डॉ. महेश परिमल
लोग कहते हैं कि भारत में बहुत महँगाई है, पर यह महँगाई हमारे लिए है. विदेशों में रहने वाले भारतीयों के लिए भारत से सस्ता देश और कोई नहीं है. वे यहाँ दो काम लेकर आते हैं. एक तो देश का भ्रमण और दूसरा मुख्य कारण होता है किसी बीमारी का इलाज करवाना. आपको यह जानकार आश्चर्य होगा कि भारत में इलाज इतना सस्ता है कि भारतीय मूल के लोग या फिर विदेशी अपने असाध्य रोग का इलाज करवाने के लिए सीधे भारत ही आते हैं. इसका आशय यह हुआ कि भारत भ्रमण और इलाज साथ-साथ हो जाता है और उनके रिश्तेदारों को भी यह लगता है कि विदेश में रहने के बाद भी इन्हें अपनी माटी का मोह खींच लाता है. कितने भले हैं ये हमारे भारतीय विदेशी. हमारे लिए यह मुगालता अच्छा है. सच्चाई तो यही है कि वे अपना इलाज करवाने के लिए भारत आते हैं.
इस व्यवसाय को आजकल 'मेडिकल टूरिज्म' का नाम दिया गया है. लगभग दस हजार करोड़ का लाभ देने वाला यह व्यवसाय आज लगातार फैल रहा है. जैसे-जैसे विदेशों में इस भारतीय व्यवसाय के बारे में पता चलेगा, वेसे-वैसे भारत में ऑपरेशन करवाने के िलिए आने वाले लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी.
जिस वस्तु की कीमत विदेश में आठ लाख रुपए है, वही चीज भारत में केवल दो लाख रुपए में आसानी से प्राप्त हो जाती है.विदेशी अखबारों में इन दिनों एक विज्ञापन लोगों को आकर्ष्ाित कर रहा है, जिसमें कहा गया है कि मात्र चार हजार डॉलर में दस दिवसीय भारत भ्रमण और हृदय का ऑपरेशन या फिर अन्य कोई भी शारीरिक जाँच कराई जा सकती है. विदेशों में एक ऑपरेशन में जितना खर्च होता है, उससे कहीं कम खर्च में भारत में समुचित इलाज हो जाता है. जैसे अमेरिका में घुटने के ऑपरेशन के लिए वेटिंग लिस्ट में छह माह बाद नम्बर आता है, जबकि भारत में अब ऐसे बड़े पैमाने पर चिकित्सालयों की स्थापना हो चुकी है, जहाँ चुटकियों में ऑपरेशन की तारीख मिल जाती है, साथ ही यहाँ कुशल सर्जन भी सहजता से मिल जाते हैं. इस व्यवसाय के अंतर्गत धन का भुगतान किसी भी तरह से किया जा सकता है. चाहे प्रवासी चेक दें, नकद दें, या फिर के्रडिट कॉर्ड के माध्यम से दें.
एक समय था जब दक्षिण भारत के त्रिवेंद्रम और चेन्नई में चलते प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र में विदेशियों की लाइन लग जाती थी. लोग थोक के भाव में वहाँ पहुँचते थे. पंचकर्म चिकित्सा और मसाज केंद्रों की सुविधाओं का 15 दिनों में लाभ उठाकर अपनी कायाकल्प कर वे अपने देश लौट जाते थे. इसके पीछे यही मुख्य कारण था कि यहाँ इलाज में विदेश की अपेक्षा करीब साठ प्रतिशत कम खर्च होता था. इस तरह से कम खर्च के कारण वे चिकित्सा के साथ-साथ भारत भ्रमण भी आसानी से कर लेते थे.
जहाँ विदेशों में मोतियाबिंद के ऑपरेशन में डेढ़ से दो लाख रुपए लगते हैं, वहीं भारत में यह ऑपरेशन कुशल चिकित्सकों द्वारा मात्र 25 हजार रुपए में ही हो जाता है. यह तो हुआ निजी अस्पतालों का खर्च, पर भारत में यही ऑपरेशन यदि किसी संस्था के माध्यम से या फिर ट्रस्ट की अस्पतालों में हो, तो यह खर्च मात्र पांच हजार ही आता है. लायंस, रोटरी जैसी कई सामाजिक सेवाभावी संस्थाएँ हैं, जो यह ऑपरेशन मुफ्त में कर देती हैं. भारत में नेत्र शिविर के माध्यम से एक ही दिन में चार से पाँच सौ मोतियाबिंद के मुफ्त ऑपरेशन की बात जब विदेश में रह रहे गुजरातियों ने सुनी, तो वे हतप्रभ रह गए.
विदेशों में हृदय की शल्य क्रिया में जहाँ 15 से 20 लाख रुपए खर्च आता है, वहीं भारत में यही ऑपरेशन मात्र दो से ढाई लाख रुपए में हो जाता है. यही हाल न्यूरो सर्जरी का है. इसमें भी विदेशों में आठ से दस लाख रुपए खर्च होते हैं, वही ऑपरेशन भारत में मात्र दो से तीन लाख रुपए में आसानी से हो जाता है. आपको यह जानकर आश्वर्य होगा कि पिछले साल डेढ़ से दो लाख लोग भारत में विदेश से अपना इलाज करवाने के लिए आए थे. यह जानने योग्य है कि यह 'मेडिकल टूरिज्म' हर साल दो हजार करोड़ का धंधा करता है, जो कि आने वाले आठ वर्षों में दस हजार करोड़ रुपए का हो जाएगा. मात्र बंगलादेश से ही इस वर्ष आठ हजार मरीज भारत में आकर अपना इलाज करवा चुके हैं. भारत में हेल्थ केयर क्षेत्र से जुड़े लोगों ने सपने में भी नहीं सोचा था कि यह व्यवसाय उन्हें रातों-रात करोड़पति बना सकता है. जबकि इस व्यवसाय में सरकार से कोई मदद प्राप्त नहीं होती. यह बात ध्यान देने योग्य है कि पिछले कुछ वर्षों से भारत के कई अस्पताल अत्याधुनिक मशीनों से लैस हो गए हैं.
वैसे तो भारत को पर्यटन को लेकर काफी चिंता है, लेकिन सरकार का ध्यान इस मेडिकल टूरिज्म की ओर है ही नहीं, जो बिना किसी परिश्रम के दिनों-दिन प्रगति की सीढ़ियाँ चढ़ रहा है. सरकार यदि इस दिशा में थोड़ा सा भी ध्यान दे, तो काफी विदेशी मुद्रा हमें प्राप्त हो सकती है. दूसरी ओर इन्हीं विदेशियों के कारण भारत के ही गरीब लोगों को महँगी चिकित्सा प्राप्त हो रही है. अत्याधुनिक मशीनों से लैस अस्पतालों को चलाने वाले पूँजीपतियों के सामने देश के गरीबों की की कोई औकात नहीं है. वे महँगा इलाज करवा नहीं सकते, और अस्पताल वाले विदेशियों के लिए अपने पलक पाँवड़े बिछाकर रख रहे हैं. विदेशियों को चिरयौवन प्राप्त करने की चिकित्सा देने वाले उसी अस्पताल में भारतीयों को कोई लाभ नहीं होता. इसके लिए चिकित्सक उन्हें विदेश जाने की सलाह देते हैं, कैसी विडम्बना है?
डॉ. महेश परिमल
मंगलवार, 25 दिसंबर 2007
इलाज के बहाने भारत भ्रमण
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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बिल्कुल सही फ़रमाया आपने।
जवाब देंहटाएंअभी अभी कुछ महीने पहले मेरे एक अमरीकी मित्र बेंगळूरु आया था। वह यहाँ अपनी आँखों का जाँच करवाकर,एक नहीं बल्कि दो नये चश्में खरीदकर ले गया। उसे यकीन भी नहीं हो रहा था कि इतने कम पैसे में उनका यह काम बन गया!
यह अजीब विडम्बना है।
Medical Tourism से हम बहुत कमा सकते हैं लेकिन इस में यह भी खतरा है कि भारतीय मरीजों को लाभ नहीं होगा। अगर ज्यादा विदेशी मरीज भारत आते हैं तो हो सकता है कि लोभ के कारण यहाँ भी खर्च ज्यादा हो जाएंगे। उसका असर हम भारतीयों पर होगा।
एक बार कहीं विदेश के वृद्ध जनों के बारे में भी पढ़ा था।
उनके पास पैसा है, लेकिन अपने बच्चों का प्यार नहीं।
वहाँ old age homes में पढ़े रहते हैं।
उनको अगर हम यहाँ सभी सुविधाएं देकर स्वागत करते हैं तो कैसा रहेगा? उन्हें भी लाभ और हमें भी। क्या हमारे अपने वृद्ध ज्नों पर असर पड़ेगा? मुझे नहीं लगता। हमारी पुरानी परंपरा है कि हम अपने बुजुर्गों को अपने साथ ही रखते हैं। आपके का विचार हैं?
G विशनाथ, जे पी नगर, बेंगळूरु