स्वागत करती मिलेंगी। हम भी इसकी पारदर्शिता पर धोखा खा जाते हैं और इसमें रखा पानी पीकर गर्व का अनुभव करते हैं। पर क्या कभी किसी ने सोचा कि ये बोलते किस तरह से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रही हैं? शायद यह सोचने का हमारे पास वक्त ही नहीं है। आज बच्चे तो क्या बडे बुजुर्ग भी प्लास्टिक की इन बोतलों का पानी पी रहे हैं और अपने स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने का अवसर दे रहे हैं। आइए जानें कि ये बोतलें किस तरह से हमारे स्वास्थ्य को पी रहीं हैं :-
स्कूल जाने के पहले माँ बच्चे के हाथ में टिफिन के साथ प्लास्टिक की बोतल में शुध्द पानी भरकर देना नहीं भूलती, नौकरी पर जाने के पहले लोग उसी प्लास्टिक की बोतल में छाछ या घर का ही शुध्द पानी ले जाना नहीं भूलते। ये सभी प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल इसीलिए करते हैं कि ये लाने-ले जाने में अत्यंत ही सुविधाजनक हैं। इसी सुविधा को देखते हुए आज शहरों ही नहीं, बल्कि सुदूर गाँवों में भी लोग इसी प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल खुलेआम कर रहे हैं। अब तो यात्रा के दौरान सुराही या वॉटर बॉटल ले जाना सपने की बात हो गई है। प्लास्टिक की इन बोतलों ने घर ही नहीं, बल्कि अस्पताल और अन्य सार्वजनिक स्थलों पर कब्जा कर लिया है। इस तरह से देखा जाए तो अब हम सबका जीवन प्लास्टिक की इन बोतलों के बिना अधूरा-सा हो गया है।
पर रुको! प्लास्टिक की इन बोतलों की महिमा गाने के पहले यह जान लें कि ये प्लास्टिक की बोतलें आज हमें किस तरह से नुकसान पहुँचा रही है। हाल ही में शीतल पेय पदार्थों में जंतुनाशक होने की खबर आते ही लोगों ने किस तरह से इन ठंडे-ठंडे और कूल-कूल पेय पदार्थों को अलविदा कह दिया है। इस पर यदि यह कहा जाए कि प्लास्टिक की ये बोतलें उन पेय पदार्थों से भी अधिक खतरनाक हैं, तो कई लोग इसे पागलपन ही कहेंगे, पर सच यही है कि आज भले ही हम इन प्लास्टिक की बोतलों से पानी या अन्य पेय पी रहे हैं, पर अनजाने में ये बोतलें हमारे स्वास्थ्य को पी रही हैं। 'रायल सोसायटी ऑफ केमिस्ट्री' के हाल ही में प्रकाशित जर्नल में बताया गया है कि जर्मनी के हेडलबर्ग यूनिवर्सिटी में वैज्ञानिकों ने इस संबंध में अध्ययन किया है। उनके अनुसार केनेडा और यूरोप की विभिन्न 63 ब्राण्ड की पानी की बोतलों में से एंटीमनी मैटल मिला था। वास्तव में एंटीमनी का उपयोग सिरेमिक, रंग तथा इनेमल्स में करने में होता है। यह शरीर के लिए खतरनाक है।
ऐसे तो हम सब विभिन्न तरह की प्लास्टिक की बोतलें अपने जीवन में काम में लाते ही रहते हैं, पर इनमें से कई बोतलें हमारे स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही हैं। विशेषकर वे बोतलें जो दोबारा इस्तेमाल में लाई जा रही हैं, क्योंकि जब बोतल को बनाने में प्रयुक्त पॅलीथिलीन ट्रिप्थेलेट टूटता है, तब डाइथीलेक्सीलेडीपेट अलग होकर पानी के साथ रासायनिक क्रिया करता है और तैयार केमिकल कैंसर का कारण बनता है। अब समय आ गया है कि इन प्लास्टिक की बोतलों के खिलाफ खुलेआम प्रदर्शन होने चाहिए। इसके दुष्परिणाम हमें शायद अभी देखने को न मिलें, पर सच तो यह है कि ये भी शीतल पेय पदार्थों की तरह हमारे शरीर को खोखला कर रही है। जिस तरह से बूँद-बूँद से घट भरता है, उसी तरह से रोज एक बूँद ही सही, पर हमारे शरीर में विषैला पदार्थ जा रहा है, तो निकट