शुक्रवार, 30 दिसंबर 2016
बाल कहानी – चतुर कौन
कहानी का अंश…..
एक जंगल था। उस जंगल में सियार, लोमड़ी, भेडिया और सिंह चारों एक साथ रहते थे। जंगल का राजा अपने साथियों के साथ बड़े आराम से रहता था। सियार, लोमड़ी और भेडिया खुश थे, बहुत खुश। सिंह राजा था। लोमड़ी मंत्री थी। भेडिया सेनापति था और सियार था अर्दली। एक दिन की बात है । सिंह ने मुँह खोलकर जम्हाई ली। पास ही भेडिया बैठा हुआ था। उसने कहा – सरकार, आपके मुँह से बदबू आ रही है। सिंह नाराज हो गया। वह बोला – मैं जंगल का राजा हूँ। मेरे मुँह से बदबू कैसे आ सकती है?
उसने इतना कहकर भेडिये पर झपट्टा मारा। एक ही झपट्टे में उसकी गरदन तोड़ दी। पंजो से उसका पेट फाड़ दिया। बेचारा भेडिया बेमौत मारा गया। यह देखकर सियार और लोमड़ी डर गए। अगले दिन सिंह ने मुँह खोलकर फिर से जम्हाई ली और सियार से पूछा – अब तू बता, क्या मेरे मुँह से बदबू आती है?
सियार ने कल भेडिये की बुरी हालत देख ली थी। उसने सोचा कि राजा का मिजाज गरम हो गया है। हमें नरमी से काम लेना चाहिए। वह बोला – हुजूर, आपके मुँह से तो इलायची की खुशबू आ रही है। अहा! क्या प्यारी सुगंध है। यह कहकर वह सिंह की तारीफ के पुल बाँधने लगा और जोर-जोर से हँसने लगा। सिंह ने डाँटकर कहा – चापलूस कहीं का। तुझसे मुझे यही आशा थी। इतना बड़ा यह जंगल, इसका मैं अकेला राजा। ताजा खून मैं पीऊं, जानवरों को नोच-नोच कर मैं खाऊँ, कलेजी मैं चबाऊँ, फिर मेरे मुँह से बदबू न आएगी तो किसके मुँह से आएगी? तेरी तो मति मारी गई है। कहता है कि खुशबू आ रही है। सियार भी सिंह की नाराजगी का शिकार हो गया। अब बाकी बची लोमड़ी। अगले दिन राजा ने यही सवाल लोमड़ी से पूछा। लोमड़ी बोली – सरकार, मुझे तो जुकाम हो गया है, बदबू-खुशबू का कुछ पता ही नहीं चलता। सिंह उसकी ओर देखता रह गया। कहा भी गया है – जैसी चले बयार, पीठ तब तैसी कीजीए। इस कहानी का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए….
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें