डा. महेश परिमल
समय को बहुत बड़ा डॉक्टर कहा गया है. यह हर तरह के घाव को भर देता है. समय में एक बात तो है कि वह हर वक्त चलता ही रहता है. यह उसका स्वभाव है, लक्ष्मी और पानी का स्वभाव भी चंचल होता है, गतिमान रहना इनका स्वभाव है. पानी ठहर जाए, तो वह दुर्गंध देने लगता है, बहना इसकी पकृति है, इसे बहते रहने देना चाहिए. समय का एक रूप अवसर है, जो हर इंसान के सामने अपनी सेवा देने के लिए प्रस्तुत होता है, पर इसका रूप ऐसा होता है कि इंसान उसे अनदेखा कर देता है, उसे नोटिस में नहीं लेता, जो इसे पहचानने की दृष्टि रखते हैं, वह उस अवसर को हाथ से नहीं जाने देते. उसे पहचानने के लिए अंतर्दृष्टि याने भीतर की ऑंखें. जिसने भी अपनी इन ऑंखों से समय या अवसर को पहचाना, सफलता ने आगे बढ़कर उसके कदम चूमे.
किसी चित्रकार ने समय का चित्र बनाया है, जिसमें एक साधारण व्यक्ति को बताया गया है. उसके पंख हैं और वह उड़ रहा है, बालों से उसका चेहरा ढँका हुआ है, याने उसे कोई देख नहीं सकता, पंख से उसके सदैव गतिमान होने को दर्शाया गया है. चेहरा ढाँककर यही बताने की कोशिश की गई है कि समय को देखा तो नहीं जा सकता, पर पहचाना अवश्य जा सकता है. अवसर को गँवाने का दु:ख सबको होता है, सभी कभी न कभी यह अवश्य स्वीकार करते हैं कि हम चूक गए. हमसे गलती हो गई, हम अवसर को पहचान नहीं पाए, हमारे हाथ से एक अच्छा अवसर निकल गया. हमारी थोड़ी-सी लापरवाही ने हमें कहीं का नहीं रखा. उस वक्त ऐसा कर लिया होता, तो आज यह वक्त नहीं देखना पड़ता. ये सारे जुमले उन लोगों के हैं, जिन्होंने अवसर को पहचानने में भूल की या देर की. इतना तो तय है कि अवसर रूप बदलकर ही सही, हम सबके सामने आया, याने समय ने हमें आगे बढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, अब यह बात अलग है कि हम उसे पहचान नहीं पाए.
हमने अपने जीवन में कई ऐसे लोगों को देखा होगा, जो बड़ी शान से कहते हैं- मुझे अवसर मिला, मैंने लपक लिया, आज मैं अपने साथियों से बहुत आगे हूँ या सफल हूँ. एक परिवार के दो भाई, दोनों के सामने एक ही परिस्थिति, पिता मंजदूर थे, माँ दूसरों के घरों में चौका-बर्तन का काम करती. दोनों भाइयों को पिता की सहायता करनी पड़ती, सो वे भी पिता के साथ जाकर उनके काम में हाथ बँटाते. दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत दोनों भाइयों को बुरी तरह से थका देती, ऐसे में पढ़ाई-लिखाई की बात तो बेमानी ही होती, पर एक भाई ने हिम्मत दिखाई.
वह समय चुराने की कोशिश में लग गया. समय चुराना याने खाली समय का सदुपयोग करना. अब वह अपनी मीठी-मीठी नींद को त्याग कर रात को लैम्प पोस्ट के नीचे पढ़ने लगा. दूसरा भाई सोते रहता, लेकिन इसने अपनी पढ़ाई जारी रखी. बहाने इसके पास भी हो सकते थे, लेकिन उसने इन बहानों के आगे अपनी मेहनत रख दी. बहाने हारकर पीछे हट गए और वह आगे बढ़ता रहा.
ईमानदारी के किया गया यह प्रयास मेहनत के रंग के साथ निखर उठा. वह सफल हो गया, क्योंकि उसकी सधी हुई मेहनत ने उसे निखार दिया. वजीफों से उसकी पढ़ाई जारी रही. वजीफों का मिलते रहना याने पढ़ाई के प्रति ईमानदार बने रहना. यही पढ़ाई काम आई और वह योग्य प्रशासक सिध्द हुआ.
