बुधवार, 28 नवंबर 2007

फैशन की दौड़ में मौत का साया

डॉ. महेश परिमल
आज का दौर फैशन का दौर है। चाहे युवक हो या युवती, किशोर-किशोरियाँ यहाँ तक कि बच्चे भी इस फैशन की चकाचौंध से खुद को अलग नहीं कर पाते हैं। विशेषकर हमारे युवाओं पर तो फैशन का बुखार ऐसा चढ़ा है कि वे इसके लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते हैं। युवतियों को लेकर हर युवक की पहली पसंद यही होती है कि उसकी गर्लफ्रेंड छरहरी हो, दुबली हो, मोटी तो कदापि न हो। युवक ही नहीं, बल्कि आजकल तो सभी की पसंद है छरहरी काया। यह बहुत कम लोग जानते हैं कि अपनी काया को छरहरी बनाए रखने के लिए युवतियों को कितनी मशक्कत करनी पड़ती हैं। इस मशक्कत में केट वॉक पर चलने वाली युवतियाँ मौत का शिकार हो रही हैं। इससे यह स्पष्ट है कि जो ऑंखों को अच्छा लगे, वही सुंदर नहीं है, बल्कि सुंदरता तो बाह्य वस्तु है, इसका शरीर सेकोई संबंध नहीं। लेकिन फैशन की दुनिया इसे सही नहीं मानती। हाल ही में दो माँडल्स की मौत ने इसे महत्वपूर्ण बना दिया है कि छरहरी काया ही सब कुछ होती है।
ब्यूटीपार्लरों पर हजारों रुपए खर्च करने वाले ये युवा अपने खान-पान पर इतनी कंजूसी करते हैं कि इनका भोजन का खर्च तो विटामिन की गोलियों, जूस, सूप और उबले भोजन में ही समा जाता है। उस पर भी कई फैशनपरस्त तो ऐसे भी होते हैं कि केवल कच्ची सब्जियों के सहारे ही जिंदा रहते हैं और अपने शरीर को हर तरह से फिट बनाए रखते हैं। फैशन की दुनिया में शरीर की सुडौलता एक आवश्यक शर्त है। प्रतिवर्ष आयोजित होने वाली फैशन प्रतिस्पर्धा में कई मॉडल्स हिस्सा लेते हैं और केवल 'केट वॉक' के लिए ही स्टेज पर आने के लिए उन्हें अनेक शर्तो से होकर गुजरना होता है। स्लीम एन्ड ट्रीम होना पहली शर्त होने के बाद क्रमश: आकर्षक व्यक्तित्व एवं बौध्दिक ज्ञान को महत्व दिया जाता है। किंतु यह शरीर की सुडौलता किस तरह जाननेवा साबित हो रही है, इस ओर कम ही ध्यान दिया जाता है। वे मॉडल्स जो इस प्रतिस्पर्धा में हैं, वे तो इस ओर ध्यान देते ही नहीं, किंतु उनकी देखादेखी उनके नक्शेकदम पर चलने वाले युवा भी इस ओर ध्यान नहीं देते। उन्हें तो केवल अपने गु्रप के बीच अपनी एक अलग छवि बनानी है और इसके लिए वे अपने सामर्थ्य के अनुसार सभी कुछ कर गुजरते हैं।
एक तरफ भारत में आगामी मार्च महीने में फैशन वीक को लेकर जोरशोर से तैयारियाँ हो रही है और दूसरी तरफ मॉडल्स की शारीरिक सुडौलता के संबंध में उपजा विवाद भी जोर पकड़ रहा है। कारण साफ है- पिछले दो-तीन महीनों में पतली, लंबी-छरहरी बाँस जैसी तीन मॉडल्स की मृत्यु। यह एक सच्चाई है कि मॉडल्स के शरीर पर एक ग्राम भी चर्बी बढ़ती है, तो इसे दर्शक या प्रायोजित कंपनियाँ बर्दाश्त नहीं कर पातीं। इसीलिए यह मॉडल्स अपने शरीर पर चर्बी की एक सतह भी जमने नहीं देते हैं। रेम्प पर चलते समय मॉडल के पतले हाथ-पैर और पतला शरीर ही लोगों के आकर्षण का केन्द्र होते हैं। इसीलिए फैशन उद्योग में छरहरी मॉडल्स को ही स्वीकार किया जाता है।
मॉडल यदि थोड़ी सी भी मोटी होती है, कि उसे कंपनी द्वारा 'रिजेक्ट' कर दिया जाता है। इसीलिए मॉडल अपनी शारीरिक सुडौलता का विशेष ध्यान रखती है और शरीर पर मोटापा नहीं आने देती। वर्षो से चली आ रही इस मान्यता या परिपाटी को स्पेन में आयोजित एक शो में तोडा गया। वहाँ सितम्बर में आयोजित एक फैशन शो में यह घोषणा की गई कि मॉडल पतली भले ही हो, किंतु वह तंदरुस्त होनी चाहिए। डायटिंग करके अपना वजन संतुलित करने वाली मॉडल्स के लिए यह एक प्रशंसनीय निर्णय था। लोगों ने भी इस बात को स्वीकार किया कि मॉडल्स तंदुरुस्त दिखनी चाहिए। सभी ने इस निर्णय का स्वागत किया। किंतु कड़े प्रतिस्पर्धात्मक दौर में किसी निर्णय का स्वागत करना अलग बात है और उसे गंभीरता पूर्वक अमल में लाना दूसरी बात है।
