डा. महेश परिमल
हमारी पवित्र नदी गंगा नदी. भगीरथ के प्रयासों से पृथ्वी पर लाई जाने वाली गंगा नदी, मोक्षदायिनी गंगा नदी, जीवनदायिनी गंगा नदी, कष्टहरणी गंगा नदी आज विश्व की सबसे प्रदूषित नदी हो गई है. शायद किसी को विश्वास नहीं होगा कि भारत देश की पहचान गंगा नदी के पानी में आज ऑक्सीजन की मात्रा दिनों-दिन कम होती जा रही है. लेकिन अब तक न तो कानपुर के चर्म उद्योग का विषैला पानी का आना रुका, न ही लाशों को बहाने का काम रुका और न ही आसपास के कारखानों का रसायनयुक्त पानी का आना रुका, इन्हीं कारणों से आज गंगा नदी बुरी तरह से प्रदूषित हो गई है. भगीरथ ने इस गंगा नदी को पृथ्वी पर लाने के लिए जितनी तपस्या की थी, उससे कहीं अधिक प्रयास हमारी भावी पीढ़ी को उसकी पवित्रता को वापस लाने के लिए करना होगा, इसकी भी केवल संभावना ही है. क्योंकि अब गंगा नदी को किसी भी रूप में पवित्र नहीं किया जा सकता.
शास्त्रों में जिसे अत्यंत पवित्र और शुध्द कहा है, उसी गंगा नदी के जल में ऑक्सीजन की मात्रा तेजी से घट रही है. फलस्वरूप गंगा नदी की जल सृष्टि के लिए बड़ा खतरा उत्पन्न हो गया है. वैज्ञानिकों की दृष्टि में पानी में रहने वाले जलचर प्राणियों के लिए पानी में घुली हुई ऑक्सीजन आवश्यक होती है, उनके अनुसार पानी में घुलने वाली ऑक्सीजन का प्रमाण प्रति लीटर कम से कम पाँच मिलीग्राम होना चाहिए, परंतु गंगा जैसी पवित्र नदी में बहाए जाने वाले रसायनयुक्त कचरे से प्रदूषण की मात्रा बढ़ने के कारण गंगा जल में ऑक्सीजन का प्रमाण क्रमश: खूब तेजी से घटना चिंता का वायज बन गया है.
पर्यावरणविदों ने गंगाजल प्रदूषण पर चल रहे शोध में चौंकाने वाले परिणाम दिए हैं. कानपुर, इलाहाबाद, वाराणसी और पटना जैसे बड़े शहरों की तमाम गंदगी के साथ खतरनाक रसायन गंगा के पानी को ंजहरीला बना रहे हैं. गंगा नदी के प्रदूषण पर शोध कर रही छात्रा वंदना श्रीवास्तव ने कहा है कि गंगा जल में ऑक्सीजन का प्रमाण तेजी से घट रहा है. गंगा जल में ऑक्सीजन का प्रमाण 680 लीटर में 9 से 11 मिलीग्राम है. वैसे देखा जाए तो पेयजल में ऑक्सीजन की मात्रा प्रति लीटर 8 मिलीग्राम से अधिक होनी चाहिए. जबकि हुगली के पास गंगा में यह मात्रा 1.2 मिलीग्राम से दो मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई है. इस कारण जल में रहने वाले प्राणियों की संख्या लगातार कम होते जा रही है. गंगा नदी के प्रदूषण का मुख्य कारण उद्योगों का और गटर का पानी है. आपको आश्चर्य होगा कि कानपुर के चर्म उद्योग के 200 कारखानों का अतिजहरीला क्रोमियम वाला लगभग 20 करोड़ लीटर का दूषित पानी गंगा में बहाया जाता है. इससे गंगा नदी में पलने वाली डॉल्फिन अब लुप्तप्राय हो गई है. घड़ियाल, मगरमच्छ और कछुए तेजी से लुप्त हो रहे हैं. मछलियों की हालत तो और भी खराब है, उसकी कई प्रजातियों पर मौत का साया मँडरा रहा है.
