मंगलवार, 22 जनवरी 2008
पिता नहीं बन पाएँगे मोबाइलधारी!
डॉ. महेश परिमल
मोबोइल आज की जरुरत है। इसके बिना आज विकास की बात की ही नहीं जा सकती। आज हर तरफ हमें मोबाइलधारी दिखाई देंगे। कई बार तो यह आवश्यकता न होकर फैशन के रूप में दिखाई दे रहा है। युवा वर्ग में तो यह यंत्र अत्यंत ही प्रचलित है। आधुनिकता की दौड़ में युवाओं ने इस खतरनाक यंत्र को अपने से इस तरह से चिपका रखा है, मानो वह उससे अलग होना ही नहीं चाहता। मोबाइल पर कई शोध किए जा रहे हैं, इसमें से हाल ही में जो चौंकाने वाला शोध सामने आया है, उसके अनुसार मोबाइलधारियों को पिता बनने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। अभी यह शोध सामने नहीं आया है कि मोबाइल से आज की युवतियों को किस प्रकार का खतरा है, पर सच तो यह है कि जब यह युवकों को पिता न बनने देने के लिए जिम्मेदार हो सकता है, तो संभव है युवतियों को यह यंत्र मातृत्व सुख से वंचित रख सकता है।
जी हाँ आधुनिक जमाने का यह यंत्र हमारे समाज के लिए कितना खतरनाक है, यह तो समय ही बताएगा, पर यह सच है कि मोबाइल से निकलने वाली किरणें पुरुषों के शुक्राणुओं की संख्या में काफी कमी कर देती है। वैज्ञानिकों के इस शोध के पीछे यह बात है कि लोग अपने मोबाइल को अपने जेब या फिर कमर के आसपास रखते हैं, यही वह स्थान हैं, जो शुक्राणुओं के जन्म स्थान के काफी निकट हैं। क्या आपको मालूम है कि मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन का सबसे घातक असर कमर के नीचे के भागों में होता है।
इक्कीसवी सदी की युवा पीढ़ी की सबसे बड़ी कमजोरी यही है कि वह मोबाइल को अपना दोस्त मानकर उसे सदैव अपने पास ही रखना चाहती है। इस मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन से युवा पीढ़ी नपुंसक बन रही है। यह एक ऑंख खोलने वाल शोध है, जिससे लाखों युवा चपेट में आ गए हैं। यह चेतावनी केवल उन्हीं युवा या पुरुषों के लिए है, जो अपना मोबाइल कमर के नीचे वाले भाग में रखते हैं और दिन भर में चार घंटे से अधिक उसका फटाफट उपयोग करते हैं।इस स्थिति में होने वाला इलेक्ट्रो मैगनेटिक रेडिएशन्स उनमें नपुंसकता का प्रमाण बढ़ा सकता है।
हाल ही में हुए कितने ही अध्ययनों के आधार पर दिल्ली के चिकित्सक मोबाइल के अधिक से अधिक उपयोग से बचने की सलाह देते हैं। दूसरी ओर मोबाइल बनाने वाली कंपनियाँ स्वाभाविक रूप से इस तरह के शोध के प्रति अपनी अनभिज्ञता प्रकट करती हैं। उनका मानना है कि मोबाइल से इस तरह का किसी प्रकार का नुकसान शरीर को नहीं होता।
ठोस जानकारी के अनुसार इस समूचे विवाद की शुरूआत अमेरिकन सोसायटी फॉर रि प्रोडेक्टिव मेडिसिन की वार्षिक बैठक के बाद जारी हुए कई निष्कर्षो के बाद हुई। वास्तव में सोसायटी ने एक सर्वेक्षण कराया था जिसके अनुसार एक पुरूष यदि दिन भर में चार घंटे से अधिक मोबाइल फोन का बेतहाशा उपयोग करता है, तो उसे पिता बनने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है। इस सर्वेक्षण में उन पुरूषों को लिया गया, जो मोबाइल फोन का इस्तेमाल बेतहाशा करते हैं और जो बिल्कुल नहीं करते हैं। दोनों ही वर्ग के पुरूषों के शुक्राणुओं की संख्या में काफी भिन्नताएँ पाई गई।
