; डॉ. महेश परिमल
देश में एक के बाद एक धड़ाधड विस्फोट हो रहे हैं। कभी अजमेर शरीफ, कभी लुधियाना तो कभी घाटी में।विस्फोट अब देश का स्थायी भाव बन गया है। एक विस्फोट की स्याही सूखने भी नहीं पाती कि दूसरा विस्फोट देश की सुरक्षा पर एक और सवालिया निशान छोड़ जाता है। देश के नेता भले ही यह कहते रहे कि यह पड़ोसी मुल्क की चाल है, पर इतना तो समझ ही लेना चाहिए कि पड़ोसी मुल्क भी तब तक कुछ नहीं कर सकता, जब तक हमारे ही लोगों की शह उसे न मिले। पेड़ कितना भी शोर क्यों न मचा लें कि वे अब कुल्हाड़ी का अत्याचार नहीं सहेंगे, चाहे कुछ भी हो जाए हम अवश्य विरोध करेंगे। पर वे पेड़ यह भूल जाते हैं कि कुल्हाड़ी पर लगा बेत आखिर लकड़ी का ही है, पेड़ का एक अंश है। तब भला कैसे हो सकता है विरोध? यदि बेत ही विरोध करना सीख जाए, तो यही पहला कदम होगा अत्याचार के विरुध्द। पर क्या ऐसा संभव है? जब हम अपने ही घर में छिपे हुए गद्दारों को नहीं सँभाल पा रहे हैं, तो फिर विदेशी गद्दारों से कैसे निबट पाएँगे?
हाल ही में भारत की गुप्तचर संस्था ''रॉ'' के विषय में मेजर जनरल वी. के. सिन्हा ने अपनी किताब में जो रहस्योद्धाटन किया है, वह एक-एक भारतीय को शर्मसार करने के लिए काफी है। जब देश की गुप्तचर एजेंसियों का यह हाल है, तो फिर सामान्य स्थिति में किस सुरक्षा की बात की जा सकती है? किताब में जो विस्फोटक जानकारी दी गई है, वह कुछ इस प्रकार है :-7 मार्च 2006 को वाराणसी में हुए बम विस्फोट में 20 लोग मारे गए, 11जुलाई 2006 को मुम्बई की लोकल ट्रेनों में रखे गए बम धमाकों से 186 लोग मारे गए, इसमें सम्पत्ति का नुकसान हुआ, सो अलग, 8 सितम्बर 2006 महाराश्ट्र के मालेगाँव में हुए बम विस्फोट में 28 लोग मौत के शिकार हुए, 18 मई 2007 को हैदराबाद की मक्का मस्जिद में हुए विस्फोट में 13 लोग हताहत हुए, उसके बाद फिर वहीं हैदराबाद में ही 25 अगस्त को ही हुए भयानक विस्फोट में 40 निर्दोशों ने अपनी जान गवाई। इसके बाद अभी हाल ही में लुधियाना के एक छबिगृह में हुए विस्फोट में 6 और अजमेर शरीफ की दरगाह में 12 लोग मारे गए।
इन मामलों में देश की तमाम गुप्तचर एजेंसियाँ केवल हवा में सुबूत खोज रही हैं। दूसरी ओर एक जानकारी के अनुसार देश की चीफ कंट्रोलर ऑफ एक्सप्लोजिव्स याने विस्फोटक पदार्थों के नियामक का मानना है कि इन विस्फोटों को हमारे देश में ही बनाया गया है। वरिष्ठ नियामक द्वारा दिए गए ऑंकड़े एक आम आदमी को कँपकँपा देने वाले हैं। 2004 से लेकर 2006 के बीच 86 हजार 899 डिटोनेटर्स, 20 हजार 150 किलोग्राम विस्फोटक, 52 हजार 740 मीटर डिटोनेटिंग फ्यूज और 419 किलो जिलेटीन स्टीक की चोरी हो चुकी है। इतनी सामग्री से तो देश के कई महानगरों में भयानक विस्फोट हो सकते हैं। चोरी हुई ये सामग्री कहाँ किसे मिली और उसका क्या हुआ, इसकी जानकारी किसी को नहीं है। इस तरह की खबरें इस देश पर आसन्न संकट को स्पष्ट करती हैं।
देश में विस्फोटकों के 21 हजार लायसेंसधारी उत्पादक हैं। पहाड़ों पर रास्ता बनाने के लिए, पुल या सड़क बनाने के लिए या फिर खदानों में विस्फोट करने के लिए विस्फोटकों की आवश्यकता होती है। इसके लिए अमोनियम नाइट्रेट और पोटेशियम क्लोरेट जेसे रसायनों की जरूरत पड़ती है। ये रसायन खाद बनाने में और कोयले की खदानों में खूब उपयोगी हैं।आश्चर्य इस बात का है कि ये रसायन आसानी से बाजार में मिल जाते हैं। खुले आम बिकने वाले इन रसायनों की बिक्री में किसी प्रकार का प्रतिबंध नहीं है। अमोनियम नाइट्रेट को फ्यूल आइल के साथ एक निश्चित मात्रा में मिलाया जाए एक विनाशकारी बम बन सकता है। चिंता का कारण यह है कि इतने विशाल पैमाने पर विस्फोटकों की चोरी हुई और हमारे गृह सचिव और रक्षा सचिव से बार-बार लिखित रूप से ध्यान में लाया गया, फिर भी विस्फोटकों की चोरी रुकी नहीं। यह भी संयोग है कि आतंकवादी हमले भी भी रुक नहीं रहे हैं। राष्टीय सुरक्षा सलाहकार एम. के दृ नारायणन और देश के गृह मंत्री शिवराज पाटिल बार-बार कह रहे हैं कि त्योहारों के इस मौसम में कभी भी कहीं भी विस्फोट हो सकते हैं, उसके बाद भी विस्फोटकों की चोरी के खिलाफ किसी प्रकार के कड़े कदम नहीं उठाए जा रहे हैं।
