सोमवार, 23 नवंबर 2009
चीन में आ गई फ्रो जी तकनीक
चीन में आया फ्रो जी हम अभी थ्री जी पर अटके
पड़ोसी देश चीन में दूरसंचार क्षेत्र की नई तकनीक फ्रो ४ जी टेक्नोलाजी के आगमन की घोषणा हो गई है। मजे की बात यह है कि भारत में इससे पुरानी तकनीक यानी की थ्री जी सेवाएं अभी शैशवास्था में ही है। इस नई फ्रो जी तकनीक की मदद से आंकड़े बहुत तेजी से प्रेषित हो सकेंगे। यह गति वर्तमान थ्री जी तकनीक की गति से बीस से तीस गुना तक ज्यादा होगी। इसका चीन में २०११ तक प्रयोग होने लगेगा। वैसे वर्तमान में विश्वस्तर पर टू जी तकनीक का अधिक इस्तेमाल हो रहा है और थ्री जी तकनीक अभी लोगों में ज्यादा पैठ नहीं बना पाई है, लेकिन तकनीक की चौथी पीढ़ी ने पांव पसारने शुरू कर दिए हैं। यूं तो तकनीक के महारथी पांच जी की भी बात करने लगे हैं, लेकिन अभी इसके बारे में कुछ ठोस तरीके से कह पाना मुमकिन नहीं है, लेकिन फ्रो जी तकनीक का खाका तैयार हो चुका है।
टू जी तकनीक के साथ एक बड़ी मुश्किल यह है कि इसके जरिए आंकडे प्रेषित करने की गति बहुत कम है। इस वजह से वीडियो क्रांफ्रेंसिंग या म्युजिक, वीडियो डाउनलोड करने का काम नहीं हो पाता। वैज्ञानिकों ने इस चुनौती को स्वीकारा और इसे सुधारते हुए २.५ जी. जीपीआरएस. पेश की। इस नई तकनीक ने डाटा संप्रेक्षण की दर में सुधार किया। इस दिशा में और प्रयास किए गए और नतीजे के तौर पर थ्री जी तकनीक सामने आई। इसके जरिए दो मेगाबाइट प्रति सेकण्ड की दर से डाटा भेजना संभव हो सका। लेकिन कहा जा रहा है कि इसके बाद आई फ्रो जी तकनीक से सौ मेगाबाइट प्रति सेकेण्ड तक की दर से यह काम हो सकेगा। इस टू जी .थ्री जी या फ्रो जी में इस्तेमाल होने वाला शब्द 'जीÓ किसी सम्मान का सूचक नहीं, बल्कि यह शब्द जेनरेशन यानी की पीढ़ी की वर्तनी का पहला शब्द जी का प्रतिनिधित्व क रता है। तब टू जी का आशय हुआ, दूसरी पीढी और थ्री जी का तीसरी पीढी जबकि फ्रो जी का मतलब हुया चौथी पीढ़ी। दरअसल तकनीक का विकास इसी तरह हो रहा है। किसी तकनीकी वस्तु में विकास के चरणों को पीढिय़ों का नाम दिया जाता है। पूरे विश्व में इस समय धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रही टू जी तकनीक से पहले वन जी तकनीक का इस्तेमाल हो रहा था। इस तकनीक से तार रहित दूरसंचार मशीन का प्रयोग संभव हो सका। आम लोगों की भाषा में इसे मोबाइलफोन या सेल फोन का नाम दिया गया। यह तकरीबन १९८० के दशक की बात है। वैज्ञानिकों ने इसके पहले की तकनीक को शून्य या जीरो जी पीढ़ी का नाम दिया है। इसके तहत मोबाइल रेडियो टेलीफोन 'पुश टू टाक' आदि तकनीकों को रखा गया है। वन जी तकनीक में सिग्नल की पुरानी तकनीक एनालाग का इस्तेमाल होता था जबकि टू जी तकनीक में डिजीटल तकनीक का इस्तेमाल होने लगा। डिजीटल तकनीक के प्रयोग से दूरसंचार के क्षेत्र में संचार के काम में बहुत बडा बदलाव आ गया। अब आंकड़ों का संप्रेषण कहीं ज्यादा आसान हो गया बल्कि इससे भी ज्यादा आंकड़ों को भेजे जाने की दर भी पहले से कहीं ज्यादा हो गई। तीसरी पीढी यानी की थ्री जी के आने से यह काम और तेजी से होने लगा जिसका असर यह रहा कि मोबाइल फोन के जरिए वीडियो काल या इंटरनेट और टीवी का इस्तेमाल होने लगा। अब चौथी पीढ़ी की तकनीक फ्रो जी के तहत यही आंकड़े भेजे जाने की दर से कम से कम बीस गुनी से अधिक हो जाएगी। इसके अलावा प्रति काल की लागत थ्री जी के मुकाबले बहुत कम हो सकती है। विशेषज्ञों के अनुसार फ्रो जी तकनीक में यह संभव हो सकेगा कि दो लोगों से एक साथ विडियो बातचीत हो सके। इसके अलावा एक ही फोन को विश्व की सभी जगहों पर इस्तेमाल किया जा सकेगा। इसका एंटीना पहले से कहीं ज्यादा बेहतर होगा और इसके अलावा सुरक्षा संबंधी पहलू पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होंगे। वैज्ञानिक कोशिश कर रहे हैं कि फ्रो जी तकनीक में गले का इस्तेमाल किए बिना ही ध्वनि भेजी जा सके। इसका मतलब हुआ कि बटन के जरिए ही आवाज दूसरे छोर पर आ सके। इसके अलावा यह भी जाना जा सके कि काल किस दिशा से आ रही है और दोस्त कितनी दूरी पर है। जानकारों के अनुसार यह संभव है कि यह सारे गुण शायद फ्रो जी में मुहैया न कराएं जा सकें। इसके लिए लोगों को फाइव जी का इंतजार करना होगा। हो सकता है कि यह नवीनतम फ्रो जी तकनीक अपनी ऊँची लागत के कारण शायद व्यावसायिक इस्तेमाल में फिलहाल नहीं लाई जाए। कोशिशें ये हो रहीं हंै कि थ्री जी और फ्रो जी के मध्य की तकनीक पर जोर दिया जाए। इसे सुपर थ्री जी का नाम दिया जा रहा है। फ्रो जी को पीछे धकेलने की कंपनियों की एक मजबूरी यह भी है कि कंपनियों ने अपना काफी धन थ्री जी सेवाओं के विस्तार में लगा दिया है और फिलहाल उनकी मंशा यह है कि इन सेवाओं से मिलने वाले पैसा का इस्तेमाल वे फ्रो जी को स्थापित करने में करे। लेकिन चूंकि तकनीक को रोका नहीं जा सकता इसलिए एक बीच का रास्ता अपनाते हुए सुपर थ्री जी तकनीक की बात कही जा रही है।
शोभित जायसवाल
लेबल:
आज का सच
जीवन यात्रा जून 1957 से. भोपाल में रहने वाला, छत्तीसगढ़िया गुजराती. हिन्दी में एमए और भाषा विज्ञान में पीएच.डी. 1980 से पत्रकारिता और साहित्य से जुड़ाव. अब तक देश भर के समाचार पत्रों में करीब 2000 समसामयिक आलेखों व ललित निबंधों का प्रकाशन. आकाशवाणी से 50 फ़ीचर का प्रसारण जिसमें कुछ पुरस्कृत भी. शालेय और विश्वविद्यालय स्तर पर लेखन और अध्यापन. धारावाहिक ‘चाचा चौधरी’ के लिए अंशकालीन पटकथा लेखन. हिन्दी गुजराती के अलावा छत्तीसगढ़ी, उड़िया, बँगला और पंजाबी भाषा का ज्ञान. संप्रति स्वतंत्र पत्रकार।
संपर्क:
डॉ. महेश परिमल, टी-3, 204 सागर लेक व्यू होम्स, वृंदावन नगर, अयोघ्या बायपास, भोपाल. 462022.
ईमेल -
parimalmahesh@gmail.com
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
Post Labels
- अतीत के झरोखे से
- अपनी खबर
- अभिमत
- आज का सच
- आलेख
- उपलब्धि
- कथा
- कविता
- कहानी
- गजल
- ग़ज़ल
- गीत
- चिंतन
- जिंदगी
- तिलक हॊली मनाएँ
- दिव्य दृष्टि
- दिव्य दृष्टि - कविता
- दिव्य दृष्टि - बाल रामकथा
- दीप पर्व
- दृष्टिकोण
- दोहे
- नाटक
- निबंध
- पर्यावरण
- प्रकृति
- प्रबंधन
- प्रेरक कथा
- प्रेरक कहानी
- प्रेरक प्रसंग
- फिल्म संसार
- फिल्मी गीत
- फीचर
- बच्चों का कोना
- बाल कहानी
- बाल कविता
- बाल कविताएँ
- बाल कहानी
- बालकविता
- भाषा की बात
- मानवता
- यात्रा वृतांत
- यात्रा संस्मरण
- रेडियो रूपक
- लघु कथा
- लघुकथा
- ललित निबंध
- लेख
- लोक कथा
- विज्ञान
- व्यंग्य
- व्यक्तित्व
- शब्द-यात्रा'
- श्रद्धांजलि
- संस्कृति
- सफलता का मार्ग
- साक्षात्कार
- सामयिक मुस्कान
- सिनेमा
- सियासत
- स्वास्थ्य
- हमारी भाषा
- हास्य व्यंग्य
- हिंदी दिवस विशेष
- हिंदी विशेष
हमें कबाड़ खरीदने में महारत हासिल है .
जवाब देंहटाएं