बुधवार, 9 जनवरी 2008
मोबाइल के गागर में संगीत का सागर
डॉ. महेश परिमल
किसी विद्वान ने कहा है कि समय के साथ चलो, नहीं तो पीछे रह जाओगे। सच है, जो समय के साथ नहीं चलते, वे इतने पीछे रह जाते हैं कि कभी आगे नहीं बढ़ पाते। समय आज भी भाग रहा है, इसी के साथ-साथ लोगों की पसंद भी बदलने लगी है। पहले और आज की तुलना करें, तो हमें कई चीजें बदली हुई नजर आएँगी। आज से दस वर्ष पूर्व किसी ने सोचा था कि आदमी चलते-फिरते फोन के माध्यम से किसी से बात कर सकता है। एक सीडी में हजारों गाने हो सकते हैं। आज मात्र तीन या चार फिल्मों को समाहित करने वाली सीडी मिल रही है, निकट भविष्य में एक सीडी में 15 फिल्में समाहित हो जाएँगी। यह अभी हमारे लिए भले ही अजूबा हो, पर यह अजूबा बहुत जल्द हमारे सामने होगा। आडियो केसेट और सीडी का जमाना अब जाने वाला है, आज सब कुछ मोबाइल में ही समाने लगा है। एक अँगूठे में ही पूरी दुनिया आपके सामने होगी। अब सेलफोन में ही हजारों गीत स्टोर करें और सुनते चले चलें अपनी मंजिल की ओर......
आज टी.सीरीज वाले गुलषन कुमार जीवित होते, तो आडियो केसेट और सीडी के धंधे में आने वापली मंदी को देखकर बहुत दु:खी होते। सेलफोन की बिक्री जैसे-जैसे बढ़ रही है, वैसे-वैसे कॉम्पेक्ट डिस्क याने सीडी और केसेट की बिक्री कम होती जा रही है, क्योंकि आजकल के युवाओं को संगीत भी चलते-फिरते चाहिए, इसलिए ट्रेन, बस, कार या फिर बाइक पर सवार होकर लोग सेलफोन के साथ इयरफोन जोड़कर हिंदी और अँगरेजी फिल्मों के गीत सुनते दिखाई दे रहे हैं। अभी पिछले साल से ही अपने सेलफोन पर संपूर्ण ट्रेक्स डाउनलोड करना संभव हुआ है। फलस्वरूप् हिंदी फिल्मों की हाई-प्रोफाइल म्युजिक लांच पार्टियाँ अब भूतकाल की बात बन गई है। फिल्म इंडस्ट्री का लेटेस्ट ट्रेण्ड गीतों की सीडी बाजार में पहुँचे, इसके पहले ही स्वयं की फिल्म के संगीत को डिजीटल विष्व में रिलीज करना है। इसे ई-म्युजिक का प्यारा-सा नाम दिया गया है।
निर्माता-दिग्दर्षक करण जोहर ने खुद की बिग बजट वाली फिल्म ''कभी अलविदा ना कहना'' का म्युजिक एप्पल के ऑनलाइन म्युजिक स्टोर आईटयुन्स पर रिलीज किया, तब उसने सपने में भी यह खयाल नहीं था कि डिजीटल म्युजिक की बिक्री आडियो सीडी और केसेट की बिक्री सारे रिकॉर्ड तोड़ देगी। '' कभी अलविदा ना कहना'' का संगीत रिलीज करने वाले सोनी बीएमजी के आष्चर्यजनक रूप से लोगों ने फिल्म के गीतों की मात्र 15 लाख सीडी खरीदी। उधर इस फिल्म के गीतों को 25 लाख लोगों ने अपने सेलफोन पर डाउनलोड किया। आज हालात ऐसे हो गए हैं कि गीतों के एलबम की बिक्री के लिए उसे प्रमोट करना महँगा साबित हो रहा है। उधर एलबम के डिजीटल सेल में से मिलने वाला धन विषुध्द मुनाफा ही बन जाता है, क्योंकि वह फाइल बार-बार डाउनलोड की जा सकती है। ''कभी अलविदा ना कहना'' के गीतों को मिलने वाले जबर्दस्त प्रतिसाद को देखते हुए ''डॉन'' और ''जानेमन'' फिल्म का संगीत भी स्टोर्स में रिलीज करने के पहले आइटयुन्स ने उसे डिजीटल विष्व में जारी किया था।
