डॉ. महेश परिमल
आज का युग डीजिटल है। सब कुछ कंप्यूटर में कैद होने लगा है। कंप्यूटर का छोटा संस्करण मोबाइल के रूप में हमारी हथेली में है। मोबाइलधारकों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा होता जा रहा है। अब बैंकों के कई काम भी इसी मोबाइल के माध्यम से होने लगे हैं। इसमें नेट बैंकिंग प्रमुख है। इन सुविधाओं के साथ कुछ समस्याएं भी सामने आ रही हैं। कुछ दिन पहले मेरे एक साथी का अचानक ही हृदयाघात से देहांत हो गया। अब उसके परिवार वाले इस बात को लेकर चिंतित है कि उनके सारे पासवर्ड कहां से लाएँ। िमत्र अपना अधिकांश कार्य कंप्यूटर के माध्यम से करते थे। इसमें नेट बैंकिंग प्रमुख था। अब उनके न रहने पर पासवर्ड परिवार के किसी सदस्य को नहीं मालूम। अब परिजनों को यह पता नहीं चल पा रहा है कि टैक्स, प्रीमियम, लोन आदि की जानकारी किस तरह से प्राप्त की जाए? इसलिए अब यह कहा जा रहा है कि यदि आप नेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो अपना पासवर्ड, वेबसाइट आदि की जानकारी एक डायरी में लिखकर रखें, ताकि उनके न रहने पर परिजनों को किसी तरह की परेशानी न हो।
आज के डीजिटल युग में एक नई समस्या उभरकर सामने आई है। इसमें इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोग शामिल है। सामान्य रूप से हम अपना पासवर्ड, यूजर्स नेम आदि गोपनीय रखते हैं। हमें शुरू से ही यही कहा गया है कि अपना पासवर्ड किसी को भी न बताया जाए। पत्नी को भी नहीं। यह गोपनीय है, इसकी गोपनीयता बनाए रखी जाए। ऐसी स्थिति में हमारा वह अपना अचानक ही हमारे बीच न रहे, तो फिर उनके बैंक एकाउंट से लेकर अन्य कई लेन-देन की जानकारी उनके साथ ही चली जाती है। ऐेसे में अब यह सलाह दी जाने लगी है कि अपना यूजर्स नेम,पासवर्ड आदि एक डायरी में अवश्य लिखकर रखेे। इसी तरह इंटरनेट पर भी किए जाने वाले कार्यों की जानकारी भी एक डायरी में लिखी होनी चाहिए। निजी बैंक तो अपने उपभोक्ता को हर महीने बैंक स्टेटमेंट भेजती हैं, पर सरकारी बैंकें ऐसा नहीं कर पाती। इसलिए परिवार वालों को यह पता ही नहीं होता कि घर के मुखिया का एकाउंट कहां-कहां है। उसमें कितनी राशि है। एकाउंट से किस तरह के बिलों का भुगतान हर महीने इंटरनेट बैंकिंग के तहत किया जाता है। हाल ही एक घटना हुई, जिसमें इंटरनेट पर पे-पाल में एक व्यक्ति ने खाता खुलवाया। उसमें विदेशी करेंसी ट्रांसफर हो सकती थी। पे-पाल में खाता खुलवाने वाला यदि चाहे, तो अपने अन्य किसी खाते में राशि ट्रांसफर कर सकता था। घर में किसी को इस संबंध में पता नहीं था। अचानक उस व्यक्ति की मौत हो गई। तब उसके परिजनों को बैंक से खाते का स्टेटमेंट मिला। पर पे-पाल से सभी अनजान थे। एक बार परिवार के एक सदस्य को बैंक स्टेटमेंट देखते हुए यह खयाल आया है कि पे-पाल से खाते में धनराशि जमा हुई है। पहले तो पे-पाल क्या है, यही पता नहीं था, जब पता चला कि पे-पाल से खाते में डॉलर जमा हुए हैं। तब पे-पाल के एकाउंट के संबंध में जांच हुई। पे-पाल पर 5-6 बार यूजर नेम और पासवर्ड के लिए प्रयास किया गया। इसे पे-पाल ने यही समझा कि कोई हेकर्स इस तरह का प्रयास कर रहा है। इससे एकाउंट अपने ही आप ब्लॉक हो गया। पे-पाल को ई मेल कर कई तरह की जानकारियां दी गई। पहले तो पे-पाल ने कोई जवाब नहीं दिया, पर जब इफर्मेशन टेक्नालॉजी एक्ट के माध्यम से नोटिस दिया गया और अपना ई मेल भेजा गया, तो पे-पाल से सहयोग करते हुए वन टाइम पासवर्ड भेजा, जिससे पता चला कि खाते में 1500 डॉलर हैं। अंतत: वह राशि अन्य खाते में ट्रांसफर कर दी गई।
