गुरुवार, 21 मई 2009

नेताओं की सम्पत्ति में 9 हजार प्रतिशत बढ़ोत्तरी

डॉ. महेश परिमल
अभी कुछ दिनों पहले ही हम सबने अपने घर के सामने या आमसभा के मंच से अपने प्रतिनिधियों को वोट की भीख माँगते देखा था। आपने जिसे अपना कीमती वोटै दिया, क्या जीता हुआ आपका वह प्रतिनिधि इसके लिए धन्यवाद देने के लिए आपके द्वार आया? नहीं ना! आप देखते रहें, वह तो फुर्र हो गया है पूरे 5 साल के लिए। अब तो वह नहीं आने वाला। हाँ इसके बजाए, आपके पास वह हारा हुआ प्रत्याशी बार-बार आएगा और आपको उलाहने देगा। वह यही कहेगा, देख लिया अपना कीमती वोट उसे देने का नजीता। संभव है जिस पार्टी पर आपने विश्वास किया हो, उसी के प्रतिनिधि को आपने वोट दिया, पर वही आज सरकार बनाने के लिए अपना दल बदल देगा, यह तो आपने नहीं सोचा था।
यह है आज के नेताओं की वह हकीकत, जिसे हम सब जानते हैं और हर बार 5 वर्ष के लिए मूर्ख बन जाते हैं, पर क्या आपको पता है कि यही नेता आजकल इतना अधिक कमाने लगे हैं कि उनकी संपत्ति में बेशुमार वृद्धि हो रही है। जनता की सेवा से इतना अधिक लाभ! भला हो भारतीय जनता का। जो अपने साधारण से जनप्रतिनिधि को एकदम से ऊपर उठाकर इतने ऊँचे पर बिठा देती है कि वह 5 साल तक नीचे उतरता ही नहीं। आपको शायद मालूम नहीं होगा कि नेताओं की संपत्ति के बारे में हाल ही में हुए एक सर्वेक्षण में पता चला है कि इनकी संपत्ति में 9 हजार प्रतिशत तक वृदधि पाई गई है। सियासत के रास्ते लक्ष्मी दर्शन का यह एक अनोखा ही वाकया है, जो केवल भारत में ही देखा जा सकता है।
भारतीय लोकतंत्र में राजनीति से बेहतर कमाई का कोई और धंधा नहीं हो सकता। यह बात उजागर हुई है पिछले पाँच सालों के दौरान सांसद रहे उन 229 नेताओं की संपत्ति के विश्लेषण से जिन्होंने इस बार दोबारा चुनाव लड़ा। नेशनल इलेक्शन वॉच के विश्लेषण में यह तथ्य सामने आए हैं। इन नेताओं ने यह ब्योरा अपने नामांकन के साथ दिए हलफनामों में दिया है। यह निष्कर्ष उनके पिछले हलफनामों का विश्लेषण करके निकाला गया है। संपत्ति में सर्वाधिक वृद्घि उत्तर प्रदेश के मोहम्मद ताहिर की रही, जो पिछले चुनाव की तुलना में इस बार 9137 फीसदी ज्यादा है। पश्चिम बंगाल की सुष्मिता बाउरी की संपत्ति में 3151.52 फीसदी, महाराष्ट्र के सुरेश गणपतराव वाघमारे की संपत्ति में 2159.64 फीसदी, उ.प्र के ही अक्षय प्रताप सिंह गोयल की संपत्ति में 1841 फीसदी और राजस्थान के सचिन पायलट की संपत्ति में 1746 फीसदी की वृद्घि केवल पिछले पाँच सालों में हुई है। फिर से चुनाव लडऩे वाले सांसदों की औसत व्यक्तिगत संपत्ति में 298 फीसदी या 2.67 करोड़ रुपए की बढ़त है।
संपत्ति में वृद्घि के मामले में पहला स्थान कर्नाटक के सांसदों का है, जो पाँच साल के भीतर पिछली बार की तुलना में औसतन 693 फीसदी अमीर हुए हैं। उ.प्र के सांसद पांच सालों में 559 फीसदी, छत्तीसगढ़ के 433, असम के 411, पं. बंगाल के 386, मणिपुर के 352, दादरा व नगर हवेली एवं झारखंड़ के 254, राजस्थान के 253, उड़ीसा के 236, मध्यप्रदेश के 221, महाराष्ट्र के 211, गुजरात के 198, आंध्र प्रदेश के 194, एनसीटी दिल्ली के 185, त्रिपुरा के 178, केरल के 144, अरूणाचल के 131, गोआ के 118, बिहार के 108, लक्षद्वीप के 37, हरियाणा के 24 और जम्मू कश्मीर के औसत सांसदों की संपत्ति में पिछले पांच सालों में औसतन 11 फीसदी की वृद्घि दर्ज की गई है। कुछ सांसदों ने अपनी संपत्ति को बिना मूल्य के घोषित किया है जिसे अध्ययन में शून्य माना गया है।