चलते-फिरते संगीत सुनने का चलन लगातार बढ़ रहा है। इसलिए आडियो केसेट और सीडी का धंधा लगातार मंदा होते जा रहा है। 2001 मेें सीडी और केसेट की कुल बिक्री 1081 करोड़ रुपए थी, जो घटकर 702 करोड़ रुपए पर पहुँच गई। इसी तरह सीडी की बिक्री में भी बेषुमार वृद्धि हुई है, इसलिए केसेट की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हो रही है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2000-2001 में कुल 39 करोड़ केसेट्स की बिक्री हुई, वहीं 2005 में घटकर इसकी बिक्री 5 करोड़ 70 लाख ही हो पाई। दूसरी ओर मोबाइल म्युजिक (रिंग टोंस, ट्रु टोंस, फुल ट्रेक डाउनलोड्स और वीडियो क्लिपिंग्स) की बिक्री बढ़कर 450 करोड़ तक पहुँच गया। मोबाइल म्युजिक के एक वर्ष में 30 करोड़ म्युजिक डाउनलोड्स हुए थे। भारती एयरटेल के डायरेक्टर (मार्केटिंग) गोपाल विट्ठल का कहना है कि यह ऑंकड़े अगले एक-डेढ़ वर्ष में बढ़कर दोगुने हो जाएँगे। हमारे देश में अभी 30 करोड़ मोबाइलधारी हैं। फलस्वरूप् मोबाइल म्युजिक का चलन बढ़ा है। इस क्षेत्र से म्युजिक कंपनियों को इस वर्ष 120 करोड़ रुपए की आवक होगी। इसके पीछे मोबाइलधारियों को अपने सेलफोन पर म्युजिक डाउनलोड करने के बाद 450 करोड़ रुपए म्युजिक कंपनी को भुगतान करना होगा। इस स्थिति को देखते हुए यह कहा जा रहा है कि 2009-10 में 3500 करोड़ की बिक्री के साथ ही मोबाइल म्युजिक इंडस्ट्री विष्व में इस प्रकार की सबसे बड़ी इंडस्ट्री बन जाएगी।
म्युजिक के अधिकार प्राप्त करना लगातार महँगा होने से 2002 में म्युजिक इंडस्ट्री लगभग ठप्प हो गई थी। संजय लीला भंसाली की फिल्म '' देवदास '' के म्युजिक राइट्स 12 करोड़ रुपए में बेचने के बाद यह स्थिति पैदा हुई थी। मोबाइल मनोरंजन का सफल साधन बना उसके पहले बाजार में से ऑडियो सीडी और केसेट की बिक्री में से एक बड़ी राषि बनाना मुष्किल हो गया था, इस कारण म्युजिक कंपनियों ने राइट्स के लिए अप्रत्याषित राषि चुकाने से इंकार कर दिया। इंडियन म्युजिक इंडस्ट्री के सीइओ विपुल प्रधान कहते हैं कि 'वर्षों की मंदी के बाद डिजीटल सेल्स की मेहरबानी से इंडस्ट्री फिर से लाभ के पड़ाव पर पहुँची है।' सारेगामा ने 2004-05 में 25 करोड़ का नुकसान उठाया था और इसके विपरीत 2005-06 में 8.87 करोड़ का मुनाफा कमाया। उसका 25 प्रतिषत से अधिक का मुनाफा डिजिटल सेल्स के कारण है।
म्युजिक कंपनियों के हिस्से में मात्र 20 प्रतिषत ही राषि आती है और शेष 80 प्रतिषत राषि टेलिकॉम कंपनियों और साउंड बज़ जैसे म्युजिक रिटेलर के हिस्से में जाती है। उसके बाद भी आय के इस नए स्रोत के कारण हिंदुस्तान म्युजिकल वर्क्स जैसी कितनी ही बहुत पुरानी म्युजिक कंपनियों को जीवनदान मिला है। 1930 के दषक की प्रसिध्द म्युजिक कंपनी हिंदुस्तान म्युजिक वर्क्स ने कुंदनलाल सहगल, मन्ना डे और एस.डी. बर्मन जैसे कलाकारों को मंच दिया था, किंतु उसके बाद धीरे-धीरे इस कंपनी की प्रसिध्दि में गिरावट आई। अब मोबाइल रिंगटोन्स और कॉलर टयुन्स के कारण कंपनी फिर से अपनी पहचान बना रही है। आज हिंदुस्तान म्युजिकल वर्क्स के सोवम सहा केवल पुराने गीतो से ही 5 लाख रुपये कमाते हैं। सहा कहते है कि 'सहगल के गीत डॉन और कभी अलविदा ना कहना के साथ ही रिलीज करवाए थे, फिर भी सहगल के गीतों ने इन दोनों फिल्मों के मुकाबले अधिक प्रसिध्दि पाई। सहगल के गीत अधिक डाउनलोड हुए थे। हम दूसरे 30,000 ट्रेक्स डिजीटाइज़ कर रहे हैं।'