13 अप्रैल 2007 को केंद्र के गृहसचिव मधुकर गुप्ता ने इसे स्वीकार करते हुए कहा कि चोरी हुए विस्फोटकों को नक्सलग्रस्त क्षेत्रों में इस्तेमाल में लाया जा रहा है, यह चिंताजनक है। पर क्या उनके चिंता करने से समस्या का समाधान हो जाएगा? ये चोरी बिना किसी मिलीभगत से हो ही नहीं सकती। पहले उन गद्दारों का पता लगाया जाए, जिन्होंने इस चोरी में गद्दारों का साथ दिया है। वे भी कम गद्दार नहीं हैं। हाल ही में भगवान राम के खिलाफ न जाने क्या-क्या विश उगलने वाले करुणानिधि के ही तमिलनाड़ु में ही एक विस्फोटक उत्पादक के यहाँ से पिछले दो वर्शों में 51 हजार मीटर डिटोनेटर फ्यूज की चोरी हुई, उसी तरह श्रीलंका के नौकादल ने सागर के मध्य में एक भारतीय जहाज से 61 हजार डिटोनेटर बरामद किया था। इस पर किसी अरब कंपनी का लेबल था, परन्तु ये सभी डिटोनेटर्स हैदराबाद की एक कंपनी ने ही बनाया था।
ठससे यह स्पष्ट हो गया है कि पड़ोसी देश ने हमारे देश के न जाने कितने धनलोलुप लोगों को खरीद लिया है। इन्हीं गद्दारों की मदद से ही देश के विभिन्न स्थानों में बनने वाले विस्फोटकों की चोरी हो रही है। यही विस्फोटक ही आतंकवाद और नक्सलवाद से जुड़े लोगों को काम आ रहा है।भारत में होने वाले तमाम आतंकवादी हमले में इन्हीं विस्फोटकों का प्रयोग हो रहा है। विस्फोटकों का उत्पादन करने वाले राज्य हैं :-गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, उड़ीसा, तमिलनाड़ु, झारखंड और महा ऱाष्ट्र। इन सभी स्थानों से बड़े पैमाने पर विस्फोटकों की चोरी हो रही है। निश्चित है इसमें स्थानीय नागरिकों की मिलीभगत होगी। तो फिर सरकार इन्हें क्यों नहीं पकड़ती?
इन स्थानों से विस्फोटकों की चोरी पिछले दो-तीन वर्षॊं से लगातार जारी है। यदि इसके मूल में जाएँ, तो स्पश्ट हो जाएगा कि इसमें राज्यों के कई नेताओं की भी मिलीभगत है।केंद्र और राज्यों के बीच लगातार पत्र-व्यवहार जारी रहने के ेबाद भी यदि विस्फोटकों की चोरी हो रही है, तो इसका आशय यही है कि देश के आम आदमी और देश की विपुल संपदा की चिंता न तो केंद्र सरकार को है और न ही राज्य सरकार को। सब कुछ रामभरोसे चल रहा है।
; डॉ. महेश परिमल
बुधवार, 26 दिसंबर 2007
घर को लगी है आग घर के चिरागों से
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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विस्फोटों पर मुंहजुबानी दुबला होने की क्या जरूरत है? पूरे सिस्टम का स्वाद पहचानिए, सारी पोल-पट्टी पता चल जाएगी और लगे हाथ यह भी मालूम हो जाएगा कि उन्होंने किसके लिए बमों, मिसाइलों, फौजों, जासूसों, लोकतंत्र के जोकरों का जमावड़ा कर रखा है। कोई सिस्टम हो या व्यक्ति, जब वह आदमी और उसकी दुनिया के बारे में सोचना बंद कर देता है तो विचार-व्यवहार दोनों ही स्तरों पर अपनी गलत शुरुआत कर लेता है। बारूद तो दोनों तरफ से जमा है, मर रहा है आदमी।
जवाब देंहटाएंपिछले दिनों ही छत्तीसगढ में एक विष्फोटक पदार्थों का दलाल पकडाया था एवं एक स्थान से भारी मात्रा में अवैध विष्फोटक बरामद हुआ था तब छ.ग. के डीजीपी एवं रा के पूर्व उपप्रमुख नें कहा था कि वैध विष्फोटकों के प्रत्यक्ष निरीक्षण व नियंत्रण का अधिकार प्रशासनिक अधिकारियों के पास होने के कारण पुलिस कई बार बेबस हो जाती है और इसी के कारण वैध के धंधे में अवैध फलता फूलता है जिससे हजारों की जिंदगी होम होती है ।
जवाब देंहटाएंक्या है छ.ग.के पुलिस प्रमुख का पत्र