गुरुवार, 26 नवंबर 2009
महँगाई का असर जनप्रतिनिधियों पर क्यों नहीं होता?
डॉ. महेश परिमल
लो, अब शक्कर और महँगी हो गई। बढ़ती महँगाई पर तो काबू नहीं पाया जा रहा है, तो दूसरी तरफ हमारे मंत्रीगण अपने बयानों से बाज नहीं आ रहे हैं। महँगाई बढ़ेगी, तो सबसे अधिक प्रभावित गरीब वर्ग ही होगा। नेताओं को कोई फर्क नहीं पडऩे वाला? यह इस देश का दुर्र्भाग्य है कि जनता का प्रतिनिधि लखपति ही नहीं, बल्कि करोड़पति होता है। जब भी देश में विधान सभा या लोकसभा चुनाव होते हैं, तब पता चलता है कि हमारे किस प्रतिनिधि के पास कितनी संपत्ति है। करोड़पति सांसदों और विधायकों से कैसे अपेक्षा की जा सकती है कि वे महँगाई को समझ पाएँगे? आम जनता के दु:ख-दर्द को महसूस करेंगे? कोई उनसे यह पूछने वाला नहीं है कि उनकी संपत्ति मात्र कुछ ही वर्षों में इतनी अधिक कैसे हो गई? क्या जनता का प्रतिनिधित्व करना इतना फायदेमंद सौदा है? यदि सचमुच ऐसा ही है, तो फिर देश के हर नागरिक को एक बार तो जनप्रतिनिधि बनना ही चाहिए। जब तक इस देश में आम जनता का प्रतिनिधि वीआईपी होगा, तब तक गरीब और गरीब होते रहेंगे और अमीर और अमीर?
देश की गरीब से गरीब जनता से विभिन्न करों के रूप में धन बटोरने वाली सरकार के जनप्रतिनिधि लगातार स्वार्थी बनते जा रहे हैं। उन्हें दूसरों की खुशी बर्दाश्त नहीं होती। अपना तो देख नहीं पाते, पर दूसरे जो अपनी मेहनत से प्राप्त कर रहे हैं, वह उनकी आँखों में खटक रहा है। अब हमारे मंत्री सलमान खुर्शीद को ही देख लो, वे कहते हैं कि देश की निजी कंपनियों के सीईओ को दिए जाने वाले वेतन में कटौती की जाए। इनसे भी आगे निकले कृषि मंत्री शरद पवार। वे कहते हैं कि देश में मानसून की बेरुखी के कारण अब महँगाई बढ़ती रहेगी, आम जनता को इसके लिए मानसिक रूप से तैयार रहना चाहिए।
उक्त दोनों मंत्रियों के बयान कितने बचकाना हैं, यह सर्वविदित है। अब इन्हें कौन बताए कि जरा अपने गरेबां में झाँक लेते, तो शायद ऐसा नहीं कहते। क्या कभी यह सुनने में आया कि किसी मंंंंंंंंंंंत्री, सांसद या विधायक को धन की कमी के कारण भूखे रहना पड़ा, या फिर इलाज नहीं करवा पाए? या फिर अपनी बेटी की शादी नहीं कर पाए? जब सब पर मुसीबत आती है, तब इन पर क्यों नहीं आती। मंदी के दौर में भी इन लोगों के खर्च पर किसी प्रकार की कटौती नहीं हुई, फिर भला ये कैसे कह सकते हैं कि गरीब जनता महँगाई से निबटने के लिए तैयार रहें। क्या ये अपनी तरफ से कुछ ऐसी कोशिशें नहीं कर सकते, जिससे आम जनता को राहत मिले। दूसरी ओर यदि कंपनियाँ अपने कर्मचारियों के कामों से खुश होकर उन्हें यदि अच्छा वेतन देती हैं, तो हमारे मंत्री को भला क्या आपत्ति है?
इन नेताओं ने कभी यह तो नहीं कहा कि आखिर नेताओं की संपत्ति दिन दुनी रात चौगुनी कैसे बढ़ रही है? क्या इसका किसी ने कभी विरोध किया? हाल ही में महाराष्ट्र, अरुणाचल और हरियाणा विधान सभा के चुनाव हुए। चुनाव के पूर्व जनप्रतिनिधियों ने अपनी-अपनी संपत्तियों के बारे में जानकारी दी। आपको आश्चर्य होगा कि इन तीनों राज्यों के प्रतिनिधि लखपति नहीं, करोड़पति हैं!
