शुक्रवार, 11 जनवरी 2008

मानवजाति की जान का दुश्मन है चूहा



; डॉ. महेश परिमल
चूहा हमारे समाज का कट्टर दुश्मन है। शायद ही कोई क्षेत्र ऐसा हो, जो चूहों से आक्रांत न हो। आज हर गली-मोहल्लों में चूहों का आतंक है। कुछ वर्षों पूर्व मुम्बई में नगर निगम ने चूहे पकड़ने वालों को इनाम देने की घोषणा की थी। लोग रात में चूहे पकड़ते और दिन में उसे नगर निगम के कार्यालय में जमा करते, इसे लोगों ने अपनी कमाई का साधन बना लिया था। बाद में यह योजना बंद कर दी गई। पर चूहों का आतंक अभी तक कम नहीं हुआ है। किसी-किसी घर में चूहे का होना ही परेशानी का कारण माना जाता है। चूहों की उपज हमारे द्वारा ही फैलाई गई गंदगी से होती है। इसी कारण आज यह छोटा-सा चूहा हमारी जान का दुश्मन बना हुआ है।
अक्सर यह सुना जाता है कि वैज्ञानिकों ने अपने शोध को प्रमाणित करने के लिए पहला प्रयोग चूहों पर किया। यह सच है कि चूहे वैज्ञानिकों के लिए भले ही सहायक हों, पर संपूर्ण मानव जाति के लिए चूहे बहुत ही खतरनाक हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि चूहे से 70 तरह की बीमारियाँ हो सकती हैं। चूहे जितना अनाज खाते नहीं हैं, उससे अधिक बरबाद करते हैं। हर वर्ष लाखों टन अनाज चूहों द्वारा ही बरबाद किया जाता है। खेतों में फसल को भी नुकसान पहुँचाकर किसानों को भारी परेशानी में डाल देते हैं, क्योंकि उन्हें चूहों के कारण अपनी उपज का सही दाम नहीं मिल पाता।
चूहे और मानव का सहअस्तित्व सदियों से चला आ रहा है। विध्नहर्ता गणेशजी ने चूहे को अपना वाहन बनाया है। बाँसुरीवाला और चूहा, सात पूँछवाला चूहा, चूहा और साँप, चूहों ने बाँधी बिल्ली के गले में घंटी आदि कई कहानियाँ हमने बचपन में अपनी दादी-नानी से सुनी थी, जिसमें चूहा ही नायक था। पर ये बातें केवल कहानियों में ही अच्छी लगती हैं। देखा जाए तो चूहा मानवजाति के लिए एक अभिशाप है। मानव ने अपने आसपास जो गंदगी फेला रखी है, उसी के कारण इन चूहों को बढ़ने का अवसर मिल रहा है। रेल्वे प्लेटफार्म के पास का ट्रेक इसका ज्वलंत उदाहरण है, जहाँ चूहों की संख्या हमेशा बढ़ती ही रहती है, क्योंकि यात्रियों द्वारा फेंकी गई खाद्य सामग्री ही इनका मुख्य आहार है।
चूहों की बढ़ती संख्या और उनसे मानव जाति को होने वाला नुकसान पूरे विश्व के लिए चिंता की बात हो गई है। ऑस्ट्रेलिया में 2003 में आयोजित दूसरे मूषक सम्मेलन में विशेषज्ञों ने घोषणा की थी कि चूहे 70 प्रकार के विविध रोगों को फेला सकते हैं। वहाँ बताया गया कि चूहों के काटने से रेट बाइट फीवर होता है। इसी तरह यदि चूहे को मच्छर, मक्खी, खटमल आदि धोखे से भी काट लें, तो मानव को प्लेग और टाइफ्स जैसी बीमारी होती है। टाइफ्स में शरीर पर लाल चकत्ते, दुर्बलता और संक्रामक ज्वर जैसे लक्षण देखने में आते हैं। चूहे मानव के भोजन को जूठा कर और उसमें अपने मल-मूत्र के द्वारा उसे विषाक्त बना देते हैं। इस सामग्री को यदि मानव अपने इस्तेमाल में लाता है, तो लेप्टोस्पायरोसिस और साल्मोनेलोसिस नामक रोग होता है। यह तो थोड़े से जाने-पहचाने उदाहरण हैं, इसके अलावा चूहों से अन्य सैकड़ों रोग फैलते हैं। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि रेट बाइट के कारण व्यक्ति चूहे जैसी हरकतें करने लगता है।
आजकल लेप्टोस्पायरोसिस नामक रोग की चर्चा है। यह रोग पालतू प्राणियों गाय, भैंस, घोड़ा, कुत्ता आदि के द्वारा फेलता है। इनके मल-मूत्र मिश्रित पानी यदि हमारे शरीर के कटे हुए किसी भाग में जरा सा भी लग जाए, तो संक्रमण के माध्यम से यह रोग हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। इस रोग के लक्षणों में तेज बुखार आना, रक्तचाप कम होना, सिर, पेट और स्नायुओं में तेज दर्द, उलटी, ऑंख लाल होना आदि का समावेश है। सन् 2000 हजार में अकेले थाईलैण्ड में ही इस रोग के लगभग 6000 सरकारी ऑंकड़े सामने आए थे, इनमें से 350 लोगों की मौत हो गई थी।
