गुरुवार, 15 दिसंबर 2016
बाल कहानी - संगठन और सूझ
कहानी का अंश...
एक लोमडी को कई दिनों से खाने को कुछ नहीं मिला था। इसलिए वह शिकार की खोज में घूम रही थी। उसकी चलने-फिरने की शक्ति भी कम हो गई थी। एक बार वह पहाड़ की ढाल पर शिकार की खोज में थी कि एकाएक पैर के नीचे का पत्थर लुढक गया और कमजोर होने के कारण वह भी अपने आपको संभाल नहीं सकी और लुढकती चली गई। नीचे की तरफ मैदान था। जब वह वहाँ पर पहुँची तो उसने खरगोशों का झुंड देखा। खरगोशों को देखकर उसके मुंह में तो पानी आ गया। उसने सोचा कि यहाँ पर उसके लिए रोज एक-दो खरगोश खाने का इंतजाम तो हो ही जाएगा। वह रोज उस जगह पर आने लगी कि कभी मौका मिले तो वह खरगोश को खा ले। जब खरगोशों ने लोमड़ी को रोज वहाँ आते हुए देखा तो पहले तो वह डर गए कि यह उन्हें खा लेगी। फिर उन्हें लगा कि वह लोमड़ी तो अकेली है और हम सभी हैं। हम सभी मिलकर उस अकेली लोमड़ी का मुकाबला कर सकते हैं। यही सोचकर वे सभी बेफिक्र होकर आनंद से रहने लगे। एक दिन उस लोमड़ी ने खरगोश के दो बच्चों के पास आकर उनकी खूब तारीफ की और अपने घर दावत के लिए आने का न्यौता दिया। वे खरगोश डर के मारे जल्दी से वहाँ से चले गए। लेकिन उसके बाद उन खरगोशों ने अपने आपको असुरक्षित महसूस किया आैर उन्होंने अपनी एक सभा बुलाई और लोमड़ी से पीछा छुड़ाने का उपाय सोचा। क्या था वह उपाय? यह जानने के लिए ऑडियो की मदद लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
बाल कहानी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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