यह सर्वेक्षण अमेरिका के क्लीपलैंड और न्यू ऑर्लियन्स के कितने ही वैज्ञानिकों एवं मुम्बई के कितने ही विशेषज्ञों ने मिल कर किया है। इसके अंतर्गत 350 से अधिक पुरूषों को उनके शुक्राणुओं की संख्या के आधार पर तीन भागों में विभक्त किया गया और उनकी बारीकी से जाँच की गई। इस जाँच से यह बात सामने आई कि जो पुरूष दिन में चार घंटे से अधिक समय तक मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं, उनमें शुक्राणुओं की संख्या मोबाइल का बिल्कुल उपयोग न करने वाले पुरूषों में स्थित शुक्राणुओं की तुलना में 25 प्रतिशत कम थीं। इसके साथ ही मोबाइलधारी पुरूषों के शुक्राणुओं की गुणवत्ता में भी काफी अंतर देखा गया।
इस संबंध में नई दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान के डॉ. संदीप गुलेरिया बताते हैं कि समूचे विश्व में मोबाइलधारकों की संख्या लगातार बढ़ रही है। इस संबंध में बहुत से शोध एवं सर्वेक्षण सामने आए हैं। अभी तक हुए अध्ययनों के अनुसार केवल इतना ही कहा जा सकता है कि जो हृदय रोगी पेसमेकर का इस्तेमाल करते हैं, वे अपना मोबाइल यदि कमीज की जेब में रखते हैं, तो मोबाइल से निकलने वाली रेडिएशन उनके हृदय को बुरी तरह से प्रभावित कर सकती है। इसीप्रकार कार चलाते समय मोबाइल का इस्तेमाल करने वाले लोगों को भी सावधान रहने की जरुरत है।
दूसरी ओर नोएडा स्थित मेट्रो हॉस्पिटल के रेडियोलॉजिस्ट डॉ. दीपक हंस का मानना है कि मोबाइल से निकलने वाली विकिरण से पुरूषों के शुक्राणुओं की संख्या में कमी के अनेक विरोधाभासी तथ्य सामने आए हैं, जिससे स्पष्ट रूप से नहीं कहा जा सकता कि शुक्राणुओं की संख्या में कमी के पीछे मोबाइल विकिरण ही है। वे आगे कहते हैं कि भारत में वैसे तो मोबाइल सेल का व्यापक उपयोग अधिक पुराना नहीं है, अत: मोबाइलधारकों को अधिक परेशान होने की जरुरत नहीं है। अध्ययन दर्शाते हैं कि 15 वर्ष से अधिक समय तक मोबाइल का उपयोग करने वाले लोगों के लिए ही खतरा अधिक है।
डॉ. हंस लोगों को सावधान करते हुए कहते हैं कि मोबाइलधारी अपने यंत्र को कमर के नीचले हिस्से की ओर कदापि न रखें, क्योंकि शरीर का यह भाग शुक्राणुओं के उत्पादन क्षेत्र के काफी करीब होता है। जिससे विकिरण का प्रभाव वहाँ पर सबसे अधिक नुकसानदायक हो सकता है। स्वाभाविक रूप से अधिकांश मोबाइल उत्पादक कंपनियाँ इस तरह के सर्वेक्षण एवं शोधों को बेबुनियाद बताती हैं। वे यह मानने को तैयार ही नहीं है कि मोबाइल के अधिक इस्तेमाल से कोई खतरा भी हो सकता है।
कुछ भी हो, किसी भी चीज की अति सदैव पीड़ादायक ही होती है। इस दृष्टि से मोबाइल का युवाओं द्वारा अधिक से अधिक इस्तेमाल किया जाना भावी पीढ़ी के लिए निश्चित रूप से नुकासानदायक हो सकता है।
रोज डेढ़ लाख नए मोबाइलधारी
देश में रोज डेढ़ लाख नए मोबाइलधारी ग्राहक बन रहे हैं। इस तरह से हर सप्ताह दस लाख मोबाइलधारी तैयार हो रहे हैं। इस क्षेत्र में रोज नई कंपनियाँ नए और आकर्षक योजनाओं के साथ सामने आ रही हैं। देश में अभी 11 करोड़ लोग मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं। इस संबंध में बीएसएनएल का लक्ष्य तो आगामी तीन वर्षो में 35 करोड़ लोगों के हाथो में मोबाइल रखने का है। इसी से समझा जा सकता है कि मोबाइल विकिरण इस देश पर किस तरह हावी हो जाएगा। यह सभी जानते हैं कि मोबाइल रेडिएशन से किसी बिमारी का इलाज नहीं होता, बल्कि यह बिमारियों को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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