डॉ.महेश परिमल
बचपन में कई दुकानों में बोर्ड पर लिखी इबारतें पढ़ा करता,-'आज नकद कल उधार', 'उधार प्रेम की कैंची है'. आज जब इन जुमलों पर सोचता हूँ, तो हँसी आती है. बहुत पहले हमारे समाज में कंर्ज के लेन-देन पर रोक लगी हुई थी. जो कंर्ज बाँटते थे, उन्हें सूदखोर कहा जाता था. ये सूदखोर दूसरों के दुर्भाग्य का फायदा उठाते थे. जो कंर्ज लेते थे, वे बदकिस्मती से दु:ख और अपमान के पात्र बनते थे. इसी तरह का दृश्य शेक्सपीयर के 'मचर्ेंट ऑफ वेनिस' में खींचा गया है. लेकिन अब हालात एक ही बदल गए.
अब तो कंर्ज लेना शान की बात हो गई है. आप कंर्ज ले रहे हैं, पर आप बदकिस्मत कतई नहीें हैं. सारे बैंक और कई निजी कंपनियाँ कंर्ज देने के लिए तैयार बैठीं हैं. देखना यह है कि आप कितना कंर्ज ले सकते हैं ? अब कंर्ज लेने से न तो प्रेम कटेगा और न ही कल उधार वाली बात होगी. आप को प्रतिस्पर्धा में टिकना है, तो उधार बेचना ही पड़ेगा. उधार बेचना भी एक कला है, यह कला हर किसी को नहीें आ सकती. हमें कई ऐसे लोग मिल जाएँगे, जिन्होंने यह सोचकर अपना माल ग्राहक को उधार दिया था कि भला आदमी है, जरूरतमंद भी है, कहाँ जाएँगे रुपए, दे दो. उनकी यही सोच उन्हें बरबादी के रास्ते ले जाती है.
आज उधार देना एक फैशन भी है, उधार लेना भी एक फैशन बन गया है. आज उधार देने के पहले तमाम कंपनियाँ व्यक्ति की साख एवं आय के स्रोतों के संबंध में पूरी जानकारियाँ ले लेती हैं. इसके अलावा तमाम ऐसे कानूनी दस्तावेज पर हस्ताक्षर करवा लेती हैं, जिससे ग्राहक बच ही नहीं सकता. फिर उस राशि का ब्याज ही इतना अधिक होता है कि कुछ वर्षों में ही मूलधन निकल आता है.हम चर्चा कर रहे थे साख की. अच्छी साख फूलों की सुगंध की तरह होती है, जो वातावरण में दूर-दूर तक फैल जाती है. इसके अलावा सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति को भी प्रभावित करती है. एक उदाहरण लें- महेश के कारखाने में बिनौले की खली बना करती थी. एक रात उसके गोदाम में आग लग गई, इस आग में करीब पाँच लाख रुपए का बिनौला जलकर राख बन गया. इतना बड़ा घाटा सहकर कारखाना चलाना संभव न था. परिणामस्वरूप कारखाना बंद हो गया.
वैसे तो महेश की आदत उधार न रखने की थी, फिर भी उसने देखा कि एक व्यापारी को एक लाख रुपए देने रह गए हैं. उसने अपने अन्य व्यापारी मित्रों से उक्त व्यापारी को एक लाख रुपए लौटाने के लिए सहायता की माँग की. ये वे व्यापारी थे, जिन्हें महेश अक्सर सहायता किया करता था. महेश द्वारा सहायता माँगे जाने पर उन व्यापारियों ने उसे सलाह दी कि जब कारखाना ही बंद हो गया है, तो कंर्ज लौटाने की क्या आवश्यकता? पर महेश का मन नहीं माना. उसने पत्नी से सलाह मशविरा करके व्यापारी को एक लाख रुपए लौटाने का संकल्प लिया. इस आड़े वक्त पर पत्नी से अपने गहने पति को सौंपते हुए कहा- गहने इन्हीं दिनों के लिए होते हैं, आप इसे ले जाएँ और कंर्ज अदा कर दीजिए. महेश ने पत्नी के गहने बेचकर व्यापारी को एक लाख रुपए का कंर्ज अदा कर दिया.
इसकी जानकारी जब व्यापारी को लगी, तब उसे बड़ा दु:ख हुआ. महेश की सासख अच्छी थी, व्यापारी को उससे कभी निराशा नहीं हुई. अतएव वह सीधे महेश के घर पहँचा और कहने लगा कि व्यापार में लाभ-हानि तो चलती ही रहती है. इसका मतलब यह तो नहीं कि पत्नी के गहने बेचकर कंर्ज लौटाया जाए. आपने जो कुछ किया, वैसा बहुत कम लोग करते हैं. उसने अपना ब्रीफकेस खोल दिया. महेश के लाख मना करने के बावजूद उसने दो लाख रुपए बिना ब्याज के दे दिए और अपने शहर आकर उसने तीन ट्रक बिनौले महेश के कारखाने भिजवा दिए.
यह सब देखकर महेश अभिभूत हो उठा, उसे वे मित्र याद आए, जिनकी उसने सहायता की थी. कारखाना बंद होने पर वही महेश जब इन मित्रों के पास गया और कंर्ज के भुगतान के लिए राशि की माँग की थी, तब इन्हीं मित्रों द्वारा कारखाना बंद कर देने की सलाह याद आई. यह बात जब बांजार में पहुँची, तो महेश की सहायता के लिए कई हाथ आगे आ गए. महेश के पास कई फोन आए, सभी व्यापारियों का कहना था कि वह उनसे बांजार से भी सस्ते में बिनौला खरीद सकता है, साथ ही वह भुगतान की कतई चिंता न करे. इन सहयोगी हाथों की बदौलत बंद पड़ा कारखाना दिन-रात चलने लगा. महेश की अच्छी साख ने कारखाने को पुनर्जीवित कर दिया.