ब्राजील की मॉडल ऐना केरोलीना उम्र मात्र 21 वर्ष ही थी। 5 फीट 8 इंच लम्बी इस मॉडल का वजन मात्र 40 किलोग्राम था। वह नियमित रूप से डायटिंग करके अपने वजन को बढ़ने नहीं देती थी। नतीजा यह कि उसके शरीर के आंतरिक अंगों को आवश्यक मात्रा में पोषक तत्व नहीं मिल रहे थे, जिसके कारण अंतिम दिनों में उसके अंग सिकुड़ गए थे। ऐना केरोलीना की एकाएक मृत्यु होना मॉडलिंग की दुनिया में दूसरा केस है। इसके पहले उरुग्वे में फैशन वीक के दौरान 22 वर्षीय मॉडल लूसी रिमोस हार्ट अटैक के कारण मृत्यु को प्राप्त हुई थीं। वो केवल द्रव पदार्थों पर रहकर डायटिंग करती थी। अपने शरीर का वजन बढ़ने से रोकने के लिए उसने केवल द्रव पदार्थो पर ही रहना शुरू कर दिया था।
ऐना केरोलीना ने भी लूसी की राह पर चलना शुरू किया और अपने दुबलेपन को बनाए रखने के लिए उसने भी केवल टमाटर और सेब का जूस का सहारा लिया। उसके साथ रहने वाली एक 30 वर्षीय मॉडल का कहना है कि ऐना कुछ भी नहीं खाती थी। उसे हमेशा चर्बी बढ़ जाने का भय लगा रहता था। इसीलिए वह बहुत मुश्किल से केवल एक चम्मच ही खा पाती थी। ऐना केरोलीना का इलाज करने वाले डॉक्टरों का कहना है कि उसके शरीर में ऐसा कुछ भी नहीं बचा था कि जिसके कारण दवा का असर हो सके। उसके शरीर के अंदरूनी अवयव कम पानी और कम भोजन के कारण संकुचित हो गए थे। जिस वजह से वह 'ऐनोरेक्सी' नामक रोग से पीड़ित थी। ऐना ने तुर्क, मेक्सिको और जापान में भी अपने शो किए थे। पेरिस में वह एक फोटो सेशन में भाग लेने वाली थी, किंतु उसके पहले ही वह मृत्यु का ग्रास बन गई।
ऐना केरोलीना की माँ का कहना है कि मॉडलिंग के क्षेत्र में शरीर पतला रखने की जद्दोजहद करती युवतियों के लिए ऐना की मृत्यु एक सबक है। मॉडलिंग के क्षेत्र में पतली-छरहरी काया का मोह त्यागने की आवश्यकता है। क्योंकि ऐसी मॉडल्स मानसिक रूप से व्यथित रहती हैं। वे हमेशा भ्रम की स्थिति में जीती हैं और अपने शरीर की देखरेख करने के तनाव में ही हर क्षण जीते-जीते मरती हैं।
मॉडलिंग के क्षेत्र में अपनी पहचान कायम करने के लिए, अपने आपको स्थापित करने के लिए अपने शरीर की आहुति देने वाली ये दो मॉडल्स अभी भी सबक के रूप में लोगों के सामने नहीं आई हैं, क्योंकि फैशन की दुनिया में अभी भी पतली और रूई के फाहे जैसी नाजुक युवतियों को ही हरी झंडी दी जाती है। फैशन शो के कर्ताधर्ता बार-बार यही कहते हैं कि हम दुबली-पतली न सही लेकिन तंदुरुस्त मॉडल को स्वीकार भी लें, किंतु तंदुरुस्त का अर्थ 'मोटी' से हो तो भला उसे कैसे स्वीकार किया जा सकता है। यहाँ 'मोटी' से आशय अंशमात्र भरावदार शरीर से है, जिसे कंपनियाँ स्वीकार नहीं करती ।
फैशन उद्योग के लोगों का मानना है कि तंदुरुस्त दिखने वाली युवतियों में ग्लैमर कम दिखाई देता है। पतली मॉडल्स जैसा आकर्षण उनमें नहीं होता। फैशन ऐजेंसियों की इस मानसिकता को नहीं बदला जा सकता। दूसरी तरफ इस शो में भाग लेने वाली युवतियाँ भी इस ओर अपनी नकारात्मक सोच ही रखती हैं और तंदुरुस्ती को चरबी बढ़ने से तौलते हुए डायटिंग को ही सुडौेलता का एक मात्र उपाय मानती हैं।
शारीरिक सुंदरता एवं आकर्षण को लेकर वैचारिक मापदंड एवं मानसिकता को बदलना स्वयं मॉडल्स एवं आयोजकों के हाथ में है। फैशन शो में लाइट की चकाचौंध और तालियों की गड़गड़ाहट के बीच रेम्प पर चलने वाली मॉडल भले ही स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा लगे, किंतु परदे के पीछे अपने आपको स्पर्धा में टिकाए रखने के लिए उनका जीवन कितना कितना स्पर्धात्मक एवं लाचारगी भरा होता है, इस बात को वह स्वयं ही अच्छी तरह से समझ सकती है। स्पर्धा में टिके रहने के लिए वह भूखी रहती है और शरीर की सुडौलता बनाए रखती है। धीरे-धीरे यही सुडौलता उन्हें मौत की ओर ले जाती है और वे कुछ नहीं कर पातीं।
डॉ. महेश परिमल

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