कहा जाता है कि पृथ्वी पर जितनी आबादी मानव की है, उससे कहीं अधिक चूहों की है। हर वर्ष करीब दो करोड़ चूहों का नाश किया जाता है। इसके बाद भी चूहों की संख्या में कोई कमी नहीं आई है। चूहों और मानव की यह लड़ाई पिछले 700 वर्षों से जारी है। किसानाें के सबसे बड़े और जानी दुश्मन ये चूहे ही हैं। किसानों की लहलहाती मेहनत को ये चूहे इस कदर नष्ट कर देते हैं, इसका अंदाजा शायद किसी को न हो। ये चूहे एक साल में इतने अधिक अनाज का नुकसान करते हैं कि उससे विश्व की आधी आबादी का पेट भर सकता है। इससे अरबों रुपयों का नुकसान प्रतिवर्ष होता है। इसके बाद भी चूहों की आबादी घटाने में मानव विफल रहा है।
अमेरिका के पर्यावरणविद् डॉ. जैक्सन ने इन्हीं चूहों से परेशान होकर कहा था कि देखना एक दिन पृथ्वी पर मनुष्य के बदले चूहों का साम्राज्य होगा। उनकी यह बात उस समय भले ही मजाक लगी हो, लेकिन यह सच है कि आज चूहे इंसान के लिए घातक सिध्द हो रहे हैं। दूसरे विश्व युध्द के बाद अमेरिका ने एनोवी क्षेत्र में प्रायोगिक तौर पर परमाणु परीक्षण किया था, उस समय सारे जीव-जंतु और वनस्पति का नाश हो गया था, लेकिन भूगर्भ में छिपे तमाम चूहे पूरी शिद्दत के साथ जीवित थे।
आइए अब आपको ले चलते हैं चूहों के अनोखे संसार में। आपको यह जानकर होगा कि एक चूहा एक रात में 200 से 300 फीट लंबी सुरंग खोद सकता है। चेन्नई में चूहों ने एक अदालत भवन और आंध्र प्रदेश में एक मंदिर शार्ट सर्किट के कारण पूरी तरह से भस्मीभूत कर दिया था। विश्व में चूहों की लगभग 550 जातियाँ हैं। नार्वे में सबसे बडे 400 ग़्राम के चूहे देखने को मिलते हैं। इनकी पूँछ 12 सेंटीमीटर लंबी होती है। भारत में काले और भूरे रंग के चूहे विशेष रूप से देखने में आते हैं। कृषि विभाग के अनुसार हमारे देश में चूहों की संख्या लगभग एक हजार करोड़ से अधिक है।
चूहों पर पिछले पंद्रह वर्षो से अनुसंधान करने वाले डॉ. जैक्सन का कहना है कि अमेरिका में खरगोश जितने बड़े चूहों का अस्तित्व पिछले पाँच करोड़ वर्षों से है, उनके अनुसार चूहों में कई प्रकार की विशेषताएँ पाई जाती हैं-
Ø एक चूहा अपने शरीर के चौथे हिस्से के बराबर वाली जगह से आसानी से निकल सकता है।
Ø बीस फीट की ऊँचाई वाली दीवार पर यह आसानी से चढ़ सकता है।
Ø यह अन्न के बिना सात दिन और पानी के बिना दो दिन तक आराम से जीवित रह सकता है।
Ø मानव की अपेक्षा चूहे की पाचन श्क्ति 15 गुना अधिक है।
Ø एक चूहा एक दिन में 5 वर्ष के बालक की खुराक जितना अन्न खा लेता है।
Ø चूहे का जोड़ा अपने जीवन काल में 15 हजार बच्चों को जन्म देने की क्षमता रखता है।
Ø स्थिर पानी में चूहा आधे किलोमीटर तक तैर सकता है और उसे पानी में डूबोया जाए तो वह तीन मिनट तक जीवित रह सकता है।
Ø भूख से तड़पने वाला चूहा बहुत ही आक्रामक होता है।
Ø भूकम्प के झटकों से गिरने वाले मकानों के मलबे से भी यह आसानी से बाहर निकल सकता है।
Ø एक चुहिया 21 दिन की गर्भावस्था के दौरान ही सात से दस बच्चों को जन्म देती है।
Ø अपने जन्म के मात्र तीन महीनों बाद ही वह पूर्ण रूप् से वयस्क हो जाता है।
Ø वर्ष में छह से दस बार चुहिया बच्चों को जन्म देती है।
Ø एक चूहे की औसत आयु तीन वर्ष होती है।
Ø मांसाहारी जंगली चूहों की अपेक्षा अधिकतर चूहे शाकाहारी होते हैं।
Ø उबले अनाज चूहों को प्रिय होते हैं, इसके अभाव में वे कच्चे अनाज, फल-सब्जियाँ खाते हैं। ये भी न मिलने पर कागज, कपड़ा और प्लास्टिक चबाते हैं।
Ø चूहे के दाँतो की निरंतर वृद्धि होती रहती है, इसलिए उनहें कुछ न कुछ कुतरने की आदत होती है। अगर ये कुछ न कुतरें, तो इनके दाँत आपस में जुड़ जाएँगे और इससे इनकी मौत हो सकती है।
Ø सबसे आश्चर्य की बात यह है कि चूहों में रंग को परखने की क्षमता नहीं होती, इनकी ऑंख की अपेक्षा नाक अधिक तीव्र होती है, इसी की सहायता से वे अंधेरे में भी आसानी से भागदौड़ कर लेते हैं।
Ø अत्यंत पतले तार पर आसानी से चलने वाले ये चूहे यदि सात फीट की ऊँचाई से गिरें, तो इनका बाल भी बाँका नहीं होता।
इस तरह से देखा जाए, तो चूहे मानव जाति को किसी भी तरह का लाभ नहीं देते, ये भले ही साँप का भोजन हो, पर हमारे देश में इतने साँप और बिल्लियाँ भी नहीं हैं कि वे मिलकर चूहों का नाश कर पाएँ। इसके लिए तो लाखों पाइड पाइपर की आवश्यकता होगी, जो अपनी सुरीली धुनों से चूहों को आकर्षित करें और उन्हें ले जाएँ एक दूसरी ही दुनिया में। तो आओ चलें उन पाइड पाइपर की तलाश करने.....
? डॉ. महेश परिमल

