सोमवार, 9 नवंबर 2009
......कलाकरों की भीड़ में एक अलग ही चेहरा- संजीव कुमार
अभिनेता गुरुदत्त की असमय मौत के बाद निर्माता निर्देशक के.आसिफ ने अपनी महात्वाकांक्षी फिल्म लव ऐंड गॉड का निर्माण बंद कर दिया और अपनी नई फिल्म सस्ता खून मंहगा पानी के निर्माण में जुट गये । राजस्थान के खूबसूरत नगर जोधपुर में हो रही फिल्म की शूटिंग के दौरान एक नया कलाकार फिल्म में अपनी बारी आने का इंतजार करता रहा । इसी तरह लगभग दस दिन बीत गये और उसे काम करने का अवसर नहीं मिला । बाद में के.आसिफ ने उसे वापस मुंबई लौट जाने को कहा । यह सुनकर उस नये लड़के की ऑंखों में ऑंसू आ गये । कुछ दिन बाद के.आसिफ ने सस्ता खून और मंहगा पानी बंद कर दी और एक बार फिर से लव ऐंड गॉड बनाने की घोषणा की ।
गुरुदत्त की मौत के बाद वह अपनी फिल्म के लिये एक ऐसे अभिनेता की तलाश में थे जिसकी आंखे भी रूपहले पर्दे पर बोलती हो और वह अभिनेता उन्हें मिल चुका था । यह अभिनेता वही लड़का था जिसे के.आसिफ ने अपनी फिल्म सस्ता खून मंहगा पानी के शूटिंग के दौरान मुंबई लौट जाने को कहा था । बाद में यही कलाकार फिल्म इंडस्ट्री में संजीव कुमार के नाम से प्रसिध्द हुआ । अपने दमदार अभिनय से हिंदी सिनेमा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान बनाने वाले संजीव कुमार को अपने कैरियर के शुरूआती दिनोंमें वह दिन भी देखना पड़ा जब उन्हें फिल्मों में नायक के रप में काम करने का अवसर नहीं मिलता था । कैरियर के शुरूआती दिनों में उन्होंने राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म आरती के लिये स्क्रीन टेस्ट दिया ।
स्क्रीन टेस्ट की समाप्ति के बाद यूनिट के लोगों के बीच बातचीत होने लगी । लड़के में दम नहीं है इसे अभिनेता के रूप में काम नहीं मिलेगा । हिन्दी सिनेमा जगत में संजीव कुमार को एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के रूप में जाना जाता है. जिन्होंने नायक सह नायक,खलनायक और चरित्र कलाकार भूमिकाओं से दर्शकों को अपना दीवाना बनाया । मुंबई में 9 जुलाई 1938 को एक मध्यम वर्गीय गुजराती परिवार में जन्मे संजीव कुमार बचपन से ही फिल्मों में नायक बनने का सपना देखा करते थे। इस सपने को पूरा करने के लिये शुरूआती दौर में उन्होंने स्कूल -कॉलेज में अभिनय किया और बाद में गुजराती रंगमंच से जुड़
गये और फिल्मालय के एक्टिंग स्कूल में दाखिला लिया ।संजीव कुमार को 1960 में फिल्मालय बैनर की फिल्म .हम हिन्दुस्तानी.में एक छोटी सी भूमिका निभाने का मौका मिला । वर्ष 1962 में राजश्री प्रोडक्शन की निमत फिल्म आरती के लिये उन्होंने स्क्रीन टेस्ट दिया .जिसमें वह पास नहीं हो सके। सर्वप्रथम मुख्य अभिनेता के रूप में उन्हें 1965 में प्रदशत फिल्म निशान में काम करने का मौका मिला ।वर्ष 1960 से 1968 तक संजीव कुमार फिल्म इंडस्ट्री मे अपनी जगह बनाने के लिये संघर्ष करते रहे । फिल्म हम हिंदुस्तानी के बाद उन्हें जो भी भूमिका मिली वह उसे स्वीकार करते चले गये । इस बीच उन्होंने स्मगलर् पति-पत्नी.हुस्न और इश्क। बादल, नौनिहाल और गुनहगार जैसी कई बी ग्रेड फिल्मों मे अभिनय किया लेकिन इनमें से कोई भी फिल्म बाक्स आफिस पर सफल नहीं हुई । वर्ष 1968 मे प्रदशत फिल्म शिकार मे वह पुलिस ऑफिसर की भूमिका में दिखाई दिये । यह फिल्म पूरी तरह अभिनेता धर्मेन्द्र पर केन्द्रित थी फिर भी धर्मेन्द्र जैसे अभिनेता की उपस्थिति में अपने अभिनय की छाप छोड़ने में वह कामयाब रहे । इस फिल्म में दमदार अभिनय के लिये उन्हें सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर अवार्ड भी मिला । वर्ष 1968 मे प्रदशत फिल्म संघर्ष में उनके सामने हिन्दी फिल्म जगत के अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे .लेकिन संजीव कुमार ने अपनी छोटी सी भूमिका के जरिये दर्शको की वाहवाही लूट ली । इसके बाद आशीर्वाद, राजा और रंक, सत्यकाम और अनोखी रात जैसी फिल्मों में मिली कामयाबी के जरिये संजीव कुमार दर्शको के बीच अपने अभिनय की धाक जमाते हुये ऐसी स्थिति में पहुंच गये .जहां वह फिल्म में अपनी भूमिका स्वयं चुन सकते थे । वर्ष 1970 मे प्रदशत फिल्म खिलौना की जबरदस्त कामयाबी केबाद संजीव कुमार ने नायक के रप में अपनी अलग पहचान बना ली । वर्ष 1970 में ही प्रदशत फिल्म दस्तक में लाजवाब अभिनय केलिये उन्हें सर्वश्रोष्ठ अभिनेता के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित कि या
गया ।
वर्ष 1972 मे प्रदशत फिल्म कोशिश मे उनके अभिनय का नया आयाम दर्शकों को देखने को मिला । इस फिल्ममें गूंगे की भूमिका निभाना किसी भी अभिनेता के लिये बहुत बड़ी चुनौती थी । बगैर संवाद बोले सिर्फ आंखो और चेहरे के भाव से दर्शको को सब कुछ बता देना संजीव कुमार की अभिनय प्रतिभा का ऐसा उदाहरण था .जिसे शायद ही कोई अभिनेता दोहरा पाये । इस फिल्म में उनके लाजवाब अभिनय के लिये उन्हें दूसरी बार सर्वश्रोष्ठ अभिनेता का राष्ट्रीय पुरस्कार दिया गया । खिलौना. दस्तक और कोशिश जैसी फिल्मो की कामयाबी से संजीव कुमार शोहरत की बुंलदियो पर जा बैठे । ऐसी स्थिति जब किसी अभिनेता के सामने आती है तो जल्द ही वह किसी खास इमेज में बंध जाता है लेकिन संजीव कुमार कभी भी किसी खास इमेज में नहीं बंधे । इसलिये अपनी इन फिल्मो की कामयाबी के बाद भी उन्होंने फिल्म परिचय में एक छोटी सी भूमिका स्वीकार की और उससे भी वह दर्शको का दिल जीतने मे सफल रहे । इस बीच सीता और गीता अनामिका और मनचली जैसी फिल्मों मे अपने रूमानी अंदाज के जरिये वह जवां दिलों की धडकन भी बने। फिल्म कोशिश और परिचय की सफलता के बाद गुलजार संजीव कुमार के पसंदीदा निर्देशक बन गये । बाद में उन्होंने गुलजार के निर्देशन में आंधी. मौसम. नमकीन और अंगूर जैसी कई फिल्मों में अपने अभिनय का जौहर दिखाया ।
संजीव कुमार के अभिनय की विशेषता यह रही कि वह किसी भी तरह की भूमिका के लिये सदा उपयुक्त रहते थे । फिल्म कोशिश में गूंगे की भूमिका हो या फिर शोले में ठाकुर या सीता और गीता और अनामिका जैसी फिल्मों में लवर ब्वाय की भूमिका हो अथवा नया दिन नई रात में नौ अलग अलग भूमिकाएं हर भूमिका को उन्होंने इतनी खूबसूरती से निभाया .जैसे वह उन्हीं के लिए बनी हो। फिल्मों में किसी अभिनेता का एक फिल्म मे दोहरी या तिहरी भूमिका निभाना बड़ी बात समझी जाती है लेकिन संजीव कुमार ने फिल्म नया दिन नई रात में एक या दो नहीं बल्कि नौ अलग अलग भूमिका निभाकर दर्शकों को रोमांचित कर दिया । दिलचस्प बात है कि फिल्म की भूमिका के लिये पहले अभिनेता दिलीप कुमार का चयन किया गया था लेकिन किसी कारणवश उन्होंने इस फिल्म में काम करने से इन्कार कर दिया । बाद में दिलीप कुमार ने फिल्म निर्माता से कहा कि इस फिल्म के साथ केवल संजीव कुमार ही न्याय कर सकते हैं ।
फिल्म नया दिन नई रात में संजीव कुमार ने लूले लंगड़े, अंधे, बूढ़े, बीमार, कोढ़ी, हिजड़े, डाकू, जवान और प्रोफेसर के किरदार को निभाकर जीवन के नौ रसों को रूपहले पर्दे पर साकार किया । यूं तो यह फिल्म उनके हर किरदार की अलग खासियत की वजह से जानी जाती है लेकिन इस फिल्म में उनका निभाया हिजड़े का किरदार आज भी दर्शको के मस्तिष्क पर छाया हुआ है । अभिनय में एकरपता से बचने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिये संजीव कुमार ने अपने को विभिन्न भूमिकाओं में पेश किया । इस क्रम में 1975 में प्रदशत रमेश सिप्पी की सुपरहिट फिल्म.शोले .में वह फिल्म अभिनेत्री जया भादुडी के ससुर की भूमिका निभाने से भी नही हिचके । हालांकि संजीव कुमार ने फिल्म शोले के पहले जया भादुड़ी के साथ कोशिश और अनामिका मे नायक की भूमिका निभाई थी । वर्ष 1977 में प्रदशत फिल्म शतरंज के खिलाडी में उन्हें महान निर्देशक सत्यजीत रे के साथ काम करने का मौका मिला । इस फिल्म के जरिये भी उन्होंने दर्शको का मन मोहे रखा । वर्ष 198 । में संजीव कुमार के अभिनय का एक नया रूप देखने को मिला । शेक्सपीयर की कहानी कामेडी आफ एरर्स पर आधारित फिल्म अंगूर में अपने दोहरे किरदार से उन्होंने दर्शको को हंसाते हंसाते लोटपोट कर दिया । संजीव कुमार दो बार सर्वश्रोष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किये गये है । वर्ष 1975 मे प्रदशत फिल्म आंधी के लिये सबसे पहले उन्हें सर्वश्रोष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार दिया गया । इसके बाद 1976 में भी फिल्म अर्जुन पंडित मेंबेमिसाल अभिनय के लियेसर्वश्रोष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजे गये । अपने दमदार अभिनय से दर्शकों में खास पहचान बनाने वाला यहअजीम कलाकार 6 नवंबर 1985 को इस दुनिया को अलविदा कह गया ।
प्रेम कुमार
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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डॉ.साहब यह आलेख संजीव जी के बारे मे बहुत महत्वपूर्ण जानकारी देता है । उनके कई रोल तो अविस्मरणीय है जिनका आपने यहाँ ज़िक्र किया है । आपकी मेहनत को सलाम्
जवाब देंहटाएंआपने मेरे मन पसंद अभिनेता संजीव कुमार के लिए जो लिखा है सच लिखा है...खूब लिखा है...उन जैसा अभिनेता भारतीय सिने जगत में ना हुआ है और शायद ही और कोई होगा...इतनी विविधता भरे चरित्र उन्होंने निभाएं हैं और वो भी गज़ब की सहजता से की आर्श्चय होता है...उनकी कामेडी की टाईमिंग गज़ब की थी...संजीदा रोल में उनके चेहरे के भाव देखते ही बनते थे...इश्वर ने हम जैसे उनके प्रेमियों के साथ अन्याय किया जो उन्हें इतनी जल्दी बुला लिया...अगर वो और दस बीस साल जीवित रहते तो शायद ऐसे और ढेरों किरदार निभा जाते जिसे देख आने वाली पीढियां भी दांतों तले उंगलियाँ दबातीं...
जवाब देंहटाएंनीरज