डिजीटाइज़ेषन के कारण कंपनियाँ उपभोक्ताओं की जरूरतों को पूरा करने के लिए कटिबध्द हैं। उदाहरण के लिए आजकल बड़े गुलाम अली खाँ, मेंहदी हसन और बिस्मिल्लाह खान के पुराने षास्त्रीय संगीत की आईटयून्स की बहुत माँग है। उधर के.एल. सहगल मोबाइल फोन पर हिट हैं। संगीत के षौकीन विभिन्न संगीत के लिए अलग-अलग रकम चुकाने के लिए भी तैयार हैं।
डिजीलाइजेषन का दूसरा एक बड़ा फायदा हय है कि वह पाइरेसी का मुकाबला करने में सक्षम है। ओपन मोबाइल एलायंस के माध्यम से तमाम सहभागी कंपनियाँ इस मामले में एक साथ हैं। दूसरी ओर डिजीटल राइट्स मेनेजमेंट अनधिकृत सामग्री के वितरण को रोककर महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। मोबाइल हेंडसेट के उत्पादक भी चलते-फिरते संगीत के द्वारा उपभोक्ताओं का मनोरंजन करने में पूरी तरह से कटिबध्द हैं। इस दिषा में नोकिया जैसी कंपनियाँ लगातार नए प्रयोग कर रही है। हाल ही में नोकिया ने ही एक ऐसा हेंडसेट निकाला है, जिसमें 6 हजार गीतों का संग्रह किया जा सकता है। अभी भी इस दिषा में नए-नए षोध जारी हैं।
नोकिया ने आज तक विष्वभर मेें विविध सुविधाओं वाले करीब एक करोड़ इक्विपमेंट बेचे है। पायरेसी रोकने के लिए नोकिया एन सिरीज के फोन की डिजाइन इस तरह से की गई है कि एक बार गीत डाउनलोड करने के बाद वह वहीं लॉक हो जाते हैं, उससे उन गीतों को कही फारवर्ड नहीं किया जा सकता। पोडकास्टिंग जैसी सर्विस लांच करने के बाद नोकिया अब वेबसाइट पर काम कर रही है, ताकि वह मोबाइलधारकों को रिटेल में म्युजिक बेच सके। सोनी के बीएमजी के श्रीधर सुब्रमण्यम का कहना है कि आज बाय-टू-ऑन म्युजिक ( गीत खरीदकर स्वयं के पास रखने) का जमाना अब पुराना हो गया है। उदाहरण के लिए बीएसएन एक स्ट्रीमिंग सर्विस दे रहा है, जिसके लिए टाटा ब्राड बेण्ड सबस्काइबर्स एक बार सौ रुपए भरकर खुद की पसंद के गीतों जितने चाहे उतने गीत सुन सकता है। बीएसएनएल टाटा टेलिसर्विस के मोबाइलधारियों को भी यह डाउनलोड सुविधा देना चाहती है। बीएसएनएल से आजकल रोज ही करीब 2000 टे्रक डाउनलोड हो रहे हैं।
आज अधिक से अधिक लोग संगीत का आनंद ले रहे हैं। पर संगीत का आनंद लेने का माध्यम बदल गया है। आज म्युजिक कंपनियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उपभोक्ता जिस तरह का संगीत चाहते हैं, उसकी माँग को वह तुरंत पूरी कर दे। इसके मद्देनजर कई कंपनियों ने बदले हुए जमाने का रूख देते हुए ऐसा करना षुरू भी कर दिया है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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