4 टिप्‍पणियां:

  1. चूहा मानव का दुशम्न नहीं डॉ साहब, मानव खुद मानव का दुश्मन है, वजह?
    चूहे का सबसे बड़ा दुश्मन है ऊल्लू जो एक रात में कम से कम दस से पन्दर बड़े चूहों का भोजन कर लेता है, एसे मानव मित्र उल्लू को हमने लगभग खत्म कर दिया है।
    है ना मानव खुद अपना दुश्मन.. वरना चूहे पहले भि थे परन्तु उल्लू भी थे। यह एक एच्छा क्रम था जिसमें एक दूसरे को भोजन बना कर प्रकृति को संतुलित रखा जाता था, हमने उसमें से एक नहीं कई कड़ियों को तोड़ दिया और परिणाम .... आज आपकी पोस्ट :)

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  2. प्रिय डॉ परिमल जी,

    आप ने इस लेख में इतनी जानकारी भर दी है कि मैं पढ कर दंग रह गया. कृपया लिखते रहें, हम पढ रहे हैं

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  3. पुनश्च: आपने जो आंकडे/तथ्य दिये हैं उन्हें पढ कर चूहों के बारे में बहुत ताज्जुब हुआ.

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  4. नही ऐसा मत कहो सारे चूहे दुशमन नही जंगली चूहे ही दुशमन है जबकि पालतू चूहे बहुत ही मासूम है यह अपने आप कुछ नही खाते है ना ही नुकसान करते इंहे तो जब खाने को दो तभी खाते है और पालतू बनाने पर मानव से बहुत ही पृेम करते है

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