मंगलवार, 20 नवंबर 2007

शब्द-यात्रा 3

डॉ. महेश परिमल

सीना और छाती
एक दिन समाचारपत्रों में पढ़ा कि 'अमुक मुद्दे पर केंद्रीय सरकार के विभिन्न दलों में मतैक्य होने के कारण मामले को सुलझाया न जा सका।' समझ में नहीं आता कि जब सभी दल किसी विषय पर एकमत हो गए हों, तो मामला क्यों नहीं सुलझा?
दरअसल 'मतैक्य' का अर्थ गलत लगाया गया है। मतैक्य का अर्थ होता है- मतों की समानता (दो या दो से अधिक व्यक्तियों का एक ही राय का होना) अधिकांश लोग मतैक्य का अर्थ मतों से भिन्नता मानते हैं। यह हमारी समझ का फेर है, इसलिए उपरोक्त त्रुटि हो गई।
इसी तरह एक शब्द है 'सामर्थ्य' जिसका अर्थ होता है- शक्ति, बल, क्षमता। अधिकांश लोग इसका प्रयोग स्त्रीलिंग के रूप में करते हुए 'मेरी सामर्थ्य' कहते और लिखते भी हैं, जो गलत है। वास्तव में यह शब्द पुल्लिंग है और इसका प्रयोग 'मेरा सामर्थ्य' या 'मेरे समार्थ्यनुसार' होना चाहिए।
अब आते हैं सीना और छाती शब्द की ओर। सभी इसका अर्थ जानते हैं, पर विशेषकर इन शब्दों के प्रयोग में चूक जाते हैं। चूँकि मुहावरों में उक्त शब्दों में भेद नहीं किया गया है। इसलिए सामान्य जीवन में भी लोग इसका खुलकर प्रयोग करते हैं, उक्त शब्दों को अँगरेजी में अलग-अलग माना है। 'चेस्ट' याने सीना और 'ब्रेस्ट' याने छाती।
पुरुषों के जिस भाग को 'सीना' कहते हैं, स्त्रियों के उसी भाग को 'छाती' कहते हैं। माँ अपने बच्चे को छाती से लगाकर दूध पिलाती है, सीने से लगाकर नहीं। रोता हुआ बच्चा अपने पिता के सीने से लग जाएगा, छाती से नहीं।
मुश्किल तब होती है, जब अखबारों एवं टी.वी. के समाचारों में दोनों शब्दों को एक मानकर प्रयोग किया जाता है। पुरुष भी किसी को ललकारते हुए कहते हैं- हम जो भी करेंगे, छाती ठोंककर करेंगे। दरअसल उस वक्त उनके दिमाग में मुहावरा 'छाती ठोककर' होता है। पुरुष अपने 'सीने' को 'छाती' कहें, तो स्थिति हास्यास्पद हो जाती है। यह तो अपनी-अपनी समझ है, पर कोई इसे समझकर भी न समझे, उसे क्या कहा जाए?


नंगा, नागा और नाग
नंगा, नागा और नाग ये तीनों शब्द अक्सर पढ़ने-सुनने में आते रहते हैं। दो वाक्य देखिए- 'भारत की पूर्वी सीमा पर नागाओं ने काफी ऊधम मचा रखा है'। दूसरा 'पहाड़ी नागाओं ने बड़ा ज़हर फैला दिया है'। इन दोनों वाक्यों में यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा है कि ऊधम मचाने वाले 'नागाओं' और ज़हर फैलाने वाले 'नागाओं' में क्या अंतर है? आइए इनका विष्लेषण करें :- 'नंगा' साधारण शब्द है, जो 'नग्न' से बना है। यही नंगा ही आगे चलकर 'नागा' हुआ।
भारत की पूर्वी सीमा पर रहने वाले आदिवासी पहले नंगे ही रहते थे, फिर इनमें 'नागा' जाति भी होने लगी। 'नंगा' का रूप परिवर्तन 'नागा' हुआ। सभ्यता के साथ-साथ पूर्वी सीमा पर रहने वाले आदिवासी 'नंगो' में जागरूकता आई और वे स्वयं को 'नागा' कहने लगे। साधु-संन्यासियों में एक वर्ग ऐसा भी है, जो कुंभ के मेले में एकदम नंगे होकर स्नान करता हैं, परंतु सदा वस्त्र पहनता है। इस विशेष प्रकार की 'नग्नता' के कारण्ा इन्हें भी साधारण शब्द 'नंगा' से नहीं 'नागा'से पहचानते हैं। प्रसिध्द 'नाग वंश' के नाम से इनका कोई सरोकार नहीं। सर्प वाचक 'नाग' से इस जाति का कोई संबंध नहीं है।
उपरोक्त वाक्य पहाड़ी नागों ने बड़ा ज़हर फैला रखा है, में जो 'नागों' है वह सर्पवाचक 'नाग' से सम्बद्ध है। अब जब पृथक 'नागालैण्ड' की माँग उठ रही है, तो वह 'नागा' जाति के लोगों की माँग है, सर्प वाचक 'नागों' की नहीं। यह ध्यान रखा जाए कि उपरोक्त शब्दों के एकवचन और बहुवचन में ही उसका अर्थ स्पष्ट हो जाता है। नाग और नागा, नागों और नागाओं। लेखन में यदि शुद्धता का ध्यान रखा जाए, तो इस गलती से बचा जा सकता है। बस संदर्भ का ध्यान रखा जाए, तो वाक्य अपने-आप ही स्पष्ट हो जाएगा।




आलाकमान
आजकल राजनीति से जुड़ा एक शब्द बार-बार सामने आ रहा है, वह है- 'आलाकमान'। अँगरेजी और अरबी शब्दों से बना यह एक शब्द देखा जाए तो स्त्रीलिंग है, पर आजकल यह पुल्लिंग के रूप में प्रयुक्त हो रहा है। आइए पहले इसका विश्लेषण करें- 'आला' याने सबसे अच्छा, सर्वश्रेष्ठ, उत्तम, बढ़िया, ताक, ताखा, पजावा आदि। 'कमान' यह शब्द अँगरेजी के 'कमाण्ड' से बना है, जिसका आशय है- आदेश, हुक्म, फौजी डयूटी, आदेश देने वाला उच्चाधिकारी। लेकिन फारसी में 'कमान' का अर्थ है- धनुष, धनु, धन्व, धन्वा, तीर, चलाने का यंत्र।
हिंदी में 'आलाकमान' अँगरेजी में 'हाइकमान' के स्थान पर प्रयुक्त किया जा रहा है। जैसे- 'आजाद हिंद फौज' की कमान नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने सँभाली थी। 'कमान' स्त्रीलिंग है। पहले 'आलाकमान' का प्रयोग स्त्रीलिंग में होता था, क्योंकि 'आलाकमान' भले ही 'आला' हो पर है तो 'कमान' ही। अत: वह पुल्लिंग कैसे हो सकती है?
देखा जाए तो इस 'आलाकमान' के पुल्लिंग के पीछे पुरुषों का अहम् है, क्योंकि उच्चता, श्रेष्ठता को पाने वाली 'आलाकमान' स्त्री कैसे हो सकती है? हमारे आसपास ही ऐसे कई शब्द हैं, जिसमें पुरुषों का अहम् झलकता है। वे किसी भी रूप में नारी से अपने को कम नहीं समझना चाहते। यही कारण है कि आज 'अध्यक्ष' शब्द अधिक चलता है, जबकि इसी का स्त्रीलिंग शब्द 'अध्यक्षा' बिलकुल भी नहीं चलता। अब आप ही बताएँ कि 'राष्ट्रपति' शब्द में पुरुषों का ही आधिपत्य है, इसका स्त्रीलिंग क्यों प्रचलित नहीं हो पाया। यही टकराता है पुरुषों का दंभ।

कार्रवाई और कार्यवाही
हमारे लेखन में 'कार्रवाई और कार्यवाही' अक्सर हमें भ्रम में डालते हैं। क्या दोनों शब्दों का आशय एक है? क्या एक ही शब्द की ये दोनों वर्तनियाँ है? दरअसल हिंदी आज भी अँगरेजी की छाया से मुक्त नहीं हो पाई है, या ये कहें कि हम ही अनजाने में अँगरेजी के भूत को पकड़े हुए हैं। तभी तो मौका पड़ने पर वह हमसे कुछ ऐसा कुछ करवा लेता है कि उसका वर्चस्व बरकरार रहे।
'कार्रवाई और कार्यवाही' ये दोनों अलग-अलग अर्थ देने वाले शब्द है। एक समय था, जब उक्त दोनों शब्दों का प्रयोग एक ही अर्थ में होता था। पिछले दो दशकों से दोनों शब्दों का प्रयोग अलग-अलग अर्थ में रूढ़ हो गया है। 'कार्रवाई' अँगरेजी के 'एक्षन' के लिए और 'कार्यवाही' किसी सभा या सम्मेलन की 'प्रोसीडिंग्स' के अर्थ में प्रयुक्त होना चाहिए।
जब किसी बैठक में हुए कार्य का विवरण लिखा जाता है, तो उस बैठक को 'कार्यवाही' कहते हैं और जब किसी भ्रष्ट कर्मचारी के खिलाफ कदम उठाया जाता है, तो उसे 'कार्रवाई' कहते हैं। विधानसभा की 'कार्यवाही' ठप्प हो गई क्योंकि अध्यक्ष ने अमुक मामले में दोषी पाए गए व्यक्तियों पर 'कार्रवाई' का आष्वासन नहीं दिया।
बृहत् हिंदी कोश में 'कार्यवाही' का आशय किसी सभा आदि में हुआ काम दिया गया है। इसके आगे इसकी अलग वर्तनी भी दी गई है, जो इस प्रकार है- 'काररवाई'। इसी तरह 'उर्दू-हिंदी शब्द कोश' में 'काररवाई' का अर्थ 'रूदाद, कार्यवाही, कार्य, काम' दिया गया है।
यदि आक्सफोर्ड प्रोग्रेसिव अँगरेजी-हिंदी कोश देखें तो उसमें 'एक्षन' का अर्थ है- गतिविधि, काम, क्रिया, व्यवहार, शक्ति या प्रभाव आदि को काम में लाना और 'प्रोसीडिंग्स' का आशय 'कार्रवाई' दिया गया है। अब जब हम दोनों शब्दों को अलग-अलग अर्थ में ले रहे हैं, तो 'कार्यवाही को कार्रवाई' क्यों लिखें? जब दोनों के अर्थ तय है, तो अपनी बुद्धि के अनुसार उसके अर्थ को दिमाग में बैठा लें, तो भविष्य में फिर प्रयोग के दौरान दोनों शब्दों का घालमेल नहीं होगा।


