शनिवार, 24 दिसंबर 2016
बाल कहानी – परी नियोबिया
कहानी का अंश…
यूनान देश में एक राजा था – टैन्टेलस। वह बहुत ही क्रूर था। टैन्टेलस अपने आपको देवता जीयस का बेटा कहता था। यूनान के सभी लोग टैन्टेलस के नाम से थर –थर काँपते थे। धीरे-धीरे टैन्टेलस का आतंक आसपास के कई देशों में भी फैलने लगा। अत्याचारी टैन्टेलस को इतने से ही संतोष नहीं हुआ। वह दुनिया का सबसे प्रतापी राजा बनने का सपना देख रहा था। बादशाह टैन्टेलस ने आखिर देवताओं को प्रसन्न करने की ठानी। वह देवताओं को प्रसन्न करके अधिक शक्तिशाली बनना चाहता था। इसलिए उसने उनके सम्मान में एक बहुत बड़े भोज का आयोजन किया। उसने ढेरों व्यंजन बनवाए। उनमें से कुछ व्यंजन ऐसे भी थे, जो देवता कभी ग्रहण नहीं करते थे। टैन्टेलस का एक बेटा था – पेलोप्स। उसका स्वभाव अपने पिता के स्वभाव से बिलकुल अलग था। टैन्टेलस बुराई का प्रतीक था, तो पेलोप्स अच्छाई का। वह टैन्टेलस को हमेशा समझाता कि दूसरों का भला करे, उन्हें किसी भी तरह का दुख न दे। लेकिन टैन्टेलस पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था। उसने अपना तरीका नहीं बदला। दूसरी ओर पेलोप्स ने भी अपने पिता को समझाने का प्रयास जारी रखा। वह लगातार प्रयास करता ही रहा। इस पर टैन्टेलस ने क्रोधित होकर पेलोप्स को एक अँधेरे तहखाने में कैद कर दिया। भोज में देवताओं को निषिद्ध भोजन दिया गया। जिससे देवता नाराज हो गए। उनमें से एक थी नियोबिया परी। वह पेलोप्स की बहुत अच्छी दोस्त थी। वह पेलोप्स को चारों ओर खोजने लगी लेकिन पेलोप्स कहीं दिखाई नहीं दिया। अंत में उसे पता चला कि वह अँधेरे तहखाने में कैद है। परी ने देवताओं को पेलोप्स को छोड़ने का आग्रह किया। उसने टैंटेलस की शिकायत देवताओं से कर दी। देवताओं की कृपा से तहखाने के ताले अपने आप खुल गए। पेलोप्स बाहर आ गया। नियोबिया ने जब उसे सकुशल देखा तो वह बहुत प्रसन्न हुई। देवताओं ने टैन्टेलस को श्राप दिया। क्या था वह श्राप? श्राप का प्रभाव कब तक रहा? नियोबिया और पेलोप्स की दोस्ती कब तक बनी रही? राजा टैन्टेलस का स्वभाव बदला कि नहीं? इन सारी जिज्ञासाओं के समाधान के लिए ऑडियो की सहायता लीजिए…
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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