यह दुर्भाग्य है कि कितने ही खाते न्यूनतम बेलेंस के साथ बरसों से बैंकों में पड़े रहते हैं। कितनी ही बैंकें हर 6 महीने में खातेदार को स्टेटमेंट भेजती हैं, पर सरकारी बैंकें ऐसा नहीं कर पाती। फलस्वरूप कई खातों में ब्याज की राशि जुड़ती चली जाती है और राशि दोगुनी भी हो जाती है। यही हाल आजकल पीएफ खाते का भी है। यदि आपने कहीं एक साल काम किया है, तो आपके खाते में कितनी राशि है, इसकी जानकारी पीएफ विभाग से नहीं मिलती। इस तरह से कई लोगों की राशि जमा होते हुए भी सही व्यक्ति को नहीं मिल पाती। इसलिए यह प्रावधान होना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति की एक निश्चित राशि कहीं जमा हो रही है, तो उसे स्टेटमेंट भेजकर व्यक्ति को इसकी जानकारी देते रहना चाहिए।
डेटा जनरेटर:-अाजकल जब हर कोई डीजिटल के साथ-साथ चल रहा है, तो हम यह मानकर चलें कि हम भी डेटा जनरेटर के साथ-साथ डेटा ट्रांसमीटर्स भी हैं। सोशल नेटवर्किंग हो या फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन हो या तीन-चार ई मेल एकाउंट हो, परंतु इस सब से जुड़े डेटा स्टोरेज को भी महत्व दिया जाए। जिनके डेटा स्टोरेज उड़ जाते हैं, उनके पास सर पकड़कर रोने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता। गूगल-याहू जैसे ज्वाइंट सर्च इंजन डेटा स्टोरेज जैसी सुविधाएं देते हैं। अापके कंप्यूटर में भी यदि आवश्यकता से अधिक डेटा हों, तो आप उसे गूगल या याहू के डेटा स्टोरेज पर डाल सकते हैं। डेस्कटॉप की बिक्री घटी:- स्मार्ट फोन, टेबलेट और लेपटॉप की मांग बढ़ने से डेस्कटॉप काे अब कोई पूछने वाला नहीं रह गया है। पहले जो घर पर डेस्कटॉप पर काम करते थे, वे अब लेपटॉप का इस्तेमाल करने लगे हैं। जिन्हें अपने काम से दिन भर घर से बाहर रहना हो, तो उनके लिए लेपटॉप से सुविधा रहती है। इसलिए लोग अब डेस्कटॉप का इस्तेमाल नहीं करते। इससे उसकी बिक्री प्रभावित होने लगी है। अब इसकी बिक्री में 10 प्रतिशत की कमी देखी गई है। एक साल पहले जो डेक्सटॉप का बाजार 25,117 करोड़ रुपप का था, वह घटकर 21,058 करोड़ रुपए हो गया है। डेक्सटॉप की बिक्री घटने से इसका असर स्मार्टफोन पर पड़ा है। स्मार्ट फोन की बिक्री 33 प्रतिशत बढ़ी है। टेबलेट की बिक्री भी 4 प्रतिशत बढ़ी है इंटरनेट की सुविधा ने पूरे देश को एक हथेली में बंद कर दिया है। स्मार्टफोन के कारण अब लाेग ई कामर्स, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, ऑनलाइन शेयरबाजार ट्रेडिंग आदि आसानी से कर रहे हैं। अब फोर जी ने इस सुविधा को और भी आसान कर दिया है। इसका इस्तेमाल करने वाले भी निश्चित रूप से बढ़ेंगे। तब यह होगा कि लोग डाउनलोडिंग की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी।
