डॉ. महेश परिमल
गुड़गाँव में कक्षा आठ में पढ़ने वाले दो किषोरों ने अपने एक साथी को गोली से उड़ा दिया। इस सनसनाती घटना से सभी के मनो मस्तिश्क में एक सवाल खड़ा कर दिया है कि मासूम हत्यारे कैसे बन जाते हैं? मासूमों का हत्यारा बनना आज समाज में आ रही विकृतियों का एक नमूना है। जीवन मूल्यों का गिरना लगातार जारी है। आष्चर्य इस बात का है कि जब षेयर के मूल्य गिरते हैं, तो पूरा देष चिंतित हो जाता है। महँगाई बढ़ने लगती है, पर जीवन मूल्य गिरते हैं, तो कोई भी समाजषास्त्री इस पर चिंता नहीं करता, यदि करता भी है, तो उसकी चिंता पर कोई ध्यान नहीं देता। घर में ही संस्कार के रूप में बच्चों को क्या मिल रहा है, यदि इस दिषा में थोड़ा सा सोच लिया जाए, तो मासूमों को हत्यारा बनाने वाले कारक हमारे सामने होंगे। पर हमें इस पर चिंता की आवष्यकता इसलिए नहीं है क्योंकि हमारे पास यह सोचने का वक्त ही नहीं है। हम अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ कमाना चाहते हैं, ताकि उनकी पीढ़ी सुखी रहे। आज हमारे पास भले ही बच्चों को देने के लिए समय नही है, पर उनके भविश्य की चिंता हम अभी से कर रहे हैं, उन्हें समय न देकर। ठीक है आज आपके पास उनके लिए समय नहीं है, तो कल उनके पास भी आपके लिए समय नहीं होगा।
क्या आठ साल का मासूम एक से अधिक हत्याएँ कर सकता है।यह बात मानने लायक नहीं है।पर यह सच है।आज जहाँ चारों ओर हिंसा का साम्राज्य है, दूसरी ओर आकाषीय मार्ग से होने वाली ज्ञान वर्शा के कारण बच्चे समय से पहले ही समझदार होने लगे हैं, इस स्थिति में कोई एकदम निरापद रह सकता है, यह कल्पना करना मुष्किल है।विदेषों में तो आजकल बच्चों का गुस्सा देखने लायक होता है।वे अब स्कूलों में पिस्तौल लेकर जाने लगे हैं, थोड़ा सा भी गुस्सा आया कि वे चला देते हैं दनादन गोलियाँ।बाद में पता चलता है कि नाराजगी की कोई बात ही नहीं थी, यदि थी भी तो बहुत छोटी थी।उसका यह अंजाम होगा किसी ने नहीं सोचा।
तीन महीने पहले ही बिहार में एक आठ साल के मासूम ने एक बच्ची की हत्यार कर दी थी।हम िमासूम की बात कर रहे हैं, वह किसी षहर का नहीं, बल्कि बिहार के बेगूसराय जिले के भगवानपुर गाँव का है, नाम है उसका अमरदीप सदा।मात्र आठ वर्श की उम्र, इस उम्र में बच्चा क्या सीख पाता है, वह भी ठेठ गाँव का बच्चा।लेकिन उसने बिना कुछ सीखे ही बता दिया कि हत्या करने में उसे मजा आता है। उसने अभी तक तीन खून किए हैं।खुद की सगी बहन, चाचा की लड़की और मामा की लड़की की हत्या ठंडे कलेजे से कर दी।जब पुलिस ने इन हत्याओं के बारे में उससे पूछा तो जवाब में वह हँसते हुए कहता है कि मुझे मजा आ रहा था। इसलिए मार डाला।उस मासूम को अपने किए पर जरा भी पछतावा नहीं है।हर सवाल के जवाब में वह हँसता ही है।
आष्चर्य इस बात का है कि अमरदीप के खानदान में आजतक कोई ऐसा नहीं हुआ है, जिसने इस तरह का अपराध किया हो।जब परिवार में ऐसी कोई बात नहीं है, तो फिर आक्रामक और हिंसक होने के बीज उसे कहाँ से मिले? इसके अलावा उस गाँव में भी ऐसी कोई बात नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि समाज ही ऐसा है।इसका कारण खोजने के लिए हम काफी दूर जा रहे हैं, वास्तव में ऐसा नहीं है, कारण बहुत ही करीब है।यही कारण्ा आज सभ्रांत परिवारों में भी नजर आ रहा है, वही कारण उस गरीब परिवार में भी नजर आया। षहरों में अक्सर ऐसा होता है कि माता-पिता जब दोनों ही नौकरी पर जाते हैं, तो घर में अकेला रहने वाला मासूम किसी अनजाने मोह में फँस जाता है।यह मोह अपनी गर्ल फ्रेण्ड या बॉय फ्रेण्ड को लेकर हो सकता है, उससे जरा सा भी कहीं कुछ विचारों की पटरी नहीं बैठी, तो दिमाग का पारा सातवें आसमान पर पहुँच जाता है।इसका अंजाम भी बुरा ही होता है।
