डॉ.महेश परिमल
आजकल टी.वी. पर एक विज्ञापन देखने को मिलता है - ''संडे हो या मंडे, रोज़ खाएँ अंडे.'' इससे प्रभावित होकर हम बच्चों को ठंड में अंडे खिलना शुरू करते हैं. हमने भी इसके पहले नहीं खाया, पर बच्चों के साथ खा लेते हैं. यह सोचकर कि हमने इन अंडो के माध्यम से बहुत से प्रोटींस प्राप्त कर लिए. अब हमारा और बच्चों का स्वास्थ्य ठीक रहेगा. इसके बाद फिर हम सभी रोज़ अंडों का सेवन करना शुरू कर देते हैं.
अगर आपसे यह कहा जाए कि अंडा एक धीमा ज़हर है, जो शरीर में पहुँचकर धीरे-धीरे असाध्य और गंभीर रोगों को जन्म देता है. अंडे से खाज, खुजली, एग्ज़िमा, चर्म रोग, दमा, पीलिया, वात, पथरी, रक्त चाप, हृदय रोग, लकवा, ऑंतो का सड़ना, कैंसर आदि बीमारियों को आमंत्रण मिलता है. आजकल वेजीटेरियन, नॉन-वेजीटेरियन के बाद एक और शब्द सुनने को मिल रहा है, वह है 'एगीटेरियन'. ऐसे लोग मांस-मछली तो नहीं खाते, पर अंडे खाते हैं. इस देश में आज़ादी के बाद ऐसे 'एगीटेरियनों' की बेतहाशा वृद्धि हुई है. भारत के डॉ.गोविंद राजन ने अपनी खोज द्वारा निष्कर्ष निकाला है कि अंडे में उपस्थित नाइट्रोजन, फास्फोरिक एसिड और फैट शरीर में पहुँचकर अम्ल की मात्रा को बढ़ाते हैं, जिससे अम्ल और अम्ल-पित्ता की शिकायत हो जाती है. मुम्बई के डॉ.बसंत देसाई का कहना है कि स्वास्थ्य की दृष्टि से अंडे का सेवन करना मात्रा पाँच प्रतिशत ही फ़ायदेमंद है. दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के न्यूरोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ.दीपकचंद जैन का कहना है कि अंडे खाने वालों को बड़ी ऑंत का कैंसर होने का खतरा अधिक है, क्योंकि अंडे में रेशे नहीं होते. रेशे पेट की सफाई में अत्यन्त आवश्यक है. इसी कारण मांसाहारियों को कब्ज़ और पेट की अन्य बीमारियों की शिकायत अधिक रहती है. मुम्बई की एक संस्था 'हाफकीन इंस्टीटयूट' ने लोगों को सचेत किया है कि बच्चों की जठराग्नि कोमल व कमज़ोर होने की वजह से बच्चों को अंडे तथा अंडे से निर्मित खाद्य पदार्थ बिलकुल नहीं देना चाहिए.
इंडियन कौसिंल और एग्रीकल्चर रिसर्च ने एक चौंका देने वाला तथ्य सामने लाया है. अपनी खोज में इसने पाया कि अंडे में डी.डी.टी. की मात्रा पाई जाती है. यह एक विषाक्त रसायन है. फलोरिया (अमेरिया) के कृषि विभाग ने भी अपने शोध में इसी तरह की बात कही है. उनकी प्रकाशित रिपोर्ट में बताया गया है कि अंडे में डी.डी.टी. की मात्रा पाई जाती है, जो शरीर के लिए बहुत हानिकारक है. प्रश्न स्वाभाविक है कि अंडे में डी.डी.टी. कैसे पहुँचा? आप सभी जानते हैं कि पोल्ट्री फार्म वाले मुर्गियों को महामारी से बचाने के लिए फार्म में डी.डी.टी. का छिडकाव करते हैं. वही डी.डी.टी. मुर्गियों के माध्यम से उनके पेट के भीतर अंडे तक पहुँच रहा है.