डॉ. महेश परिमल
आज का युग डीजिटल है। सब कुछ कंप्यूटर में कैद होने लगा है। कंप्यूटर का छोटा संस्करण मोबाइल के रूप में हमारी हथेली में है। मोबाइलधारकों की संख्या में दिनों-दिन इजाफा होता जा रहा है। अब बैंकों के कई काम भी इसी मोबाइल के माध्यम से होने लगे हैं। इसमें नेट बैंकिंग प्रमुख है। इन सुविधाओं के साथ कुछ समस्याएं भी सामने आ रही हैं। कुछ दिन पहले मेरे एक साथी का अचानक ही हृदयाघात से देहांत हो गया। अब उसके परिवार वाले इस बात को लेकर चिंतित है कि उनके सारे पासवर्ड कहां से लाएँ। िमत्र अपना अधिकांश कार्य कंप्यूटर के माध्यम से करते थे। इसमें नेट बैंकिंग प्रमुख था। अब उनके न रहने पर पासवर्ड परिवार के किसी सदस्य को नहीं मालूम। अब परिजनों को यह पता नहीं चल पा रहा है कि टैक्स, प्रीमियम, लोन आदि की जानकारी किस तरह से प्राप्त की जाए? इसलिए अब यह कहा जा रहा है कि यदि आप नेट बैंकिंग का इस्तेमाल कर रहे हैं, तो अपना पासवर्ड, वेबसाइट आदि की जानकारी एक डायरी में लिखकर रखें, ताकि उनके न रहने पर परिजनों को किसी तरह की परेशानी न हो।
आज के डीजिटल युग में एक नई समस्या उभरकर सामने आई है। इसमें इंटरनेट का इस्तेमाल करने वाले लोग शामिल है। सामान्य रूप से हम अपना पासवर्ड, यूजर्स नेम आदि गोपनीय रखते हैं। हमें शुरू से ही यही कहा गया है कि अपना पासवर्ड किसी को भी न बताया जाए। पत्नी को भी नहीं। यह गोपनीय है, इसकी गोपनीयता बनाए रखी जाए। ऐसी स्थिति में हमारा वह अपना अचानक ही हमारे बीच न रहे, तो फिर उनके बैंक एकाउंट से लेकर अन्य कई लेन-देन की जानकारी उनके साथ ही चली जाती है। ऐेसे में अब यह सलाह दी जाने लगी है कि अपना यूजर्स नेम,पासवर्ड आदि एक डायरी में अवश्य लिखकर रखेे। इसी तरह इंटरनेट पर भी किए जाने वाले कार्यों की जानकारी भी एक डायरी में लिखी होनी चाहिए। निजी बैंक तो अपने उपभोक्ता को हर महीने बैंक स्टेटमेंट भेजती हैं, पर सरकारी बैंकें ऐसा नहीं कर पाती। इसलिए परिवार वालों को यह पता ही नहीं होता कि घर के मुखिया का एकाउंट कहां-कहां है। उसमें कितनी राशि है। एकाउंट से किस तरह के बिलों का भुगतान हर महीने इंटरनेट बैंकिंग के तहत किया जाता है। हाल ही एक घटना हुई, जिसमें इंटरनेट पर पे-पाल में एक व्यक्ति ने खाता खुलवाया। उसमें विदेशी करेंसी ट्रांसफर हो सकती थी। पे-पाल में खाता खुलवाने वाला यदि चाहे, तो अपने अन्य किसी खाते में राशि ट्रांसफर कर सकता था। घर में किसी को इस संबंध में पता नहीं था। अचानक उस व्यक्ति की मौत हो गई। तब उसके परिजनों को बैंक से खाते का स्टेटमेंट मिला। पर पे-पाल से सभी अनजान थे। एक बार परिवार के एक सदस्य को बैंक स्टेटमेंट देखते हुए यह खयाल आया है कि पे-पाल से खाते में धनराशि जमा हुई है। पहले तो पे-पाल क्या है, यही पता नहीं था, जब पता चला कि पे-पाल से खाते में डॉलर जमा हुए हैं। तब पे-पाल के एकाउंट के संबंध में जांच हुई। पे-पाल पर 5-6 बार यूजर नेम और पासवर्ड के लिए प्रयास किया गया। इसे पे-पाल ने यही समझा कि कोई हेकर्स इस तरह का प्रयास कर रहा है। इससे एकाउंट अपने ही आप ब्लॉक हो गया। पे-पाल को ई मेल कर कई तरह की जानकारियां दी गई। पहले तो पे-पाल ने कोई जवाब नहीं दिया, पर जब इफर्मेशन टेक्नालॉजी एक्ट के माध्यम से नोटिस दिया गया और अपना ई मेल भेजा गया, तो पे-पाल से सहयोग करते हुए वन टाइम पासवर्ड भेजा, जिससे पता चला कि खाते में 1500 डॉलर हैं। अंतत: वह राशि अन्य खाते में ट्रांसफर कर दी गई।
