डॉ. महेश परिमल
आज 26/11 यानी पूरी मायानगरी 3 दिनों तक आतंकियों के हवाले रहने की तारीख। इसी के साथ उन शहीदों की याद
भी, जिन्होंने देश के लिए खुद को कुर्बान कर दिया। उसके बाद
तो कसाब को कबाब देने से लेकर उसकी फांसी तक चली लम्बी राजनीति। हाल ही में देश
पूर्व विदेश सचिव शिवशंकर मेनन की किताब आई है, जिसमें इस
रहस्य से परदा उठाने की कोशिश की है कि आखिर भारत ने पाकिस्तान से 26/11 का बदला क्यों नहीं लिया? किताब में यह तो साफ नहीं
है कि जब राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी चाहते थे कि इसका पाकिस्तान को करारा जवाब दिया
जाना चाहिए, तो भी हम जवाब क्यों नहीं दे पाए? हाल ही में जब उड़ी में पाकिस्तानी आतंकियों ने हमारे देश के 18 जवानों की हत्या कर दी थी, तब उसका जवाब सर्जिकल
स्ट्राइक से दिया गया था। इसके बाद कांग्रेसियों का यह बयान आया कि इसके पहले भारत
ने कई बार सर्जिकल स्ट्राइक किया था, पर उसका प्रचार-प्रसार
नहीं किया था। प्रधानमंत्री द्वारा की गई कार्रवाई की आलोचना करते हुए विपक्षी
नेताओं ने यहां तक कह दिया था कि यह सर्जिकल स्ट्राइक फर्जी था। पर उन्हीं
कांग्रेसियों से यह पूछा जाए कि तो फिर भरत ने 26/11 का जवाब
क्यों नहीं दिया, तो सभी खामोश हो जाते हैं। इस पर कोई भी
कांग्रेसी कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं है।
26/11 के समय पूरा देश पाकिस्तान के
खिलाफ उबल रहा था। चारों तरफ केवल गुस्सा ही गुस्सा दिखाई दे रहा था। दस आतंकियों
ने पूरे देश को तीन दिनों तक खामोश कर दिया था। मायानगरी के तो हाल ही बुरे थे।
तीन दिनों तक वह आतंकियों की बंधक रही। उस समय सभी को यही लग रहा था कि यही समय है,
जब पाकिस्तान को करारा जवाब दे दिया जाए। राजनीतिक गलियारों में भी
इस दिशा में गंभीरता से सोचा जा रहा था। पर क्या हो रहा था, इसकी
अधिकृत जानकारी आज तक किसी को नहीं मिली। शिवशंकर मेनन ने इससे परदा उठाने की एक
छोटी सी कोशिश जरूर की है। पर बात पूरी तरह से साफ नहीं की है। पर जो कुछ बताया है,
उससे यह तो बिलकुल ही साफ हो जाता है कि आखिर किसके कहने से
पाकिस्तान को करारा जवाब नहीं दे पाए?
मुम्बई पर जब आतंकी हमला
हुआ, उस समय
विदेश सचिव शिवशंकर मेनन ही थे। अपनी किताब बिटवीन लाइंस’ में
वे लिखते हैं कि26/11 के बाद पूरे विश्व में भारत की यह छवि
उभरी कि भारतीय सैनिक कायर हैं। इसका मुख्य कारण यह था कि मुम्बई जब तक बंधक रही,
तो उसका लाइव प्रसारण टीवी के माध्यम से पूरी दुनिया देख रही थी। इस
वजह से भारतीय सैनिकों का भी खून खौल रहा था। वे तैयार थे, एक
इशारे के लिए, ताकि पूरी शिद्दत के साथ पाकिस्तान पर टूट
पड़ें। पर उनकी यह हसरत पूरी नहीं हो पाई। भारत को सक्षम होते हुए कायर मान लिया
गया। मेनन कहते हैं कि हमले के बाद वे निजी तौर पर पाकिस्तान पर हमले के पक्षधर
थे। उनके मत के अनुसार मुर्दिक में अथ्यावा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में स्थित
लश्करे तोयबा के प्रशिक्षण शिविर पर सर्जिकल स्ट्राइक करने का था। आगे वे कहते हैं
कि 26/11 के बाद भारत को शर्मसार हालात से बाहर लाने की
कोशिश की जानी थी। पूरी योजना थी कि पाकिस्तान पर सीधे न सही, पर कुछ अलग ही तरीके से प्रहार किया जाए। उस दौरान सुरक्षा सलाहकार
