गुरुवार, 7 मई 2009

खो गई खुशबुओं की दुनिया



डॉ. महेश परिमल
आज आपको ले चलते हैं खुशबुओं की अनोखी दुनिया में, जिसे देखा तो नहीं जा सकता, सुना भी नहीं जा सकता, हाँ, केवल महसूस किया जा सकता है। महसूस भी ऐसा कि दिलो-दिमाग दोनों ही ताजगी से लबरेज़ हो जाए। इतिहास में झाँककर देखें, तो खुशबुओं के इस खजाने को हम मुगल कालीन सभ्यता की विरासत के रूप में अपनी ही हथेली पर महसूस करेंगे। यादों में रूई का फाहा जब भी कानों से बाहर आएगा, तो खुशबु ही खुशबू बिखेर देगा। इतिहासकार कहते हैं कि मलिका मुमताज बेगम स्नान के समय अपने हौज में गुलाब की पंखुडिय़ाँ डालती थीं। कभी वह पानी में चंदन का तेल डालकर स्नान करती थीं। गुलाब का इत्र बनाने का खयाल पहली बार उनके दिमाग में आया। आज जहाँ चारों ओर ग्लोबल वार्मिग के कारण वातावरण गर्म हो रहा है, हवा में कार्बन डाईऑक्साइड का अनुपात बढ़ रहा है, तो आज से पाँच सौ वर्ष पहले जब इस तरह की कोई बात ही नहीं थी, तब भला मुगल कालीन बेगमें इन खुशबूदार पानी से स्नान करना क्यों पसंद करती थीं? बात केवल इन बेगमों की ही नहीं है, प्राचीन काल में इजिप्त की महारानियाँ भी सुगंधित पानी में काफी समय बिताती थीं। क्या कारण होगा इसके पीछे? कभी सोचा है आपने? चलिए राजा-महाराजाओं की बात छोड़ दें। वे तो होते ही हैं शान-ए-शौकत के साथ जिंदगी जीने वाले, लेकिन साधारण से साधारण इंसान भी खुशबू को अपने जीवन का अंग बनाना चाहता है। खुशबू उसे अनोखी खुशी देती है।
कल्पना कीजिए - आपकी ऑफिस से छुट्टी है और आप फुरसत से घर में बैठे हुए हैं, ऐसे में कीचन से किसी पकवान या मनपसंद सब्जी की खुशबू आई और आपकी भूख बढ़ गई। मुँह में पानी आ गया और आप खाने के लिए लालायित हो उठे। यह होता है खुशबू का तुरंत असर! शहनाईनवाज स्व. बिस्मिल्ला खान ने अपने जीवन की एक घटना का जिक्र करते हुए कहा था, कि जब वे शहनाई बजाते थे, तो सामने की पंक्ति पर बैठे हुए कुछ शरारती बच्चे उन्हें परेशान करने के लिए उनके सामने बैठकर इमली या संतरा खाते थे। जिसे देखते ही उनके मुँह में पानी आ जाता था। मँुह का पानी से भरना अर्थात शहनाई बजाने में अवरोध आना। फूँक से बजाए जाने वाले वाद्ययंत्रों में यही परेशानी आती है कि उन्हें बजाते समय मुँह मेें पानी नहीं भरना चाहिए वरना सुर को बेसुरा होते देर नहीं लगती।
आधुनिक चिकित्सा विज्ञान तो खुशबू के इस अनोखे संसार को स्वास्थ्य का प्रभावी माध्यम मानता है। हमारे स्वास्थ्य पर इसका गहरा असर पड़ता है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि हर इंसान के शरीर की अपनी एक अलग खुशबू होती है। कितनी बार तो इंसान को उसकी खुशबू से ही पहचाना जाता है। खुशबू में जात-पात का भेद नहीं होता। वह तो हर किसी को अपना बना लेती है। तभी तो आज खुशबू के माध्यम से कितनी ही मानसिक और शारीरिक बीमारियों का इलाज संभव हो पाया है। आज की निरंतर दौड़ती-भागती जिंदगी में व्यक्ति हाइपर टेन्शन का शिकार हो जाता है, जिसके कारण अनेक साइको-सोमेटिक बीमारियाँ उसे अपने जाल में ले लेती हैं । सुगंध चिकित्सा के द्वारा इसका समाधान संभव है। आयुर्वेद और यूनानी चिकित्सकों के अनुसार 40 प्रतिशत से अधिक बीमारियाँ मानसिक कारणों से होती हंै। गुलाब, मोगरा, चंदन, संतरे का अर्क, जास्मिन और ब्राह्मी की सुगंध में वह अद्भुत शक्ति है, जो मानसिक तनाव को दूर कर मन को शांत करती है। यानी कि बीमारी के इलाज की शुरुआत सुगंध के साथ हो जाती है।
आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि नगरवधुओं के साथ काम करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि ये महिलाएँ अपनी दूरदर्शिता का उपयोग करते हुए हमेशा अपने बालों मेें मोगरे का गजरा या फूल लगाती हैं, क्योंकि उनके पास आने वालों में अधिकतर शराबी या ट्रक ड्राइवर होते हैं, जो लोग पहले से ही तनाव से घिरे होने के कारण काफी उत्तेजित होते हैं और उसमें भी नशा उन्हें और अधिक उत्तेजित कर देता है। ऐसे में मोगरे का गजरा उनके तनाव को कुछ पल में ही शांत कर देता है।
हमारे यहाँ गर्मियों में खस, गुलाब या केवड़े का शरबत पिलाया जाता है, उसके पीछे का भी कारण यही है कि यह हमारे तनाव को शांत करता है। कई लोगों की यह आदत होती है कि वे रात को सोते समय सिर में भृंगराज के तेल से मालिश करना पसंद करते हैं। जिसके कारण मस्तिष्क को शीतलता मिलती है और गाढ़ी नींद आ जाती है। नींद आना अर्थात तनाव का गायब होना, जिससे दूसरे दिन की शुरुआत ताजगी से भरी होती है। अब तो सुगंध चिकित्सा यानी अरोमा थेरेपी के सेंटर जगह-जगह खुल गए हैं और लोग इसका लाभ लेने लगे हैं। यहाँ पहुँचने वालों से वहाँ बैठे खुशबुओं के जानकार बातों ही बातों में उनसे उनकी मनपसंद चीज़ों को जान लेते हैं, फिर बाद में उनकी पसंदीदा खुशबू का प्रिस्किप्शन लिख देते हैं।
भारतीय अत्तरों में वेज के रूप में चंदन का तेल और देशी-विदेशी स्पे्र में अल्कोहल वेज के रूप में इस्तेमाल होता है। कितने तो हरी चाय की सुगंध स्फूर्ति और ताजगी देती है, तो कितनों को एक विशेष ब्रांड की कॉफी उत्तेजित करती है। सुगंध का शास्त्र में यह मानव ही तय करता है कि उसे कौन से सुगंध पसंद है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं, जिन्हें सुगंध से एलर्जी होती है। ओशो को परफ्यूम की एलर्जी थी। उनके शिष्य इस बात का विशेष ध्यान रखते थे कि कोई भी उनके पास जाए, तो किसी प्रकार का स्पे्र करके नहीं जाए। यह एक अपवाद है। गाँवों में आज भी मक्खी-मच्छरों को भगाने के लिए कड़वे नीम का धुआँ किया जाता है। शाम को गूगल या लोभान का धूप किया जाता है। यह धूप वातावरण को पवित्र करने के बाद एक प्रकार की शांति देता है। भीनी-भीनी सुगंध सीधे मस्तिष्क को प्रभावित करती है। ज्ञान तंतुओं को एक प्रकार की शांति देती है।
आजकल जो एयर फ्रेशनर के नाम से स्प्रे बेचे जा रहे हैं। इनमें कई ऐसे हैं, जिसे बनाने में हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। अच्छा यही होगा कि आप जब भी इस तरह का कोई इत्र या सेंट खरीदो, तो किसी जानकार मित्र से ही खरीदो, ताकि ठग जाने की संभावना कम से कम हो। अनजाने लोगों से परफ्यूम खरीदने का मतलब यही हुआ कि धन खर्च करने के बाद भी परेशान होना। कई बार तो ऐसा होता है कि आपने कोई स्पे्र खरीदा और उसके इस्तेमाल करने के कुछ मिनट बाद ही आपको सरदर्द होने लगा, या फिर बेचैनी महसूस होने लगे, तो तुरंत सावधान हो जाएँ, यह सुगंध आपके लिए बिलकुल नहीं है। प्रकृति ने प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग खुशबू तय की है। जिस सुगंध से आपको सब कुछ अच्छा लगने लगे, वही आपके लिए लाभकारी है। यही खुशबू आपकी पहचान है। एक दृष्टिहीन भी आपकी खुशबू से आपको पहचान जाता है। आज अराजकता के इस युग में जहाँ बारूदी गंध चारों ओर फैली हुई है, ऐसे में हम कहाँ ढूँढ पाएँगे सुगंध का संसार....
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. फूल खिलते हैं, चाहे ज़मीन बंजर ही क्यों न हो... कैक्टस के गुलाबी फूल यह साबित करते हैं

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    चाँद, बादल और शामगुलाबी कोंपलें

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