नेशनल इलेक्शन वॉच (एनईडब्ल्यू) नामक एक सामाजिक संस्था ने एक व्यापक सर्वेक्षण किया। इसके अनुसार हरियाणा विधान सभा के २००९ के चुनाव में कुल ४२ लोगों ने अपनी उम्मीदवारी घोषित की। इनकी संपत्ति का ब्योरा आश्चर्यजनक है। २००४ की तुलना में प्रत्येक विधायक की संपत्ति में 4 करोड़ ८० लाख की वृद्धि हुई। इसे यदि दूसरे शब्दों में कहें, तो हरियाणा के इन ४२ विधायकों की संपत्तियों में ३८८ प्रतिशत की जंगी वृद्धि देखी गई। इसकी गहराई में जाएँ, तो स्पष्ट होगा कि इन विधायकों की संपत्तियों में हर महीने ८ लाख रुपए की वृद्धि हुई। यानी हर घंटे इन्होंन अपनी संपत्तियों में ११०० रुपए की वृद्धि की।
हरियाणा के उक्त ४२ विधायकों से सीधा सवाल यह करना चाहिए कि आपके पास इतनी अधिक संपत्ति आई कहाँ से? यदि एक विधायक के नाते उन्हें मिलने वाली तमाम राशि को जोड़ा जाए, तो भी इतनी राशि नहीं होती। आखिर उन्होंने ५ वर्ष में ऐसा क्या किया, जिससे उनकी संपत्ति में ३८८ प्रतिशत की बेतहाशा वृद्धि हुई? इसमें भी चार कांगे्रसी विधायकों की संपत्ति सबसे अधिक है? क्या सलमान खुर्शीद को इन विधायकों की संपत्ति दिखाई नहीं देती? यदि दिखाई दे रही है, तो फिर आपको यह अधिकार कहाँ से मिला कि आप सीईओ के वेतन में कटौती की बात करें।
नेशनल इलेक्शन वॉच के अनुसार हरियाणा के चार सबसे अमीर कांगे्रसी विधायकों के खजाने में ८०० प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। देश की जनता यह पूछना चाहती है कि क्या इन विधायकों पर किसी प्रकार का कानून लागू नहीं होता? उनके परिवारों को महँगाई क्यों आड़े नहीं आती? कुछ दिलचस्प बातें भी सामने आईं, जिसमें एक विधायक ने यह कहा है कि उनके पास संपत्ति के नाम पर केवल ३००० रुपए ही हैं। एक विधायक ने तो यहाँ तक कहा है कि उसके पास एक फूटी कौड़ी तक नहीं है? सवाल यह उठता है कि आखिर चुनाव में खर्च करने के लिए उनके पास धन कहाँ से आया? शायद ये विधायक देश की जनता को मूर्ख समझते हैं।
महाराष्ट्र के विधायक भी हरियाणा के विधायक से कम नहीं हैं। महाराष्ट्र के प्रत्याशियों की संपत्तियों में कुल ३३ प्रतिशत का इजाफा देखा गया। कुल ३५०० में से ८०० प्रत्याशियों के शपथपत्र का अध्ययन करने के बाद यह सामने आया कि हर चार प्रत्याशियों में से एक लखपति है। २१२ प्रत्याशी तो करोड़पति हैं। इसमें कांग्रेस के ४२, भाजपा-शिवसेना और राष्ट्रवादी कांगे्रस समेत प्रत्येक दल के २९ प्रत्याशी करोड़पति हैं। इनकी बढ़ती हुई संपत्तियों का हिसाब कौन पूछेगा? दूसरी ओर अपनी कंपनी के लिए दिन-रात एक करने वाले, कंपनी को अधिक से अधिक मुनाफा दिलाने वाले, अपना विवेक और श्रम का भरपूर उपयोग करने वाले सीईओ तनाव और स्पर्धा में अपना बेहतर प्रदर्शन करते हैं, इससे खुश होकर कंपनी यदि उन्हें आकर्षक वेतन देती है, तो इन नेताओं को क्या आपत्ति है? कोई बता सकता है? यदि विधायक बनने के बाद संपत्ति इतनी तेजी से बढ़ती है, तो देश के हर नागरिक को यह अधिकार होना चाहिए कि वह ५ वर्ष तक विधायक बने। हमारा देश इन विधायकों की संपत्ति नहीं हो सकता। ये भले ही स्वयं को भारत का भाग्य विधाता कहें, पर सच क्या है, यह जनता बहुत ही अच्छी तरह से जानती है।
डॉ. महेश परिमल
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आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
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पहले ये सब छुपाते थे अब गर्व से बताते हैं
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