भारती परिमल
माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर, चेरी व्लेयर, मुक्ता घई, हॉलीवुड अभिनेत्री इमा थॉम्पस, सुशान सेरनडोन, पॉप सिंगर मेडोना, हेरी पॉटर की लेखिका जे.के. रोलिंग, व्ल्यूलेगून की अभिनेत्री ब्रुक शिल्डे, क्या इन महिलाओं में आपको कोई समानता दिखाई देती है? आप शायद सोच रहे होंगे कि ये सभी तो मीडिया में छाए रहने वाली महिलाएँ हैं, यही इनमें समानता है. आप सही हो सकते हैं, लेकिन इसके अलावा एक और सच यह भी है कि इन सभी महिलाओं ने बड़ी उम्र में मातृत्व का सुख प्राप्त किया है. यह भी नहीं चाहती थी कि बड़ी उम्र में मातृत्व प्राप्त किया जाए, पर इनमें से अधिकांश ने मातृत्व से अधिक कैरियर को महत्व दिया. इसलिए मातृत्व पाने की दौड़ में ये सभी पिछड़ गई.
ऐसी कौन सी नारी होगी, जिसे मातृत्व प्यारा न हो, पर आज की नारी एक मुट्ठी आसमान पाने केलालच में इतनी आगे बढ़ गई है कि वह अपनी छोटी-छोटी खुशियों को तिलांजलि देने में भी पीछे नहीं रहती. यह सच है कि बड़ी खुशियों को पाने के लिए छोटी खुशियों को त्यागना ही पड़ता है, किंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि इन खुशियों को पूरी तरह नजरअंदाज कर दिया जाए. आखिर ये बड़ी खुशियाँ हैं क्या? आज की नारी की स्वतंत्र और स्वच्छंद मानसिकता के अनुसार उनका केरियर का बुलंदी पर पहुँचना ही उनके जीवन का ध्येय है. इसे पाने के लिए वह जी-जान से जुट जाती हैं और उम्र का वह पड़ाव, जहाँ मातृत्व की घनी छाँव उन्हें सुकून दे, उसे भी छोड़ कर वे चल पड़ती हैं केरियर की सुनहरी, चमचमाती धूप को अपनी अंजुलि में भरने लिए. उनकी इस हिम्मत के आगे महात्वाकांक्षाओं का आकाश बाँहें पसारे उनका स्वागत करता है.
बड़ी उम्र में यानि कि 35 से 45 के बीच मातृत्व सुख पाना अब एक सामान्य घटना बन गई है. जीवन की इस आपाधापी में आज के युवा शादी के पहले अपने कैरियर की ओर ध्यान देते हैं. लड़कियाँ भी कम पीछे नहीं, 25 की उम्र तक तो वह अपनी पढ़ाई ही पूरी नहीं कर पाती. उसके बाद उनके सामने उनका कैरियर होता है, वे उसे सँवारने में लग जाती हैं. तीस पार करने के बाद शादी की शहनाई उनके ऑंगन में बजती हैं. उसके साथ-साथ कैरियर को भी सँवारने के लिए जद्दोजहद जारी रहती है. घर वालों की सुनहरी अपेक्षाएँ उनके हौसलों को और बुलंद करती हैं. इस दौरान वे ये भी भूल जाती हैं कि उन्हें मातृत्व भी प्राप्त करना है. यह खयाल उन्हें 35 से 38 के बाद आता है. तब तक शरीर मातृत्व के लिए अनफिट हो जाता है. व्यूटी पॉर्लर के चक्कर उम्र को तो छिपा सकते हैं, लेकिन गर्भधारण के लिए गर्भाशय की उम्र नहीं छिपा सकते. बडी उम्र में मातृत्व प्राप्त करने में सबसे अधिक परेशानी सामान्य प्रसव की आती है. लम्बी उम्र में नारी की सहनशक्ति भी उतनी अधिक नहीं रह जाती जो, 25 से 30 के बीच होती है, परिणाम स्वरूप नार्मल डिलवरी की संभावना बहुत कम रहती है. डिलवरी के बाद दूसरी समस्या स्तनपान की आती है. ब्रेस्ट फीडिंग के लिए अपने आपको पूरी तरह से असमर्थ पाती माँ अपनी संतान को ऊपरी दूध के भरोसे छोड़ देती है, जिससे बच्चा जन्म के साथ ही संक्रामक रोगों का शिकार हो जाता है.