यह दुर्भाग्य है कि कितने ही खाते न्यूनतम बेलेंस के साथ बरसों से बैंकों में पड़े रहते हैं। कितनी ही बैंकें हर 6 महीने में खातेदार को स्टेटमेंट भेजती हैं, पर सरकारी बैंकें ऐसा नहीं कर पाती। फलस्वरूप कई खातों में ब्याज की राशि जुड़ती चली जाती है और राशि दोगुनी भी हो जाती है। यही हाल आजकल पीएफ खाते का भी है। यदि आपने कहीं एक साल काम किया है, तो आपके खाते में कितनी राशि है, इसकी जानकारी पीएफ विभाग से नहीं मिलती। इस तरह से कई लोगों की राशि जमा होते हुए भी सही व्यक्ति को नहीं मिल पाती। इसलिए यह प्रावधान होना चाहिए कि यदि किसी व्यक्ति की एक निश्चित राशि कहीं जमा हो रही है, तो उसे स्टेटमेंट भेजकर व्यक्ति को इसकी जानकारी देते रहना चाहिए।
डेटा जनरेटर:-अाजकल जब हर कोई डीजिटल के साथ-साथ चल रहा है, तो हम यह मानकर चलें कि हम भी डेटा जनरेटर के साथ-साथ डेटा ट्रांसमीटर्स भी हैं। सोशल नेटवर्किंग हो या फाइनेंशियल ट्रांजेक्शन हो या तीन-चार ई मेल एकाउंट हो, परंतु इस सब से जुड़े डेटा स्टोरेज को भी महत्व दिया जाए। जिनके डेटा स्टोरेज उड़ जाते हैं, उनके पास सर पकड़कर रोने के सिवाय और कोई चारा नहीं होता। गूगल-याहू जैसे ज्वाइंट सर्च इंजन डेटा स्टोरेज जैसी सुविधाएं देते हैं। अापके कंप्यूटर में भी यदि आवश्यकता से अधिक डेटा हों, तो आप उसे गूगल या याहू के डेटा स्टोरेज पर डाल सकते हैं। डेस्कटॉप की बिक्री घटी:- स्मार्ट फोन, टेबलेट और लेपटॉप की मांग बढ़ने से डेस्कटॉप काे अब कोई पूछने वाला नहीं रह गया है। पहले जो घर पर डेस्कटॉप पर काम करते थे, वे अब लेपटॉप का इस्तेमाल करने लगे हैं। जिन्हें अपने काम से दिन भर घर से बाहर रहना हो, तो उनके लिए लेपटॉप से सुविधा रहती है। इसलिए लोग अब डेस्कटॉप का इस्तेमाल नहीं करते। इससे उसकी बिक्री प्रभावित होने लगी है। अब इसकी बिक्री में 10 प्रतिशत की कमी देखी गई है। एक साल पहले जो डेक्सटॉप का बाजार 25,117 करोड़ रुपप का था, वह घटकर 21,058 करोड़ रुपए हो गया है। डेक्सटॉप की बिक्री घटने से इसका असर स्मार्टफोन पर पड़ा है। स्मार्ट फोन की बिक्री 33 प्रतिशत बढ़ी है। टेबलेट की बिक्री भी 4 प्रतिशत बढ़ी है इंटरनेट की सुविधा ने पूरे देश को एक हथेली में बंद कर दिया है। स्मार्टफोन के कारण अब लाेग ई कामर्स, ऑनलाइन ट्रांजेक्शन, ऑनलाइन शेयरबाजार ट्रेडिंग आदि आसानी से कर रहे हैं। अब फोर जी ने इस सुविधा को और भी आसान कर दिया है। इसका इस्तेमाल करने वाले भी निश्चित रूप से बढ़ेंगे। तब यह होगा कि लोग डाउनलोडिंग की समस्या से मुक्ति मिल जाएगी।
डॉ. महेश परिमल
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