हाल ही में स्वच्छ गंगा रिसर्च लेबोरेटरी ने बनारस के तट पर शोध करके यह निष्कर्ष निकाला कि गंगा में मानव मल-मूत्र में होने वाले वैक्टिरिया की मात्रा 13 गुना अधिक थी, जो अब बढ़कर 300 गुना हो गई है. पहले गंगा के निर्मल जल में साफ दिखाई देने वाली मछलियाँ अब नहीं दिखती. एक अंदाज के अनुसार गंगा में रोज 134 करोड़ लीटर गटर का गंदा पानी बहाया जाता है. इस कारण लोग अब गंगा नदी को 'गटर गंगा' भी कहने लगे हैं. इलाहाबाद और वाराणसी में आज भी गंगा नदी में गटर का पानी बहाया जाता है. राज्य के प्रदूषण विभाग का कहना है कि जल के शुद्धिकरण के लिए अपनाई जाने वाली तकनीक क्रोमियम, कैडमियम और सीसे जैसी अतिजहरीले प्रदूषक तत्व को प्रभावित कर पाए, इसकी संभावना ही नहीं है. इस नदी के किनारे बने कारखानों से आते जहरीले रसायनों ने इसे इतना प्रदूषित बना दिया है कि इसका पानी पीने योग्य नहीं रह गया है. अब वह बात तो एक सपना बनकर रह गई है कि गंगा नदी का पानी कभी गंदा नहीं होता. अब तो यही कहा जा सकता है कि यदि मृत्यु प्राप्त करना है तो गंगा जल ही पी लो. इस पानी का प्रदूषण इतना बढ़ गया है कि अब इससे सिंचाई भी नहीं हो सकती. निश्चित रूप से इस पानी से कई खेतों में सिंचाई हो रही होगी, अब आप ही समझ सकते हैं कि उन खेतों पर लगने वाली फसल कितनी सुरक्षित और खाने योग्य होगी?
यही गंगा नदी है जिसे लोग मोक्षदायिनी कहते हैं, लेकिन यही नदी आज अपने मोक्ष के लिए तरस रही है. मौत के बाद हर कोई गंगा को ही याद करता है. इसी गंगा में रोज सैकड़ों लाशें बहाई जाती हैं. कुछ जगहों तो गंगा का पानी काला हो गया है, क्योंकि उसमें अग्नि संस्कार के बाद शेष राख, कोयला तथा अधजली लकड़ियाँ विसर्जित की जाती है, जिससे कार्बनिक तत्वों की मात्रा बढ़ रही है और ऑक्सीजन की मात्रा कम हो रही है.
भगीरथ के अथक प्रयासों की कहानी कहने वाली गंगा अब बुरी तरह से प्रदूषित हो चली है. यदि इसकी जानकारी भगीरथ को पहले हो जाती, तो शायद यह गलती वे कभी नहीं करते. अब तो गंगा जल से सौगंध भी नहीं ली जा सकती. इससे तो अच्छा है कि ऍंजुरि में किसी कुएँ का ही पानी ले लिया जाए. हाँ यदि किसी को आत्महत्या करनी हो, तो निश्चित रूप से वह गंगा जल पीकर अपनी इहलीला समाप्त कर सकता है. निकट भविष्य में किसी नारी के लिए यह कहना कि वह गंगा की तरह पवित्र है, एक अपशब्द बनकर रह जाएगा. कोई भी सबला नारी यह आरोप बर्दाश्त नहीं कर पाएगी. गंगा माँ आज प्रदूषित हो गई है और उसे प्रदूषित करने वाले उसके ही अपने पुत्र हैं, जिन्होंने संभवत: यह शपथ ले रखी है कि देश की कोई भी नदी को हम पवित्र नहीं रहने देंगे.
डा. महेश परिमल
गुरुवार, 27 दिसंबर 2007
गंगा की मचलती लहरों में जहरीले रसायनों का सैलाब
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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