प्रतिस्पर्धा के इस युग में अपने कैरियर या व्यवसाय पर अधिक ध्यान देना तथा बड़ी उम्र में मातृत्व सुख प्राप्त करना आज की लाइफ स्टाइल और प्रोडक्शन सिस्टम में आए बदलाव का मुख्य कारण माना जा सकता है. गायनेकोलॉजिस्ट के अनुसार बड़ी उम्र में माँ बनना, ऐसा केवल बड़े शहरों में ही होता है. शहरी स्तर पर एवं गाँव में ऐसे मामले कम ही देखने को मिलते हैं. वैवाहिक जीवन के लंबे अंतराल के बाद मातृत्व सुख प्राप्त करना और विवाह के 15-17 वर्ष बाद मातृत्व सुख प्राप्त करना अलग बात है. ऐसा कई मामलों में देखने में आया है कि केवल कैरियर या व्यवसाय को अधिक महत्व देने वाला वैवाहिक युगल आजीवन संतानहीनता की पीड़ा झेलने को विवश होता है. मातृत्व सुख संभव न होने की दशा में फिर टेस्ट टयूब बेबी की ओर ध्यान दिया जाता है. विज्ञान का सहारा लेकर महिलाएँ मातृत्व सुख प्राप्त तो कर लेती हैं, पर कहीं न कहीं यह टीस अवश्य रह जाती है कि यदि समय रहते हम अपनी संतान को जन्म देते, तो कितना अच्छा रहता?
एक महिला चिकित्सक के अनुसार स्त्रियों में 30 वर्ष के बाद और पुरुषों में 40 वर्ष के बाद प्रजनन क्षमता का हृास होने लगता है. आयु के बढ़ने के साथ ही महिलाओं की डिम्ब ग्रंथियों से स्त्री बीज कम संख्या में उत्सर्जित होने लगते हैं, और वे आसानी से निषेचित नहीं होते, साथ ही जीन संबंधी विकृतियाँ भी बढ़ जाती हैं. उम्र के साथ गर्भाशय की धारण क्षमता कम हो जाने से गर्भाशय गर्भस्थ भू्रण को सँभालने में असमर्थ रहता है. परिणामस्वरूप उन्हें गर्भपात अंतिम तीन महीनों में अर्थात् छठे से नौवें माह के बीच रक्तस्राव होना, अपरा का सामान्य स्तर से नीचे स्थित होना आदि जटिलताओं का सामना करना पड़ता है. डाक्टर के अनुसार 35 से अधिक उम्र की महिलाएँ कम उम्र की महिलाओं की अपेक्षा कई जीर्ण व्याधियों जैसे- संधिवात, उच्च रक्तचाप, मधुमेह आदि से गर्भावस्था के पूर्व ही पीड़ित हो जाती हैं, ये अवस्थाएँ गर्भावस्था के दौरान अधिक घातक सिध्द होती है.
यह सच है कि आज कैरियर यक्ष प्रश्न की तरह युवाओं के सामने खड़ा है. पर कैरियर ही सब कुछ नहीं है, इसके आगे भी जीवन है. अपनों के बीच अपना बनकर रहने का जीवन. कैरियर सँवारने के चक्कर में लोग यह भूल जाते हैं कि कैरियर को पकड़कर वे अपनों का साथ छोड़ रहे हैं. बड़ी उम्र में माँ बनने वाली महिला अपने जीवन के आखिर पड़ाव में बच्चे को केवल बड़ा ही कर पाती है. बच्चा अपनी कमाई का हिस्सेदार उन्हें नहीं बना पाता, क्योंकि तब तक पिता तो साथ छोड़ ही देते हैं और माँ लाचार हो जाती है. बेटे या बेटी की शादी नाती-पोते का सपना ऑंखों में ही रह जाता है. तब लगता है कि कैरियर को महत्व देकर हमने अपनी संतान को ही पीछे छोड़ दिया. जब संतान को वास्तव में सहारे की आवश्यकता होती है, तब उसे छाँव देने वाला कोई नहीं होता. तब भी क्या हम गर्व से कह सकते हैं कि कैरियर को महत्व देकर हमने सही किया, बोलो?
भारती परिमल
शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007
मातृत्व को अनदेखा करता कैरियर
लेबल:
आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें