डॉ. महेश परिमल
आजकल सीमाई क्षेत्रों की युवा पीढ़ी लगातार नशीले पदार्थों की गिरफ्त में जकड़ी जा रही है। इसकी वजह यही है कि हमारे देश की सरहदें नशीले पदार्थों की सुपरमॉल बन गई है। यहाँ हर तरह के नशीले पदार्थ आसानी से मिल जाते हैं। इन क्षेत्रों के गरीब लोगों की झोपड़ी नशीले पदार्थ रखने के काम आ रही है। ड्रग माफिया का नेटवर्क इतना तगड़ा है कि पल भर में माल इधर से उधर हो जाता है कि सीमाओं पर तैनात हमारे सुरक्षा दलों को इसकी खबर भी नहीं हो पाती।
हमारे सीमाई क्षेत्रों की एक तस्वीर का एक रूप ऐसा भी है- एक ऐश्वर्या राय देना! ऑंखें जिसकी पिचपिची हो, नस-नस टूटती हो, ऐसा एक दुबले-पतले शरीर वाला युवक एक दुकान में आकर कहता है। उससे कुछ रुपए लिए जाते हैं और एक पुड़िया थमा दी जाती है। थोड़ी देर बाद उस युवा की चाल में तेजी आ जाती है और वह वहाँ से चला जाता है। कुछ ही देर बाद एक दूसरा युवक आता है- रितिक रोशन चाहिए। इस नए युवक को पहले तो सशंकित दृष्टि से देखा जाता है, विश्वास होने पर उसे एक आसमानी रंग की पुड़िया दी जाती है और रुपए वसूले जाते हैं।
इस तरह से कभी ऐश्वर्या राय, कभी रितीक रोशन, तो कभी बिपाशा बसु की माँग होती है, कुछ धन देने के उपरांत उनकी यह माँग पूरी हो जाती है। सुप्रसिध्द लोगों के नामों से पहचाने जाने वाले नशीले पदार्थ हमारी सीमाओं पर आसानी से मिल जाते हैं। अब इन नामों का खुलासा भी हो जाए। ऐश्वर्या राय याने सर्वोत्तम क्वालिटी का कोकेन, बिपाशा बसु याने मध्यम स्तर की मनोत्तेजक (साइकीडेलिक) ड्रग, ये नाम केवल भारतीय सीमाओं पर ही प्रचलित हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में आज भी इन पदार्थों को सद्दाम हुसैन या फिर बुश के नाम से जाना जाता है। सेना के गुप्तचर विभाग के अफसरों को ंचिंता इस बात की है कि सीमाओं पर होने वाले इस अवैध धंधे की तरफ कई बार केंद्र सरकार का ध्यान आकृष्ट किया गया, पर अभी तक कोई ठोस कार्रवाई इस दिशा में नहीं हो पाई है।
अफगानिस्तान, नेपाल, बंगलादेश या फिर पाकिस्तान की तरफ से आने वाले मादक पदार्थ पहले भारत-नेपाल सीमा पर स्थित रक्सौल गाँव में आते हैं, इसके बाद यह माल पूरे देश में फैल जाता है। इस तरह से देखा जाए, तो आजकल रक्सौल मादक पदार्थों का मुख्य प्रवेश द्वार बन गया है। ड्रग का सांकेतिक नाम क्या दिया जाए, यह फैसला नेपाल और पाकिस्तान में बैठे ड्रग माफिया लेते हैं। सेना और पुलिस के बीच होने वाली बातचीत को माफिया अक्सर सुन लेते हैं। इसके बाद बहुत ही तेजी से मादक पदार्थों का नाम भी बदल दिया जाता है।
