मित्र की चिट्ठी
मेरे मित्र की चिट्ठी आई
खुशियों का पैगाम लाई
लिखा है चिट्ठी में उसने
आती है याद तुम्हारी
भूल नहीं पाता मैं तो
भोली सी सूरत तुम्हारी
हंसता चेहरा जब भी देखा
सच हंसी तेरी याद आई।
तुमने लिखा नहीं पत्र
गुजर गया एक पूरा साल
जल्दी से अब चिट्ठी लिखना
और सुनाना अपना हाल
सपने में तुम आते हो
बन कर मेरे छोटे भाई।
इस वक्त तुम पढ़ते होगे
यह सोच कर पढ़ता हूँ
अब खेल रहे होगे तुम
यह सोच कर खेलता हूँ
परीक्षा के दिन आ गए
करना तुम भी बहुत पढ़ाई।
मम्मी-पापा भी अक्सर
तुम्हें याद करते हैं
खिले-खिले फूलों से अक्सर
तुम्हारी तुलना करते हैं
घर में आई जब मिठाई
पहले तेरी याद आई।
छुट्टियों में आऊँगा
एक दिन मैं तुमसे मिलने
रहना तुम बिल्कुल तैयार
चलेंगे सब यारों से मिलने
यारों से जाकर कह देना
मेंरे यार की चिट्ठी आई।
देशप्रेम
देशप्रेम की लहर चले
काश, कभी ऐसा हो जाए
हर सीने में देश की खातिर
प्रेम का सागर लहराए
बैर भाव भूल जाएँ अपने
दोस्ती का हाथ बढ़ाएँ
हम देश के, देश हमारा
देश का हम रूप सजाएँ
देश के कोने-कोने में
एकता के गीत गाएँ।
हर क्षेत्र में मिले सफलता
लक्ष्य से हम रहें न दूर
आगे बढ़ते जाएँगे हम
करेंगे मेहनत सदा भरपूर
देख प्रगति विश्व हमारी
दांतो तले ऊँगली दबाए।
शहीद हुए जो देश की खातिर
उनको सादर शिश नवाएँ
आओ हम सब मिलकर फिर
देशप्रेम का गीत दोहराएं
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
फहर-फहर फहराएँ
बाँट लें आपस में हम
एक-दूजे का सुख और दुख
कोई नहीं बड़ा किसी से
सबको दे दें उसका हक
सबके जीवन का हर पल
खुशियों से भर जाए।
देश की सेवा में अपना
तन-मन न्यौछावर हो जाए
मरना भी हो देश की खातिर
दे कर प्राण, देश बचाएँ
सबसे पहले देश बड़ा है
देशवासियों को ये समझाएँ।
तितली
कोमल पंखो वाली तितली
रंग-बिरंगी प्यारी तितली
इधर उड़े, फिर उधर उड़े
फूलों को ढूंढ रही तितली
फूल करे तितली से प्यार
तितली करे फूलों से प्यार
फूल बुलाएँ आजा तितली
आ जाए लहराती तितली
रंग-बिरंगे फूलोें के घर
रंग-बिरंगी आई तितली
फूलों का मीठा रस पीकर
कलियों से तो बोले ना
फूलों से बात करे तितली
फूलों का भी मन चाहे
और कहीं न जाए तितली
हमारे मीत
गुन-गुन करते भौंरे आए
रंग-बिरंगी तितली आई
फूलों ने फिर गाए गीत
आ गए हमारे मीत।
अपनी महक लुटाकर हम
मित्रों का स्वागत करते हैं
संस्कारों में है हमारे
नहीं भूले हम यह गीत
फूलों ने फिर गाए गीत
आ गए हमारे मीत।
तितली-भौंरे तो हमको
सदा अपनों से लगते हैं
नभ जाने धरती जाने
बहुत पुरानी हमारी प्रीत
फूलों ने फिर गाए गीत
आ गए हमारे मीत।
करो दोस्ती ऐसी भाई
याद करे सारी दुनिया
दोस्ती में होती नहीं
कभी हार कभी जीत
फूलों ने फिर गाए गीत
आ गए हमारे मीत।
हरीश परमार
शुक्रवार, 2 नवंबर 2007
हरीश परमार की बाल कविताएँ 2
लेबल:
बच्चों का कोना
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें