गुरुवार, 19 नवंबर 2009
बाल कालाकारों का जलवा भी कम नहीं
यूं तो हिन्दी सिनेमा युवा प्रधान है और समूचा सिने उद्योग युवा. उसकी सोच और मांग को ध्यान में रखकर फिल्मों का निर्माण करता है लेकिन बाल कलाकारों ने इस व्यवस्था को अपने दमदार अभिनय से लगातार चुनौती दी है। फिल्म ब्लैक में आयशा कपूर और तारे जमीं पर में दर्शील सफारी अमिताभ बच्चन और आमिर खां जैसे दिग्गज कलाकारों की उपस्थिति का रंग फीका तक कर गए। , बाल फिल्मों की गिनीचुनी संख्या और बाल कलाकारों कोमुख्यधारा के सिनेमा में कमजगह मिलने के बावजूद इन कलाकारों का इतिहास भरपूर रोशन है। इनमें बेबी तबस्सुम. मास्टर रतन. डेजीईरानी. पल्लवी जोशी. मास्टर सचिन. नीतू सिंह. पद्मिनी कोल्हापुरे और उर्मि ला मातोंडकर का नाम काफी मशहूर हुआ। सत्तर के दशक में ऐसे कई बाल कलाकार भी हुये जिन्होंने बादमें बतौर अभिनेता और अभिनेत्री बनकर फिल्म इंडस्ट्री में अपनी अमिट छाप छोड़ी । ऐसे ही बाल कलाकारों में नीतू ङ्क्षसह , पद्मिनी कोल्हापुरी और सचिन प्रमुख हैं। सत्तर के दशक में नीतू ङ्क्षसह ने कई फिल्मों में बाल कलाकार के तौर पर अभिनय किया इनमें वर्ष १९६८ में प्रदॢशत फिल्म इस फिल्म खासतौर पर उल्लेखनीय है । फिल्म दो कलियां में नीतू ङ्क्षसह की दोहरी भूमिका को सिने प्रेमी शायद ही कभी भूल पायें। इस फिल्म में उन पर फिल्माया यह गीत बच्चे मन के सच्चे दर्शको के बीच आज भी लोकप्रिय है।
सत्तर के दशक में बाल कलाकार के तौर पर फिल्म इंडस्ट्री में पद्मिनी कोल्हापुरे ने भी अपनी धाक जमायी थी। बतौर बाल कलाकार उनकी महत्वपूर्ण फिल्मों में सत्यम शिवम सुंदरम , ड्रीमगर्ल , ङ्क्षजदगी , ््सजना बिना सुहागन आदि शामिल है। अस्सी के दशक में बाल कलाकार अपनी भूमिका में विविधता को कुशलता पूर्वक निभाकर अपनी धाक बचाने में सफल रहे । निर्देशक शेखर कपूर ने एक ऐसा ही प्रयोग किया था फिल्म मासूम में जिसमें बाल कलाकार जुगल हंसराज ने अपनी दमदार अभिनय से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। वर्ष १९९८ में प्रदॢशत फिल्म कुछ कुछ होता है फिल्म इंडस्ट्री की सर्वाधिक कामयाब फिल्मों में शुमार की जाती है । शाहरूख खान और काजोल जैसे दिग्गज कलाकारों की उपस्थिती में बाल अभिनेत्री सना सईद अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल जीतने में सफल रही। हाल के दौर में बाल कलाकारों की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण हो गयी है उनका काम दो प्रेमियों को मिलाने भर नहीं रह गया है। हाल के वर्षों में बाल कलाकार जिस तरह से अभिनय कर रहे है वह अपने आप में अद्वितीय है । इसकी शुरूआत फिल्म ब्लैक से मानी जा सकती है। संजय लीला भंसाली निॢमत फिल्म में आयशा कपूर ने जिस तरह की भूमिका की उसे देखकर दर्शकों ने दातों तले उंगलियां दबा लीं।
लेखक अमोल गुप्ते ने डिसलेक्सिया से पीडि़त बच्चे की कहानी बनाने का निश्चय किया और अभिनेता आमिर खान से इस बारे में बातचीत की । आमिर खान को यह विषय इतना अधिक पसंद आया कि न सिर्फ उन्होंने फिल्म में अभिनय किया. साथ ही निर्देशन भी किया। फिल्म में अपने बेहतरीन अभिनय से दर्शील सफारी ने यह साबित कर दिया कि सुपर स्टार की तुलना में बाल कलााकार भी सशक्त अभिनय कर सकते है बल्कि करोड़ो दर्शकों के बीच किसी संवेदनशील मुद्दे पर सामाजिक जागरूकता फैलाने और उसपर जरूरी कदम उठाने में महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाते है ।
आज के दौर में बाल कलाकारों की प्रतिभा के कायल महानायकअमिताभ बच्चन भी है । सदी के महानायक फिल्म ब्लैक में काम करने वाली बाल कलाकार आयशा कपूर की तारीफ करते नहीं थकते । इसकी वजह यह है कि इन कलाकारों को अभिनय की ट्रेनिंग नहीं मिली होती और वह वास्तविकता के करीब का अभिनय करते। इसी तरह फिल्म भूतनाथ में अमिताभ बच्चन के साथ भूमिका करने वाले अमन सिद्दकी ने बंकू की भूमिका को सहज ढंग से निभाया। अमिताभ बच्चन के सामने किसी भी कलाकार को सहज ढंग से काम करने में दिक्कत हो सकती थी लेकिन अमन सिद्दकी को ऐसा महसूस ही नहीं हुआ कि सुपरस्टार अमिताभ बच्चन उसके साथ काम कर रहा है।
रूपहले पर्दे पर बाल कलाकारों तथा बाल गीतों ने हमेशा से सिने प्रेमियों के दिलों पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। वर्ष १९५४ में प्रदॢशत फिल्म जागृति , संभवत: पहली फिल्म थी. जिसमें बाल गीत को खूबसूरती से रूपहले परदे पर दिखाया गया था ।
इस फिल्म में संगीतकार हेमंत कुमार के संगीत निर्देशन में कवि प्रदीप का रचित और उनका ही गाया यह गीत आओ बच्चों तुम्हें दिखाये झांकी ङ्क्षहदुस्तान की बेहद लोकप्रिय हुआ था और बाल गीतों में इस गीत का विशिष्ट स्थान आज भी बरकरार है । इसके अलावा इसी फिल्म में मोहम्मद रफी की आवाज में कवि प्रदीप का ही लिखा गीत हम लाये है तूफान से कश्ती निकाल के श्रोताओं के बीच आज भी अपनी अमिट छाप छोड़ता है । शायद ही लोगों को मालूम होगा कि दिलीप कुमार और वैजंयती माला को लेकर बनी फिल्म गंगा जमुना , नाम से बनी फिल्म में आज के दौर की चरित्र अभिनेत्री अरूणा ईरानी ने बतौर बाल कलाकार काम किया था । इस फिल्म में नौशाद के संगीत निर्देशन में हेमंत कुमार की आवाज में शकील बदायूंनी का रचित यह गीत इंसाफ की डगर पर बच्चो दिखाओ चल के , श्रोताओं को आज भी अभिभूत कर देता है । इसके बाद समय समय पर फिल्मों में बाल गीत फिल्माये गये इनमें प्रमुख है , नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुटठी मे क्या है बूट पालिश .इचक दाना बिचक दाना श्री ४ ० तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा धूल का फूल , इंसाफ की डगर पे बच्चो दिखाओ चल के गंगा जमुना नन्हा मुन्ना राही हू सन ऑफ इंडिया , चक्के पे चक्का ब्रहम्चारी बच्चे मन के सच्चे दो कलियां , चंदा है तू मेरा सूरज है तू आराधना , रेलगाड़ी रेलगाडी आशीर्वाद , रे मामा रे रामा रे , है न बोलो बोलो अंदाज चंदा मामा दूर के वचन रोना कभी नही रोना , अपना देश एक बटा दो , कालीचरण रोते रोते हंसना सीखो अंधा कानून लकड़ी की काठी काठी पे घोडा. जिंदगी की यही रीत है मिस्टर इंडिया आदि ने खूब लोकप्रियता अर्जित की।
.प्रेम कुमार
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जिंदगी
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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दो कलियाँ में नीतू सिंह ने कमाल का अभिनय किया है.. दर्शील का कोई जवाब नहीं.. फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर में बच्चो का काम काबिल ए तारीफ़ है.. साथ ही आपका विषय चयन भी..
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