मेहनती भाई ने समय को पहचाना, उसने मान लिया कि उसे ंजिंदगी भर पिता के साथ काम नहीं करना है., उसे कुछ और करना है, ईश्वर ने जब उसे भेजा है, तो कुछ अच्छा काम करने के लिए ही भेजा है. नाकाम वही होते हैं, जिनके पास बहाने होते हैं, जिस क्षण बहाने नहीं होंगे, सफलता सामने होगी. बहाने का सीधा-सादा गणित है कि काम न करने की इच्छा. ये बहाने तो वे बादल होते हैं, जो व्यक्ति और सफलता के बीच अवरोध का काम करते हैं. बहाने हटे कि सफलता सामने. मेहनती इंसान से सफलता अधिक दूर नहीं होती. कभी-कभी बहाने रूपी बादल सफलता को इंसान की ऑंखों से ओझल कर देते हैं.
आज किसी के पास 24 घंटे से ज्यादा वक्त नहीं है. पर बहुत से ऐसे लोग हैं, जिन्हें ये 24 घंटे भी कम लगते हैं. दूसरी ओर कुछ ऐसे भी हैं, जिनके लिए वक्त काटे नहीं कटता. इसमें से कौन सी बात असमाना है? एक ने समय को पहचान लिया, दूसरे ने नहीें पहचाना. एक बात हमेशा ध्यान रखें, समय कभी बताकर नहीं आता. उसका रूप अतिसाधारण होता है. वह तब आता है, जब आपको अपनों से चोट मिलती है. आप थके-हारे होते हैं, आप अवसाद की स्थिति में जाने वाले हैं, बस वही एक क्षण होता है, जो आपको साधारण से असाधारण बनाने की क्षमता रखता है.
कोई भी अनुभव कभी बेकार नहीं जाता. सफर के दौरान दो व्यक्तियों के बातें भी हमारे ज्ञान के खजाने में एक मोती की वृद्धि कर सकती है. उस समय हमें स्वयं को एक अच्छा श्रोता साबित करना होगा, संभव वही समय का रूप हो. उनकी बातें और हमारा ज्ञान दोनों मिलकर एक अनुभव को जन्म दें, बस हमें मिल सकता है, एक उन्मुक्त आकाश. जहाँ हम उड़ सकते हैं, अपने तरीके से. अंत में एक छोटी सी बात, निर्माण सदैव विध्वंस के रास्ते आता है.
पहली बार में यह वाक्य आपको सोचने को विवश कर देगा. पर आप ही सोचें कि किसी खंडहर के स्थान पर कोई मकान बनाना है, तो उस खंडहर को तोड़े बिना क्या नया मकान बन सकता है? जब तक हम पुराने विचारों को त्यागेंगे नहीं, तब तक नए विचारों के लिए जगह कहाँ से बनेगी? जगह एक समय की तरह तय है. हमें अच्छे विचारों को समय की तरह पकड़ना है, तो क्यों न दिमाग का कचरा फेंक दिया जाए. कचरे का फेंका जाना ही विध्वंस है और नए विचारों का आना कहलाता है निर्माण. विध्वंस के बाद ही जापान निर्माण के रास्ते पर कितना आगे बढ़ गया! पुराने जमाने की हवेली, इमारत विध्वंस से ही गुजरकर आज आलीशान इमारतों की जगह ले रही है. काम-धंधे में पुत्र इसीलिए पिता से आगे बढ़ जाता है, क्योंकि पुत्र जमाने के अनुसार अपने काम में बदलाव लाता जाता है. उसका पुत्र और भी आगे बढ़ जाता है. क्योंकि वह आगे बढ़ने के गुण अपने पिता और दादा से पाता है. यदि वह समय के अनुसार नहीं चल पाता, तो पिछड़ भी जाता है. ऐसा अक्सर तीसरी पीढ़ी के साथ होता है. या तो धंधा बिलकुल चौपट हो जाता है, या फिर धंधा खूब चल निकलता है. तीसरी पीढ़ी या तो इतिहास रचती है, या फिर पूरा धंधा चौपट करके रख देती है. अतिहास सदैव नए विचारों, नए निर्माण, नए सपने, नया विश्वास और नई उमंगों के साथ रचा जाता है.
तो आइए, एक नया इतिहास रचने की दिशा में एक कदम ईमानदारी के साथ उठाएँ, मेरा विश्वास है कि कुछ समय बाद आप स्वयं को दस कदम आगे पाएँगे.
डा. महेश परिमल
सोमवार, 17 दिसंबर 2007
अवसर को पहचानें और इतिहास रचें
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प्रबंधन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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