मादक द्रव्य के थोक व्यापारी जब माल का ऑर्डर देते हैं, तब कहते हैं- सद्दाम भेजो, इसका अर्थ यह हुआ कि ड्रग काटर्ेल की तरफ से अफगानी चरस भेजने का प्रबंध किया जाए। ड्रग की इस आपूर्ति के बाद उसे कई स्थानों में छिपा दिया जाता है, इसके लिए सीमा पर बसे गरीबों को धन का लालच देकर उनकी झोपड़िया का इस्तेमाल किया जाता है। यदि किसी को मणिपुरी गाँजे का कश लगाना हो, तो मात्र 7 ग्राम की पुड़िया उसे 15 रुपए में मिल जाती है। इसके लिए समय-समय पर नियमित ग्राहक को माल के बदले हुए नाम से वाकिफ कराया जाता है। आजकल मणिपुरी गाँजे को '' टेटा बम '' के नाम से जाना जाता है। नेपाल ही एक ऐसा राज्य है, जो हमारे देश की कई सीमाओं को छूता है। जैसे उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, बिहार, इसी तरह वह पडोसी देशों की सीमाओं को भी छूता है, इससे वह मादक पदार्थों का हब बनकर रह गया है। नेपाल सीमा से लगे भारतीय राज्यों में आजकल ऐश्वर्या और बिपाशा की भारी माँग है।
मादक पदार्थों की आवक से यही पता चलता है कि हमारी सीमा पर तैनात सुरक्षा बल से कहीं अधिक बलशाली माफिया तंत्र है। इनका तंत्र इतना अधिक विस्तृत है कि पल भर में ही इन्हें हमारी गुप्त जानकारियाँ मिल जाती हैं। न केवल धन से बल्कि संचार के क्षेत्र में इनकी पकड़ मजबूत है। जहाँ कहीं ये कमजोर नजर आते हैं, वहाँ के सुरक्षा बल को धन का लालच देकर खरीद लेते हैं। कई बार ये अपना माल जान बूझकर पकड़वा देते हैं, इससे सुरक्षा बल को वाहवाही मिल जाती है। केवल 5 किलो माल पकड़वाने के बाद उनके सामने ही 25-50 किलो माल रफा-दफा कर दिया जाता है।
आजकल सीमा क्षेत्र के युवक नशे की गिरफ्त में जकड़ रहे हैं, इन्हें एक साजिश के तहत मादक पदार्थों का आदी बनाया गया है, ताकि इनका इस्तेमाल माल की अफरा-तफरी में किया जाए। यदि ड्रग माफिया इनका इस्तेमाल मानव बम के रूप में करे, तो यह कोई आश्चर्य नहीं होगा। इन युवाओं की बेरोजगारी से कहीं अधिक घातक है, इन्हें नशे का आदी बनाना।ड्रग माफिया का सीमाओं पर बढ़ता आतंक इस बात का परिचायक है कि इनकी ताकत बेशुमार है। केवल धन ही नहीं, बल्कि अन्य कई तरह की सुविधाएँ देकर ये अफसरों को अपने वश में कर लेते हैं। साधारण लोग तो इनसे बहुत खौफ खाते हैं। नशीले पदार्थों का खुला खेल खेला जा रहा है, केंद्र सरकार को शायद किसी बड़ी दुर्घटना का इंतजार है। हमारी गुप्तचर संस्थाएँ इनके विस्तृत नेटवर्क के आगे नतमस्तक हो गई है। आए दिनों बड़ी मात्रा में गोला- बारुद और नशीले पदार्थों का पकड़ा जाना महज एक नाटक ही है। इसकी आड़ में बहुत बड़ी-बड़ी खेप आसानी से पार हो रही है। सरकार ने इस दिशा में यदि गंभीरता से ठोस कदम नहीं उठाया, तो संभव युवा पीढ़ी नशीली बनकर हमें ही नुकसान पहुँचाना शुरू कर दे। समय रहते सरकार और खुफिया तंत्र को मजबूत होना ही होगा।
डॉ. महेश परिमल
सोमवार, 7 जनवरी 2008
नशीले पदार्थों का सुपरमॉल बनती हमारी सीमाएँ
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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