शुक्रवार, 28 दिसंबर 2007

ख़तरे में है भावी पीढ़ी का भविष्य

डॉ. महेश परिमल
एक बार किसी ने मजाक में कह दिया कि सन् 2035 में किसी एक दिन अखबार का एक शीर्षक लोगों को निश्चित रूप से चौंका देगा, शीर्षक होगा- एक महिला की नार्मल डिलीवरी हुई। यह बात भले ही मजाक में कहीं गई हो, पर सच तो यह है कि आजकल जिस तरह से सिजेरियन ऑपरेशन का प्रचलन बढ़ रहा है और माताएँ जिस तरह प्रसव वेदना से मुक्ति और इच्छित मुहूर्त में अपनी संतान का जन्म चाहते हैं, उसे देखते हुए तो अब नार्मल डिलीवरी किसी आश्चर्य से कम नहीं होगी। हाल ही में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने शोध में यह चौंकाने वाला परिणाम दिया है कि यही हाल रहा, तो भावी पीढ़ी का भविष्य अभी से ही खतरे में है।
आजकल कोई भी शहरी बच्चा 'नार्मल' पैदा होता ही नहीं है। सुदूर गाँवों की स्थिति अच्छी है। इसका आशय यही हुआ कि आजकल जो बच्चे नार्मल पैदा नहीं हो रहे हैं, उसके पीछे शिक्षा का दोष है। सिजेरियन ऑपरेशन से होने वाले लाभ और हानि की जाँच के लिए ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधर्ाकत्ताओं ने लैटिन अमेरिका की 120 अस्पतालों में जन्म लेने वाले बच्चों की जाँच की, तो पाया कि इनमें से 33 हजार 700 बच्चे सिजेरियन ऑपरेशन से पैदा हुए थे, शेष 66 हजार 300 बच्चे नार्मल डिलीवरी से इस दुनिया में आए थे। इस शोध में यह चौंकाने वाली जानकारी मिली कि जिन महिलाओं ने बिना किसी आपात स्थिति सिजेरियन ऑपरेशन करवाया, उनकी मृत्यु दर में 70 प्रतिशत की वृध्दि हुई। ऑल इंडिया इंस्टीटयूट ऑफ मेडिकल साइंस की गायनेकोलोजिस्ट डॉ. नीरजा भाटिया का कहना है कि भारत में सिजिरियन डिलीवरी की संख्या 5 प्रतिशत से बढ़कर 50 प्रतिशत हो गई है। इसकी मुख्य वजह यही है कि शिक्षित महिलाएँ आजकल प्रसूति पीड़ा से घबराने लगी हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व में होने वाले 6 डिलीवरी में से एक प्रसूति तो सिजेरियन ही होती है।अमेरिका में तो यह संख्या 29.1 जितनी अधिाक है।ब्रिटेन में 20 प्रतिशत महिलाएँ अपनी डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन से ही करवाना पसन्द करती हैं।ब्राजील जैसे विकासशील देश में तो यह संख्या 80 प्रतिशत तक पहुँच गई है। भारत में अभी भी 70 प्रतिशत डिलीवरी सिजेरियन ऑपरेशन के माधयम से ही हो रही है। इसके पीछे चिकित्सकों की अहम् भूमिका है। जो महिलाएँ नार्मल डिलीवरी चाहती हैं, उनकी ओर विशेष धयान नहीं दिया जाता। उन्हें सिजेरियन ऑपरेशन के लिए बाधय किया जाता है। सरकारी अस्पतालों में मात्र 20 प्रतिशत ऑपरेशन ही सिजेरियन होते हैं, क्योंकि इन अस्पतालों में पदस्थ डॉक्टरों को सिजेरियन ऑपरेशन करने से कोई आर्थिक लाभ नहीं होता।
आज शिक्षित और उच्च वर्ग की महिलाओं में सिजेरियन ऑपरेशन करवाने का फैशन ही चल रहा है। ब्रिटनी स्पीयर्स, एंजेलिना जॉली और मेडोना जैसी अभिनेत्रियों की राह पर आज की आधुनिक माँए भी चल रही हैं। शहर की नाजुक महिलाएँ भी प्राकृतिक रूप से होने वाली प्रसूति से घबराने लगी हैं। डॉक्टरों के सामने वे कई बार स्वयं ही सिजेरियन ऑपरेशन करवाने का आग्रह करती हैं। ये नाजुक महिलाएँ यह सोचती हैं कि सिजेरियन ऑपरेशन से शरीर को कोई नुकसान नहीं होता। दूसरी ओर नार्मल डिलीवरी से शरीर को खतरा है। यहाँ तक कि जो माताएँ टेस्ट टयूब के माधयम से माँ बनती हैं, वे भी अपना पेट चीरवाकर सिजेरियन ऑपरेशन करवाना चाहती हैं। पिछले कुछ वर्षों में सिजेरियन ऑपरेशन से डिलीवरी होने का मुख्य कारण यह माना जा रहा है कि यह चिकित्सकों के लिए लाभकारी है। शिक्षित होने के कारण कई महिलाएँ आधुनिक टेक्नालॉजी पर अधिक विश्वास करती हैं, इसलिए वे भी सिजेरियन ऑपरेशन का आग्रह रखती हैं। कई बार तो स्थिति नार्मल डिलीवरी की होती है, फिर भी चिकित्सक सिजेरियन ऑपरेशन के लिए बाधय करते हैं। दिल्ली की ऑल इंडिया इंस्टीटयूट की डॉ. सुनीता मित्तल का कहना है कि सिजेरियन ऑपरेशन आज हमारे देश में एक संक्रामक रोग की तरह फैल रहा है।
एक बात ध्यान देने योग्य है कि जितने भी सिजेरियन ऑपरेशन होते हैं, उनमें से अधिकांश सुबह दस बजे से शाम 5 बजे तक ही होते हैं, वह भी शनिवार और रविवार को छोड़कर। ऐसा भी क्या होता होगा? नहीं, बात दरअसल यह है कि यदि रात में नार्मल डिलीवरी होनी है, तो चिकित्सकों को रात भर जागना पड़ेगा। इसके अलावा यदि चिकित्सक ने शनिवार या रविवार की डेट दी है, तो फिर हो गई छुट्टी खराब। ऐसे में कमाई भी नहीं होगी और धान भी नहीं मिलेगा। तो क्यों न नार्मल डिलीवरी वाले ऑपरेशन भी सिजेरियन कर दिए जाएँ और कमाई भी कर ली जाए। दूसरी ओर चिकित्सकों के अपने ज्योतिष होते हैं या फिर जो महिलाएँ उन पर विश्वास करती हैं, वे शुभ मुहूर्त पर अपनी संतान को लाने का प्रयास करती हैं, इसके लिए तो सिजेरियन ऑपरेशन ही एकमात्र उपाय है। किसी भी अस्पताल में नार्मल डिलीवरी करानी हो, तो उसका खर्च चार से पाँच हजार रुपए आता है। वहीं सिजेरियन में मात्र शल्य क्रिया का ही खर्च 15 से 20 हजार रुपए आता है। यदि इसमें ऐनेस्थिसिया, सहायक, पेडियाट्रिशियन और अस्पताल के खर्च को शामिल कर दिया जाए, तो यह बढ़कर 50 हजार रुपए तक हो जाता है। मधयम वर्ग के लिए तो यह खर्च करना आवश्यक हो जाता है। आजकल निजी अस्पतालों से जुड़े गायनेकोलोजिस्ट अपना वेतन तक नहीं लेते, वे जो सिजेरियन ऑपरेशन करते हैं, उनमें ही उनकी मोटी फीस शामिल होती है। ये कमाई दो नम्बर की होती है। हाल ही में मुम्बई के उपनगर घाटकोपर में एक गायनेकोलोजिस्ट के घर पर आयकर का छापा मारा गया, तो यह पाया गया कि उस महिला ने अपने पलंग के गद्दे में रुई के स्थान पर ठूँस-ठँसकर नोट भरकर उसे गद्देदार बनाया था। आजकल अधिकांश गायनेकोलोजिस्ट की कमाई सिजेरियन ऑपरेशन और गर्भपात से हो रही है।