इंग्लैंड के डॉ. आर. जे. विलियम का कहना है कि अंडे खाने वाले पहले तो अधिक चुस्त एवं स्वस्थ महसूस करते हैं, लेकिन वे इस बात से अनजान रहते हैं कि वे निकट भविष्य में हृदय रोग, एग्ज़िमा, लकवा जैसी भयंकर बीमारी से ग्रस्त होने वाले हैं, इंग्लैंड के ही डॉ. राबर्ट ग्रास व प्रोफेसर ओकाडा डेनीसन इनविंग का दावा है कि अंडे के सेवन से पेचिश व मंदाग्नि नामक बीमारी होती है. आमाशय कमज़ारे पड़ जाता है, ऑंते सड़ने लग जाती हैं. कैलिफोर्निया की डॉ.कैथराइन निम्नो ने अपने प्रयोगों से यह सिध्द कर दिखाया है कि अंडे में कोलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने के कारण दिल की बीमारी, रक्तचार, पथरी गुर्दे की बीमारी आदि को जन्म देती है.
यही नहीं इंग्लैंड के डॉ. जे. एम. वल्कज का मानना है कि अंडे की ज़र्दी (पीला वाला भाग) में कोलेस्ट्रॉल बहुत होने के कारण वह गुर्दे में जम जाता है. जिससे चमड़ियों में कड़ापन आ जाता है. डॉ.जे.आर.मैकडॉनल के अनुसार अंडा पेट में पहुँचकर 'कामनवकीली' नामक कीटाणुओं को विषैला कर देता है, जिसके कारण शरीर में अनेक रोग जन्म लेते हैं. लोग ठंड में अंडे का सेवन अधिक करते हैं. पर वे नहीं जानते कि अंडे में कफ पैदा करने की शक्ति सबसे अधिक होती है, फलस्वरूप लोग ठंड के मौसम में ही स्वाँसरोग, जुक़ाम आदि से पीड़ित हो जाते हैं.
क्या आप जानते हैं अंडे में कार्वोहाइड्रेट बिलकुल नहीं होता, इसके अलावा कैल्शियम की मात्रा भी बहुत कम होती है. यही कारण है ऑंतों में सड़न का. अमेरिका के डॉ.ई.बी.एमारी तथा इंग्लैंड के डॉ. इन्हा ने अपनी पुस्तक ''पोषण का नवीनतम ज्ञान'' तथा ''रोगियो की प्रकृति'' में बताया है कि अंडा मनुष्य के लिए धीमा ज़हर है. अमेरिका मेडिकल एसोसिएशन ने कहा है कि अंडे में पाई जाने वाली ''सालमानेल्ला बैक्टेरिया'' से काफी अधिक मात्रा में ''फूड पायज़निंग'' की शिकायत होती है. सालेमानेल्ला बैक्टीरिया पेचिश, दस्त, उल्टी, गैस्ट्रो जैसी जानलेवा बीमारियों को जन्म देता है.
हमारा पेट पेट है, कोई मुर्दो का श्मशान नहीं. ज़ब प्रकृति ने हमारे सामने कई तरह के मौसमी फल दिए हैं, जो न केवल रसीले हें बल्कि सुगंधित और पौष्टिक भी हैं, फिर भी मनुष्य पाश्चात्य की दौड़ में कहाँ भागा जा रहा है। ज़रा अंडे की उत्पत्ति के बारे में सोचें, उसका विकास उन पदार्थो के मेल से होता है, जो बड़े गंदे और घृणित माद्दे के मेल से होता है, इन पदार्थों को छूना भी स्वास्थ्य को बिगाड़ने के लिए पर्याप्त है. तो इनसे बुरी और क्या वस्तु हो सकती है. मनुष्य अपना सुंदर स्वास्थ्य विभिन्न फलों, मेवों, शाकों से प्राप्त कर सकता है, इन्हीं से जीभ के स्वाद की भी पूर्ति हो सकती है. फिर क्यों भागा जा रहा है यह मनुष्य अपने पेट को मुर्दों का श्मशान बनाने के लिए . आप बताएँगे ?
डॉ.महेश परिमल
बुधवार, 5 दिसंबर 2007
सबको मालूम नहीं है अंडे की हकीकत लेकिन
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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