आईआईएम बंगलौर के डीन प्रो. त्रिलोचन शास्त्री का कहना है कि राजनीति देश में पैसा बनाने का सबसे बड़ा जरिया बन गई है। वे कहते हैं कि यहाँ कमाई की कोई सीमा नहीं है और ये नेता किसी के प्रति उत्तरदायी भी नहीं है। राजनीति ही एकमात्र ऐसा व्यवसाय है जिस पर मंदी की कोई मार नहीं है। आईआईएम अहमदाबाद के पूर्व निदेशक प्रो. जगदीश छोक्कर की टिप्पणी और ज्यादा कड़ी है। वे कहते हैैं कि इन आंकड़ों से साफ है कि ये नेता आम लोगों की सेवा के बजाए अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने में लगे हैं। इन निर्वाचित प्रतिनिधियों की संपत्ति में हो रही बेतहाशा वृद्घि क्यों और कैसे हो रही है वे इसमें पारदर्शिता लाने की वकालत करते हैं। नेशनल इलैकशन वॉच के राष्ट्रीय समन्वयक अनिल कहते हैं कि जब देश की आर्थिक स्थिति निरंतर कमजोर हो रही हो तो नेताओं की संपत्तियों का आकाश छूना चिंता का विषय है। नेताओं को इस बारे में जनता को जवाब देना चाहिए।
ऐसा नहीं है कि नेताओं की संपत्ति बढ़ती ही जा रही है। हर बात का दूसरा पहलू भी होता है। मजे की बात यह है कि जहाँ अधिकांश सांसदों की आय में जोरदार बढ़त दर्ज की गई है वहीं कुछ ऐसे भी सांसद हैं जो पाँच साल के कार्यकाल के बाद गरीब हो गए हैं। इनमें अधिकतम कमी कर्नाटक के एस बंगारप्पा की रही जिनकी संपत्ति में पिछले पांच साल में 79 फीसदी की कमी आई है। जम्मू कश्मीर के लाल सिंह की संपत्ति में 67.44 फीसदी और उड़ीसा के प्रसन्ना कुमार पटसनी की संपत्ति में 66.74 फीसदी की कमी आई है।
तो देखा आपने हमारे धन बटोरु नेताओं का चमत्कार। मंदी की मार से इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ा। आखिर वे ऐसा क्या करते हैं कि सम्पत्ति में लगातार इजाफा ही होता रहता है। क्या सचमुच जनता की सेवा करने से इतना अधिक लाभ होता है। शायद इसीलिए लोग राजनीति में आना चाहते हैं। तभी तो उन्हें वोट माँगने में भी शर्म नहीं आती, उसके बाद अपने वादों से मुकर जाना भी उन्हें अच्छी तरह से आता है। हमारे मतदाता अभी भी नहीं जागे, तो निश्चित रूप से हमारे द्वारा ही चुने गए हमारे प्रतिनिधि इस देश को रसातल में ले जाएँगे। आज दुष्यंत कुमार की पंक्ति बरबस ही याद आ रही है
हो गई है पीर पर्वत से पिघलनी चाहिए।
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।।

डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. This reminded me of this old Madhumuskan

    http://img265.imageshack.us/my.php?image=scan0005xj8.jpg

    posted on

    http://comic-guy.blogspot.com/2007/03/madhumuskan-1.html

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