गाँव के इस मासूम के साथ ऐसी कोई बात नहीं थी।बात यह हुई कि जब उस मासूम ने पहली बार हत्या की, तो उसके पालकों ने इस घटना को गंभीरता से नहीं लिया।वे इस बात को जानते हुए भी दबाना चाहते थे, पर जब उस बच्चे ने पड़ोसी की बच्ची को मार डाला, तब इस बात को नहीं छिपाया जा सका और गाँव वालों ने भगवानपुर पुलिस स्टेषन पर इसकी षिकायत की।बात तब सामने आई। पुलिस स्टेषन में जब उस बच्चे से पूछा कि उसने हत्या कैसे की, तब उसने हँसते हुए बताया कि एक मासूम खुष्बू का तो पहले उसने गला दबा दिया। इसके बाद भी संतोश नहीं मिला, तो उसने उसके माथे पर पत्थरों से चोट की, फिर एक निर्जन स्थान पर जाकर उसे गाड़ दिया। इसके बाद जब खुष्बू को खोज षुरू हुई, तो इसी अमरदीप ने सबको उस स्थान तक पहुँचाया, जहाँ उसे गाड़ा गया था, मानो उसने कोई बहुत ही बड़ा काम किया हो।
इस संबंध में मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस मासूम की प्रवृत्ति पर पीड़ा में आनंद लेने की है। ऍंगरेजी में इसे 'सेडिस्ट' कहते हैं। इस उम्र में बच्चा स्वप्रेरित होकर ऐसा कुछ कर सकता है, इसकी कल्पना ही नहीं की जा सकती।यदि वह बालक षहर में रहता और वहाँ की संस्कृति से परिचित होता, तो यह समझा जा सकता था कि ऐसा संभव है। पर वह गाँव का है, जहाँ ऐसा कोई संसाधन नहीं है, जिससे वह प्रेरणा ले सके।बात एक बार फिर पालकों के गलत रवैए की ओर चली जाती है। जब बच्चे ने पहली बार हत्या की, तो उसके पालकों ने इसे दबाए क्यों रखा? फिर जब उसने अपनी गलती दोहराई, तब भी उसे न तो डाँटा, न पीटा और न ही नाराजगी दिखाई। इससे उसकी हिम्मत बढ़ गई। उसके अचेतन में यह बात पैठ गई कि इस प्रकार की गलती यदि बार-बार दोहराई जाए, तो कोई बुरा नहीं है।इससे उसकी हिम्मत बढ़ी और उसने एक बार फिर हत्या की।
अब जरा उस स्थिति पर ध्यान दें। हिंसा का ककहरा बच्चा कहाँ से सीखता है? घर के टीवी से, अखबारों से और समाज में होने वाली तमाम हिंसक घटनाओं से। इन सबका बच्चों के अचेतन पर गहरा प्रभाव पड़ता है।हिंसा आज समाज का एक आवष्यक अंग बनकर रह गई है। अब तो सास-बहू के धारावाहिक में भी हिंसा आवष्यक हो गई है। उसके बिना तो धारावाहिक में महिलाओं को भी मजा नहीं आता।कभी बच्चे के जन्म दिन पर मिलने वाले उपहारों पर ध्यान दिया है।बंदूक, गन, पिस्तौल, हिंसा वाले खेल की सीडी, कंप्यूटर गेम, जिसमें गोलियाँ अनलिमिटेड होती हैं, बस अपराधियों को मारते जाना है।इन खेलों के नियम-कायदों को बच्चे आसानी से जान जाते हैं।कभी ध्यान दिया कि बच्चे इतनी आसानी से ये सब कैसे कर लेते हैं? हम सोचते हैं कि नई उमर की हवा से कोई बेअसर नहीं रह सकता। यह आज की जरूरत है। पर क्या यह सोचा, पहले जब समय की जरूरत थी, तो आपने यह सब क्यों नहीं सीखा? जो हम सीख नहीं पाए, उसे हम बच्चों के माध्यम से सीखना चाहते हैं। पर बच्चे से आप क्या सीख रहे हैं, इस पर कभी गंभीरता से विचार किया? कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जो हमने सीखा उसे हमें बच्चे को सिखाते हैं।यह मैेंने तब जाना, जब एक पिता को अपने 6 वर्श के बच्चे को टीवी पर वार गेम सिखाते देखा।आज समाज में हिंसा का जो अतिरेक हमें दिखाई दे रहा है उसके मूल में जाएँ, तो सब स्पश्ट हो जाएगा।फिर वह चाहे स्कूल में बच्चे द्वारा की गई हिंसा हो, या फिर अपनी ही सहपाठी के साथ बलात्कार। हमें इसके मूल में जाना ही होगा, तभी हम कुछ समझ सकते हैं।
अब स्थिति यह है कि अमरदीप के अपने कोई भाई-बहन नहीं है। मारपीट के डर से उसके मजदूर माता-पिता गाँव छोड़कर चले गए हैं।अब उस मासूम का भविश्य पुिलिस और उसके समाज के हाथों में है। उसका क्या होगा, यह कोई नहीं जानता, पर यह सब जानते हैं कि अपने बच्चों की हरकतों पर यदि समय रहते ध्यान नहीं दिया गया, तो बच्चे के साथ-साथ माता-पिता का भविश्य खतरे में है।
डॉ. महेश परिमल
बुधवार, 12 दिसंबर 2007
मासूम कैसे बन जाते हैं हत्यारे
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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