सिजेरियन ऑपरेशन को निरापद मानने वाले यह भूल जाते हैं कि यह भी खतरनाक साबित हो सकता है। कोई भी सर्जरी बिना जोखिम के नहीं होती।इस ऑपरेशन में भी अधिाक रक्तस्राव होता है, यह संक्रामक भी हो सकता है।दवाएँ भी रिएक्शन कर सकती हैं।बच्चे को जिन हथियारों से खींचकर बाहर निकाला जाता है, उससे भी उसे चोट पहुँच सकती है। सिजेरियन ऑपरेशन के बाद महिला को शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होने में काफी वक्त लगता है। इसके अलावा वह महिला पूरे जीवनभर भारी वजन नहीं उठा सकती। ऑपरेशन के तुरंत बाद माँ अपने बच्चे को दूध भी ठीक से नहीं पिला सकती। जबकि यह दूध बच्चे के लिए अमृत होता है। इस स्थिति में बच्चा माँ से अधिक आत्मीयता का अनुभव नहीं करता। यदि माँ सिजेरियन के लिए अधिक उतावली होती है, तब तक पेट में बच्चे का पूरी तरह से विकास नहीं हो पाता। नार्मल डिलीवरी में बच्चे के माथा एक विशेष तरह के दबाव के साथ बाहर आता है, इससे उसका आकार व्यवस्थित होता है।पर सिजेरियन वाले बच्चे के माथे का आकार थोड़ा विचित्र होता है। इस तरह के बच्चे श्वसन तंत्र के रोगों का जल्दी शिकार होते हैं।
आजकल प्रसूति के पहले डॉक्टर कई पेथालॉजी टेस्ट के लिए कहते हैं। इसमें अल्ट्रासोनोग्राफी से लेकर डोपलर टेस्ट भी होता है।इस थोकबंद टेस्ट में यदि किसी एक की भी रिपोर्ट में थोड़ा-सा ऊँच-नीच हुआ, तो डॉक्टर मरीज को डरा देते हैं और सिजेरियन ऑपरेशन की सलाह देते हैं। डॉक्टर की इस सलाह के खिलाफ जाने वाली बहुत ही कम माताएँ होती हैं। मरीज की इस स्थिति का लाभ चिकित्सक खूब उठाते हैं और खूब कमाई भी करते हैं। एक तरफ विदेश में अब नार्मल डिलीवरी के लिए क्लासेस शुरू की जा रही हैं और भारत के ग्रामीण इलाकों में आज भी अधिकांश डिलीवरी नार्मल हो रहीं हैं, ऐसे में केवल शहरों में ही सिजेरियन ऑपरेशन का चस्का शिक्षित महिलाओं को लगा है। बालक का जन्म एक प्राकृतिक घटना है, डॉक्टरों ने अपनी कमाई के लिए इसे कृत्रिम बना दिया है। यदि हम सब प्राकृतिक की ओर चलें, तो हम पाएँगे कि वास्तव में संतान का आना प्रकृति से जुड़ा एक अचंभा है, न कि डॉक्टरों की कमाई का साधान। आज यदि यह कहा जाए कि आज की टेक्नालॉजी का अभिशाप सिजेरियन ऑपरेशन है, तो गलत नहीं होगा।
डॉ. महेश परिमल

1 टिप्पणी:

  1. Aap ne Bahut Sahi Lika hai. Aaj Kal ke Doctor Ab Bhagwan nahi Shaitan ho gaye hai. apne swarth ke liye apne mariz ko kast dete hai.

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