कोश, कोष और कोस
कोश, कोष और कोस, इन तीनों शब्दों को हम दैनिक जीवन में प्रयुक्त करते ही रहते हैं, पर इसका उच्चारण अलग-अलग होते हुए भी अधिकांश लोग एक जैसा उच्चारण करते हैं। आइए उक्त तीनों शब्दों की गहराई में चलें-
एक मुहावरा है- 'चार दिन चले अढ़ाई कोस' इसमें जो 'कोस' आया है, उसका आशय है 'दूरी की एक माप' जो लगभग दो मील के बराबर होती है। बातचीत में भी हम सरकारी योजनाओं को आम आदमी से 'कोसों' दूर बताते हैं। इसका आशय हुआ योजनाएँ बहुत दूर हैं।
अब आते हैं 'कोष' और 'कोश' पर। बृहत् हिंदी शब्दकोश में 'कोष' मिला तो सही, पर उसके आगे लिखा था, देखिए 'कोश' । इसका मतलब यह हुआ कि वर्तनी एक जैसी नहीं है, तो क्या हुआ अर्थ तो एक ही है। अब देखें 'कोष' किस तरह 'कोष' के करीब है और किस तरह से दूर है।
शब्दकोश में 'कोष' का आशय है- अंडा, गोलक (नेत्र कोष), पान पात्र, म्यान, धनागार, खजाना, सोना-चाँदी, संचित धन, शब्द कोष, लुगत, खोल, आवरण, रेशम का कोया, कटहल आदि का कोया, अंडकोश, कली, गुठली, पादुका (चप्पल) आदि है। इन अर्थो पर ध्यान दें, तो एक बात स्पष्ट होगी कि सभी अर्थ संचित वस्तु के आवरण की ओर अधिक झुके हुए हैं। अर्थात किसी वस्तु को सुरक्षित रखने के लिए प्रयुक्त किया गया आवरण्। अर्थात कोश का आशय हुआ सुरक्षा। उपरोक्त अर्थों में एक अर्थ है 'म्यान', अब यदि 'म्यान' को 'कोश' मान लें, तो उसमें रखी जाने वाली तलवार होगी 'कोष', 'कोश' में आकर 'कोष' सुरक्षित।
'कोष' में चूँकि 'ष है', इसलिए यह शब्द संस्कृतनिष्ठ है। 'कोष' अपने उच्चारण के कारण हिंदी से उच्चारण में भले ही लुप्तप्राय हो,, पर लेखन में यह 'कोष' के साथ मिलकर अलग अर्थ देने लगा है। अब ट्रेजरी को कोषालय तो कहेंगे, पर 'कोशालय' नहीं कहेंगे। समिति का 'कोषाध्यक्ष' होना गौरव की बात होगी, पर कोई भी 'कोशाध्यक्ष' नहीं बनना चाहेगा। दूसरी ओर तमाम 'शब्दकोशों' की सूची है, जो यह दर्शाती है कि 'कोश' में शब्द सम्पदा है और 'कोष' में धन सम्पदा।
लेखन में हम न तो कभी 'षेष' लिखते हैं और न ही 'षेश'। लेकिन शब्दकोश बताते हैं कि 'शश' का अर्थ है खरगोश और 'षष' का अर्थ छह। अब आप ही बताएँ 'श' और 'ष' के कारण 'कोश' और 'कोष' के बीच कितने 'कोस' की दूरी है?
डॉ. महेश परिमल

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