भविष्य में वह हमारे स्वास्थ्य को कितना नुकसान पहुँचाएगा, यह अभी तो कहा नहीं जा सकता, पर उसकी कल्पना ही की जा सकती है। कितनी ही बोतलों में बिस्फेनोला होता है, जो हार्मोन को संतुलित करता है, ऐसा अंकोलॉजिस्ट कहते हैं। अमेरिका में हुए एक अध्ययन में कहा गया है कि प्लास्टिक के उपयोग में वृद्धि होने से महिलाओं में स्तन कैंसर का प्रमाण बढ़ गया है। पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर और महिलाओं में स्तन कैंसर होने के पीछे यही प्लास्टिक की बोतलें ही जवाबदार हैं।
प्लास्टिक में हाइड्रोकार्बन होता है, यही हाइड्रोकार्बन कैंसर के लिए जवाबदार है। प्लास्टिक के जो अणु वजन में हलके होते हैं, वे पानी में मिलकर उसमें घुल जाते हैं, और शरीर को नुकसान पहुँचाते हैं। प्लास्टिक की इन बोतलों को रि-साइकिलिंग करने की प्रक्रिया बहुत ही खर्चीली होने के कारण लोग प्लास्टिक की बोतलों को यूँ ही पड़ा रहने देते हैं, जिससे यह पर्यावरण को काफी नुकसान पहुँचा रही हैं। क्योकि ये नालियों को चोक कर रही हैं, जिससे पानी रुक कर सड़न पैदा करता है। जहाँ खतरनाक जीवाणु अपना घर बना लेते हैं, और मनुष्य जाति पर हमला बोल देते हैं। अधिक समय तक पानी यदि इन प्लास्टिक की बोतलों में जमा रहता है, तो उस पानी में एसिटेल्डीहाइड मिल जाता है, जिसके कारण ऑंख, त्वचा और श्वसन मार्ग में अवरोध उत्पन्न होता है।
अब सरकार और उपभोक्ताओं का ध्यान प्लास्टिक की इन बोतलों पर गया है, लोग सचेत होने लगे हैं, धीरे-धीरे इसके खिलाफ माहौल बनने लगा है। पर इसके खिलाफ लोग सड़कों पर उतर जाएँ, इसके लिए अभी समय है। आज हम सभी को सूचना का अधिकार प्राप्त है, कोई एक जनहित याचिका के माध्यम से इन बोतलों के निर्माण में होने वाले रासायनिक पदार्थों की जानकारी ले सकता है, इस पर भी यदि गलत जानकारी दी जाती है, तो स्थिति शीतल पेय पदार्थों जैसी हो सकती है। देर से ही सही, पर इसके दुष्परिणाम सामने आएँगे ही, पर लोग यदि इसके दुष्परिणाम की प्रतीक्षा न करें और इसके खिलाफ अभी से सचेत हो जाएँ, तो निश्चित ही यह मानव जीवन के कल्याण के लिए उठाया गया एक अनोखा कदम होगा।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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पैट अर्थात् पोलीएथिलीन टेरेथेलेट की बोतलों में जो जल आजकल बेचा जा रहा है यह स्थिति शीघ्र ही बदलने जा रही है। Cargill and Dow Chemical के संयुक्त उपक्रम Cargill Dow LLC ने मकई (Corn) से एक प्लास्टिक बनाया है जिसका नाम पोलीलैक्टिक एसिड (polylactic acid or PLA)है। यह प्लास्टिक स्वास्थ्य के लिए हानिरहित है तथा ज़मीन में दबा देने पर 75 से 80 दिनों में स्वयं ही नष्ट हो जाता है। पश्चिमी देशों में इसका व्यवसायिक उत्पादन आरम्भ हो चुका है।
जवाब देंहटाएंपैट का निर्माण PTA (Purified Terephthalic Acid)प्युरिफाईड टेरेथेलिक एसिड व MEG (Monoethylene Glycol)मोनोएथिलीन ग्लाइकोल के एस्टरीफिकेशन द्वारा किया जाता है। अखाद्य श्रेणी (nonfood grade) के पैट के उत्पादन हेतु एन्टीमनी ट्राईआक्साइड का उत्प्रेरक के रूप में प्रयोग किया जाता है। खाद्य श्रेणी (food grade)के पैट में एन्टीमनी ट्राईआक्साइड का प्रयोग नहीं किया जाता। सस्ता होने के कारण लोग अखाद्य श्रेणी (nonfood grade) के पैट का प्रयोग खाद्य पदार्थों की पैकेजिंग के लिये भी कर लेते होंगे जो कि कानूनन ग़लत है।