गुरुवार, 1 दिसंबर 2016
प्रेरक प्रसंग - अहंकार से मुक्ति
प्रेरक प्रसंग का अंश...
अंगिरा ऋषि अपनी विद्वता और तेजस्विता के लिए प्रसिद्ध थे। उनके मार्गदर्शन में अनेक शिष्य ज्ञान प्राप्त कर अपना जीवन सफल बनाते थे। उदयन उनका एक अत्यंत प्रतिभावान शिष्य था। ऋषि उसके प्रति अत्यंत स्नेह रखते थे। एक बार ऋषि ने महसूस किया कि उदयन के व्यवहार में परिवर्तन आ रहा है। उसमें न सिर्फ अहंकार आने लगा था, बल्कि वह आलस्य का भी शिकार होता जा रहा था। ऋषि इससे दुखी थे
वह उदयन को इनसे बाहर निकालना चाहते थे। उन्हें एक तरकीब सूझी। एक रात वह उदयन के साथ किसी विषय पर चर्चा कर रहे थे। तभी अचानक चर्चा रोककर उन्होंने उदयन से कहा, 'वत्स, सामने रखी अंगीठी में झांक कर देखो, कोयला दहकने के कारण कितना तेजस्वी लग रहा है। इसे निकालकर मेरे सामने रख दो जिससे मैं पास से इसे देख सकूं।' उदयन ने कोयले को अंगीठी से निकालकर उनके समीप रख दिया। कुछ ही क्षणों में दहकता हुआ कोयला अंगारे की जगह राख में परिवर्तित हो गया।
दहकते हुए अंगारे को राख में परिवर्तित होते देख ऋषि उदयन से बोले, 'वत्स देखो, अंगीठी का सबसे चमकदार कोयला जिस प्रकार अग्नि के तेज से विमुख होते ही राख बन गया, उसी प्रकार सक्रिय और प्रतिभावान व्यक्ति भी अभ्यास, स्वाध्याय, विनम्रता, नेकी व सक्रियता से विमुख होते ही आलस्य तथा अहंकार का शिकार होकर निस्तेज व गुणविहीन हो जाता है। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति को इस बात को अपने हृदय में बसा लेना चाहिए कि सफलता, अभ्यास, ज्ञान, सक्रियता व बुद्धिमत्ता ही किसी व्यक्ति के जीवन को सार्थक बनाती है। इन गुणों को अपनाकर ही उल्लेखनीय सफलता हासिल की जा सकती है। अहंकार व आलस के व्यक्ति पर हावी होते ही वह इन गुणों से युक्त होते हुए भी गुणरहित होता है और ऐसे व्यक्ति की छवि धीरे-धीरे धूमिल होती जाती है।' उदयन अपने गुरु का आशय समझ गया।
इस प्रसंग का आनंद ऑडियो की मदद से लीजिए...
लेबल:
दिव्य दृष्टि,
प्रेरक प्रसंग
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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