मौलाना अबुल कलाम आजाद. जन्मदिन 11नवम्बर पर विशेष
पाकिस्तान की कमजोर बुनियाद को पहले ही भांप गए थे मौलाना आजाद
पाकिस्तान आज जिन आंतरिक मतभेदों और अन्तवरोधों से जूझते हुए अपना वजूद बचाने की जो लडाई लड रहा है.उसे आजादी के महानायकों में शुमार मौलाना अबुल कलाम आजाद ने उसी समय देख लिया था. जब मुस्लिम लीग के प्रमुख मोहम्मद अली जिन्ना ने पाकिस्तान की मांग रखी थी ।मौलाना आजाद ने उस वक्त न केवल इसका जमकर विरोध किया था बल्कि लोगों के बीच जाकर पाकिस्तान की मांग के खतरों से भी लोगों को आगाह किया था । देश का संविधान का प्रारूप तैयार करने में अग्रणी भूमिका निभाने वाले और इस्लाम के गहरे जानकार मौलाना आजाद का जन्म सऊदी अरब में 11 नवम्बर 1888 को हुआ ।उनका पूरा नाम मौलाना अबुल कलाम मुहिउद्दीन अहमद था । मुल्क को स्वतंत्र कराने का उनका जज्बा इतना गहरा था कि उन्होंने बाद में अपने नाम के पीछे .आजाद. शब्द जोड लिया । मौलाना आजाद की परवरिश इस्लाम धर्म के गहरे जानकारों के साये में शुरू हुयी लिहाजा उन्हें शुरू से एक सच्चा धामक माहौल मिला । कच्ची उम्र में ही उन्होंने इस्लाम धर्म की वह तालीम हासिल कर ली जो उनसे उम्र में दोगुने लडकों को भी हासिल नहीं थी । उनकी तालीम घर से शुरू हुयी और शिक्षक उन्हें घर पर ही पढाने आया करते थे । जल्द ही उन्हें हनफ्ी .शरीयत. गणित.दर्शन .विश्व इतिहास और विज्ञान में महारत हासिल हो गयी । लेकिन शायद मौलाना आजाद की किस्मत ने शायद कुछ और ही लिखा था । जैसे जैसे मौलाना आजाद में उम्र के साथ तजुर्बे का इजाफ होने लगा वैसे वैसे उन्हें महसूस होने लगा कि दीनी तालीम के अलावा उन्हें दुनियावी तालीम की जानकारी होनी चाहिए । मौलाना आजाद ने अब अंग्रेजी की शिक्षा लेनी शुरू कर दी । और बाद में इतिहास . पश्चिमी दर्शन शास्त्र और समकालीन राजनीतिक विचारों को जाना । इससे उन्हें यह समझने मे आसानी हुयी कि दुनिया के और कुछ क्या चल रहा है । इसी दौरान उनका परिचय महान शिक्षा शास्त्री सर सैयद अहमद खां के सुधारवादी विचारों से हुया । इन विचारों ने मौलाना आजाद पर काफ्ी प्रभाव डाला ।
अपने विद्रोही स्वभाव और राजनीतिक झुकाव के चलते मौलाना आजाद ने अब पत्रकारिता की राह पकड ली और 1912 में एक उर्दू साप्ताहिक .अल हिलाल .शुरू किया । इसके जरिए उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता की जोरदार वकालत करते हुए ब्रिटिश नीतियों की जमकर आलोचना शुरू कर दी । मौलाना आजाद ने अपने अखबार में अंग्रेज हुक्मरानों की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण आम आदमी को हो रही मुश्किलों को सामने रखा । लेकिन ब्रितानी सरकार उनक ी इस सच बयानी से चिढ गयी और प्रेस एक्ट बना कर अल हिलाल पर प्रतिबंध लगा दिया । लेकिन मौलाना आजाद इससे रूकने वाले कहां थे उन्होंने अल बलाग नाम का दूसरा अखबार शुरू कर दिया और साम्प्रदायिक एकता और राष्ट्रवादी विचारों की अलख जगानी शुरू कर दी । यह वह दौर था जब तुर्की के सुल्तान या जिसे खलीफ भी कहते थे उसके खिलाफ् अंग्रेज की बदनीयती के विरोध में खिलाफ्त आंदोलन शुरू हो रहा था । मौलाना आजाद भी इस आंदोलन में कूद पडे । इससे अंग्रेज सरकार के क्र ोध की सीमा नहीं रही और उसने दमनकारी कदम उठाते हुए मौलाना आजाद के दूसरे अखबार को नया कानून डिफ्सें आफ् इंडिया रेग्यूलेश्न एक्ट बना कर बंद कर दिया और उन्हें गिरफ्तार करके रांची जेल भेज दिया । मौलाना आजाद को एक जनवरी 1920 को रिहा किया गया । तब तक भारत के परिद्यश्य पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और देश परगांधी जी के ा प्रभाव का गहरा रंग जमने लगा था । गांधी जी ने उस समय असहयोग आंदोलन की शुरूआत की । मौलाना आजाद और अली बंधुओं ने इस आदोंलन को हाथों हाथ लिया और बरतानिया हुकूमत के स्कू ल .