एम.के.नारायण ने देश की तीनों सेनाध्यक्षों के साथ मिलकर बैठक भी की थी। इसमें कुछ
बड़े नेता भी शामिल थे। मेनन ने उस दौरान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी और
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को यह समझाने का प्रयास किया था कि यदि विश्व में अपनी
साख बचानी है, तो हमें पाकिस्तान को करारा जवाब देना ही
होगा। इससे लोगों में जो गुस्सा उबल रहा है, उसे शांत किया
जा सकता है। उनका कहना था कि मेरे विचार से पाकिस्तान ने अब अपनी मर्यादा की सीमा
तोड़ दी है। इसलिए उसे करारा जवाब दिया जाना बहुत जरूरी है। यही वक्त का तकाजा है।
अपनी किताब में मेनन
लिखते हैं कि तत्कालीन विदेश मंत्री और इस समय राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी
पाकिस्तान पर हमले के पक्षधर थे। प्रणब मुखर्जी ने यहां तक कह दिया था कि भारत के
सभी विकल्प खुले हुए हैं। निजी बैठक में उन्होंने कहा था कि यदि भारत पाकिस्तान पर
हमला करता है, तो उसके
बाद जो हालात बनेंगे, उससे किस तरह से निपटा जाए। यहां तक
सोच लिया गया था कि यदि जवाब में पाकिस्तान भी भारत पर हमला करता है, तो उस समय क्या करना है? इस दौरान सभी कुछ ठीक था,
पाकिस्तान को करारा जवाब दे ही दिया जाए, जोश
के इस माहौल पर अचानक ही किसी ने ठंडा पानी डाल दिया। यह काम किसने किया, इसे तो मेनन ने किताब में नहीं बताया है, उन्होंने
इस संबंध में केवल इतना ही कहा है कि आखिर में यह तय हुआ कि पाकिस्तान पर आक्रमण
करने के बदले आतंकवादी हमले का राजनीतिक तरीके से जवाब दिया जाए। मेनन की किताब
बिटवीन लाइंस अभी तक पढ़ने में नहीं आई है। पूरी पढ़ने के बाद ही समझा जा सकता है कि
लोगों के उत्साह को कम करने का काम आखिर किसने किया? पाकिस्तान
के खिलाफ युद्ध न करने का फैसला तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का था,
जिनका रिमोट कांग्रेसाध्यक्ष सोनिया गांधी के हाथ में था। मेनन ने
ही लिखा है कि आखिर भारत ने पाकिस्तान पर हमला क्यों नहीं किया? इसका सीधा सा जवाब है कि सरकार के सर्वोच्च स्थान पर बैठे लोग ने ही यह तय
किया था कि पाकिस्तान पर हमला करने से कितना फायदा है, उससे
अधिक फायदा तो हमला न करने से है। आखिर यह सर्वोच्च किसका हो सकता है, कौन उस पर बैठा है, इसे उस समय के हालात से समझा ही
जा सकता है।
लश्करे तोएबा ने जब 13 दिसम्बर 2001 को देश की संसद पर हमला किया था, तब तत्कालीन
प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पाकिस्तान पर हमला करने के लिए तैयार हो गए थे।
पर अमेरिकी दबाव के कारण उन्होंने अपना विचार बदल दिया था। आज नरेंद्र मोदी के रूप
में देश का ऐसा प्रधानमंत्री मिला है, जो पाकिस्तान के
परमाणु बम से नहीं डरता, न ही अमेरिका के सामने झुकता है।
यही कारण है कि आज पाकिस्तान को नरेंद्र मोदी आंख की किरकिरी लग रहा है। पर सीधे
हमले न कर छद्म हमले कर रहा है। आज वह चारों तरफ से घिर गया है, ऐसे में अब उसका विरोध उसी के देश में हो रहा है। विरोध का यह स्वर लगातार
मुखर हो रहा है। पर 26/11 के वक्त ही पाकिस्तान को करारा
जवाब दे दिया जाता, तो आज हालात यह न होते।
डॉ. महेश परिमल
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें