शनिवार, 21 नवंबर 2009

सरकार के खिलाफ बोलने वाला शायर: फैज


नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही

भारतीय उपमहाद्वीप के महान शायर फैज अहमद फैज ने अपने मुल्क पाकिस्तान की जनता को दु:ख तकलीफोंं से निजात दिलाने और देश में सच्ची जम्हूरियत लाने की कोशिश की, लेकिन सरकार के तानाशाही रवैए के कारण उन्हें इसके लिए चार साल की जेल की सजा काटनी पड़ी। कहा जाता है कि फैज ने अपने कुछ चुङ्क्षनदा साथियों के साथ मिलकर वर्ष १९५१ एक योजना तैयार की। इसके तहत मुल्क के तत्कालीन गवर्नर जनरल ख्वाजा निजामुद्दीन और प्रधानमंत्री लियाकत अली को गिरफ्तार करना तय किया गया, लेकिन सरकार को इसकी भनक लग गई और उन्हें उनके साथियों के साथ पकड कर सलाखों के पीछे डाल दिया गया। सरकार ने इसे रावलङ्क्षपडी षड्यंत्र केस का नाम दिया। आम आदमी के हक में आवाज बुलंद करने वाले और गालिब की परंपरा के शायर फैज का २० नवम्बर १९८४ को ७३ साल की उम्र में निधन हो गया। पाकिस्तान के सर्वोच्च सम्मान निशान ए इम्तियाज से सम्मानित फैज का जन्म सात जनवरी १९११ को तत्कालीन पंजाब में स्यालकोट के गांव काला कादेर में हुया। फैज को इस्लामिक परंपरा के मुताबिक दीनी तालीम के लिए मौलवी मुहम्मद इब्राहीम मीर स्यालकोटी के पास भेजा गया। बाद में दुनियावी तालीम के लिए स्काट मिशन स्कूल और आगे की पढाई के लिए मुर्रे कालेज में प्रवेश दिलाया गया। फैज ने लाहौर के गवर्नमेंट कालेज से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की और बाद में यही उपाधि लाहौर के ओरियंटल कालेज में अरबी साहित्य में प्राप्त की। फैज पर शम्स उल उल्लामाह सैयद मीर हसन नाम के शिक्षक का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा। शम्स ने ही उन्हें दर्शन, कविता और राजनीति की बारीकियों से अवगत कराया। उन्हीं दिनों फैज ने दार्शनिक और कवि अल्लामा इकबाल और युसूफ् सलीम चिश्ती को पढ़ा और उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। अपनी युवावस्था में फैज वैज्ञानिक समाजवाद के प्रवर्तक कार्ल माक्र्स की ओर आकॢषत हुए और उन्होंने वर्ष १९३६ के दौरान पंजाब में प्रगतिशील लेखक आंदोलन की शाखा खोली और इसका सचिव पद संभाला। फैज ने मासिक पत्र अदीब ए लतीफ का संपादन का काम हाथ में लिया बाद में उन्होंने अमृतसर के एम ए ओ कालेज में प्रवक्ता का पद ग्रहण किया लेकिन फिर वह लाहौर के हेली कालेज चले गए।
फैज कुछ समय के लिए ब्रिटिश इंडियन आर्मी में भर्ती हो गए और वह १९४४ में लेफ्टिनेंट कर्नल नियुक्त किए गए। लेकिन कलम के सिपाही का मन संगीनों में नहीं रमा और उन्होंनें सन १९४७ में सेना की नौकरी छोड़ दी और लाहौर वापस चले गए। अब फैज ने पाकिस्तान टाइम्स के जरिए एक बार फिर पत्रकारिता का दामन थामा। फैज इस अखबार के पहले संपादक बने। रावलङ्क्षपडी षडयंत्र मामले में सजा काटने के कुछ समय बादफैज को १९५९ में पाकिस्तान आट्र्स काउंसिल का सचिव बनाया गया। फैज ने यहां १९६२ तक काम किया। सन १९६४ में फैज कराची गए और वहां के अब्दुल्ला हारून कालेज में प्रिङ्क्षसपल नियुक्त हुए। फैज ने उर्दू अखबार इमरोज और लैइल ओ निहार का संपादकीय दायित्व भी संभाला और वर्ष १९६५ में भारत पाक युद्ध में उन्होंने सूचना विभाग में काम किया। फैज का जुड़ाव पाकिस्तान की कम्युनिस्ट पार्टी से भी रहा। सन १९५० से १९६० के दशक में उन्होंने वामपंथी झुकाव वाले कई लेख लिखे और पाकिस्तान में इन क्रांतिकारी विचारों को फलैाने का प्रयास किया। पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी के साथ संबंध रखने के कारण ही उनका नाम रावलङ्क्षपडी षड्यत्र केस में आया और उन्हें प्रगतिशील लेखक सज्जाद जहीर के साथ चार साल की जेल काटनी पडी। इतिहास में दर्ज हो चुके दस्तावेज के अनुसार पाकिस्तान की सेना में मेजर जनरल अकबर खां तत्कालीन राजनीतिक और सैन्य व्यवस्था से बेहद खफा थे और उन्होंने इसकी चर्चा सेना के कुछ अफसरों और दोस्तों के साथ करनी शुरू की। उस दौर में पाकिस्तान कम्युनिस्ट पार्टी पर लियाकत अली खां सरकार का खासा दबाव था। यहां तक इस पार्टी को ठीक से राजनीतिक गतिविधियां तक चलाने नहीं दी जाती। उस दौर में इस पार्टी से सहानुभूति रखने वालों को सरकारी तानाशाही का शिकार होना पडता। अकबर खां की पत्नी नसीम का ताल्लुक राजनीतिक घरानों से था और इस नाते वह फैज के वाम तेवरों से परिचित थीं। यहां से फैज की नजदीकियां अकबर खां से बढ़ीं। माना जाता है अकबर खां नेफैज को यह आश्वासन दिया कि अगर वह सत्ता में आए तो कम्युनिस्ट पार्टी को राजनीतिक गतिविधियां चलाने में पूरी आजादी दी जाएगी और कुछ समय बाद में मुल्क में नए चुनाव करावाए जाएंगे। बदले में विभिन्नवाम संगठनों को उनकी संक्रमणकालीन सैन्य सरकार का समर्थन करना होगा। वर्ष १९५१ में २३ फरवरी को अकबर खां के घर एक बैठक हुई जिसमें कई फौजी अफसरों ने भी भाग लिया। सेना के इन अधिकारियों के अलावा इसमें फैज कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव सज्जाद जहीर और साम्यवादी नेता मोहम्मद अता भी शामिल हुए। अकबर खां ने इसमें तत्कालीन गवर्नर जनरल और प्रधानमंत्री की गिरफ्तारी का प्रस्ताव रखा। इसके अलावा इस बैठक में भू सुधार, भ्रष्टाचार के खात्मे, भाई-भतीजावाद की समाप्ति आदि मसलों की बातें कही गई। लेकिन सरकार को इसकी भनक लग गई और गिरफ्तारियों का दौर का शुरू हो गया। फैज भी इस तानाशाही का शिकार हुए और उन्हें जेल में भेज दिया गया। फैज उच्च कोटि के शायर होने के अलावा सूफीवाद के बडे समर्थक थे। फैज का अपने समय के लगभग सभी सूफियों के साथ संपर्क था। सूफियों में वह सबसे ज्यादा बाबा मलंग साहिब के करीब थे। एक बार उनसे पूछा गया था कि वह सूफी की साम्यवादियों के साथ की गई तुलना करना पसंद करेंगे तो फैज ने कहा कि सूफी ही असली साम्यवादी हैं। फैज को इस बात का Ÿोय भी जाता है कि उन्होंने दार्शनिक मंसूर के विचार अनहल हक की राजनीतिक व्याख्या की। अनहल हक के विचार को भारतीय दर्शन के अनुसार अह्म ब्रह्स्मि अर्थात ' मैं ब्रह्म हूंÓ के तादाम्य में देखा जाता है।
फैज के आलोचक कहते हैं कि वाम झुकाव होने के बावजूद उनकी शायरी में आवाम के लिए कुछ खास नहीं है। लेकिन फैजै की कही गई बातों से स्पष्ट होता है कि वह विचारधारा को शायरी से अलग रखने के पक्षधर थे। वह मानते थे कि गजल को उसके मूल अर्थों के समीप होना चाहिए। गजल का अर्थ हुया .ी से बात करना। गजल को इसी के मुताबिक अपनी बात कहनी चाहिए, लेकिन इसमें विचारधारा का घालमेल नहीं होना चाहिए। फैज ने नक्शे फरयादी, दस्ते सबा, सरे वादियां, सीना और दस्ते तह संग जैसी प्रसिद्ध किताबें लिखी। फैज की मशहूर नज्मों और गजलों की एक लंबी फेहरिस्त है। उनके खास कलाम इस प्रकार हैं ' तुम्हारी यादों के जख्म जब भरने लगते हैं, मुझसे पहली सी मुहब्बत मेरे महबूब न मांग, चांदनी दिल दुखाती रही रात भर, गुलों में रंग भरे बाद ए नौबहार चले, बोल के लब आजाद हैं तेरे राज ए उल्फत छपा के देख लिया, अब कहा रस्म घर लुटाने की, नहीं विसाल मयस्सर तो आरजू ही सही, वे बेखबर ही सही इतने बेखबर भी नहीं, आदि।
फैज को कई सम्मान मिले। उन्हें १९६२ में लेनिन शांति पुरस्कार मिला। यह पुरस्कार चिली के मशहूर कवि पाब्लो नेरूदा दक्षिण अफ्रीका की आजादी के नायक नेल्सन मंडेला, नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त आदि को मिल चुका है। फैज को १९८४ में नोबल सम्मान के लिए नामांकित किया गया। पाकिस्तान सरकार ने उन्हें मरणोपरांत १९९० में निशान ए इम्तियाज से सम्मानित किया।

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