अच्छे कार्य रबर की गेंद की तरह होते हैं, वह लौटकर आते हैं. यही अच्छे कार्य ही सुखद एवं सुनहरे भविष्य की नींव रखते हैं. अक्सर देखा यह जाता है कि जब भी कोई नया उत्पाद बांजार में आता है, तो उसका प्रचार बहुत ज्यादा होता है. प्रचार में भले ही यह बताया गया हो कि उत्पाद बहुत बढ़िया है. वास्तव में वह उतना बढ़िया होता नहीं है. पर ये कंपनियाँ यदि प्रचार के बजाए उत्पाद की गुणवत्ता पर ध्यान दें, तो उपभोक्ता को अच्छा माल कम दामों पर मिल सकता है. अच्छा उत्पाद स्वयं अपना प्रचार करता है. इसे किसी अन्य प्रचार माध्यम की आवश्यकता नहीं होती, पर आज बदलते जीवन मूल्यों के बीच प्रचार ही महत्वपूर्ण है, इसकी चकाचौैंध में बेकार माल भी खप रहा है.
साख केवल व्यक्ति को ही महान् नहीं बनाती, बल्कि उत्पाद को भी अमर बना देती है. असली घी के मुकाबले वनस्पति घी को डालडा के नाम से बांजार में लाया गया. आज डालडा वनस्पति घी का पर्याय बन गया है. अच्छी साख का मतलब ही होता है, अच्छा उत्पाद.अच्छी साख याने पूरा-पूरा विश्वास. अक्सर होता यह है कि उत्पाद जब चल निकलता है, तब मालिक के मन में बेइमानी घर कर लेती है, तब उसका उत्पाद घटिया हो जाता है. इसका उसे खामियाजा भी भुगतना पड़ता है.
ईमानदारी, अच्छा व्यवहार, सम्मानजनक वेतन हर कंपनी की पहली शर्त होनी चाहिए. कर्मचारी उस स्थिति में अपनी प्रतिभा का सही प्रदर्शन कर पाएँगे. जब उन्हें अच्छा व्यवहार और अच्छा वेतन मिलेगा. इन दोनों से उनके भीतर समर्पण की भावना आएगी. इस समर्पण से उसे अवसर मिलेंगे. जिससे वह अपनी प्रतिभा का सही प्रदर्शन कर पाएगा. कंपनी या व्यक्ति की साख यहाँ भी काम आती है. अच्छी साख से कर्मचारी का हौसला बढ़ता है. समाज में वह इसे गर्व के साथ बताता है. इससे समाज में उसकी प्रतिष्ठा बढ़ती है. जिस कंपनी की साख अच्छी न हो, वहाँ के कर्मचारी की हालत खराब होती है. न तो उन्हें समाज से प्रतिष्ठा मिलती है, न ही इात. यहाँ तक कि एक महीने का राशन भी उधारी में नहीं मिलता. ऐसे में कर्मचारी कहाँ से लाएगा समर्पण भाव? अच्छी साख वाली कंपानियों में कर्मचारी कम वेतन पर भी जाना चाहेगा, क्योंकि कम वेतन के बाद भी उसे जो प्रतिष्ठा मिलेगी, वह उससे ही प्रसन्न हो जाएगा.
जो कंपनियाँ या व्यक्ति उत्पाद की गुणवत्ता से ज्यादा प्रचार-प्रसार एवं चमक-दमक पर विश्वास करते हैं, उनके लिए यह पहली जरूरत भले हो सकती है, पर उन्हें स्थायित्व दिलाएगी उनके उत्पाद की गुणवत्ता. क्योंकि इसी गुणवत्ता में ही छिपी होती है साख. आप चाहें घड़ीसाज हो, या फ्रिज, कार, कूलर, स्कूटर आदि के मिस्त्री या कुछ और. जब तक आपकी साख अच्छी नहीं होगी, तब तक ग्राहक आप पर पूरा-पूरा विश्वास नहीं करेंगे. तब आप अपने व्यवसाय में उतनी तरक्की नहीें कर पाएँगे, जितनी आपको करनी चाहिए या जितनी आप कर सकते हैं.
चाहे आप कुछ भी बेचना चाहते हों, उससे होना वाला मुनाफा आपकी अच्छी साख पर ही निर्भर करता है. यदि तमाम उत्पाद कंपनियाँ या आज के उद्यमियों ने इस ओर ध्यान नहीं दिया है, तो अब समय बेकार न करें और अपनी साख वह भी अच्छी साख बनाएँ. फिर देखिए आप उन्नति के शिखर पर कैसे पहुँचते हैं.
यह हमेशा ध्यान रखें कि माल खरीदने के बाद आपका ग्राहक से संबंध टूटता नहीं, बल्कि जुड़ता है. अब जब तक आपका वह माल ग्राहक के पास है, आप का जुड़ाव ग्राहक से रहना चाहिए. उसे शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए. ऐसे ही छोटे-छोटे विश्वासों से बनती है साख. इसी से होगी आपकी और आपके व्यापार की उन्नति.
डॉ.महेश परिमल
सोमवार, 10 दिसंबर 2007
छोटे-छोटे विश्वासों से बनती है साख
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प्रबंधन
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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