कालेज. न्यायालय .नौकरियों का बहिष्कार और स्वदेशी के प्रचार में जोर शोर से लग गए । यह वह वक्त था जब मौलाना आजाद ने अपने साथियों के साथ जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना की । असहयोग आदोंलन के बाद राष्ट्रवादी नेताओं में पैदा हुये मतभेदों में मौलाना आजाद ने गांधी जी का साथ दिया । सविनय अवज्ञा आदोंलन में बढ चढ कर हिस्सा लेने के कारण मौलाना आजाद को एक बार फ्रि जेल भेज दिया गया । मौलाना आजाद ने 1935 के दौरान मुस्लिम लीग और जिन्ना एवं कांग्रेस के साथ बातचीत की वकालत की ताकि राजनीतिक आधार को विस्तार दिया जा सके । लेकिन जब जिन्ना ने दूसरी राह पकडी तो मौलाना आजाद ने उनकी आलोचना करने में कोई कोताही नहीं बरती । सन 1938 में आजाद ने गांधी जी के समर्थकों एवं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के बीच पैदा हुयी तकरार में पुल का काम किया । मुस्लिम लीग ने जब 1940 में लाहौर मे हुए अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग रखी तो उस समय मौलाना आजाद कांग्रेस के रामगढ अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे । तब उन्होने जिन्ना के दो राष्ट्र सिद्वांत की जमकर खबर ली । मौलाना आजाद ने यह मानने से इंकार कर दिया कि मुसलमान और हिन्दू दो अलग राष्ट्र हैं । इस्लाम धर्म के इस गहरे जानकार ने इस्लाम के आधार पर बनने वाले देश को अस्वीकार कर दिया उन्होने सभी मुसलमानों से हिन्दुस्तान में हीं रहने की बात कही । मौलाना आजाद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिन्दुस्तान की धरती पर इस्लाम का आये 11 सदी बीत गयी हैं । और अगर हिन्दू धर्म यहां के लोगो ंका हजारो सालों से धर्म रहा है तो इस्लाम को भी हजार साल हो गए हैं । जिस तरह से एक हिन्दू गर्व के साथ यह कहता है कि वह एक भारतीय है और हिन्दू धर्म को मानता है उसी तरह से उतने ही गर्व के साथ हम कह सकते हैें कि हम भी भारतीय हैं और इस्लाम को मानतें हैं । इसी तरह इसाई भी यह बात कह सकते हैं । मौलाना आजाद के अध्यक्ष रहने के दौरान 1942 में भारत छोडो आंदोलन शुरू हुया । और तक उन्होंने देश भर की यात्रा की और जगह जगह लोगो को राष्ट्र होने का अर्थ समझाया और आजादी की मशाल को घर घर तक ले गए । उस समय देश की बंटवारे की बात चलने लगी थी । मौलाना आजाद ने इसका खुलकर विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया । उन्होंने स्पष्ट तौर पर जिन्ना की पाकिस्तान बनाने की मांग को गलत ठहराया और मुल्क के बंटवारे को गैरवाजिब करार दिया । देश में सांप्रदायिक हिंसा का ज्वार बढने लगा था । ऐसे में मौलाना आजाद अपनी जान की परवाह किए बगैर हिंसा से जूझ रहे इलाको में गए और शांति बहाली के प्रयास किए और हिन्दू मुसलमान एकता के कमजोर पडते धागे में नयी जान फ्ू ंकने की कोशिश की । मौलाना आजाद धर्म के आधार पर बनने वाले मुल्क की कमजोर बुनियाद को अच्छी तरह समझते थे इसलिए वह हरचंद यही कोशिश करते रहे कि देश की नसों मे धर्मनिरपेक्षता का रक्त दौडे ताकि मुल्क हमेशा आबाद रहे । पाकिस्तान आज धर्म के नाम होने वाले जिस आतंकवाद के जिन्न से जूझ रहा है उसे इस इस्लाम के महान विद्वान ने अपनी दूरदशता से पहले ही भांप लिया था इसलिए उनका पाकिस्तान बनाये जाने से हमेशा विरोध रहा । आजादी के बाद बने मंत्रिमंडल में मौलाना आजाद को शिक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया । तब मौलाना आजाद ने ऐसे शिक्षा तंत्र की कल्पना की जिसमें बुनियादी तालीम निशुल्क हो और उच्च शिक्षा के आधुनिक संस्थान हों । मौलाना आजाद ने ही देश में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान .आई आई टी . और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना क ा स्वप्न बुना । बाइस फ्रवरी वर्ष 1958 में मौलाना आजाद का निधन हो गया । मौलाना आजाद की किस्मत ने शायद कुछ और ही लिखा था । जैसे जैसे उनमें उम्र के साथ तजुर्बे का इजाफ होने लगा वैसे वैसे उन्हें महसूस होने लगा कि दीनी तालीम के अलावा उन्हें दुनियावी तालीम की जानकारी होनी चाहिए । यह सोचकर मौलाना आजाद ने अंग्रेजी की शिक्षा लेनी शुरू कर दी । और बाद में उन्होंने .इतिहास . पश्चिमी दर्शन शास्त्र तथा समकालीन राजनीतिक विचारों को जाना । इससे उन्हें यह समझने मे आसानी हुयी कि दुनिया ूंमें और क्या कुछ चल रहा है। इसी दौरान महान शिक्षा शास्त्री सर सैयद अहमद खां के सुधारवादी विचारों से उनका परिचय हुया । इन विचारों ने मौलाना आजाद पर काफ्ी प्रभाव डाला । अपने विद्रोही स्वभाव और राजनीतिक झुकाव के चलते मौलाना आजाद ने तब पत्रकारिता की राह पकड ली और 1912 में एक उर्दू साप्ताहिक .अल हिलाल .शुरू किया । इसके जरिए उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता की जोरदार वकालत करते हुए ब्रिटिश नीतियों की जमकर आलोचना शुरू कर दी । मौलाना आजाद ने अपने अखबार में अंग्रेज हुक्मरानों की साम्राज्यवादी नीतियों के कारण आम आदमी को हो रही मुश्किलों को सामने रखा लेकिन ब्रितानी सरकार उनक ी इस सच बयानी से चिढ गयी और प्रेस एक्ट बना कर अल हिलाल पर प्रतिबंध लगा दिया 1लेकिन मौलाना आजाद इससे रूकने वाले कहां थे उन्होंने अल बलाग नाम का दूसरा अखबार शुरू कर दिया और साम्प्रदायिक एकता और राष्ट्रवादी विचारों की अलख जगानी शुरू कर दी । यह वह दौर था. जब तुर्की के सुल्तान या जिसे खलीफ भी कहते थे के खिलाफ् अंग्रेजों की बदनीयती के विरोध में खिलाफ्त आंदोलन शुरू हो रहा था । मौलाना आजाद भी इस आंदोलन में कूद पडे । इससे अंग्रेज सरकार के क्र ोध की सीमा नहीं रही और उसने दमनकारी कदम उठाते हुए मौलाना आजाद के दूसरे अखबार को नया कानून डिफ्सें आफ् इंडिया रेग्यूलेशन एक्ट बना कर बंद कर दिया और उन्हें गिरफ्तार करके रांची जेल भेज दिया। उन्हें एक जनवरी 1920 को जेल से रिहा किया गया । तब तक भारत के परिद्यश्य पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और देश पर गांधी जी का प्रभाव गहरा रंग जमाने लगा था । उन्होंने असहयोग आंदोलन की शुरूआत की । मौलाना आजाद और अली बंधुओं ने इस आंदोलन को हाथों हाथ लिया और वे बरतानिया हुकूमत के स्कू ल .कालेज. न्यायालय .नौकरियों का बहिष्कार और स्वदेशी के प्रचार में जोर शोर से लग गए । यह वह वक्त था .जब मौलाना आजाद ने अपने साथियों के साथ जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की स्थापना की । असहयोग आंदोलन के बाद राष्ट्रवादी नेताओं में पैदा हुये मतभेदों में मौलाना आजाद ने गांधी जी का साथ दिया । सविनय अवज्ञा आंदोलन में बढ चढ कर हिस्सा लेने के कारण उन्हें एक बार फ्रि जेल भेज दिया गया । मौलाना आजाद ने 1935 के दौरान मुस्लिम लीग और जिन्ना एवं कांग्रेस के साथ बातचीत की वकालत की ताकि राजनीतिक आधार को विस्तार दिया जा सके । लेकिन जब जिन्ना ने दूसरी राह पकडी तो मौलाना आजाद ने उनकी आलोचना करने में कोई कोताही नहीं बरती । सन 1938 में आजाद ने गांधी जी के समर्थकों एवं तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष सुभाष चंद्र बोस के बीच पैदा हुयी तकरार को दूर करने में अहम भूमिका निभायी । मुस्लिम लीग ने जब 1940 में लाहौर मे हुए अधिवेशन में पाकिस्तान की मांग रखी तो उस समय मौलाना आजाद कांग्रेस के रामगढ अधिवेशन में कांग्रेस अध्यक्ष चुने गए थे । तब उन्होने जिन्ना के
दो राष्ट्र के सिध्दांत की जमकर खबर ली । मौलाना आजाद ने यह मानने से इंकार कर दिया कि मुसलमान और हिन्दू धर्म के आधार पर दो अलग राष्ट्र हैं । इस्लाम धर्म के इस गहरे जानकार ने इस्लाम के आधार पर बनने वाले देश को अस्वीकार कर दिया । उन्होने सभी मुसलमानों से हिन्दुस्तान में ही रहने की बात कही ।
मौलाना आजाद ने अपने अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिन्दुस्तान की धरती पर इस्लाम को आये 11 सदी बीत गयी है और अगर हिन्दू धर्म यहां के लोगो ंका हजारों सालों से धर्म रहा है तो इस्लाम को भी हजार साल हो गए हैं । जिस तरह से एक हिन्दू गर्व के साथ यह कहता है कि वह भारतीय है और हिन्दू धर्म को मानता है .उसी तरह से उतने ही गर्व के साथ हम कह सकते हैं, कि हम भी भारतीय हैं और इस्लाम को मानते हैं । इसी तरह इसाई भी यह बात कह सकते हैं । मौलाना आजाद के अध्यक्ष रहने के दौरान 1942 में भारत छोडो आंदोलन शुरू हुया । उस दौरान उन्होंने देश भर की यात्रा की और जगह जगह लोगों को राष्ट्र होने का अर्थ समझाया और आजादी की मशाल को घर घर तक ले गए ।
उस समय देश की बंटवारे की बात चलने लगी थी । मौलाना आजाद ने इस पर खुलकर विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया । उन्होंने स्पष्ट तौर पर जिन्ना की पाकिस्तान बनाने की मांग को गलत ठहराया और मुल्क के बंटवारे को गैरवाजिब करार दिया । देश में सांप्रदायिक हिंसा का ज्वार बढने लगा था । ऐसे में मौलाना आजाद अपनी जान की परवाह किए बगैर हिंसा से जूझ रहे इलाकों में गए और शांति बहाली के प्रयास किए तथा हिन्दू मुस्लिम एकता की कमजोर पडती भावनाओं में जान फ्ू ंकने की कोशिश की । मौलाना आजाद धर्म के आधार पर बनने वाले मुल्क की कमजोर बुनियाद को अच्छी तरह समझते थे इसलिए वह हरचंद यही कोशिश करते रहे कि देश की नसों मे धर्मनिरपेक्षता का रक्त दौडे ताकि मुल्क हमेशा आबाद रहे । पाकिस्तान आज धर्म के नाम होने वाले जिस आतंकवाद के अभिशाप से जूझ रहा है उसे इस इस्लाम के महान विद्वान ने अपनी दूरदशता से पहले ही भांप लिया था इसलिए उनका पाकिस्तान बनाये जाने से हमेशा विरोध रहा ।
आजादी के बाद बने मंत्रिमंडल में मौलाना आजाद को शिक्षा मंत्रालय का प्रभार दिया गया । तब मौलाना आजाद ने ऐसे शिक्षा तंत्र की कल्पना की .जिसमें बुनियादी तालीम निशुल्क हो और उच्च शिक्षा के आधुनिक संस्थान हों । मौलाना आजाद ने ही देश में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान .आई आई टी . और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना क ा स्वप्न बुना । बाइस फरवरी वर्ष 1958 में इस महान जननायक आजाद का निधन हो गया ।
बुधवार, 11 नवंबर 2009
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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